भारत का फर्जी इतिहास -2, भारतीय भी मुसलमानों, अंग्रेजों की तरह विदेशी हैं
फर्जी इतिहास और उसके कपटी इतिकासकार-2
कुछ मिथ्या प्रचार
१. भारतीय भी विदेशी-अंग्रेजों की तरह भारतीय लोग भी विदेशी हैं।
२. मेगास्थनीज, हेरोडोटस, एरियन आदि सभी ग्रीक लेखकों ने लिखा है कि भारत एकमात्र देश है, जहां कोई भी बाहर से नहीं आया है। Indika (McCrinDle Edition)-Fragment 1-Para 38.
३. भारत के या अन्य किसी देश के किसी साहित्य में यह नहीं लिखा है कि आर्य लोग बाहर से आये। आर्य किसी जाति का नाम नहीं है, बड़े को या पितामह को आर्य (आजा) कहते हैं। अतः भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर खुदाई आरम्भ की। आज तक कोई लिपि नहीं मिली है, बच्चों के कुछ खिलोनों को कहा कि यह सिन्धुघाटी की लिपि है। उसे अभी तक कोई पढ़ नहीं पाया, पर उसे ठीक मानते हैं। भारत के जिन पुराणों को लोग ५००० वर्षों से पढ़ कर समझते आये हैं, वे गलत हैं। ३०१४ ई.पू. में जनमेजय ने तक्षशिला के नागराजा द्वारा पिता की हत्या का बदला लिया और उनके २ नगरों को श्मशान बना दिया। उनके नाम हो गये-मोइन-जो-दरो (मुर्दों का स्थान), हड़प्पा (हड्डियों का ढेर)। जहां पर जनमेजय ने नागों को पराजित किया वहां गुरु गोविन्द सिंह जी ने एक राम मन्दिर बनवाया और उनके नरसंहार की कहानी लिखी। इसके प्रायश्चित के लिए जनमेजय ने २७-११-३०१४ ई.पू. में ५ स्थानों पर भूमिदान दिया जब पुरी में सूर्य ग्रहण दिया था। वे दानपत्र मैसूर ऐण्टिकुअरी के जनवरी १९०० के अंक में प्रकाशित हुए थे। २००६ में सानफ्रांसिस्को के सम्मेलन में सभी की जांच हुई तथा उस दिन सूर्यग्रहण को सही पाया। केदारनाथ मन्दिर की भूमि उसी दान में है।
Astronomical Dating of Events & Select Vignettes from Indian History, Volume I,
Edited and compiled by Kosla Vepa, Published by-
Indic Studies Foundation, 948 Happy Valley Rd., Pleasanton, Ca 94566, USA
४. भारत के हर भाग के कुछ विशेष वैदिक शब्द हैं। जैसे पूर्व के लोकपाल इन्द्र के शब्द ओड़िशा, असम से लेकर वियतनाम, इण्डोनेसिया में ही व्यवहार होते हैं। शिव के शब्द केवल काशी में हैं। वराह के शब्द तेलुगू, तमिल में हैं। वरुण के शब्द महाराष्ट्र से अरब तट तक हैं। यदि आर्य पश्चिम उत्तर से आते, तो पंजाब, सिन्ध, अफगानिस्तान में भी ये प्रचलित होते।
५. अभी तक यह पता नही चला है कि एशिया या यूरोप के किस स्थान से कब और क्यों आर्य भारत आये। पर वे भले ही मंगल से आये हों, भारत के नहीं हो सकते-यह अंग्रेज भक्तों का विचार है।
मिथ्या प्रचार-२
१.
२.
३. वेद की वैज्ञानिकता सिद्ध करने के लिए गायत्री मन्त्र ही पर्याप्त है। उसमें ३ या ७ लोकों का नाम लेते हैं। ३ स्तरों पर ३-३ लोकों का नाम तभी हो सकता है, जबकि आकाश के सभी रचनाओं का आकार और रूप का पता हो।
४. वेद तथा पुराणों में दूरी तथा समय की जो माप दी गयी है, उनमें कुछ को अभी तक नहीं मापा जा सका है-सौर मण्डल का आकार, ब्रह्माण्ड का अक्ष भ्रमण काल, दृश्य जगत् (तपः लोक) का आकार।
५. राष्ट्रपति बनते ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा तिरुपति संस्कृत विद्यापीठ के संस्कृत विद्वानों को हटाने तथा प्रकाशन बन्दकराने के लिए राधाकृष्णन् ने ३ अध्यादेश जारी किये थे जिनको भारत के मुख्य न्यायाधीश हिदायतुल्ला ने असभ्य और अशिक्षित कह कर निरस्त कर दिया था। (AIR 1059 1961 SCR (3) 380 10/01/1961 HIDAYATULLAH, M. KAPUR, J.L. SHAH, J.C.)
शास्त्रों में जालसाजी
१. भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व ४, अध्याय २२ में जोड़ा गया कि हनुमान् इंगलैण्ड के थे जिनको राम ने आशीर्वाद दिया था कि कलियुग में उनके वंशज भारत पर राज्य करेंगे।
२. ब्रह्म सूत्र के गोविन्द भाष्य (१७३०) के आरम्भ में गरुड़ पुराण को उद्धृत कर लिखा गया कि भागवत पुराण के ४ उद्देश्य थे-ब्रह्मसूत्र का अर्थ, महाभारत के विवादों का निर्णय, गायत्री मन्त्र की व्याख्या, वेद को स्पष्ट करना। यह वेद-पुराण को समझने के लिए आवश्यक था, अतः १७८० में विलियम जोन्स की एसियाटिक सोसाइटी ने इसे गरुड़ पुराण से निकाल दिया। इस काम को आगे बढ़ाते हुए दयानन्द सरस्वती ने १८६६ में भागवत खण्डनम् लिखा।
३. स्कन्द पुराण, उत्कल खण्ड, अध्याय ३३ में रथयात्रा से सम्बन्धित २ श्लोक कठोपनिषद् (२/२/२), ऋग्वेद (४/४०/५), के वामन तत्त्व की व्याख्या करते थे। इनका उल्लेख १८९० के वाचस्पत्यम् तथा शब्द कल्पद्रुम कोषों में है। वर्तमान उपलब्ध संस्करणों में वे नहीं हैं।
४. इन्दौर में १९३० के पञ्चाङ्ग समिति की रिपोर्ट में चन्द्र गति में सूर्य आकर्षण के कारण संशोधन के ८ श्लोक उद्धृत हैं, जो वर्तमान संस्करण में नहीं हैं।
५. परीक्षित जन्म के १५०० वर्ष बाद नन्द का अभिषेक हुआ था। पार्जिटर ने १५०० वर्ष को १०५० कर दिया (तावद् वर्ष सहस्रं च ज्ञेयं पञ्चशतोत्तरम् को पञ्चाशतोत्तरम् किया)।
६. राजतरंगिणी में कलि वर्ष २५ में लौकिक संवत् का आरम्भ लिखा था, जब युधिष्ठिर का देहान्त हुआ। उसे गायब कर बुह्लर ने अपना श्लोक लगाया, पर अन्य उद्धरण से यह पता चल जाता है।
कलैर्गतैः सायक नेत्र वर्षैः युधिष्ठिराद्याः त्रिदिवं प्रयाताः। इसमें युधिष्ठिर के बदले सप्तर्षि कर दिया जो पहले ही से आकाश में हैं।
७. आर्यभट के काम को ग्रीक हिप्पार्कस की नकल् दिखाने के लिए उनका समय ३६० कलि के बदले ३६०० कलि कर दिया। हिप्पार्कस ने कभी ज्या सारणी नहीं बनायी थी न ग्रीक अंक पद्धति में वह बन सकती है। बिना मूल के उसकी नकल कैसे?
८. इससे यह परम्परा आरम्भ हो गयी है कि किसी भी पुस्तक के उस अंश को क्षेपक कह कर निकाल दें जो हमारे उद्देश्य के विपरीत है।
मिथ्या प्रचार-केवल विदेशी लेखक ठीक हैं
१. मेगास्थनीज की इण्डिका में २ अध्याय तथा हेरोडोटस के इतिहास में १ अध्याय है, जिनके अनुसार भारत में सोने की खुदाई चींटियों द्वारा की जाती है।
२. इण्डिका के अनुसार भारत में एक जाति की केवल एक ही आंख होती है, पाण्ड्य लड़कियां ६ वर्ष की आयु में बच्चे पैदा करती हैं, भारत में ७ वर्ण (४ नहीं) हैं, आदि आदि।
३. इण्डिका आदि में जो ठीक भी लिखा है उसे या तो नष्ट किया या बदल दिया। जैसे आर्यों को विदेशी बनाने के लिए रिसर्च। खुदाई में कुछ भी मिले उसकी मनमानी व्याख्या कर उत्तरी ध्रुव या दक्षिण अफ्रीका में भी वैदिक सभ्यता का आरम्भ कहा जा सकता है। १९०९ में प्रकाशित बाल गंगाधर तिलक की पुस्तक-वेद का आर्कटिक में विकास। उसी वर्ष एडमिरल पियरी समुद्र में स्थित उत्तरी ध्रुव गये। आर्यभट तथा लल्ल ने भी उत्तरी ध्रुव को समुद्र में लिखा है।
४. इण्डिका के अनुसार पिछले १५००० वर्षों से भारत ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया था। श्वानबेक ने यह अनुवाद १८८० में किया। इस संख्या में एक शून्य कम कर १५०० ई.पू. में मैक्समूलर ने वैदिक सभ्यता का आरम्भ घोषित कर दिया। उसके इस वाक्य को हटाने के लिए १९२७ में मैक-क्रिण्डल ने इण्डिका का नया संस्करण लिखा जिसमें कहा कि कायर होने के कारण भारतीय किसी पर आक्रमण नहीं करते। जालसाजी छिपाने के लिए श्वानबेक संस्करण को गायब कर दिया है। सिकन्दर से १५५०० वर्ष पूर्व कार्तिकेय ने क्रौञ्च द्वीप (उड़ते पक्षी के आकार का उत्तर अमेरिका) पर आक्रमण किया था (महाभारत, वन पर्व, २३०/८-१०)
५. इण्डिका के अनुसार प्रथम ग्रीक आक्रमण बाक्कस या डायोनिसस का था। उसके ६४५१ वर्ष ३ मास बाद सिकन्दर का आक्रमण हुआ था। यह उस समय उपलब्ध भारतीय गणना के अनुसार है, क्योंकि किसी अन्य देश में उतना पुराना कैलेण्डर नहीं था। बाक्कस का वर्तमान अफगानिस्तान पर १५ वर्ष अधिकार था, जहां उसने जौ की शराब (बाक्कस = whisky) का प्रचार किया (वाग्भट, अष्टाङ्ग हृदय, सूत्र स्थान ३/५/६८, अष्टाङ्ग सूत्र, ६/११६) इस अवधि में भारतीय राजाओं की १५४ पीढ़ी हुयी (सूर्यवंश के राजा बाहु से मौर्य चन्द्रगुप्त तक)। किन्तु सिकन्दर के समय मौर्य के बदले गुप्त काल का चन्द्रगुप्त कर दिया।
६. इस अवधि में २ बार राजतन्त्र हुए, पहले १२० वर्ष में २१ राजतन्त्र (परशुराम द्वारा २१ बार क्षत्रिय नाश) तथा दूसरा ३०० वर्ष का (७५६ ईपू. के शूद्रक शक से ४५६ ईपू. के श्रीहर्ष शक तक)। दोनों का इतिहास गायब कर दिया।
और है……
✍🏻अरुण उपाध्याय की पोस्टों से संग्रहीत
आर्य बाहर से आए थे या नहीं? यहां पढ़िए- इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा खुलासा
इस रिसर्च में सामने आया है कि आर्यन्स भारत के ही मूल निवासी थे। इसे लेकर वैज्ञानिकों ने राखीगढ़ी में मील नरकंकालों के अवशेषों का डीएनए टेस्ट किया था।
JP Yadav
Publish:Fri, 06 Sep 2019
नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। आर्य बाहर (विदेश) से आए थे या यहीं (भारत) के निवासी थे? इस सवाल का जवाब मिल गया है। दरअसल, हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई हड़प्पाकालीन सभ्यता की खोदाई में कई राज से पर्दा उठा है। राखीगढ़ी में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्य यहीं के मूल निवासी थे, बाहर से नहीं आए थे। यह भी पता चला है कि भारत के लोगों के जीन में पिछले हजारों सालों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है।
बाहर से नहीं आये थे आर्य
इस रिसर्च में सामने आया है कि आर्यन्स भारत के ही मूल निवासी थे। इसे लेकर वैज्ञानिकों ने राखीगढ़ी में मील नरकंकालों के अवशेषों का डीएनए टेस्ट किया था। डीएनए टेस्ट से पता चला है कि यह रिपोर्ट प्राचीन आर्यन्स की डीएनए रिपोर्ट से मेल नहीं खाती है। ऐसे में जाहिर आर्यों के बाहर से आने की थ्योरी ही गलत साबित हो जाती है।
9000 साल पहले भारत में हुई थी कृषि की शुरुआत
रिसर्च में सामने आया है कि 9000 साल पहले भारत के लोगों ने ही कृषि की शुरुआत की थी। इसके बाद ये ईरान व इराक होते हुए पूरी दुनिया में पहुंची। भारत के विकास में यहीं के लोगों का योगदान है। कृषि से लेकर विज्ञान तक, यहां पर समय समय पर विकास होता रहा है। भारतीय पुरातत्व विभाग (Archaeological Survey of India) और जेनेटिक डाटा से इस बात को पूरी दुनिया ने माना है।
होती थी सरस्वती की पूजा, हवन भी किया जाता था
गौरतलब है कि इतिहास सिर्फ लिखित तथ्यों को मानता है, लेकिन वैज्ञानिक सबूतों का ज्यादा महत्व होता है। राखीगढ़ी में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि हड़प्पा सभ्यता में सरस्वती की पूजा होती थी। इतना ही नहीं यहां पर हवन भी होता था।
हडप्पा काल में प्रेम का विस्तृत संसार
इसी साल की शुरुआत में हडप्पाकालीन सभ्यता के बारे में कई नई जानकारियां सामने आई हैं। नए मिले तथ्योंं व चीजों से अनुमान लगाया जा रहा है हडप्पा काल में प्रेम का विस्तृत संसार था। खोदाई के दौरान एक युगल के कंकाल मिले हैं। इसमें पुरुष अपनी महिला साथी को निहार रहा है।
कंकाल से कहीं चीजों पर राज उठा
हिसार के राखीगढ़ी में हड़प्पा खोदाई का काम कर रहे पुणे के डेक्कन कॉलेज के पुरातत्वविदों के अनुसार, खोदाई के वक्त युवक (कंकाल) का मुंह युवती की तरफ था। यह पहली बार है जब हड़प्पा सभ्यता की खुदाई के दौरान किसी युगल की कब्र मिली है। हैरानी की बात यह है कि अब तक हड़प्पा सभ्यता से संबंधित कई कब्रिस्तानों की जांच की गई, लेकिन आज तक किसी भी युगल के इस तरह दफनाने का मामला सामने नहीं आया था।
राखीगढ़ी में खोदाई करनेवाले पुरातत्वविदों के अनुसार, युगल कंकाल का मुंह, हाथ और पैर सभी एक समान है। इससे साफ है कि दोनों को जवानी में एक साथ दफनाया गया था। बता दें के ये निष्कर्ष हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका, एसीबी जर्नल ऑफ अनैटमी और सेल बायॉलजी में प्रकाशित किए गए थे।
पहली बार मिला इस तरह युगल कंकाल
खोदाई और विश्लेषण का कार्य विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग और इंस्टिट्यूट ऑफ फरेंसिक साइंस, सोल नेशनल यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन द्वारा किया गया। इससे पूर्व लोथल में खोजे गए एक हड़प्पा युगल कब्र को माना गया था कि महिला विधवा थी और उसे अपने पति की मौत के बाद दफनाया गया था।
दोनों के बीच था प्रेम संबंध
पुरातत्वविदों का कहना है कि जिस तरह से युगल के कंकाल राखीगढ़ी में दफन मिले, उससे साफ है कि दोनों के बीच प्रेम था और यह स्नेह उनके मरने के बाद उनके कंकाल में नजर आता है। सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है कि जिन लोगों ने दोनों को दफनाया था, वे चाहते थे कि दोनों के बीच मरने के बाद भी प्यार बना रहे। उन्होंने कहा कि युगलों के दफनाने का मामला दूसरी प्राचीन सभ्यताओं में दुर्लभ नहीं है। इसके बावजूद यह अजीब है कि उन्हें अब तक हड़प्पा कब्रिस्तान में नहीं खोजा गया।