गंगा किनारे शव भू-समाधि पर शोध कर दायर करें याचिका: प्रयागराज हाको

उत्तर प्रदेश ⁄ प्रयागराज

गंगा किनारे शव दफनाने की परंपरा पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का हस्तक्षेप से इन्‍कार, कहा- नहीं की गई रिसर्च

गंगा किनारे शव दफनाने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप से इन्‍कार कर दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि याची ने गंगा किनारे निवास करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार की परिपाटी व चलन को लेकर कोई शोध नहीं किया। याची को यह याचिका वापस लेकर नए सिरे से दाखिल करने के लिए छूट देने के अलावा अन्य आदेश नहीं दे सकते।

 

प्रयागराज18 जून। गंगा किनारे शव दफनाने की परंपरा पर पिछले दिनों जो विवाद खड़ा किया गया था, शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट का इस मामले में महत्वपूर्ण आदेश आया। हाई कोर्ट ने कहा कि कुछ जातियों में गंगा किनारे शव दफन करने की परंपरा है। इसी के साथ कोर्ट ने प्रयागराज में गंगा किनारे शवों को दफनाने से रोकने और दफनाए गए पार्थिव शरीरों का दाह संस्कार करने की याचिका निस्तारित कर दी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जनहित याचिका पर हस्तक्षेप से इन्कार करते हुए कहा कि याची ने गंगा किनारे निवास करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार की परिपाटी व चलन को लेकर कोई शोध नहीं किया। इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है और याची चाहे तो पर्याप्त शोध के बाद नए सिरे से याचिका दाखिल कर सकता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह आदेश ऐसे समय आया है जब गंगा किनारे दफन शवों की फोटो और वीडियो को इंटरनेट मीडिया पर वायरल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को खराब करने की कोशिशें की गई थीं। साथ ही दफन शवों को लेकर यह भी कहा गया कि ये सभी मौतें कोरोना से हुईं, जिनका दाह संस्कार न हो पाने के कारण उन्हें दफन करना पड़ा। परंपरा की बात को नजरंदाज कर दफन शवों की तस्वीरों के माध्यम से राज्य सरकार की व्यवस्थाओं पर भी सवाल उठाए गए थे। दैनिक जागरण ने अपनी खबरों की पड़ताल में पाया था कि गंगा किनारे के सैकड़ों गांवों में शवों को दफन करने की परंपरा अनेक जातियों में पीढ़ियों से रही है। कानपुर में तो हिंदुओं का एक कब्रिस्तान भी है।

याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि याची गंगा किनारे विभिन्न समुदायों में अंतिम संस्कार को लेकर परंपराओं और रीति-रिवाज पर शोध व अध्ययन करे। इसके बाद नए सिरे से बेहतर याचिका दाखिल कर सकता है। मुख्य न्यायमूर्ति संजय यादव व न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने याची प्रणवेश की जनहित याचिका पर वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई की। सुनवाई में सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बहस की।

इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की गई थी कि बड़ी संख्या में गंगा के किनारे दफनाए गए शवों को निकालकर उनका दाह संस्कार किया जाए। इसके साथ ही गंगा के किनारे शवों को दफनाने से रोका जाए। कोर्ट ने कहा कि याचिका देखने से ऐसा लगता है कि याची ने विभिन्न समुदायों की परंपराओं और रीति-रिवाजों का अध्ययन नहीं किया है।

बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच कोविड प्रबंधन की मॉनिटरिंग कर रही है। इस दौरान गंगा किनारे बड़ी संख्या में शवों को दफनाए जाने का मामला भी कोर्ट के संज्ञान में लाया गया। याची ने मीडिया रिपोर्ट्स को आधार बनाया है, जिसमें शवों को दफनाए जाने के मामले की उच्च स्तरीय जांच कराए जाने की मांग गई थी। शवों की वजह से नदी गंगा के बड़े पैमाने पर प्रदूषित होने की आशंका जताई गई थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *