पौड़ी की बेटी के गैंगरेपिस्ट सुप्रीम कोर्ट ने हाको, निचली कोर्ट से फांसी का फैसला पलटा,बाइज्जत छोड़ा
दिल्ली में छावला गैंगरेप केस के तीनों दोषी बरी:सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटा, HC ने फांसी की सजा दी थी
नई दिल्ली 07 नवंबर। दिल्ली के छावला में 2012 में 19 साल की लड़की से गैंगरेप करने के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने छोड़ दिया है। 2014 में इस केस में निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपितों रवि कुमार, राहुल और विनोद को फांसी की सजा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को CJI यूयू ललित की बेंच ने इस फैसले को पलट दिया।
19 साल की लड़की के साथ की गई थी दरिंदगी
9 फरवरी 2012 की रात नौकरी से लौटते समय उत्तराखंड की लड़की को आरोपितों ने अगवा कर लिया था। उसके साथ छावला में गैंगरेप किया गया था। आरोपित उसे गाड़ी में बिठाकर दिल्ली से बाहर ले गए थे। गैंगरेप के दौरान लड़की के साथ दरिंदगी भी की गई। उसके शरीर को सिगरेट से दागा गया और चेहरे पर तेजाब डाला गया। उसके शरीर पर कार के टूल्स और कई चीजों से हमला किया गया। गैंगरेप के बाद आरोपियों ने उसकी हत्या कर दी थी। 14 फरवरी को हरियाणा के रेवाड़ी में लड़की की लाश मिली थी।
निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट ने कायम रखा था
इस मामले में दिल्ली पुलिस ने राहुल, रवि और विनोद नाम के आरोपितों को गिरफ्तार किया था। इस केस में दिल्ली की निचली अदालत ने साल 2014 में दुर्लभतम केस करार देते हुए तीनों आरोपितों को फांसी की सजा सुनाई थी। 26 अगस्त 2014 में हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को सही ठहराते हुए फांसी की सजा को कायम रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- भावनाओं के आधार पर फैसले नहीं दिए जाते
7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने कहा था कि भावनाओं को देखकर सजा नहीं दी जा सकती है। दरअसल केस की सुनवाई के दौरान पीड़ित लड़की के पिता ने कहा था कि मामले के दोषियों को फांसी की सजा दी जाए। इस पर जजों ने कहा था कि सजा तर्क और सबूत के आधार पर दी जाती है। हम आपकी भावनाओं को समझ रहे हैं, लेकिन भावनाओं को देखकर कोर्ट में फैसले नहीं होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में दिल्ली के छावला गैंगरेप मामले में अपना फैसला सोमवार को सुना दिया. शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड की अनामिका (बदला हुआ नाम) के तीनों आरोपी रवि, राहुल और विनोद को बरी कर दिया है. अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट और निचली अदालत के उस फैसले को भी पलट दिया जिसमें दोषियों के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी.
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मामले में अब तक क्या-क्या हुआ?
उल्लेखनीय है कि दिल्ली की निचली अदालत और हाईकोर्ट में मुकदमे के दौरान लड़की को ‘अनामिका’ कहा गया. दोनों ही अदालतों ने दोषियों को मौत की सजा देने का आदेश दिया था.
मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी की रहने वाली ‘अनामिका’ दिल्ली के छावला के कुतुब विहार में रहती थी. 9 फरवरी 2012 की रात नौकरी से लौटते समय राहुल, रवि और विनोद नाम के आरोपितों ने अगवा कर लिया था. 14 फरवरी को ‘अनामिका’ की लाश बहुत बुरी हालत में हरियाणा के रेवाड़ी के एक खेत में मिली थी. गैंगरेप के अलावा ‘अनामिका’ को असहनीय यातनाएं दी गई थीं. उसे कार में मौजूद औजारों से बुरी तरह पीटा गया था. साथ ही शरीर को सिगरेट और गर्म लोहे से दागा दिया गया था. यही नहीं गैंगरेप के बाद ‘अनामिका’ के चेहरे और आंख में तेजाब डाला गया था।
अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट और निचली अदालत के उस फैसले को भी पलट दिया जिसमें दोषियों के लिए फांसी की मांग की गई थी। साल 2012 में दिल्ली में उत्तराखंड की 19 वर्षीय लड़की के साथ आरोपियों ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर उसकी हत्या कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
‘अनामिका’ के साथ उस रात क्या हुआ था?
निर्भया की ही तरह इस मासूम का नाम भी बदलकर अनामिका रखा गया था। वह मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली थी। दिल्ली में वह छावला के कुतुब विहार में रहती थी। 9 फरवरी 2012, रोज की तरह अनामिका अपने काम से खाली होकर घर की ओर जा रही थी। तभी रास्ते में राहुल, रवि और विनोद ने लड़की को अगवा कर लिया। इसके बाद उन हैवानों ने उस लड़की के साथ जो किया वह किसी की कलेजा चीर देगी। बेटी के न मिलने पर परिवार वालों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की और तलाशी शुरू की गई। काफी खोजबीन के बाद पुलिस को लड़की की लाश हरियाणा के रेवाड़ी में बहुत बुरी हालत में पाई गई। बाद में जांच में पता चला कि उसे काफी यातनाएं दी गई थीं।
जांच में पता चला कि लड़की के साथ गैंगरेप करने के अलावा आरोपियों ने उसके शरीर को सिगरेट और गर्म लोहे से दागा था। लड़की के चेहरे और आंखों पर तेजाब डाला गया था। उसे कार में मौजूद औजारों से बुरी तरह पीटा गया था और उसके मर्मांग से शराब की बोतल तक निकली थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अब तक इस फैसले पर क्या-क्या किया
अनामिका के गैंगरेप का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अब तक की अपडेट के अनुसार, जस्टिस यूयू ललित और एश रवींद्र भट्ट और बेला एम त्रिवेदी ने इस मामले पर 6 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रखा था।
पुलिस को गाड़ी में घूमता मिला था एक आरोपित
लड़की के अपहरण के समय के प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के आधार पर पुलिस ने लाल इंडिका गाड़ी की तलाश की. कुछ दिनों बाद उसी गाड़ी में घूमता राहुल पुलिस के हाथ लगा. उसने अपना गुनाह कबूल किया और अपने दोनों साथियों रवि और विनोद के बारे में भी जानकारी दी. तीनों की निशानदेही पर ही पीड़िता की लाश बरामद हुई थी. डीएनए रिपोर्ट और दूसरे तमाम सबूतों से निचली अदालत में तीनों के खिलाफ केस निर्विवाद साबित हुआ. 2014 में पहले निचली अदालत ने मामले को ‘दुर्लभतम’ की श्रेणी का मानते हुए तीनों को फांसी की सजा दी. बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा.
सुप्रीम कोर्ट ने की थी सुनवाई
जस्टिस यू यू ललित,एस रविन्द्र भट्ट और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने दोषियों की अपील पर इस साल 6 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रखा था.सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने फांसी की सजा की पुष्टि की मांग की थी.उन्होंने कहा कि पीड़िता के साथ अकल्पनीय दरिंदगी हुई.इस तरह के शैतानों के चलते ही परिवारों को अपनी लड़कियों के बाहर जा कर पढ़ाई करने या काम करने पर रोक लगानी पड़ती है.
दोषियों में सुधार आने की संभावना पर विचार करने का किया गया था अनुरोध
मामले में एमिकस क्यूरी बनाई गई वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर ने जजों से अनुरोध किया था कि वह इन दोषियों में सुधार आने की संभावना पर विचार करें.उन्होंने कहा था कि दोषियों में से एक ‘विनोद’ बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित है. वह ठीक ढंग से सोच-विचार नहीं कर पाता.वरिष्ठ वकील ने कोर्ट से दोषियों के प्रति सहानुभूति भरा रवैया अपनाने का आग्रह किया था.
हाईकोर्ट ने दी थी फांसी की सजा, कहा था- ये हिंसक जानवर, शिकार ढूंढते हैं
2012 में दिल्ली के छावला में हुए गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चौंकाने वाला फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने गैंगरेप के 3 दोषियों को बरी कर दिया, जबकि हाईकोर्ट और निचली अदालत ने इन्हें फांसी की सजा सुनाई थी।
पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने 19 साल की लड़की से गैंगरेप के मामले में फांसी की सजा सुनाते हुए दोषियों के लिए बेहद तल्ख टिप्पणी की थी। हाईकोर्ट ने कहा था- ये वो हिंसक जानवर हैं, जो सड़कों पर शिकार ढूंढते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस फैसले को पलट दिया है।
गैंगरेप के 2 साल बाद आरोपितों को फांसी सुनाई गई
2014 में निचली अदालत ने रवि, राहुल और विनोद को दोषी पाया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई। इसी साल अगस्त में हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा था। अदालत ने दोषियों को सड़कों पर घूमने वाला हिंसक जानवर कहा था।
छावला गैंगरेप के खिलाफ दिल्ली में कई प्रदर्शन भी हुए थे। तस्वीर 2012 में हुए ऐसे ही एक प्रदर्शन की है। (सोर्स- सोशल मीडिया)
सुप्रीम कोर्ट में पुलिस ने भी सजा कम करने का विरोध किया
हाईकोर्ट के फैसले के बाद दोषियों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। दिल्ली पुलिस ने सजा कम किए जाने का विरोध किया था। कहा था कि यह अपराध केवल पीड़िता के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह समाज के खिलाफ अपराध है। दिल्ली पुलिस ने कहा था कि यह जघन्य अपराध है। हम दोषियों को किसी भी तरह की राहत दिए जाने के खिलाफ हैं। पीड़ित लड़की के पिता ने भी कहा था कि मामले के दोषियों को फांसी की सजा दी जाए।
दोषियों के वकील ने कहा- चोटें गंभीर नहीं थीं, मुअक्किल दिमाग से कमजोर
दोषियों के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इस मामले में उसके मुअक्किलों की उम्र, फैमिली बैकग्राउंड और क्रिमिनल रिकॉर्ड को भी ध्यान में रखा जाए। एक मुअक्किल विनोद दिमाग से कमजोर भी है। पीड़ित को लगी चोटें भी गंभीर नहीं हैं। इस आधार पर वकील ने सजा कम किए जाने की अपील की थी।
इस दलील के विरोध में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भारती ने कहा था- 16 गंभीर चोटें थीं। लड़की की मौत के बाद उस पर 10 वार किए गए। ऐसे ही अपराध मां-बाप को मजबूर करते हैं कि वो अपनी लड़कियों के पंख काट दें।
SC ने पहले भी की टिप्पणी- भावनाओं के आधार पर सजा नहीं
7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने कहा था, “भावनाओं को देखकर सजा नहीं दी जा सकती है। सजा तर्क और सबूत के आधार पर दी जाती है। हम आपकी भावनाओं को समझ रहे हैं, लेकिन भावनाओं को देखकर कोर्ट में फैसले नहीं होते हैं।’ अब CJI यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने दोषियों को बरी कर दिया है।
पीड़ित के पिता बोले- टूट गए हैं, पर लड़ाई जारी रखेंगे
दोषियों की रिहाई पर लड़की के पिता ने कहा कि हम यहां न्याय के लिए आए थे। यह अंधी कानून व्यवस्था है। दोषियों ने हमें कोर्ट रूम में ही धमकाया था। हमारे 12 साल के संघर्ष को नजरअंदाज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हम टूट गए हैं, लेकिन कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे।