‘बकरी बैंक’ जिसने बदल दी किसानों की जिंदगी
महाराष्ट्र के किसान ने ‘बकरी बैंक’ के जरिये बदल दी कई परिवारों की जिंदगी
कृषि क्षेत्र की समस्याओं को खत्म किए बिना देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता है. अब तक की सरकारों ने किसानों के लिए कई योजनाएं लागू कीं. इसके बावजूद किसानों की स्थिति में कोई सुधार होता नहीं दिखा.
आप जब भी बैंक जाते होंगे, तो अमूमन पैसे जमा करने या निकालने ही जाते होंगे. लेकिन, महाराष्ट्र के एक गांव में लोग बैंक जाने पर ‘बकरी’ लोन पर लाते हैं. आपे सही पढ़ा है, यहां बकरी की ही बात हो रही है. महाराष्ट्र के अकोला में एक किसान ने ‘बकरी बैंक’ की शुरूआत की है. इस बैंक में ग्रामीणों को लोन के तौर पर बकरी दी जाती है. किस्तों के रूप में ये बैंक बकरी के बच्चे लेता है. वैसे यहां हम बकरी बैंक के बारे में कम और उस किसान की बात ज्यादा करेंगे, जिसने समस्याओं का हल निकालने के लिए सरकार की ओर मुंह नहीं किया. इस किसान की उस जीवटता पर बात करेंगे, जिसने उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. आज के दौर में ऐसे इंसानों का मिलना मुश्किल है. जिस समाज में लोग खुद को दूसरों से आगे रखने के लिए दौड़ में लगे हों, वहां एक किसान अपने साथी किसानों की आर्थिक स्थितियों को सुधारने की कोशिशें में लगा हो, कम ही देखने को मिलता है.
अकोला में मशहूर है ‘गोट बैंक ऑफ कारखेड़ा’
कृषि क्षेत्र की समस्याओं को खत्म किए बिना देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता है. अब तक की सरकारों ने किसानों के लिए कई योजनाएं लागू कीं. इसके बावजूद किसानों की स्थिति में कोई सुधार होता नहीं दिखा. कृषि क्षेत्र की समस्याओं से निपटने के लिए सरकारें कोशिश लगातार करती रही हैं. लेकिन, इन योजनाओं के बिना किसी ठोस नीति के लागू होने से सरकार को अपेक्षित नतीजे नहीं मिल रहे हैं. सरकार की ऐसी ही नीतियों और योजनाओं को महाराष्ट्र के एक किसान ने आईना दिखाने का प्रयास किया है. अकोला जिले के सांघवी मोहाली गांव में 52 साल के नरेश देशमुख ने ‘गोट बैंक ऑफ कारखेड़ा’ की दो साल पहले शुरूआत की थी. बैंक में 1200 रुपये के लोन एग्रीमेंट पर ग्रामीणों को लोन के रूप में एक प्रेग्नेंट बकरी दी जाती है. किस्तों के रूप में ये बैंक 40 महीनों में बकरी के चार बच्चे वापस ले लेता है. नरेश देशमुख के अनुसार, उनके बकरी बैंक में 1200 से ज्यादा लोग जुड़े हैं.
खुद के पैसों से शुरू किया था बैंक
नरेश देशमुख की सोच को सौ बार भी सलाम किया जाए, तो कम ही होगा. उन्होंने इस बैंक को बनाने के लिए अपनी बचत से 40 लाख रुपये का निवेश किया. देशमुख ने बकरी पालन करने वाले परिवारों से प्रेरणा लेते हुए इस बैंक की शुरूआत की. उन्होंने कमजोर और गरीब तबके के ग्रामीणों को अपनी इस योजना से जोड़ा. जिसकी वजह से देशमुख और अन्य ग्रामीणों को भी आर्थिक लाभ हुआ. खुद के पैसों से इतना बड़ा निवेश करना मामूली बात नहीं है. इतने बड़े निवेश के लिए कोई भी शख्स बैंक की ओर रुख करेगा. लेकिन, देशमुख ने खुद में विश्वास रखा और कई लोगों का जीवन बदल दिया. उन्होंने इस निवेश की लिए सरकारी सहायता आदि के लिए कोशिश नहीं की.
कृषि विषयों से जुड़ी पढ़ाई का मिला फायदा
पढ़ा-लिखा होने के अपने कई फायदे हैं. इस वजह से चीजों को देखने का आपका नजरिया बदल जाता है. नरेश देशमुख ने पंजाब राव कृषि विद्यापीठ से स्नातक किया है. तेजी से बदलते कृषि परिवेश में देशमुख ने खुद को ढाला और एक ऐसा विचार लोगों के सामने लाए जिससे सभी का लाभ हो सके. नरेश देशमुख के अनुसार, उन्होंने अपनी रोजाना की ग्रामीण यात्राओं के दौरान पाया कि बकरी पालन करने वाले परिवार आर्थिक रूप से थोड़े कमजोर हैं. इसके बावजूद वे छोटी जमीनें खरीद लेते हैं. बच्चों की शिक्षा और शादी समारोह के खर्च उठाने में सक्षम हैं. देशमुख ने इसे ही आधार बनाते हुए इन परिवारों को आर्थिक रूप से और मजबूत करने की सोची. आगे चलकर उनकी यह सोच ‘बकरी बैंक’ बनकर सामने आई.
समझिए बकरी बैंक की कार्यप्रणाली
देशमुख के मुताबिक, उन्होंने 2018 में 40 लाख रुपये का निवेश कर 340 बकरियां खरीदी थीं. बैंक की कार्यप्रणाली के अनुसार, 340 श्रमिकों और छोटे किसानों के परिवारों की महिलाओं को बकरियां 1200 रुपये की रजिस्ट्रेशन फीस पर मुहैया कराई गईं. देशमुख के अनुसार, 40 महीनों की समय सीमा में औसतन बकरियां 30 बच्चों को जन्म देती हैं. किस्त के रूप में बकरी के चार बच्चे वापस करने बाद भी हर महिला के पास 26 मेमने बचते हैं. बाजार मूल्य के अनुसार, इन महिलाओं को करीब ढाई लाख का फायदा होता है. देशमुख के अनुसार, 2018 से अबतक उनके पास करीब 800 बकरी के बच्चे किस्त के रूप में वापस आए हैं. जिन्हें बेचकर उन्होंने करीब 1 करोड़ रुपये कमाए हैं. देशमुख ने अपने इस बैंक का पेटेंट भी हासिल कर लिया है. देशमुख के अनुसार, आने वाले एक साल में महाराष्ट्र के अंदर 100 बकरी बैंक शुरू करने की योजना बना रहे हैं. नरेश देशमुख की इस मेहनत और जीवटता को देखकर मुंह यही निकलता है कि ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों’.
Success Story: कभी रोटी जुटाना था मुश्किल, ऐसी 500 महिलाएं लिमिटेड कंपनी की शेयर होल्डर
बकरी पालन से जुड़कर बिहार के 51 गांवों की 500 महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधरी रेड कार्पेट पर कदम पड़ते ही गर्व से ऊंचा हो गया नूतन का सिर 51 गांवों की महिलाओं को साथ जोड़कर सफलता की गढ़ी कहानी। संघर्ष में ही सफलता। गांव में बकरी पाल स्वावलंबन की मिसाल बनी नूतन देवी जब राजधानी के एक बड़े होटल की रेड कार्पेट पर सम्मान के लिए कदम बढ़ा रही थीं तो सम्मान में बजीं तालियों से उनका सिर ऊंचा हो रहा था। नूतन ने बिहार के दरभंगा (Darbhanga District in Bihar) जिले के किरतपुर और घनश्यामपुर प्रखंड के 51 गांवों की महिलाओं को साथ जोड़कर सफलता की कहानी गढ़ी है।
कभी रोटी के लिए थीं मोहताज, अब लिमिटेड कंपनी में शेयर होल्डर
दरभंगा जिले के दोनों प्रखंड के गांवों की छह हजार महिलाओं में अधिकतर की स्थिति कभी ऐसी थी कि शाम को रोटी नसीब नहीं। आज 3512 महिलाएं ‘कमला फम्र्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड’ की शेयर होल्डर हैं। महिलाओं द्वारा संचालित इस कंपनी ने बकरी पालन, बीज और अनाज का उत्पादन कर स्वावलंबन की मंजिल तय की है। संघर्ष भरी राह पर चलकर सफलता का सफर तय करने की शुरुआत 2016 में हुई। घनश्यामपुर प्रखंड के लक्ष्मीपुर गांव की गंगा देवी ने दो बकरियों का पालन प्रारंभ किया था। धीरे-धीरे बकरियों की संख्या बढ़ी और उसके दूध से आय होने लगी। देखते ही देखते दस बकरियों का फर्म हाउस गंगा ने स्थापित कर लिया।
आसपास के 500 परिवारों को बकरी पालन से जोड़ा
गंगा से प्रेरणा लेकर पूरे इलाके में बकरी पालन बड़े पैमाने पर शुरू हो गया। दूसरी महिला कुंती देवी ने इलाके के कल्याना, चनपकरिया, बसौली और छिलकोरा गांव में घूम-घूम कर ग्रामीण महिलाओं को बकरी पालन के लिए प्रेरित करना शुरू किया। 500 परिवारों को उन्होंने बकरी पालन से जोड़ा है।
कंपनी में डायरेक्टर भी महिलाएं
पौनी गांव की लालो देवी, तरवारा की शारदा देवी सहित 6640 परिवारों की महिलाएं आज बकरी पालन से जुड़ी हैं। महिलाओं ने जब सफलता की सीढिय़ां चढऩी शुरू की तो राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक (नाबार्ड) ने उन्हें बकरी पालन के लिए सहायता देकर मंजिल तक पहुंचाया। लघु, सीमांत और बटाईदार महिला किसानों के हित के लिए कार्य करने वाली इस कंपनी में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर भी महिलाएं ही हैं। नूतन भी उनमें से एक है। पिछले दिनों राजधानी में जब नाबार्ड ने नूतन को प्रशस्ति-पत्र दिया, तब इनके साथ गांवों में काम करने वाली महिलाएं भी ‘संघर्ष को सम्मान से झूम उठीं।