गोपेश्वर आपदा:अब तक 34 शव मिले, पहचान 10 की
चमोली आपदा में अभी तक 3,4 शव बरामद, 10 की हुई पहचान; ये है पूरी सूची
चमोली में ग्लेशियर टूटने से बीते रविवार को आई बाढ़ में मची तबाही में अब भी 172 लोग लापता हैं।
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से बीते रविवार को आई बाढ़ में मची तबाही में अब भी 172 लोग लापता हैं। अब तक 34 लोगों के शव मिल चुके हैं। इनमें 10 लोगों की पहचान हो चुकी है।
देहरादून10 फरवरी। उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से बीते रविवार को आई बाढ़ में मचे विनाश में अब भी 172 लोग लापता हैं। अब तक 34 लोगों के शव मिल चुके हैं। इनमें 10 लोगों की पहचान हो चुकी है। वहीं, पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने बताया कि बचाव दल ने दो उत्तराखंड पुलिस कर्मियों के शव भी मिलै हैं।
मृतकों के नाम और पते
1 अजय शर्मा (32 वर्ष) पुत्र बाबू लाल निवासी गणेशपुर थाना पिसवा तहसील खेर जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश 2 सूरज पुत्र बेचूलाल निवासी बाबूपुर बेलराय कोतवाली तिकोनिया तहसील निखासना जिला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश 3 अवधेश (21 वर्ष) पुत्र ललता प्रसाद निवासी इच्छानगर मांझा पोस्ट आफिस सिदाई जिला लखीमपुर (उत्तर प्रदेश) रित्विक कंपनी जोशीमठ 4 नरेंद्र लाल ( 48 वर्ष) पुत्र तवारी लाल निवासी ग्राम तपोवन, जोशीमठ जिला चमोली उत्तराखंड, रित्विक कंपनी जोशीमठ 5 जितेंद्र थापा (31 वर्ष) पुत्र खेम बहादुर निवासी लच्छीवाला जिला देहरादून (उत्तराखंड), रित्विक कंपनी जोशीमठ 6 दीपक कुमार टम्टा (28 वर्ष) पुत्र रमेश राम निवासी ग्राम भतेड़ा जिला बागेश्वर उत्तराखंड 7 पुलिस कास्टेबल बलवीर गड़िया पुत्र हयात सिंह निवासी ग्राम गाड़ी पोस्ट आफिस गौंणा चमोली, उत्तराखंड 8 कांस्टेबल मनोज चौधरी (41 वर्ष) पुत्र स्व.जसवंत सिंह चौधरी निवासी ग्राम बैनोली पोस्ट आफिस बैनोली तहसील कर्णप्रयाग जिला चमोली उत्तराखंड 9 राहुल कुमार (26 वर्ष) पुत्र भगवती प्रसाद निवासी ग्राम रावली महदूत थाना सिडकुल जिला हरिद्वार, उत्तराखंड 10 रविंद्र (35 वर्ष) पुत्र नैन सिंह निवासी ग्राम कालिका बजानी थाना धारचूला जिला पिथौरागढ़ उत्तराखंड
जब सुरंग में जवान और खोजी कुत्ते आठ फुट गहरी कीचड़ में धंसने लगे तो डंडे ने बचाई जान
एनडीआरएफ और डीआरडीओ की टीमों ने पहले एनटीपीसी परियोजना की पहली टनल से 12 व्यक्तियों को सुरक्षित बचाया, उसके बाद ऋषि गंगा परियोजना से भी 15 व्यक्तियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया…
ग्लेशियर टूटने के बाद तपोवन की लगभग 1600 मीटर लंबी सुरंग के अंतिम सिरे तक पानी का बहाव आ गया था। इस वजह से सुरंग में कीचड़ यानी दलदल जमा हो गई। सोमवार रात तक वहां पावर सप्लाई चालू न होने से सुरंग में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन इसके लिए सुबह होने का इंतजार नहीं किया गया। आईटीबीपी और एनडीआरएफ की टीम ने रात में ही ऑपरेशन शुरू करने का निर्णय लिया।
टॉर्च और जेसीबी मशीन में लगे हेडलैंप्स की रोशनी में जवान आगे बढ़े। पचास मीटर के बाद दलदल का स्तर बढ़ता चला गया। हालत यह थी कि जवान और खोजी कुत्ते दलदल में धंसने लगे। कुत्ते तो जवान की पीठ पर चढ़ गए, मगर जवानों के लिए मुस्किल पैदा हो गई। रात में ही जवानों को आठ फुट लंबे डंडे मुहैया कराए गए। मौके पर मौजूद आईटीबीपी के एडीजी वेस्टर्न कमांड मनोज सिंह रावत कहते हैं, कुछ दूरी के बाद लगा कि जवान तो दलदल में धंसते ही जा रहे हैं, तो वहां पर आठ फुट लंबे फट्टों को दलदल पर डाला गया।
मनोज सिंह रावत के अनुसार, नाइट ऑपरेशन में जवानों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। विभिन्न राहत एवं बचाव टीमों के कमांडरों की जब संयुक्त बैठक हुई, तो उसमें इस बात पर चर्चा हुई थी कि जैसे जैसे सुरंग में आगे बढ़ेंगे, दलदल का स्तर भी बढ़ता जाएगा। इसके लिए सोमवार शाम को ही एक फुट चौड़े और आठ फुट लंबे फट्टे सुरंग के बाहर रखवा दिए गए थे।
रात में उन फट्टों को टनल के भीतर दलदल पर डाला गया। जिनकी मदद से जवानों ने आगे कदम रखे। यह सुरंग राहत एवं बचाव दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। यहां पर कम से कम 40 लोगों के फंसे होने की बात कही गई है। यह संख्या बढ़ने की संभावना भी जताई जा रही है।
दलदल होने से जवानों के आगे बढ़ने की गति तेज नहीं हो पा रही है, क्योंकि उन्हें दलदल में डंडा के जरिये यह भी देखना था कि वहां कोई जिंदा आदमी या शव तो नहीं है। एक रात में जेसीबी की मदद से बचाव टीमें करीब 130 मीटर दूरी तक पहुंच पाई थीं। इस नाइट ऑपरेशन में जवानों की अदला बदली नहीं हुई, जो जवान शाम को टनल के अंदर घुसे थे वे ही आगे का रास्ता बनाते रहे।
जवानों को एक-दो मीटर के बार तेज-तेज आवाजें भी लगा रहे थे ताकि कोई आदमी दलदल में फंसा होगा तो वह आवाज से या हाथ हिलाकर कोई प्रतिक्रिया देगा। जेसीबी मशीन को भी वहीं तक ले जाया गया, जहां तक राहत एवं बचाव दल के जवान पहुंच चुके थे। लगभग सवा सौ मीटर की दूरी के बाद दलदल में कुछ पानी की मात्रा बढ़ती जा रही थी।
इस दौरान दलदल में कई जवान गिर भी पड़े थे। जवानों को किसी तरह के जोखिम से बचाने और ऑपरेशन को लगातार जारी रखने के लिए रणनीति में थोड़ा बदलाव किया गया। सभी जवानों को रस्सी के साथ एक दूसरे को बांधा गया। कुछ दूरी तक जवान आगे बढ़े, लेकिन उसके बाद टनल में दलदल के साथ जब पानी भी आ गया तो ऑपरेशन रोकना पड़ा।
एनडीआरएफ और डीआरडीओ की टीमों ने इसी सुरंग के कई हिस्सों से अंदर घुसने का प्लान तैयार किया है। एनटीपीसी परियोजना की पहली टनल से 12 व्यक्तियों को सुरक्षित बचा लिया गया था। ऋषि गंगा परियोजना से भी 15 व्यक्तियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। एनटीपीसी परियोजना की दूसरी टनल में लगभग 40 लोगों के फंसे होने का अनुमान लगाया जा रहा है।