जनसांख्यिकी का खेल:बिहार में 37 तो झारखंड में 70 सरकारी स्कूल बने मदरसे
Exclusive: बिहार के किशनगंज में 19 नहीं, 37 सरकारी स्कूल जुमे को किए जाते हैं बंद, प्रखंडवार देखिए पूरी लिस्ट
- रविवार की जगह शुक्रवार को स्कूल बंद करने का आदेश कहांं से आया? ये परंपरा कब से शुरू हुई? इसकी कोई जानकारी किशनगंज के जिला शिक्षा पदाधिकारी के पास नहीं है। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि उनके यहां पदस्थपित होने के पहले से ये परंपरा चल रही है। हमने इसकी तह तक जाने की कोशिश की और आंकड़ों की तलाश शुरू की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई।
पटना/किशनगंज 25 जुलाई : अब तक आपको 19 स्कूलों की संख्या बताई गई थी, जिन्हें शुक्रवार यानी जुमे को बंद किया जाता है। मगर हम आपको 19 नहीं 37 स्कूलों की जानकारी दे रहे हैं, वो भी प्रखंडवार। इन स्कूलों को जुमे को बंद रखा जाता है। दरअसल, बिहार के किशनगंज जिले में आबादी नियमों पर भारी पड़ रही है। इन दिनों किशनगंज सुर्खियों में है। वो इसलिए क्योंकि यहां 80 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है और आबादी नियमों को प्रभावित कर रही है। इसका जीता जागता सबूत ये सरकारी दस्तावेज है, जिसमें साफ लिखा है कि 37 स्कूलों को रविवार की जगह शुक्रवार को बंद किया जाता है। ये अपने आप में चौंकाने वाला दस्तावेज है कि पूरे किशनगंज जिले में जुमे के दिन स्कूलों को बंद कर रविवार को खोला जाता है।
शुक्रवार को बंद होते हैं किशनगंज के 37 सरकारी स्कूल,अन्य जिलों में भी होती है शुक्रवार की बंदी : शिक्षाधिकारी
रविवार की जगह शुक्रवार को स्कूल बंद करने का आदेश कहांं से आया? ये परंपरा कब से शुरू हुई? इसकी कोई जानकारी किशनगंज के जिला शिक्षा पदाधिकारी के पास नहीं है। उन्होंने हमसे सिर्फ इतना कहा कि उनके यहां पदस्थापित होने के पहले से ये परंपरा चल रही है। हमने इस खबर की तह तक जाने की कोशिश की और आंकड़ों की तलाश शुरू की तो जानकारी चौंकाने वाली सामने आए। आंकड़ों की माने तो जिले में 19 नहीं 37 सरकारी स्कूलों को रविवार की जगह शुक्रवार को बंद किया जाता है। लेकिन स्कूलों को बंद करने का कोई सरकारी आदेश, अधिसूचना या दस्तावेज किसी के पास मौजूद नहीं है।
ये मदरसे और मुस्लिम स्कूल नहीं सामान्य स्कूल हैं जनाब
जब हमने इन खबरों की और पड़ताल की तो यह जानकारी हासिल हुई कि जुमे के दिन नमाज पढ़ने को बंद होने वाले स्कूल कोई मदरसे या मौलवियों के नहीं हैं। ये स्कूल सरकारी हैं और सरकार के पैसों से चलते हैं। आंकड़ों में चौकाने वाला एक और तथ्य सामने है। हमने जब किशनगंज के जिला शिक्षा पदाधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि शुक्रवार को बंद होने वाले स्कूल मदरसे या मुस्लिम स्कूल नहीं हैं। ये सामान्य सरकारी स्कूल हैं। इन स्कूलों में उर्दू की भी पढ़ाई होती है जिनमें पढ़ने वाले बच्चे केवल मुस्लिम समुदाय के नहीं। इन स्कूलों में दूसरे धर्म के बच्चे भी पढ़ते हैं।
99 फीसद स्कूलों को शुक्रवार को किया जाता है बंद
जिस तरह से आबादी के हिसाब से शिक्षण संस्थानों के नियम और कानून के साथ व्यवस्थायें बदली जा रही है, वो दिन दूर नहीं जब संविधान में भी बदलाव देखने को मिल जाए। ये कहना उस पीड़ित का है, जिसने इस किशनगंज में उन धार्मिक मान्यता के न होने का दंश झेला है। दरअसल, किशनगंज के एक उर्दू विद्यालय, जिसमें उर्दू केवल विषय के रूप पढ़ाई जाती है। इसे मुस्लिम स्कूल घोषित कर दिया गया है। इस विद्यालय में एक प्रिंसिपल की पोस्टिंग के बाद उनकी ज्वाइनिंग पर जमकर हंगामा मचा था। स्कूल में प्रिंसिपल ज्वाइनिंग के विरोध में यहां के स्थानीय लोग, स्थानीय विधायक और मेयर सहित तमाम नेता उतर आए थे। उनका कहना था कि उर्दू स्कूल में हिंदू प्रिंसिपल की बहाली नहीं होनी चाहिए। जबकि यह स्कूल सरकारी विद्यालय था।
परंपराओं के आधार पर कैसे बंद कर दिए जा रहे स्कूल?
हमने स्कूलों को रविवार की जगह शुक्रवार को बंद किए जाने की घटना तमाम अधिकारियों से बात करने की कोशिश की जिसमें सभी जिलाधिकारी से लेकर, जिला शिक्षा पदाधिकारी और डीपीओ तक ने किशनगंज में स्कूल शुक्रवार को बंद करने की परंपरा बताई।
सवाल ये है कि बिना सरकारी आदेश के ये परंपरा कब से शुरू हो गई? इसका भी कोई सरकारी दस्तावेज प्रशासनिक अधिकारियों के पास मौजूद नहीं है।
स्कूलों को जुमे के दिन बंद करने का आदेश कहां?
जिला शिक्षा पदाधिकारी का कहना है कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है जिसे अब तक बदला नहीं गया। उन्होंने कहा कि वो इन दस्तावेजों को तलाश रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब जब यह मामला सामने आया है तो इस बात की जानकारी ली जाएगी कि स्कूलों को बंद करने का आदेश पहले कब दिया गया। लेकिन उन्होंने ये बात जरूर कही ये स्कूलों को शुक्रवार को बंद करने का कोई अधिकारिक दस्तावेज उनके पास नहीं है।
किशनगंज शुक्रवार को बंद रहने वाले स्कूल
मध्य विद्यालय लाईन उर्दू
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय लाईन करबला
उ०म०वि० महेशबधना
उ०म०वि० हालामाला
उ०म०वि० मोतीहारा पश्चिम
प्रा०वि० अंधाकोल आदिवासी टोला
पोठिया में शुक्रवार को बंद रहने वाले स्कूल
म0वि0 सोहागीडांगी
म०वि० छत्तरगाछ
उ०म०वि० बोचनई
आजाद नगर गोआबाड़ी प्रा०वि०
प्रा०वि० महाटगछ
उ०म०वि० कालासिंघिया
उ०म०वि० बेलपोखर
उ०म०वि० देहलबाड़ी
उ०म०वि० मिलिकवस्ती
उ०म०वि० बगलबाड़ी-1
17 उ०म०वि० बगलबाड़ी-2
उ०म०वि० विशानी
उ०म०वि० फूलहारा बक्सा
उ०म०वि० रमनियापोखर
उ०म०वि० चनामना
बहादुरगंज प्रखंड में
प्रा०वि० डोहर मलानी
उ०म०वि० टंगटंगी
ठाकुरगंज प्रखंड में
उ०म०वि० गुलशनभीठा
उ०म०वि० पटेश्वरी
कोचाधामन प्रखंड
उ०म०वि० टेना
प्रा०वि० शाहनगरा
उ०म०वि० चूनामारी
उ०म०वि० हसनडुमरिया उ०म०वि० डेगा
उ०म०वि० हाटगाछी महुआ प्रा०वि० नककली हाट
प्रा०वि० बूटीमारी
नया प्रा०वि० मंसूरा
प्रा०वि० रसूलगंज
उ०म०वि० नेहालभाग सोन्था
मुस्लिम बढ़ते गए, सरकारी स्कूलों में घुसता गया ‘मदरसा’: झारखंड के 5 जिलों में 70 स्कूलों में जुमे पर छुट्टी, प्रार्थना का स्टाइल बदला
झारखंड, उर्दू स्कूल
झारखंड के स्कूलों को बनाया जा रहा उर्दू स्कूल
झारखंड में बीते दिनों सरकारी स्कूलों को उर्दू स्कूलों में बदले जाने के कई मामलों ने प्रशासन के कान खड़े कर दिए थे। सामने आया था कि प्रदेश में जहाँ मुस्लिम बहुल इलाके हैं वहाँ जनसंख्या के आधार पर स्कूलों के नियम तय हो रहे हैं। अगर किसी स्कूल के बाहर उर्दू लिख दिया गया तो मतलब उसे उर्दू स्कूल मान लिया गया और वहाँ मुस्लिमों के हिसाब से छुट्टी का दिन और प्रार्थना का ढंग बदल दिया गया।
पिछली रिपोर्ट्स में कई ऐसे स्कूलों और जगहों के नाम और वहाँ किए गए मनमाने बदलाव का खुलासा हुआ था। अब पता चला है कि झारखंड के मात्र 5 जिलों में ही 70 स्कूल ऐसे मिले हैं जो सामान्य से उर्दू स्कूल बनाए गए। इनमें 43 तो अकेले जामताड़ा में हैं जबकि बाकी के गढ़वा, पलामू, गुमला और राँची में हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट बताती है कि खुलासे के बाद भी कोई सुधार नहीं देखने को मिला। हालात वही के वही हैं। छुट्टी भी शुक्रवार ही होती है और प्रार्थना भी वही कराई जाती है जो बहुसंख्यक आबादी चाहे।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, पड़ताल से पता चला कि सरकार के पास अधिसूचित उर्दू स्कूलों की संख्या तक नहीं है और न ही सामान्य स्कूलों को उर्दू स्कूल बनने से रोकने को कोई मैकेनिज्म है। इसी से जहाँ-जहाँ मुस्लिम आबादी बढ़ती गई वहाँ सामान्य स्कूल भी उर्दू स्कूल में बदलते गए और किसी ने सवाल तक नहीं खड़ा किया। अब हालात ये है कि सरकार सख्ती करना चाहती है। लेकिन लोग डटे हुए हैं कि स्कूलों के आगे लिखा उर्दू अब नहीं हटेगा।
जामताड़ा का अलगचुआं स्कूल ऐसा ही एक स्कूल है जिसे वहाँ की आबादी ने उर्दू स्कूल बनाया है। वहाँ के अलीमुद्दीन अंसारी ने कहा कि उनकी पंचायत में 90 प्रतिशत मुस्लिम हैं और स्कूल में भी सिर्फ मुस्लिम बच्चे ही पढ़ते हैं इसलिए उन्हें व्यवस्था को बदले जाने से आपत्ति है। दुमका जिले के मध्य विद्यालय छालापाथर को भी उर्दू लिखकर उर्दू स्कूल बनाया गया। यहाँ के बच्चे हाथ बाँधकर प्रार्थना करते हैं और हेडमास्टर मौहम्मद जहाँगीर सफाई देते हैं कि स्कूल में लंबे समय से ऐसे ही प्रार्थना होती आई है।
कुछ स्कूलों के हेडमास्टर ने इस तरह सामान्य स्कूलों के उर्दू स्कूल में परिवर्तित किए जाने पर कहा कि संथाल सहित पूरे झारखंड में कई इलाके हैं जहाँ मुस्लिम आबादी जब-जब बढ़ी तो उन लोगों ने विद्यालय प्रबंधन समिति से स्कूल के आगे उर्दू जुड़वा दिया और फिर यू-डायस पर भी इसे बदलवा दिया गया। इसके बाद रविवार की जगह शुक्रवार की छुट्टी यहाँ नियम बन गई और प्रार्थना हाथ जोड़कर होने की बजाय हाथ बाँधकर की जाने लगी।
प्राइमरी स्कूल का नाम उर्दू उच्च विद्यालय करने का मामला, शिक्षा विभाग ने दिए जांच के आदेश
प्राथमिक विद्यालय का नाम कथित तौर पर बदल कर उर्दू उच्च विद्यालय करने के मामले पर भाजपा सासंद सुदर्शन भगत ने शिक्षा विभाग से इसकी जांच कराने की बात कही थी।
उत्तर में प्रदेश इसी तरह स्कूल का नाम बदलने पर विवाद हुआ था।
चित्र में स्कू्ल नाम से उर्दू हटाया जा रहा है
झारखंड के लोहदरगा से हैरान करने वाला मामला सामने है। यहां एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय का नाम बदल कर उर्दू उच्च विद्यालय कर दिया गया। मामला जिले के किस्को प्रखंड का है। वर्ष 1976 में इस विद्यालय से पढ़कर निकले धनेश्वर पांडे का आरोप है कि जब उन्हें यहां से सर्टिफिकेट दिए गए थे तब उस पर उर्दू विद्यालय का कोई जिक्र नहीं था। अब इस विद्यालय का नाम उर्दू उच्च विद्यालय हो गया है। उन्होंने षडयंत्र का आरोप लगाया है और विद्यालय को पहले की तरह संचालित करने की मांग की है।
जांच के लिए आदेश जारी
मामला सामने आने के बाद राज्य के शिक्षा विभाग ने मामले की जांच के आदेश दिए। जांच बाद मामले पर अधिक जानकारी आयेगी। लोहदरगा के उपायुक्त डॉक्टर वाघमेरे प्रसाद कृष्णा ने बताया है कि मामले की जांच को आदेश जारी किए जा चुके हैं।
बीजेपी सांसद ने की थी जांच की मांग
प्राथमिक विद्यालय का नाम कथित तौर पर बदल कर उर्दू उच्च विद्यालय करने के मामले पर भाजपा सांसद सुदर्शन भगत ने शिक्षा विभाग से इसकी जांच कराने की बात कहते उठाया था कि ग्रामीणों और अभिभावकों के अनुसार यह सामान्य विद्यालय था। इसलिए शिक्षा विभाग को मामले की जांच करनी चाहिए। जानकारी के मुताबिक स्कूल के पूर्व छात्र रहे धनेश्वर पांडेय ने जिला परिसदन में सांसद को अपनी पांचवीं की डिग्री दिखाई थी। इसमें विद्यालय के नाम के साथ उर्दू शब्द का जिक्र नहीं था।
उर्दू स्कूल की मिली है मान्यता
जानकारी के मुताबिक राजकीय उत्क्रमित उर्दू उच्च विद्यालय चरहु को जिला शिक्षा विभाग ने उर्दू स्कूल की मान्यता दे रखी है। लोहदरगा जिले के 18 उर्दू स्कूलों की सूची में यह विद्यालय भी शामिल है। हालांकि, विवाद सामने आने के बाद शिक्षा विभाग ने अब मामले की जांच के आदेश दिए हैं।