मोदी के 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ घोषणा भी फंसी राजनीति में
प्रधानमंत्री मोदी के ‘वीर बाल दिवस’ की घोषणा पर पंजाब में क्या है आपत्तियां?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से छोटे साहिबज़ादों के बलिदान दिवस को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में घोषित किए जाने के बाद विवाद देखने को मिल रहा है.
कुछ सिख विद्वानों ने इसे सिखों के आंतरिक मामलों में दख़ल क़रार दिया है तो कुछ ने इस फ़ैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की है.लेकिन, कई धार्मिक और राजनीतिक नेता प्रधानमंत्री के फ़ैसले की तारीफ़ भी कर रहे हैं. प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद से ही तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.
सिख इतिहास में पौष का महीना (दिसंबर के मध्य की शुरुआत) बेहद शोकपूर्ण होता है. दशम पातशाह साहिब श्री गुरु गोविंद सिंह जी के परिवार का बिछड़ना, चार साहिबज़ादों ( गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों) और माता गुजरी का बलिदान, ये सभी दुखद घटनाएं इस महीने में ही घटे थे.
माता गुजरी और छोटे साहिबज़ादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह को फ़तेहगढ़ साहिब के ठंडे बुर्ज़ में क़ैद कर दिया गया था और उसके बाद दोनों साहिबज़ादों को दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया गया था.
प्रधानमंत्री ने क्या घोषणा की है
9 जनवरी को श्री गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटे साहिबज़ादों की शहादत को याद करने के लिए, 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में घोषित किया .
प्रधानमंत्री ने ट्वीट के ज़रिए जानकारी साझा करते हुए लिखा, “आज श्री गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर, मुझे यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि इस वर्ष से 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा. यह साहिबज़ादों की बहादुरी और न्याय की उनकी तलाश के प्रति उचित श्रद्धांजलि है.”
उन्होंने आगे लिखा, “‘वीर बाल दिवस” उसी दिन मनाया जाएगा जिस दिन साहिबज़ादा जोरावर सिंह जी और साहिबज़ादा फतेह सिंह जी अपने आप को दीवार में ज़िंदा चुनवाकर शहीद हुए. इन दो महापुरुषों ने धर्म के महान सिद्धांतों से हटने की बजाय मृत्यु को प्राथमिकता दी.”
एसजीपीसी के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी
‘इसे पंथ स्वीकृत नहीं माना जा सकता’
प्रधानमंत्री की इस घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने कहा, “हम प्रधानमंत्री की भावनाओं की सराहना करते हैं पर छोटे साहिबज़ादों की शहादत को बाल संज्ञा से जोड़ कर वीर बाल दिवस तक सीमित रखना, शहादतों की भावना और सिख परंपराओं से मेल नहीं खाता.”
उन्होंने कहा कि सिख इतिहास, सिद्धांतों और परंपराओं को देखते हुए दसवें पातशाह जी के साहिबज़ादों के अतुलनीय बलिदान महान योद्धाओं के समान थे और उनके संबोधन के दौरान उन्हें बाबा शब्द से सम्मानित किया जाता है.
एसजीपीसी अध्यक्ष ने कहा कि सिख जगत में किसी भी विचार को राष्ट्रीय मान्यता देने की कसौटी, हमारा सिख इतिहास, गुरबानी, सिख सिद्धांत और मान्यताएं हैं.
उन्होंने अकाल तख्त से छोटे साहिबज़ादों के बलिदान दिवस को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मान्यता देने की नेतृत्व करने की भी अपील की है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का उद्घाटन अवसर पर गुरु साहिब को श्रद्धांजलि देना और ऐलान भले ही श्रद्धा भावना से उत्पन्न हुआ हो, लेकिन इसे पंथ स्वीकृत नहीं माना जा सकता.
किरणजोत कौर
‘मोदी सरकार ने इसे बच्चों का खेल समझ लिया है!’
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सदस्य किरणजोत कौर ने दिन का नाम रखने की बजाए, शहीदी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की है.
प्रधानमंत्री की इस घोषणा पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “गैर-सिख सरकार ने साहिबज़ादों की शहीदी को छोटा करते हुए, छोटे साहिबज़ादों के शहादत दिवस को ‘वीर बाल दिवस’ का नाम दिया है, मोदी सरकार ने इसे बच्चों का खेल समझ लिया है!”
“छोटे साहिबज़ादों के लिए पंथक शब्दावली बाबा है और पंथक शब्दावली के साथ छेड़छाड़ करने का किसी भी गैर-सिख को अधिकार नहीं.”
हालांकि, अंग्रेजी में ट्वीट करने के करीब दो घंटे बाद प्रधानमंत्री ने पंजाबी में भी ट्वीट किए, जिनमें साहिबज़ादों के लिए बाबा शब्द का प्रयोग किया गया है.
‘इस फैसले को यहीं ख़ारिज कर दिया जाए’
दल खालसा के प्रवक्ता कंवर पाल सिंह ने इस घोषणा पर नाराजगी जताते हुए कहा कि स्टेट को सिखों के धार्मिक मामलों में दख़ल देने का कोई अधिकार नहीं है.
दल खालसा के अनुसार, प्रधानमंत्री का छोटे साहिबज़ादों के शहादत दिवस को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने का अपने आप लिया गया निर्णय एक ग़लत परंपरा चलाएगा, जिसे यहीं ख़ारिज कर दिया जाए.
साथ ही कहा गया है कि सिखों को सरकार को यह बताने की ज़रूरत है कि हमारे आंतरिक धार्मिक मामलों में आपका हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है. दूर रहें!
दमदमी टकसाल के प्रमुख हरनाम सिंह खालसा
‘प्रधानमंत्री के क़दम से कौम का सिर ऊँचा उठा है’
दमदमी टकसाल के प्रमुख हरनाम सिंह खालसा ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा साहिबज़ादों के साहस और बहादुरी के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि स्वरूप 26 दिसंबर को, देश भर में सार्वजनिक अवकाश का ऐलान करते हुए ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की सराहना की.
इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री का शुक्रिया भी अदा किया.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने इस बड़े फ़ैसले के साथ अपने फ़र्ज़ निभाते हुए, चार साहिबज़ादों द्वारा हिन्दू धर्म की रक्षा करने और गुरसिखी के लिए ज़ालिमों की दीन न मानने, माता गुजर कौर जी और सिख पंथ की ऐतिहासिक भूमिका के प्रति दुनिया को अवगत कराने का बड़ा प्रयास किया है.
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने मेरे सतगुरु के लालों (पुत्रों) की याद में इस दिन को समर्पित कर भारत की जनता को जगाया है और हिन्दवासियों को उनके बलिदान को याद करने का संदेश दिया है.”
दमदमी टकसाल प्रमुख के अनुसार, प्रधानमंत्री के इस क़दम ने कौम का सिर ऊंचा किया है. उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति पंथ के लिए अच्छे काम करता है, उसे प्रोत्साहित किया और सराहा जाना चाहिए. न कि उसकी निन्दा या चुगली करते हुए अहसान फरामोश होना चाहिए.
दमदमी टकसाल के मुखिया ने प्रधानमंत्री से पंथ और पंजाब के लंबित मुद्दों को भी जल्द से जल्द हल करने की मांग की है.
शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के प्रमुख परमजीत सिंह सरना
‘निर्णय स्वागत योग्य पर नामकरण उचित नहीं’
शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह की शहादत को आधिकारिक मान्यता दिए जाने का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही उन्होंने मोदी सरकार से ये भी अपील की है कि शहादत के महान दिन को ‘वीर बाल दिवस’ का नाम न दिया जाए.
शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के प्रमुख परमजीत सिंह सरना ने प्रधानमंत्री से अपील की कि इसे या तो साहिबज़ादे दिवस या बाबा जोरावर सिंह/बाबा फतेह सिंह दिवस कहा जाए, ताकि राज्य स्तर पर उनकी अद्वितीय शहादत को सम्मानित किया जा सके.
उन्होंने कहा, “साहिबज़ादों की शहादत को आधिकारिक मान्यता एक स्वागत योग्य क़दम है, लेकिन ‘वीर बाल दिवस’ एक उचित नामकरण नहीं है. सिख धर्म और इतिहास में साहिबज़ादों का उनके ऊंचे कद के लिए बतौर बाबा सम्मान किया जाता है, न कि बच्चों रूप में.”
बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा
सिरसा ने किया प्रधानमंत्री का धन्यवाद
प्रधानमंत्री के एलान का स्वागत करते हुए बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि प्रधानमंत्री की यह घोषणा कि साहिबज़ादों की महान शहादत को समर्पित हो कर, 26 दिसंबर को पूरे देश में ”वीर बाल दिवस” मनाया जाएगा से आज देश और दुनिया उस इतिहास के बारे में पता चलेगा.
यह वह घटना थी जो हर बच्चे तक पहुंचनी चाहिए थी, लेकिन पहुंच नहीं सकी. देश और दुनिया को अब पता चलेगा कि साहिबज़ादे कौन थे.
सिरसा ने कहा, “इतना बड़ा अतुलनीय बलिदान, जिसका इस देश का हर कण ऋणी है और उस ऋण को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुकाया है.”
‘यह एक सराहनीय क़दम है.’
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी घोषणा का स्वागत किया.
इस बारे में ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ स्वरूप मनाने के के फ़ैसले का स्वागत करता हूं.”
“ज़ुल्म के अधीन साहिबज़ादों द्वारा दिखाई गई बहादुरी अद्वितीय है और दुनिया भर में हर किसी को उनके महान बलिदान के बारे में पता लगना चाहिए. यह उस दिशा में एक सराहनीय क़दम है.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा, साहिबज़ादों की शहादत को समर्पित ‘वीर बाल दिवस’ की घोषणा के बाद पंजाब में कईयों ने इसकी प्रशंसा की है और कई इसका विरोध कर रहे हैं.
डॉक्टर अमरजीत सिंह
‘नाम बदलना कोई बड़ी बात नहीं’
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में श्री गुरु ग्रंथ साहिब स्टडी सेंटर के निदेशक डॉक्टर अमरजीत सिंह कहते हैं, “मैं भारत सरकार के इस कार्य की सराहना करता हूं. इस तरह की घोषणा से सिख इतिहास के बारे में जागरूकता बढ़ेगी, जो एक वर्ग तक ही सीमित थी.”
उन्होंने कहा, “उस बलिदान ने भारत का इतिहास बदल दिया था और अगर भारत सरकार इसे मान्यता दे रही है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए.”
नाम को लेकर उनका कहना है कि कुछ लोग जो नाम का विरोध कर रहे हैं, वे सरकार को अपने सुझाव दें और मुझे लगता है कि नाम बदलना कोई बड़ी बात नहीं होगी.
डॉक्टर अमरजीत सिंह ने कहा, “हमारी एक पंथिक शब्दावली भी है, इसमें कोई दो राय नहीं है. एक बार यह अजीब लगता है कि वीर शब्द या बाल शब्द कहां से आ गया, जबकि ये दोनों शब्द गुरबानी में भी अलग-अलग संदर्भों में आते हैं.”
“मेरा सुझाव है कि अगर इसमें साहिबजादा शब्द जोड़ दिया जाए, तो कुछ लोगों का जो आपत्तियां हैं वो ख़त्म हो जाएंगी.”