ज्ञानवापी: जिला कोर्ट में घंटेभर सुनवाई बाद आदेश सुरक्षित
ज्ञानवापी पर कोर्ट में सुनवाई:मुस्लिम पक्ष बोला- केस सुनने लायक नहीं; हिंदू पक्ष की मांग- सर्वे रिपोर्ट कोर्ट में पढ़ी जाए, आदेश कल
वाराणसी23मई।ज्ञानवापी विवाद पर सोमवार को पहली बार जिला जज की अदालत में लगभग एक घंटे तक सुनवाई हुई। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी यानी मुस्लिम पक्ष के वकील अभय नाथ यादव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर मां शृंगार गौरी-ज्ञानवापी प्रकरण से संबंधित मुकदमे की पोषणीयता पर सुनवाई की मांग की। यानी कि यह पूरा मामला कोर्ट में सुनवाई के लायक है या नहीं…।
वहीं, हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने मुस्लिम पक्ष के प्रार्थना-पत्र के साथ ही कमीशन कार्यवाही की रिपोर्ट और वीडियोग्राफी-फोटोग्राफी कोर्ट में पढ़ने की मांग की। उन्होंने कहा कि अब रिपोर्ट कोर्ट की कार्रवाई का हिस्सा है। उस पर सभी पक्षों को आपत्ति दाखिल करने का अवसर मिलना चाहिए। जिला जज डॉक्टर अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने दोनों पक्ष की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट कल यानी 24 मई को अपना आदेश सुनाएगी।
19 वकील और चार याचिकाकर्ता ही कोर्ट रूम में मौजूद रहे
दोनों पक्षों ने बारी-बारी से अपनी दलीलें रखी। इस दौरान दोनों पक्षों के 19 वकील और चार याचिकाकर्ता ही कोर्ट रूम में मौजूद रहे हैं। एडवोकेट कमिश्नर रहे अजय मिश्रा को कोर्ट रूम में जाने से रोक दिया गया। बताया जा रहा है कि लिस्ट में नाम न होने से उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया। बाहर बड़ी संख्या में पुलिस और पीएसी के जवान तैनात रहे।
विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत ने दाखिल की याचिका
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉक्टर कुलपति तिवारी सोमवार को जिला जज की अदालत में याचिका दाखिल करने पहुंचे। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के स्नान, भोग-राग, शृंगार और पूजापाठ का अधिकार उन्हें दिया जाए। उन्होंने कहा कि हम न्यायिक तरीके से अपने भगवान विश्वेश्वर की पूजा का अधिकार मांगने आए हैं। डॉक्टर कुलपति के प्रार्थना पत्र पर फिलहाल अदालत ने आदेश नहीं सुनाया है।
अधिवक्ता विष्णु जैन ने कहा कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 ज्ञानवापी प्रकरण में प्रभावी नहीं होगा। इस बात को कोर्ट के सामने साक्ष्यों के साथ पेश करेंगे।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता: हिंदू पक्ष के वकील
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 लागू नहीं होता है। उन्होंने कहा कि 1937 में दीन मोहम्मद के केस में 15 लोगों ने गवाही दी थी कि वहां पूजा होती थी जो 1942 तक हुई। इसलिए वह एक्ट ज्ञानवापी प्रकरण में प्रभावी नहीं होगा। यही तथ्य हमने अदालत के सामने रखा है।
हिंदू सेना और भाजपा नेता भी आए आगे
ज्ञानवापी मामले को लेकर वाराणसी की कोर्ट में हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता याचिका दाखिल करेंगेें। विष्णु गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में भी ज्ञानवापी मामले में खुद को वादी बनाने को प्रार्थना पत्र दिया था। उधर, ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका सोमवार को दायर हुई है। इसे BJP नेता और एडवोकेट अश्वनी उपाध्याय ने दाखिल किया है। उन्होंने मस्जिद कमेटी की अर्जी खारिज करने की मांग की है। कहा है कि मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिद वैध नहीं होती, ऐसा इस्लामिक सिद्धांत है।
विष्णु गुप्ता ने बताया कि वह महिला वादिनियों और उनके पैरोकार डॉक्टर सोहनलाल आर्य के साथ शृंगार गौरी-ज्ञानवापी प्रकरण में शामिल होंगें।
श्रीकाशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन के प्रमुख ने पकड़े कान
श्रीकाशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन के प्रमुख सुधीर सिंह ने सोमवार को बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। इसके बाद कान पकड़ कर आदि विश्वेश्वर से माफी मांगी। सुधीर सिंह ने श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के बाहर खड़े होकर कान पकड़ कर माफी मांगी है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी में मिले स्वयंभू शिवलिंग की 300 से ज्यादा वर्षों से पूजा नहीं हो पाई है। इसके लिए हम काशीवासी कान पकड़ कर माफी मांगते हैं। भोलेनाथ दयालु हैं, वह हम सबको माफ कर देंगें।
जिला जज के पास सुनवाई पूरी करने को 8 हफ्ते का समय
20 मई को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने ज्ञानवापी केस को वाराणसी जिला जज की कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने 51 मिनट चली सुनवाई में साफ शब्दों में कहा था कि मामला हमारे पास जरूर है, लेकिन पहले इसे वाराणसी जिला कोर्ट में सुना जाए।
कोर्ट ने कहा कि जिला जज 8 हफ्ते में अपनी सुनवाई पूरी करेंगें। तब तक 17 मई की सुनवाई के दौरान दिए गए निर्देश जारी रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 21 मई को सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की कोर्ट से ज्ञानवापी प्रकरण से संबंधित पत्रावली जिला जज की कोर्ट में स्थानांतरित कर दी गई। बता दें कि 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तीन बड़ी बातें कही थीं।
पहला- शिवलिंग के दावे वाली जगह को सुरक्षित किया जाए।
दूसरा- मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से न रोका जाए।
तीसरा- सिर्फ 20 लोगों के नमाज पढ़ने वाला ऑर्डर अब लागू नहीं। यानी ये तीनों निर्देश अगले 8 हफ्तों तक लागू रहेंगे। इसमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं होगा।