सुप्रीम हस्तक्षेप: ज्ञानवापी सुनवाई सिविल जज से हटा जिला जज को,फैसले को दो माह
सिविल जज के हाथों से ज्ञानवापी मामला ट्रांसफर, अब जिला जज करेंगे सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले में बड़ा आदेश दिया है। उसने सिविल जज के हाथों से ज्ञानवापी केस की सुनवाई को ट्रांसफर करने के निर्देश दिए हैं। इसके बजाय अब केस की सुनवाई ज्यादा अनुभवी जिला जज को सौंपी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मामले में सभी हितों को सुरक्षित रखना चाहती है।
Supreme court verdict in Gyanvapi case: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को ज्ञानवापी मामले पर सुनवाई हुई। देश की सबसे बड़ी अदालत ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इसे ट्रांसफर कर दिया है। केस को सिविल जज सीनियर डिवीजन वाराणसी रवि कुमार दिवाकर के बजाय अब जिला जज वाराणसी सुनेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भरोसा दिलाया कि सभी पक्षों के हित सुरक्षित रखे जाएंगे। मामले में मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि स्थानीय अदालत के आदेश का गलत इस्तेमाल हो रहा है। कोर्ट ने कमिश्नर की रिपोर्ट को यह कहते हुए देखने से मना कर दिया कि इसे जिला जज देखने में सक्षम हैं।
बनारस जिला जज
डॉक्टर अजय कृष्णा विश्वेशा डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज बनारस हैं जो अब ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सुनवाई करेंगे. सात जनवरी 1964 को जन्मे डॉक्टर अजय कृष्णा विश्वेशा उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रहने वाले हैं.उनका रिटायरमेंट 2024 में है।
Gyanvapi and supreme court
जस्टिस जे चंद्रचूड़ की अगुवाई में शुक्रवार को तीन जजों की बेंच ने ज्ञानवापी मामले में सुनवाई की। पीठ ने कहा कि वह अभी तीन सुझावों पर कुछ कर सकती है। पहला, वह कह सकती है कि ऑर्डर 7 रूल 11 में फाइल याचिका पर ट्रायल कोर्ट फैसला दे। दूसरा, उसने अंतरिम आदेश दिया है जिसे मामले के निस्तारण या फैसला आने तक जारी रखा जा सकता है। तीसरी चीज जो बेंच कर सकती है वह यह है कि मामले की पेचदगी और संवेदनशीलता देखते हुए इसकी सुनवाई जिला जज करें। ऐसा करते हुए बेंच ट्रायल जज पर किसी तरह का आरोप या दोष नहीं मढ़ रही है। बस, इतनी सी बात है कि कोई ज्यादा अनुभवी मामले को सुने। इससे सभी पार्टियों के हितों की सुरक्षा की जा सकेगी।
ट्रायल कोर्ट में एक शादी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने बेंच को बताया कि उनके अनुसार, जहां तक आदेश 7 नियम 11 के आवेदन पर निर्णय लेने की बात है, तो संपत्ति का धार्मिक स्वरूप देखना होगा। इसके लिए आयोग की रिपोर्ट देखनी होगी।
वैद्यनाथन ने दलील दी कि ऐसे में आयोग की रिपोर्ट देखने के उस सीमित उद्देश्य के लिए ट्रायल कोर्ट को मामले को देखने दिया जाए।
इस पर जे चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें आपकी बात समझ में आ गई। हम इसे जिला जज पर छोड़ देंगे, जो 20-25 साल का अनुभव रखते हैं। वे जानते हैं कि इसे कैसे संभालना है।
जस्टिस जे चंद्रचूड़ ने कहा कि हम न्यायिक अधिकारियों पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं। हम तीनों (जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा) ने इस बारे में काफी लंबी चर्चा की कि सबसे अच्छा तरीका क्या होना चाहिए जिसे अपनाया जा सकता है।
मस्जिद समिति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि इन सभी में गंभीर शरारत की आशंका है। इस पर शुरू में ही अंकुश लगाना होगा। आयोग की नियुक्ति से लेकर सभी आदेश अवैध हैं। उन्हें शून्य घोषित किया जाना चाहिए।
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आदेश 7 नियम 11 को आपके अनुसार पहले लेना चाहिए था और ऐसा नहीं किया गया। अब हम जो करने का इरादा रखते हैं वह यह तय करना है कि क्या कमीशन का आदेश अधिकार क्षेत्र में था या नहीं, हमें योग्यता में जाना होगा।
जस्टिस जे चंद्रचूड़ के मुताबिक, अंतरिम आदेश का उद्देश्य कुछ हद तक संतुलन लाना था।
अहमदी ने कहा कि हमारी एसएलपी आयोग की नियुक्ति के खिलाफ है। इस प्रकार की शरारत को रोकने को ही 1991 का अधिनियम बनाया गया था। कहानी बनाने को आयोग की रिपोर्ट चुनिंदा तरीके से लीक की गई है। यह कुछ ऐसा है जिसमें आपको हस्तक्षेप करना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिला जज का आदेश आ जाने तक उसका 17 मई को जारी अंतरिम आदेश बना रहेगा। इसमें उसने कहा था कि शिवलिंग वाली जगह संरक्षित की जाएगी। साथ ही मुस्लिमों को मस्जिद परिसर में नमाज की इजाजत रहेगी। आठ सप्ताह बाद पीड़ित पक्षों को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले को ट्रांसफर क्यों किया, क्या यह मुस्लिम पक्ष की जीत है? समझें एक-एक बिंदु
ज्ञानवापी मामला सिविल जज से जिला जज के पास ट्रांसफर किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस बारे में फैसला दिया। फैसले के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कई लोग इसे मुस्लिम पक्ष की जीत भी बता रहे हैं। आइए, समझें कि वाकई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का क्या मतलब है।
Supreme Court order related to transferring of Gyanvapi case: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ज्ञानवापी मामले (Gyanvapi case) में शुक्रवार को महत्वपूर्ण आदेश दे सुनवाई ट्रांसफर कर दी है। सिविल जज (Civil Judge) के बजाय अब जिला जज केस सुनेंगें। कई इसे मुस्लिम पक्ष की जीत के तौर पर देख रहे हैं। कारण है कि अभी तक केस में सिविल जज ने ही आदेश दिए हैं। मुस्लिम पक्ष इसे लेकर आपत्ति जताता आया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केस ट्रांसफर करते हुए जो कुछ कहा है उससे साफ है कि इसे किसी की जीत-हार से जोड़कर देखना गलत है। आइए, समझें कि सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामला ट्रांसफर करने का फैसला क्यों दिया और क्यों यह किसी पक्ष की हार-जीत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों ट्रांसफर किया केस?
मामले से जुड़े वकीलों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट को मामला काफी जटिल और संवेदनशील लगता है जिसे ज्यादा अनुभवी जज की मॉनिटरिंग चाहिए। यही देखते हुए सुनवाई सिविल जज से जिला जज को ट्रांसफर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया है आदेश?
सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले की सुनवाई जिला जज को ट्रांसफर करने के साथ कई अहम बातें कहीं हैं। उसने डिस्ट्रिक्ट जज से कहा है कि वह प्रॉयरिटी बेसिस पर सुनवाई करें।सिविल जज के पास लंबित सभी प्रोसीडिंग्स डिस्ट्रिक्ट जज को ट्रांसफर होंगी। कोर्ट ने कहा है कि जिला जज वाराणसी पहले हिंदू भक्तों की ओर से कागजात के हस्तांतरण पर दायर दीवानी मुकदमे की सुनवाई का फैसला करेंगे। शीर्ष अदालत ने वाराणसी के जिलाधिकारी से ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज अदा करने वाले मुसलमानों के लिए ‘वजू’ की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित करने को कहा है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा है कि मस्जिद परिसर में जहां से शिवलिंग निकलने का दावा हुआ हैै, उसकी सुरक्षा और मुसलमानों को नमाज अदा करने की अनुमति पर उसके पहले के निर्देश लागू रहेंगे।
क्या सिविल जज पर सुप्रीम कोर्ट को नहीं था भरोसा?
नहीं, यह समझना गलत है। यहां भरोसे की बात बिल्कुल नहीं है। यहां पूरा मामला अनुभव का है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्य कांत और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने केस को ट्रांसफर करते हुए यह साफ भी किया। उन्होंने कहा कि वो सिविल जज (सीनियर डिवीजन) पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं जो पहले मुकदमा देख रहे थे। वो सिर्फ यह समझते हैं कि इसे कोई ज्यादा अनुभवी देखे।
क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिम पक्ष के लिए जीत है?
यह निष्कर्ष निकालना गलत है। मामला सिर्फ ट्रांसफर हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें किसी के पक्ष की बात नहीं की है। केस की जटिलता और संवेदनशीलता देखते हुए उसने इसे ज्यादा अनुभवी जज को ट्रांसफर किया है। अब उन्हें इस मामले में फैसला सुनाना है। इस तरह कह सकते हैं कि गेंद सिविल जज के पाले से जिला जज के पाले में आ गई है। इसे किसी भी पक्ष की जीत-हार से जोड़ना सही नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कुल मिलाकर मामले में संतुलन बनाने की कोशिश की है। अब जिला जज तय करेंगे कि क्या सही है क्या गलत है।
मुस्लिम पक्ष को जिला कोर्ट पर कितना भरोसा?
सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने बार-बार यह तर्क दिया कि किसी तरह की शरारत को रोकने को ही 1991 का ऐक्ट बनाया गया था। इस मामले से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ रहा है। इसे केवल एक सूट की दृष्टि से न देखा जाए। देशभर में इसके प्रभाव देखें जाएं। हालांकि, यह तर्क सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर कहा कि सूट की एक प्रक्रिया है। इससे कानून का उल्लंघन कैसे हो सकता है। नियमों का पालन करना जरूरी है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।