पर्यटन: विश्व प्रसिद्ध हम्पी नहीं देखा तो क्या देखा?
राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम की कर्मस्थली रही है हम्पी, ये है ऐतिहासिक धरोहरों का कुंंभ
[आलोक रंजन]। कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसे संग्रहालय में सुबह-सुबह प्रवेश करें, जो चारों ओर से न सिर्फ खुला हो, बल्कि वह सोलहवीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध शहर भी हो! ज्यों-ज्यों दिन खुले तो पतली और काली चमकदार सड़क के दोनों ओर लगे छोटे-छोटे साइनबोर्ड आपको उन नामों की नगरी में ले जाएं, जो भारतीय इतिहास के स्तंभ माने जाते हैं! जहां बढ़ता हुआ हर अगला कदम आपको यहां की सभ्यता-परंपरा से खुद- ब-खुद वाकिफ करा दे। यह कल्पना हकीकत में तब्दील हो सकती है, यदि आप हम्पी घूमने आएं।
दरअसल, हम्पी आपको उस समृद्धतम काल में ले जाता है, जो इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो चुका है। यह वही शहर है, जहां कभी राजा कृष्णदेव राय और उनके अति-बुद्धिमान सलाहकार तेनालीराम रहते थे। हाल में न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में हम्पी को दुनिया के बेहतरीन 52 पर्यटन स्थलों में दूसरे स्थान पर रखा था।
कलात्मक भव्यता के दर्शन
हम्पी का इतिहास सम्राट अशोक के समय से मिलता है। मध्यकाल तक यह कई राजवंशों की राजधानी रही, लेकिन हम्पी की वास्तविक प्रसिद्धि और समृद्धि मध्य काल में विजयनगर साम्राज्य से जुड़ी है। इसने तुलुववंशीय राजा कृष्णदेव राय के काल (1509-1530 ई.) में अतुलनीय ऊंचाई हासिल की। इतिहास में विजयनगर साम्राज्य अपने व्यापार और उच्चस्तरीय प्रशासन के लिए जाना जाता है, जब भवन निर्माण, मूर्तिकला और संगीत के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई थी।
इसकी बानगी आप यहां की संरचनाओं में देख सकते हैं। स्तंभों पर बने ऊंचे-ऊंचे घोड़े इस बात के प्रमाण हैं। हालांकि तब की कुछ संरचनाएं अब खंडहर हो गई हैं, लेकिन साबुत बचे भवनों, मंदिरों, सरायों और बाजारों से इस साम्राज्य की भव्यता और उनके कारीगरों के कौशल का पता चलता है। यहां पत्थर पर उकेरी गई महीन कलाकृतियों से सुसज्जित सैकड़ों भवन हैं। इनमें मंदिर, लंबे गलियारे, मूर्तियां, बाजार आदि इतने आकर्षक हैं कि उन्हें घंटों निहारा जा सकता है।
खंभों से निकलती हैं स्वर लहरियां!♦
विट्ठल मंदिर में रथ के पीछे स्थित परिसर की एक महत्वपूर्ण संरचना है महामंडपम! इसका प्रयोग राजसी नृत्य और संगीत के कार्यक्रमों के लिए किया जाता था। शिल्प की अत्यंत महीन कारीगरी यहां देखने को मिलती है। मंडप की खास बात है पत्थरों को तराशकर बनाए गए खंभे। इस हिस्से में वे खंभे भी हैं, जिन पर चोट करने से कर्नाटक संगीत की सभी स्वर लहरियां निकलती हैं। भवन निर्माण कला का ऐसा बेजोड़ नमूना संभवत: कहीं और नहीं मिलेगा। वैसे इन खंभों की यह विशेषता उनके अस्तित्व के लिए खतरा भी बन गई है। हम्पी आने वाले सैलानियों के पत्थर के खंभों पर चोट करने से वे क्षतिग्रस्त होने लगे। मजबूरन सरकार को महामंडपम में लोगों का प्रवेश रोकना पड़ा। अब इसे एक निश्चित दूरी से ही देखा जा सकता है।
धरोहर को संजोए है वर्तमान
हम्पी के मंदिरों में आसपास बसे लोग अब भी पूजा-अर्चना करने आते हैं। मंदिरों की पूजा पद्धति आज भी ठीक वैसी ही है, जैसे सैकड़ों साल पहले थी। मंदिर में रथ और हथियों का वही महत्व, घरों के बाहर उसी तरह की अल्पनाएं उस राजसी वैभव के साथ लोक में प्रचलित विधि-विधानों के अद्भुत मेल को दर्शाती हैं। वास्तव में हम्पी का वर्तमान अपनी परंपरा और इतिहास के आकर्षण के साथ खड़ा है। प्राचीन नगर की भव्यता के बाहर का वर्तमान इस धरोहर को संजोये रखने के लिए बना हुआ है।
लुभावनी प्राकृतिक छटा
यहां जो प्राकृतिक छटा छाई रहती है, वह अद्भुत है। उसे सुबह से लेकर शाम तक और दिन से लेकर रात तक कभी भी महसूस किया जा सकता है। यहां सूर्योदय इतना मोहक होता है कि कई सुबहों तक वहां बैठे रहने से भी मन न थके। हम्पी में कहीं से भी सूर्योदय को देखना रोचक होता है, लेकिन अंजनाद्रि पर्वत से सूर्य को दूर क्षितिज से प्रकट होते देखना रोमांच से भरा होता है। उस ऊंचे स्थान तक पहुंचने के लिए सात सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, लेकिन उनकी बनावट ऐसी है कि जरा भी थकान नहीं महसूस होती।
अंजनाद्रि पर्वत से दिखता है विस्तार
अंजनाद्रि पर्वत से आप हम्पी का विस्तार देख सकते हैं। सुबह की स्निग्ध शांति में दूर-दूर तक फैली ग्रेनाइट की चट्टानों पर पड़ती सूरज की पहली किरण उन्हें सुनहरी शिलाओं में बदल देती है। पास में बहती तुंगभद्रा नदी, जो ऊंचाई से एक फीते के समान दिखती है, उसके पानी पर पड़ने वाली सुबह की किरणें पिघले सोने का रूप ले लेती हैं। वहां से सूर्य का अद्भुत नजारा देखकर आप सोचने लगेंगे कि सूरज हमारे वर्तमान का हिस्सा है, लेकिन वह तो उस समय भी यूं ही निकलता होगा। वह यह भी तो देखता होगा कि कैसे सुबह से कारीगर पत्थर के उन बड़े-बड़े टुकड़ों को जोड़कर किसी भव्य महल या छोटे से घर की शक्ल दे रहे होंगे। लोगों, वहां की स्त्रियों और बच्चों ने भी यही सूर्य देखा होगा।
कर्नाटक पर्यटन का प्रतीक है यह रथ
आप इस रथ को भारत सरकार द्वारा हाल में जारी किए गए 50 रुपये के नए नोट पर भी देख सकते हैं। भारतीयता की पहचान है यह रथ, जो अपने आप में अद्भुत है। यह पत्थर को काटकर बनाया गया है। विट्ठल मंदिर के जिस परिसर में यह आकृति है, उसे मंदिरों का एक विशाल संकुल कह सकते हैं। विट्ठल मंदिर में प्रवेश पूरब की ओर बने गोपुरम् से होता है, लेकिन मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही सामने आता है यह प्रस्तर रथ, जिसकी इतनी प्रसिद्धि है। हम्पी के ऐतिहासिक मंदिर के प्रांगण में बना यह रथ केवल एक संरचना भर नहीं है, बल्कि इतिहास से चली आ रही परंपरा का प्रतीक भी है। उसके इस महत्व को समझते ही उसके सामने खड़ा होना अपने गौरवशाली अतीत पर गर्व करने का एहसास कराता है।
अप्रतिम सौंदर्य की झलक
इस आकृति को देखकर ऐसा महसूस होता है कि इसे एक ही बड़ी चट्टान को काटकर बनाया गया है। इतिहास और भारतीय मूर्तिकला में रुचि रखने वालों के लिए यह रथ बड़ा ही रोचक है। असल में इस रथ जैसी आकृति को कई अलग-अलग खंडों में तराशकर बनाया गया है। प्रस्तर खंडों को इस तरह से तराशा गया है कि पूरी संरचना को देख उसे एक ही पत्थर को काटकर बनाए जाने का एहसास होता है। यह उस रथ की भव्यता और उसके सौंदर्य को और स्पष्ट कर देता है।
कमाल की चित्रकारी
रथ की एक विशेष बात है उस पर की गई चित्रकारी। उस चित्रकारी में खनिजों का प्रयोग किया गया है और यही विशेष प्रयोग उन चित्रों को समय की मार से बचाए हुए है। यह देखकर पर्यटकों का मन उस समय के कलाकारों के प्रति मन अपने आप श्रद्धा से भर जाता है। वे कितने बड़े कलाकार रहे होंगे, जिन्होंने अपनी कला को सहेजकर रखने की इतनी बढ़िया विधि खोज निकाली होगी। तेज धूप में बिट्ठल मंदिर के परिसर के बीचोबीच खड़े उस रथ के हाथी को देखकर ऐसा लगता है, मानो सदियों से रुके हुए रथ के पहिए अभी चल पड़ेंगे।
मतांगा पर्वत पर सनसेट प्वाइंट
यहां मतांगा पर्वत पर बेहद खूबसूरत सनसेट प्वाइंट है। यहां सूर्यास्त देखने वालों की भीड़ जुटी होती है। इस प्वाइंट पर आकर सूरज शाम होते-होते आकाश में बंधी शहद की पोटली की तरह दिखने लगता है। लगता है शहद की पोटली से टपकता रस समूचे क्षितिज को रसीले एहसास में डुबोते हुए पसरता रहा है। ऐसे में परिसर में टहलता पर्यटक दिन के इस तरह के अंत को देखकर पूर्णता के एहसास से भर जाता है।
गोल-गोल घूमती नावें
हम्पी में आप हरागोलु तेप्पा यानी गोल आकृति की नावें देख सकते हैं। इन नावों का यह स्वरूप बड़ा ही रोचक होता है। इस तरह के नावों की एक विशेषता इनकी गोल-गोल घूमने की अदा है। कुछ वर्ष पहले अभिषेक बच्चन की एक फिल्म आई थी-रावण। उस फिल्म में अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय पर नदी के बीचोबीच इसी गोल नाव पर एक दृश्य फिल्माया गया था। तुंगभद्रा नदी में सुबह से शाम तक पर्यटकों को इस नाव की सवारी उपलब्ध कराई जाती है। देश के अधिकांश हिस्सों में नावों का जो आकार होता है, उससे अलग ये टोकरीनुमा नावें एक नजर में ही अपनी ओर खींच लेती हैं। स्थानीय नाविक इसमें अधिकतम 6 से 8 लोगों को बिठाते हैं। अकेले भी इन नावों में नदी के सौंदर्य को निहारा जा सकता है। खास बात यह है कि इन हरागोलुओं का चलन हम्पी में विजयनगर साम्राज्य के समय से होता चला आ रहा है। शासन की पद्धति भले ही बदल गई, लोग बदल गए, लेकिन नहीं बदला तो उन नावों का स्वरूप।
तुंगभद्रा में घड़ियाल
तुंगभद्रा नदी की एक और विशेषता है वहां के उथले हिस्से में पाए जाने वाले घड़ियाल। नदी के छिछले भाग में उन्हें देखा जा सकता है। घड़ियालों को देखने के लिए काफी धैर्य की आवश्यकता है। उसी हिस्से में प्रवासी और स्थानीय जलीय पक्षियों की भरमार रहती है।
साइकिल से दीदार
विस्तृत रूप से फैले इस ऐतिहासिक नगर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर साइकिल की सरल चाल से यात्रा करने का आनंद अनूठा है। सौ रुपये प्रतिदिन के हिसाब से पर्यटक साइकिलें ले सकते हैं, जो होटलों के आसपास आसानी से उपलब्ध रहती हैं।
यहीं थी किष्किंधा नगरी
कहा जाता है कि प्राचीन काल में हम्पी में ही किष्किंधा नगरी थी और यहां वानरों का राज्य था। यहां के एक पर्वत अंजनाद्रि के बारे में माना जाता है कि यहीं हनुमान जी का जन्म हुआ था। पर्वत का नाम हनुमान की माता अंजना के नाम पर पड़ा है। माना जाता है कि यहीं पंबा सरोवर भी था, जहां राम की भेंट शबरी से हुई थी। जहां राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे।
मनभावन होगी शॉपिंग
किसी भी यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उस स्थान को यादों में संजो लेना होता है। हम्पी के बाजार में इस तरह के सामानों की कोई कमी नहीं है। लोग हम्पी से जो चीजें खरीदकर ले जाते हैं, उनमें पत्थर की कलाकृतियां सबसे पहले आती हैं। हर आकार में उपलब्ध ये कलाकृतियां पर्यटकों को यहां की ऐतिहासिक विरासत से जोड़ती हैं। हम्पी के आसपास लंबाणी अर्थात बंजारे भी बड़ी तादाद में हैं। लंबाणी स्त्रियों द्वारा बनाए गए सामान भी हम्पी आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। उनके चटख रंगों वाले लहंगे, झोले आदि खूब खरीदे जाते हैं। उन स्त्रियों को गलियों में अपना सामान बेचते हुए देखा जा सकता है। यहां आने वाले पर्यटक चमड़े का सामान भी खरीदकर ले जाते हैं। उनकी खरीददारी में वाद्ययंत्र भी होते हैं। हां, यहां के बाजार में मोलभाव करना जरूरी है, क्योंकि विदेशी पर्यटकों की बहुलता के कारण स्थानीय दुकानों में कीमतें काफी बढ़ा-चढ़ा कर बताई जा सकती हैं।
भालू अभयारण्य
हम्पी से लगभग 30 किलोमीटर दूर दारोजी भालू अभयारण्य है। हम्पी से वहां तक की यात्रा करते हुए उत्तरी कर्नाटक के खेत, उनके बीच इधरउधर अपनी भेड़ों के झुंड के साथ गड़रिए देखे जा सकते हैं। खेतों के पार जंगल की शुरुआत होती है और उस जंगल में भालुओं की तादाद ज्यादा होने के कारण उसे भालुओं के अभयारण्य का दर्जा दे दिया गया है।
कैफे कल्चर में खानपान का आनंद
यहां जगह-जगह रूफ टॉप कैफे खुले हुए हैं, जो देर रात तक ग्राहकों को सेवा उपलब्ध कराते हैं। इन कैफे में पर्यटक यहां की संस्कृति का लुत्फ उठाने के अलावा देसी-विदेशी जायकों का भी आनंद ले सकते हैं। यहां बनने वाली केले के फूल की सब्जी का स्वाद ले सकते हैं। यह एक विश्व धरोहर स्थल है, इसकी वजह से यहां विश्व के कोने-कोने से लोग आते हैं, इसलिए यहां के रेस्तरां और कैफे के खानों में बड़ी विविधता मिलती है। यहां गौतमी गेस्ट हाउस के कैफे में मध्य-पूर्व के खानों के साथ साथ इटैलियन व्यंजनों की भरमार है। उनके यहां के हुमुस तो प्रसिद्ध हैं ही, साथ में पेस्तो सॉस के साथ बना पास्ता वहां की खासियत है। वहां की जर्मन बेकरी में कई तरह के शानदार बेकरी उत्पाद मिलते हैं, जिनका स्वाद वाकई उम्दा होता है। इसी तरह का एक और रेस्तरां है लॉफिंग बुद्धा, जहां का इजराइली प्लेटर बहुत प्रसिद्ध है!
कैसे, कब जाएं?
यहां हवाई मार्ग से, कार/बस और रेल से आप जा सकते हैं। नजदीकी एयरपोर्ट हुबली (कर्नाटक) है, जो हम्पी से 166 किलोमीटर दूर है। दूसरा एयरपोर्ट बेलगाम है, जो हम्पी से 270 किलोमीटर दूर है। एयरपोर्ट से यहां टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। यहां का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन हॉस्पेट है, जो हम्पी से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां बेंगलुरु, हैदराबाद और गोवा से नियमित ट्रेनें हैं। हम्पी जाना चाहते हैं तो आपको पहले कर्नाटक पहुंचना होगा। कर्नाटक के हर प्रमुख शहर से स्टेट रोड कॉर्पोरेशन की बसें हम्पी जाती हैं। हुबली शहर से हम्पी करीब 165 किलोमीटर दूर है। आप चाहें तो खुद ड्राइव करके भी जा सकते हैं। सर्दी का मौसम यहां जाने के लिए सबसे मुफीद माना जाता है।
रोचक और विविधतापूर्ण यहां जो भी है, काफी विविधतापूर्ण और रोचक है। विजयनगर साम्राज्य से लेकर रामायण काल तक में आप खुद को पाएंगे। विद्यार्थियों के लिए तो यह खास तौर पर ज्ञानवर्धक यात्रा होती है। स्थानीय पर्यटन गाइड उन्हें हम्पी के भवनों, खंडहरों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उनका वास्तुशिल्प सब खेल-खेल में रोचक तरीके से दिखाते हैं। जिन्हें विलेज टूरिज्म में रुचि है, वे इस शाश्वत नगर के गांव में जाकर इसकी परिवर्तन और निरंतरता से रूबरू हो सकते हैं।
अर्जुन भट्ट, स्थानीय पर्यटन विशेषज्ञ
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