बंदर नहीं थे हनुमान, प्रमाण है वाल्मीकि कृत रामायण
*वीर हनुमान जी मनुष्य थे, वानर नहीं*
संस्कृत शब्दकोष में कपि के अनेक अर्थ होते हैं :- सूर्य, सुगन्धि, हाथी, बन्दर और शिलारस । दक्षिण के जंगलों में सूर्यवंशी क्षत्रिय जाति के लोग रहा करते थे इसीलिए इनको कपि ( सूर्य ) कहा जाता था या फिर वनों में रहने के कारण वानर कहा जाता था और किष्किन्धा राज्य ( कर्णाटक ) में वानरराज सुग्रीव का राज हुआ करता था जिसके मंत्री वीर हनुमान जी थे जो बहुत ही विद्वान, बुद्धिमान व बलवान व्यक्तित्व वाले थे।
वेदज्ञ और राजमन्त्री हनुमान जी :-
सचिवोऽयं कपीन्द्रस्य सुग्रीवस्य महात्मनः । तमेव कांक्षमाणस्य ममान्तिक मिहागतः ।।२३।।
ना ऋग्वेद विनीतस्य ना यजुर्वेदधरिणः । ना सामवेदविदुषः शक्यमेवविभाषितम् ।।२८।।
( बाल्मिक रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-३ )
अर्थात् :- हे लक्षमण ! यह ( हनुमान जी ) सुग्रीव के मन्त्री हैं और उनकी इच्छा से यह मेरे पास आये हैं । जिस व्यक्ति ने ऋग्वेद को नहीं पढ़ा है, जिसने यजुर्वेद को धारण नहीं किया है, जो सामवेद का पण्डित नहीं है, वह व्यक्ति, जैसी वाणी यह बोल रहे हैं, वैसी नहीं बोल सकता है ।
शब्द शास्त्र ( व्याकरण ) के पण्डित हनुमान जी :-
नृनं व्याकरण कृत्मनमनेन बहुधा श्रुतम् । बहुव्यवहारतानेन न किञ्चिदशाब्दितम् ।।२९।।
( बाल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-३)
अर्थात् :- इन्होंने निश्चित ही सम्पूर्ण व्याकरण पढ़ा है क्योंकि इन्होंने अपने सम्पूर्ण वर्तालाप में एक भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है
श्रीरामो लक्ष्मणं प्राह पश्यैनं बटृरूपिणाम । शब्दशास्त्रमशेण श्रुतं नृनमनेकधा ।।१७।।
अनेकभाषितं कृत्सनं न किञ्चिदपशब्दितम् । ततः प्राह हनुमन्तं राघवो ज्ञान विग्रहः ।।१८।।
( बाल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-१)
अर्थात् :- राम ने कहा “हे लक्षमण ! इस ब्रह्मचारी को देखो। अवश्य ही इसने सम्पूर्ण व्याकरण कई बार भली प्रकार से पढ़ा है । देखो ! इतनी बातें कहीं किन्तु इसके बोलने में कहीं कोई एक भी अशुद्धि नहीं हुई ।
सर्वशास्त्रों के ज्ञाता हनुमान जी :-
महर्षि अगस्त्य से श्री राम जी ने कहा :-
परक्रमोत्साहमति प्रताप, सौशील्यमधुर्य्य नया नयैश्च ।
गम्भीर्य चातुर्य्य सुच्चीर्यधैर्य्येः, हनृमंतः कोऽस्ति लोके ।।४३।।
असौ पुनर्व्याकरणं ग्रहीष्यन्, सुर्य्योन्मुखः पृष्टुमना कपीन्द्रः ।
उद्यग्निरेरस्त गिरि जगाम, ग्रन्थं महद्वारयन प्रमेयः ।।४४।।
ससूत्र बृत्यर्थपदं महर्थ, स संग्रह सिध्यति वैकषीन्द्रः ।
ह्यस्यकश्चित्सद्धशोऽस्ति शास्त्रे, वैशारदे छन्द गतौ तथैव ।।४५।।
सर्वासु विद्यासु तपो विधाने, प्रस्पर्धतेऽयंहि गुरू सुराणाम् ।।४६।।
( वाल्मिकी रामायण उत्तरकाण्ड सर्ग-३६ )
अर्थात् :- पराक्रम, उत्साह, बुद्धि, प्रताप, सुशीलता, नम्रता, न्याय, धैर्य, बल, अन्याय का ज्ञान, गम्भीरता, चतुरता, में हनुमान जी के समान लोक में कोई भी दूसरा मनुष्य नहीं है । अध्ययन काल में वे व्याकरण पढ़ते हुए इतने व्यस्त रहते थे कि सूर्य सामने होकर पीछे चला जाता था, तब तक वह पढ़ते ही रहते थे और जितने समय में सूर्य उदयचल से अस्तचल पर्वत तक पहुँचता था वे एक दिन में बड़े बड़े ग्रन्थ को कंठ कर लेते थे । हनुमान जी ने सूत्र, वृत्ति, वर्तिक भाष्य, साधन और संग्रह सहित सब पढ़ा है । व्याकरण के अतिरिक्त अन्य ( वेदांगों ) छन्द आदि में भी वे अद्वितीय विद्वान हैं । समस्त विद्याओं तथा तपस्या में हनुमान जी गुरू बृहस्पति के समान हैं ।
सुग्रीव के मनुष्य होने का प्रमाण इस प्रकार है :-
अरयश्च मनुष्येण विज्ञेयाश्छद्म चारिणः ।।२२।।
( वाल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग २ )
अर्थात् :- अपने बारे में सुग्रीव ने कहा कि कपट वेष में घूमने वाले शत्रुओं का मनुष्यों को अवश्य ही भेद जानना चाहिए ।
सुग्रीव का यहाँ अपने आप को मनुष्य बताना ये सिद्ध करता है कि वानर जाति एक सूर्यवंशी क्षत्रिय जाति की दक्षिणीय शाखा है न कि बंदर, जैसे कि मिथ्या धारणा लोगों के मस्तिष्क में घर कर गई है ।
आर्य पुत्र हनुमान जी :-
समीक्ष्य व्यथिता भूमौ सश्भ्रान्तानिपपातह ।
सप्त्वेव पुनरुत्थाय आर्य पुत्रेति वादिनी ।।२८।।
(बाल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग १९)
अर्थात् :- बली को हत्त देखकर तारा अति दुखी होकर मूर्छित होकर पृथिवी पर गिर पड़ी । कुछ देर बाद चैतन्य होकर वह बली को ‘आर्य पुत्र’ कहकर रुदन करने लगी ।
इन समस्त प्रमाणों से यह सुस्पष्ट है कि वानर लोग आर्य पुत्र अर्थात मनुष्य ही थे, पशु नहीं थे ।