1857 का युद्ध: आलम बेग का सिर विक्टोरिया के लिए इंग्लैंड लें गये थे अंग्रेज

रानी विक्टोरिया को ट्राफी रुप में भेंट देने आलम बेग का सिर इंग्लैंड ले गये थे अंग्रेज

August 1, 2020 harinayak 0 Comment Edit
*🤺 सन् 1857 के 500 सैनिकों का विद्रोह 🔥*

चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था आज के दिवस पर जन्मी विभूतियों एवं देश के ज्ञाताज्ञात बलिदानियों को कोटि कोटि नमन करती है। 🌹🌹🙏🌹🌹

📝 भारत के पंजाब प्रांत में स्थित प्रसिद्ध अमृतसर शहर के समीप स्थित अजनाला गाँव में मौजूद “कालों के कुआँ” में अंग्रेजी हुकूमत की दरिन्दगी की ऎसी खौफनाक दास्तान छिपी हुई है, जिसे जान कर किसी की भी आँखों के आँसू नहीं रूक पाएंगे। यह वहीं कुआँ है जिसमें सन् 1857 की क्रान्ति के दौरान अंग्रेजों ने 282 क्रान्तिकारियों को जिन्दा दफन कर दिया था। 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 *शहीद आलम बेग* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳

🙏🌹 *164वाँ बलिदान दिवस* 🌹🙏

*बलिदान:* संभवतः 01.08.1857

🇮🇳 163 साल बाद भारत माँ के उस देशभक्त के अवशेष मिले , जो वर्षों से गुमनाम था। *सन् 1857 की क्रांति में रानी विक्टोरिया के सामने इन्हें तोप से उड़ा दिया गया था* जानिए कौन है ये ? सन् 1857 की क्रांति में मारे गए कई सैनिकों के नाम तो आपको याद होंगे, लेकिन हम ऐसे देशभक्त का नाम बता रहे हैं, जिसकी खोपड़ी इंग्लैंड में मिली है। उससे संबंधित अभिलेख (RECORD) देखे गए और रिसर्च में सामने आया कि वह हवलदार आलम बेग थे,जो विद्रोह कर रही 46 रेजीमेंट बंगाल नॉर्थ इंफ्रेंट्री बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। इंग्लैंड के वैज्ञानिक वेंगर ने खुलासा किया है कि वह उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी थे। डीएनए टेस्ट के बाद उनके परिजनों का भी पता लग जाएगा।’ खोपड़ी मिलने के बाद इतिहासकारों ने सवाल उठाए तो फिर इसकी जाँच हुई और आखिर में निष्कर्ष यह अाया कि यह खोपड़ी शहीद आलम बेग की ही है। वैज्ञानिक वेंगर व उनके मित्रों ने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के एंथ्रोपोलॉजी विभाग के प्रोफेसर जे.एस.सहरावत से संपर्क किया और उनके साथ पूरा रिसर्च साझा किया। अब प्रोफेसर सहरावत ने उनसे खोपड़ी देने को चिट्ठी लिखी है और उन्हें आश्वासन भी मिला है।

📝 सन् 1857 की क्रांति में मारे गए 282 सैनिकों की अमृतसर के अजनाला में मिली हड्डियों व अवशेषों पर प्रोफेसर सहरावत शोध कर रहे हैं। इन्हीं सैनिकों का आलम बेग नेतृत्व कर रहे थे। क्रांति में शामिल 282 सैनिकों में से अकेले हवलदार आलम बेग बचे थे। उन्हें जम्मू के पास रावी नदी पर पकड़ लिया गया। *जब अमृतसर के तत्कालीन उपायुक्त ( Deputy Commissioner ) फ्रेडरिक हेनरी कूपर को पता चला कि रानी विक्टोरिया आ रही हैं तो उसने आलम बेग का सिर उन्हें भेंट करने की योजना बनाई।*

📝 सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में रानी के सामने उसे तोप से उड़ा दिया गया। उनके सिर को ग्रिसली ट्रॉफी नाम दिया गया। यह सिर सन् 1858 में कैप्टन ए आर कास्टेलो इंग्लैंड ले गया था। विद्रोह के आरोप में भारत में जब बेग को मृृत्यु्दंड दिया गया तो उस समय कास्टेलो ड्यूटी पर था। हाल में आई किताब ‘ द स्कल ऑफ आलम बेग : द लाइफ एंड डेथ ऑफ ए रेबेल ऑफ सन् 1857’ के लेखक वाग्नेर ने कहा, ‘‘ उसकी ( बेग की ) रेजीमेंट मूलत: कानपुर में स्थापित थी। अब हाल ही में इंग्लैंड के एसेक्स शहर स्थित लॉर्ड क्लाइड पब की बिक्री हुई तो नए पब मालिक ने सफाई की, उसमें खोपड़ी निकली। खोपडी की आँख में एक आधी गली हुई चिट्ठी थी। यह बात वैज्ञानिक वेंगर को पता लगी तो उन्होंने पूरा रिसर्च किया। खोपड़ी की आँख में रखी गई चिट्ठी ने भी बहुत खुलासे किए। *उसमें लिखा है कि आलम बेग को जब तोप से उड़ाया गया था तो उनकी उम्र 32 साल थी। कद 05 फीट 07 इंच था।* शरीर सुडौल था। वह कभी न थकने वाला इंसान दिख रहा था। रिकॉर्ड में अंग्रेजों ने उस समय लिखा था कि आलम बेग पक्का देशभक्त था जो किसी हाल में झुकने का तैयार नहीं था।

✒ *अजनाला गाँव का “कालों का कुआँ”* ✒

📝 स्थानीय गैर-सरकारी संगठन और गुरुद्वारा प्रबंध समितियों स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंध समिति के प्रमुख अमरजीत सिंह सरकारिया और इतिहासकार सुरिंदर कोचर के स्वयंसेवियों ने भारत-पाक सीमा पर स्थित अजनाला शहर के ‘शहीदां वाला खूह’ में 28 फरवरी 2014 को खुदाई शुरू की थी।

*आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये खुदाई का काम उस समय (सन् 1857) के अमृतसर के तत्कालीन उपायुक्त ( Deputy Commissioner ) फ्रेडरिक हेनरी कूपर की लिखी पुस्तक’ दी क्राइसिस इन दी पंजाब: फ्रॉम दी टेंथ ऑफ मे अंटिल दी फॉल ऑफ देल्ही (1858)/ THE CRISIS IN THE PUNJAB: From the 10th of May until the Fall of Delhi (1858) को आधार बनाकर अमृतसर के अजनाला में कुएं की खुदाई शुरू की गई।* खुदाई में 282 सैनिकों की अस्थियाँ निकली हैं, जिनमें 50 खोपडियाँ 40 से ज्यादा साबुत जबड़े, 9000 दाँत, कंकालों के अलावा सन् 1857 काल के कुछ गोलियाँ ब्रिटिश इंडिया कम्पनी के एक-एक रुपए के 47 सिक्के जिन पर महारानी विक्टोरिया की तस्वीर बनी हुई है, मिले । इसके अलावा 60 सिक्के सोने के, 04 मोती, सोने के 03 ताबीज, 02 अंगूठियाँ और स्वर्ण पदक, और काफी सामान भी कुएं से पाए गए। उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान मिलने वाले सारे सामान को स्मारक के स्थान पर बनाए जाने वाले संग्रहालय के लिए सुरक्षित रख लिया गया है।
📝 *प्रोफेसर जे.एस. सहरावत, एंथ्रोपोलॉजी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय की खबर के प्रकाशन के बाद केंद्र सरकार ने मामले का संज्ञान लिया और रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए प्रोफेसर सहरावत को 30.58 लाख रुपये का फंड जारी कर दिए ।* इसमें एक्स-रे रेडियोग्राफी व पल्प टू एरिया रेस्यू, एलिमेंट एनालिसिस और ऑडेंटोमेट्रिक्स तरीका अपनाया गया। इसी के जरिए सैनिकों की आयु व लिंग का पता लगा। प्रोफेसर सहरावत ने इन सैनिकों के नाम इंग्लैंड की सरकार से माँगे हैं, ताकि उनके डीएनए की जाँच कर यह कंकाल उनके परिजनों को सौंपे जा सकें। सैनिकों में महिलाएं भी शामिल थीं। आजादी की पहली क्रांति में मारे गए 282 सैनिकों की उम्र 19 से 52 वर्ष के बीच थी। प्रोफेसर सहरावत ने आईआईटी रुड़की, हैदराबाद, बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान लखनऊ, कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज धारवाड़ कर्नाटक से संपर्क किया। इसके अलावा जर्मनी और अमेरिका के विश्वविद्यालयों से भी संपर्क साधा। इसमें यह खुलासा हुआ कि मारे गए सैनिक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के थे, जो 26 इन्फ्रेंट्री बटालियन मीर क्षेत्र से भर्ती हुए थे।

                  *-राकेश कुमार

🇮🇳 मातृभूमि सेवा संस्था 🇮🇳 *9891960477*
*राष्ट्रीय अध्यक्ष: यशपाल बंसल 8800784848*
🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *