ज्ञान:स्कूलों में हिजाब संवैधानिक अधिकार? क्या कहता है कानून?

Hijab Controversy : क्या स्कूलों में हिजाब पहनकर जाना संवैधानिक अधिकार है?

*चन्द्र प्रकाश पाण्डेय |

 

हाइलाइट्स
1-मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनकर आने पर रोक के बाद विरोध-प्रदर्शन
2-राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा कानून 1983 के सेक्शन 133 (2) को किया लागू
3-कानून में वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के आईने में इसे समझना जरूरी

नई दिल्ली नौ फरवरी : कर्नाटक में सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं के हिजाब पहनकर (Hijab Controversy) आने पर रोक का मामला इन दिनों चर्चा में है। जनवरी में उडुपी और चिकमगलूर से शुरू हुआ ये विवाद धीरे-धीरे दूसरे जिलों में भी फैल गया। मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनकर सरकारी शिक्षा संस्थानों में आने पर रोक के बाद विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया। मामले ने तब और गरमा गया जब जवाब में हिंदू छात्रों और छात्राओं ने भगवा गमछा या स्कार्फ पहनना शुरू कर दिया। विवाद बढ़ता देख कर्नाटक सरकार ने स्टूडेंट्स को ऐसे कपड़े पहनने पर बैन लगा दिया जो स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और पब्लिक ऑर्डर को बिगाड़ते हैं। इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है। आइए संविधान के वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार केेेे दर्पण  में समझने की कोशिश करते हैं कि क्या स्कूलों में हिजाब पहनकर जाना संवैधानिक अधिकार है।

कर्नाटक सरकार का आदेश

आगे बढ़ने से पहले कर्नाटक सरकार की तरफ से 5 फरवरी को जारी उस ताजा आदेश को समझते हैं, जिसमें सरकारी स्कूलों में ड्रेस कोड के पालन पर जोर दिया गया है। राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा कानून 1983 के सेक्शन 133 (2) को लागू करते हुए कहा है कि सरकारी शिक्षम संस्थानों में सभी स्टूडेंट ड्रेस कोड का पालन करेंगे। निजी स्कूल प्रशासन ड्रेस को लेकर फैसला ले सकते हैं। सरकार के आदेश में कहा गया है कि कर्नाटक शिक्षा कानून-1983 में कहा गया है कि सभी छात्रों को एक समान पोशाक पहननी चाहिए ताकि वे एक समान दिखें और इस तरह से व्यवहार करें कि कोई भेदभाव न हो।

संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

संविधान में अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार वर्णित है। सबसे पहले बात अनुच्छेद 25 की जो सभी नागरिकों को अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता देता है। लेकिन ये पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है, इस पर शर्तें लागू हैं। आर्टिकल 25 (A) कहता है- राज्य पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता, स्वास्थ्य और राज्य के अन्य हित देख इस अधिकार पर प्रतिबंध लगा सकता है। संविधान ने कृपाण धारण करने और उसे लेकर चलने को सिख धर्म का अभिन्न हिस्सा माना है।

अनुच्छेद 26 में धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता का जिक्र है। इसमें पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता और स्वास्थ्य की परिधि हर धर्म के लोगों को धार्मिक क्रिया-कलापों को करने, धार्मिक संस्थाओं की स्थापना करने, चलाने आदि का अधिकार है। अनुच्छेद 27 में इस बात की व्यवस्था है कि किसी व्यक्ति को कोई ऐसा टैक्स देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता तो किसी खास धर्म का पोषक हो । अनुच्छेद 28 में कहा गया है कि पूरी तरह सरकार के पैसों से चलने वाले किसी भी शिक्षा संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। राज्यों द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाओं में लोगों की सहमति से धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है (जैसा मदरसा, संस्कृत विद्यालय आदि) लेकिन ये शिक्षा सरकार की तरफ से निर्देशित पाठ्यक्रम के अनुरूप होने चाहिए।

क्या स्कूल में हिजाब पहनने का हक है?

छात्राओं के हिजाब पहनकर जाने का समर्थन करने वालों की दलील है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में उन्हें इसका पूरा हक है। एक और दलील ये भी दी जा रही कि सभी को अपनी पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार है। लेकिन ये दलील कर्नाटक शिक्षा कानून 1983 में शिक्षण संस्थानों में एक समान ड्रेस का उल्लंघन है।

हिजाब पहनने को धार्मिक स्वतंत्रता तभी माना जा सकता है जब हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा हो। ये मुद्दा समय-समय पर अदालतों में भी गया लेकिन अभी इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं आया। कर्नाटक के ताजा विवाद के बाद भी ये मामला अदालत में पहुंच गया है। एक मुस्लिम छात्रा ने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर हिजाब पहनने को अनुच्छेद 14 और 25 में मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग की है। 8 फरवरी को इस पर सुनवाई होनी है।

क्या हिजाब पहनना इस्लाम का अभिन्न अंग?

केरल हाई कोर्ट में 2016 में आमना बशीर बनाम सीबीएसई मामले में भी यह मसला उठा था। तब एग्जाम में बैठने को सीबीएसई की तरफ से तय ड्रेस कोड को चुनौती दी गई थी। तब हाई कोर्ट ने हिजाब पहनने को एक जरूरी धार्मिक प्रथा तो माना लेकिन सीबीएसई के नियमों को रद्द नहीं किया। कोर्ट ने सीबीएसई को निर्देश दिया कि अगर कोई हिजाब पहनकर एग्जाम देना चाहे तो उसे इजाजत दी जाए लेकिन अनुचित साधनों की जांच के लिए ऐसे स्टूडेंट्स की अतिरिक्त तलाशी हो सकती है।

लेकिन 2018 के फातिमा तनसीन बनाम केरल राज्य के मामले में केरल हाई कोर्ट की ही एक सिंगल बेंच ने इस मसले पर अलग फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर वरीयता दी जाएगी।

शिक्षा के मंदिर मजहबी कट्टरता की लड़ाई का अखाड़ा क्यों?

कर्नाटक में हिजाब का मामला पूरी तरह राजनीतिक रंग ले चुका है। हिजाब को इजाजत की मांग के विरोध में हिंदू छात्र-छात्राएं भगवा गमछे और स्कार्फ पहनने की इजाजत मांगने लगे हैं। अदालत के फैसले के बाद ही हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं से जुड़ा विवाद खत्म हो सकता है। लेकिन इस मसले ने कई सवाल खड़े किए हैं। सरकारी स्कूलों में कल तक बिना हिजाब पहनकर आने वाली स्टूडेंट अचानक हिजाब पहनकर क्यों आने लगीं? शिक्षण संस्थानों के लिए यूनिफॉर्म ड्रेस कोड से आखिर कैसी दिक्कत? पर्दा प्रथा अगर कुरीति है तो हिजाब कुरीति क्यों नहीं? इस बिना पर तो कोई छूआछूत पर भी धार्मिक स्वतंत्रता का मुलम्मा चढ़ाकर इस कुरीति को समर्थन करने लगेगा। सबको अपने पसंद के कपड़े पहनने का अधिकार है लेकिन ये इतना सीधा भी नहीं है। अगर 7-8 साल या उससे कम उम्र तक की बच्ची भी हिजाब पहने दिखे तो क्या ये उसकी पसंद है या उस पर थोपा गया है। धर्म को मानना अलग बात है लेकिन धार्मिक कट्टरता अलग है। मजहबी कट्टरता के नतीजे ठीक नहीं होंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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