हिमाचल सरकार तीन माह को सुरक्षित, अब आगे क्या?
Shimla Himachal Pradesh Political Crisis Situation Changed After Cross Voting Sukhvinder Singh Sukhu Congress
क्रॉस वोटिंग के बाद बदले हिमाचल के राजनीतिक हालात, अब क्या हो सकता है?
हिमाचल में कांग्रेस के सामने फिलहाल संकट टल गया है। बीजेपी की ओर से की गई कोशिशों के बावजूद विधानसभा में सुक्खू सरकार की ओर से लाया गया बजट प्रस्ताव पास हो गया और फिलहाल विधानसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई है। यानि इस सारे घटनाक्रम के बीच कांग्रेस को अपना किला बचाने को थोड़ा वक्त मिल गया है
मुख्य बिंदु
हिमाचल में कांग्रेस के सामने फिलहाल टल गया है संकट
भाजपा की कोशिशों के बावजूद बजट प्रस्ताव पास हो गया
फिलहाल विधानसभा अनिश्चितकाल को स्थगित हो गई
हिमाचल में कांग्रेस के सामने फिलहाल संकट टल गया है। भाजपा की ओर से की गई कोशिशों के बावजूद विधान सभा में सुक्खू सरकार की ओर से लाया गया बजट प्रस्ताव पास हो गया और फिलहाल विधानसभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई है। यानि इस सारे घटनाक्रम के बीच कांग्रेस को अपना किला बचाने के लिए थोड़ा वक्त मिल गया है। मुख्यमंत्री सुक्खू भले ही कह रहे हों कि वो क्रॉस वोटिंग करने वाले कुछ विधायकों के संपर्क में हैं, लेकिन बीते दो दिनों में जो कुछ हुआ, उसने राज्य की राजनीतिक तस्वीर को लेकर कई सवाल तो खड़े कर दिए हैं। खासकर क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को लेकर भी कुछ सवाल हैं, जिनमें से एक अहम सवाल ये है कि राज्यसभा चुनाव में पार्टी के निर्देशों के खिलाफ़ वोटिंग करने वाले विधायकों पर किसी तरह की कार्रवाई होगी ? और अगर आगे भी विधानसभा में इसी तरह का रुख दिखा तो कांग्रेस के लिए ये किस तरह की चुनौती होगी, और पार्टी इससे कैसे निपट सकती है ?
हमारे संविधान की दसवीं अनुसूची में दल बदल विरोधी कानून का प्रावधान है। इस कानून का मकसद संसद या विधानसभाओं में किसी भी सांसद या एमएलए को व्यक्तिगत मसले के चलते दूसरे दल में शामिल होने और उसके पक्ष में वोटिंग करने से रोकना है। हालांकि ये कानून तब लागू नहीं होता अगर किसी पार्टी के कुल दो तिहाई सदस्य पार्टी बदलने का फैसला करते है,ऐसे में उनकी संसद या विधानसभा सदस्यता कायम रहती है। इस बीच इन छह विधायकों को राज्यसभा चुनाव में पार्टी व्हिप ना मानने पर कारण बताओ नोटिस दिया गया है। ये नोटिस उन्हें कांग्रेस पार्टी की ओर से दाखिल अर्जी के जवाब में दिया गया है।
इस बीच ये सभी विधायक मंगलवार को अपने वकील के साथ स्पीकर से मिले और उन्होंने उनसे कहा कि इससे संबंधित कागज़ उन्हें अभी तक नहीं मिले हैं। इनके वकील सत्यपाल जैन का कहना है कि नियमों के मुताबिक इन सभी विधायकों को जवाब देने के लिए सात दिन का वक्त दिया जाना चाहिए। इनके वकील का तर्क ये है कि एंटी डिफेक्शन लॉ राज्यसभा के चुनाव में लागू नहीं हो सकता और इस बात को सुप्रीम कोर्ट की ओर से कई बार कहा जा चुका है ।
इस बीच राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई भी ये मानते हैं कि ये सही है कि राज्यसभा चुनाव में पार्टी लाइन से अलग जाने वाले सदस्यों को लेकर राजनीतिक दलों की सीमाएं हैं और इसमें इनका ज्यादा बस नहीं, लेकिन वो ज़ोर देकर कहते हैं कि विधानसभा के भीतर किसी दूसरे प्रस्ताव पर ऐसी स्थिति फिर से सामने आ सकती है, जिससे निपटने के लिए पार्टी को कड़ा संदेश देना चाहिए। किदवई कहते हैं कि ” इस वक्त कांग्रेस को चाहिए कि वो पर्यवेक्षकों की रायशुमारी के जरिए ये जानने की कोशिश करे कि ये मौजूदा सीएम के समर्थन में हैं कि नहीं ? और अगर ऐसा नहीं है तो नया मुख्यमंत्री मनोनीत करने में हिचक नहीं होनी चाहिए ।’
इसके साथ ही वो आगे कहते हैं कि ” पार्टी को ये समझना चाहिए कि जिनको छोड़कर जाना था। वो चले गए। जो अनुशासनहीनता उनको करनी थी वो कर ली, लेकिन इसमें बाकी लोग शामिल नहीं हैं। इस बात का इसका फायदा उठाकर कांग्रेस को बड़ा संदेश देना चाहिए । खासकर तब जबकि कांग्रेस का पुराना इतिहास रहा है कि जिन भी लोगों ने पहले भी इस तरह की अनुशासनहीनता दिखाई है, उसको लेकर पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की जो सही नहीं है और इस का खामियाज़ा पार्टी भुगत रही है।
सुक्खू सरकार को 90 दिन का ‘जीवनदान’… इन दो वजहों से हिमाचल में अब भी कांग्रेस पर संकट बरकरार
चुनाव में पार्टी के 6 विधायकों की बगावत के बाद विक्रमादित्य सिंह के इस्तीफे से प्रदेश की 14 महीने पुरानी सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार पर संशय के बादल छाए हुए हैं. पार्टी ने सरकार बचाने के लिए पर्यवेक्षकों को शिमला भेजा हुआ है, जो उत्तर भारत के इकलौते राज्य को कांग्रेस से फिसलने से बचाने के लिए नाराज विधायकों को मनाने में जुटे हैं.
हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव से शुरू हुई सियासी रार अब सुक्खू सरकार तक पहुंच गई है. चुनाव में पार्टी के 6 विधायकों की बगावत के बाद विक्रमादित्य सिंह के इस्तीफे से प्रदेश की 14 महीने पुरानी सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार पर संशय के बादल छाए हुए हैं. पार्टी ने सरकार बचाने के लिए पर्यवेक्षकों को शिमला भेजा हुआ है, जो उत्तर भारत के इकलौते राज्य को कांग्रेस से फिसलने से बचाने के लिए नाराज विधायकों को मनाने में जुटे हैं.
सरकार के रक्षक के तौर पर कांग्रेस के ‘मैं हूं ना’ वाले डीके शिवकुमार और उनके साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर्यवेक्षक बनाए गए हैं. वहीं राजीव शुक्ला को प्रभारी नियुक्त किया गया है. बुधवार सुबह हिमाचल विधानसभा के स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने बीजेपी के 15 विधायकों को सदन की कार्यवाही से सस्पेंड कर बजट पास कराकर विश्वास मत हासिल कर लिया और इसके बाद विधानसभा अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. इसके बाद अब सुक्खू सरकार को कम से कम तीन महीने यानी 90 दिनों तक कोई खतरा नहीं है. लेकिन क्या राज्य में ऑल इज वेल है? इसका जवाब है नहीं.
हिमाचल में अब भी ऑल इज नॉट वेल
कारण, सवाल अब भी बरकार है कि क्या बजट पास करा लेने से सुक्खू सरकार भी पास हो गई है? क्या अब तीन महीने तक संकट सुक्खू सरकार का टल गया? या फिर दल बदल के उस दलदल में कांग्रेस फंसी है, जहां या तो सुक्खू बचेंगे या सरकार. कांग्रेस राज्यसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के समर्थन में बगावत करने वाले अपने 6 विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर के पास फैसला सुरक्षित रखवा चुकी है. लेकिन कांग्रेस की टेंशन अभी कम नहीं हुई है. कारण, दो वजहों से सुक्खू सरकार पर अब भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.
- बागी विधायकों को मना पाएगी कांग्रेस?
पहली वजह ये है कि राज्यसभा चुनाव में बगावत कर चुके 6 विधायक कांग्रेस की डाल से फुर्र होकर अब कमल के फूल पर मंडराने लगे हैं. इन विधायकों ने हिमाचल विधानसभा में विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर से मुलाकात भी की. क्रॉस वोटिंग के बाद हरियाणा के पंचकूला से विधानसभा की कार्यवाही में शामिल होने के लिए वापस शिमला पहुंचे इन विधायकों में से कुछ ने खुलकर यह कहा कि वो अब बीजेपी के साथ हैं. इससे साफ है कि अब इन विधायकों को मनाना पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.
विक्रमादित्य के तेवर नरम, इस्तीफा अब भी बरकार
दूसरी वजह विक्रमादित्य सिंह का इस्तीफा है. हालांकि पर्यवेक्षकों के हस्तक्षेप से फिलहाल विक्रमादित्य सिंह के तेवर नरम पड़े हैं. हालांकि उन्होंने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि अभी तक उन्होंने इस्तीफा वापस नहीं लिया है लेकिन जब तक हाईकमान की तरफ से कोई ठोस फैसला नहीं लिया जाता, तब तक वह सीएम सुक्खू पर इस्तीफा मंजूर करने का दबाव नहीं बनाएंगे.
विक्रमादित्य सिंह के कहा, ”इस्तीफा वापस लेने और जब तक पर्यवेक्षकों की बातचीत और कार्रवाई पूरी न हो जाए, तब तक इस्तीफे पर जोर न देना, दोनों में अंतर है. हमने पर्यवेक्षकों से बात की है. हमने उन्हें वर्तमान स्थिति के बारे में सूचित कर दिया है. जब तक कोई निर्णय नहीं हो जाता, मैं अपने इस्तीफे पर जोर नहीं दूंगा. अंतिम निर्णय आने वाले समय में लिया जाएगा.’
हिमाचल में बदलेगा नंबर गेम?
कांग्रेस छह विधायकों की बगावत के बाद विक्रमादित्य के इस्तीफे से हिमाचल विधानसभा में नंबरगेम उलझ गया है. हालांकि अभी विक्रमादित्य सिंह का इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ है. इसके चलते सुक्खू सरकार के पास फिलहाल 40 में से 34 विधायकों का समर्थन है. 68 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 35 है. विक्रमादित्य को छोड़ दें तो कांग्रेस के 6 विधायकों और 3 निर्दलीय विधायकों ने बागी तेवर अख्तियार करने के बाद सूक्खू सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं.
विधायक अयोग्य हुए तो कैसे बदल जाएगा नंबर गेम?
राज्य में स्पीकर कांग्रेस का है. ऐसे में व्हिप के उल्लंघन मामले में इन विधायकों के खिलाफ कार्यवाही जल्द नतीजे पर पहुंच सकती है. अगर ऐसा होता है कि छह बागी विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो हिमाचल विधानसभा का नंबरगेम बदल जाएगा. 68 सदस्यों वाली विधानसभा की स्ट्रेंथ 62 पर आ जाएगी और ऐसे में बहुमत का आंकड़ा भी 32 पर आ जाएगा. विक्रमादित्य को हटा दें तब भी कांग्रेस के पास 33 विधायकों का समर्थन फिलहाल है. इससे सुक्खू सरकार कम से रिक्त छह सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आने तक सुरक्षित हो जाएगी.