…सजदा न करूं हिंद की नापाक जमीं पर

बँटवारे के बाद लगभग पंद्रह साल तक मुसलमान भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आते जाते रहे । बहुत से लोग तो बरसों तक तय नहीं कर पा रहे थे कि यहाँ रहें या वहाँ रहें । हमारे एक सहपाठी थे उनकी महत्वाकांक्षा थी कि वह एयर फोर्स में पायलट बनेंगे , अगर भारत में चयन नहीं हुआ तो पाकिस्तान चले जायेंगे , उनके परिवार के बहुत से लोग पाकिस्तान में बस गये थे । मुसलमानों के दोनों हाथ में लड्डू थे । हमारे बरेली के हाशम सुर्मे वाले बताते हैं कि उनके दो ताया कराची चले गये और वहाँ बरेली का मशहूर सुर्मा बेच रहे हैं बचे दो भाई बरेली का कारोबार संभाले हुए हैं । यूनानी दवायें बनानी वाली हमदर्द भी आधी हिंदुस्तान में रह गई आधी पाकिस्तान चली गई और वहाँ भी रूह अफ़्ज़ा पिला रही है ।

साहिर लुधियानवी का पाकिस्तान में वारंट कटा तो रातोरात भारत भाग आये , कुर्रतुल ऐन हैदर भारत से पाकिस्तान गईं थीं जहाँ उन्होंने उर्दू का अमर उपन्यास आग का दरिया लिखा जो लाहौर से छपा । यह उपन्यास प्राचीन भारत से बँटवारे तक के इतिहास के समेटते हुये भारत की संस्कृति को महिमा मंडित करता था जो पाकिस्तानी मुल्लाओं को बर्दाश्त नहीं हुआ और क़ुर्रतुल ऐन हैदर को इतनी धमकियाँ मिलीं कि वह सन ५९ में भारत वापस आ गईं और संयोग से उसी बरस जोश मलीहाबादी पाकिस्तान के लिये हिजरत कर गये । जोश की आत्मकथा यादों की बारात में वह अपने इस निर्णय के लिये पछताते दीख रहे हैं । बड़े गुलाम अली खाँ भी इसी तरह भारत वापस आ गये ।

यह सुविधा मुसलमानों को ही थी कि जब जहाँ चाहे जा के बस जायें । हिंदू एक भी भारत से पाकिस्तान नहीं गया बसने । पाकिस्तान के पहले क़ानून मंत्री प्रसिद्ध दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल बड़ी बेग़ैरती के साथ पाकिस्तान छोड़ने पर मजबूर हुए और भारत में कहीं गुमशुदगी में मर गये ।

पाकिस्तान एक मुल्क नहीं मौलवियों की एक मनोदशा है कि इस्लाम हुकूमत करने के लिये पैदा हुआ है तो वह जहाँ भी रहेगा या तो हुकूमत करेगा या हुकूमत के लिये जद्दोजहद करेगा । मुसलमान कोई नस्ल या जाति नहीं है अपितु दुनिया के किसी कोने का इंसान मुसलमान बन सकता है और धर्म परिवर्तन करते ही उसकी मानसिकता सोच और व्यक्तित्व बदल जाता है और वह स्वयं को उन मुस्लिम विजेताओं के साथ जुड़ा हुआ महसूस करने लगता है जिन्होंने उसके हिंदू पूर्वजों पर विजय पाई थी और मुसलमान बनने पर मजबूर किया था । सच्चाई यही है कि उपमहाद्वीप के लगभग ९९% मुसलमान कन्वर्टेड हिंदू हैं । यहाँ तक कि पठान भी ।

आज आज़म ख़ान इस बात को लेकर रंजीदा हैं कि उनके पूर्वज पाकिस्तान नहीं गये इस बात की उन्हें सज़ा दी जा रही है । आज़म ख़ाँ के वोटरों में हिंदू भी शामिल रहे होंगे वरना सिर्फ मुस्लिम वोटों से न वह विधायक बन सकते थे न सांसद । बिना एक पैसा स्टांप शुल्क चुकाये उन्होंने करोड़ों रुपये की ज़मीन जुटा कर उस मुहम्मद अली जौहर के नाम से यूनीवर्सिटी बना ली जिसने इस नापाक मुल्क में न दफ़नाये जाने की वसीयत की थी और आज एक दूसरे मुल्क इज़्राइल में दफ़्न है । इस यूनीवर्सिटी के वह आजीवन कुलपति रहेंगे । और यह मुल्क उनकी क्या ख़िदमत कर सकता है ।

मुसलमानों में एक कट्टरपंथी मौलानाओं की अलग अन्तर्धारा चलती रहती है जिसके आगे आम मुसलमान बेबस हो जाता है । समय समय पर यह आम मुसलमान भी विक्टिम कार्ड खेलता रहता है । कभी अज़हरुद्दीन भी कहते सुने गये थे कि उन्हें मुसलमान होने के कारण प्रताड़ित किया जा रहा है । मिर्ज़ा मुहम्मद रफी सौदा का एक शेर है जो उन्होंने कभी नवाब अवध के दरबार में अर्ज किया था , बहुत से मुसलमानों की भावनाओं की अभिव्यक्ति इन दो लाइनों में बयाँ है । आज़म ख़ाँ भी उन्हीं में से एक हैं,

हो जाये अगर शाहे ख़ुरासाँ का इशारा,
सजदा न करूँ हिंद की नापाक ज़मीं पर ।

और हम वंदे मातरम की उम्मीद करते हैं ।

श्रीकृष्ण ने कहा है कि, धर्म-अधर्म के बीच में यदि आप NEUTRAL रहते हैं, अथवा NO POLITICS का ज्ञान देते हैं, तो आप अधर्म का साथ देते हैं

भीम ने गदा युद्ध के नियम तोड़ते हुए दुर्योधन को कमर के नीचे मारा
ये देख बलराम बीच में आए और भीम की हत्या करने की ठान ली।

तब श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम से कहा.

आपको कोई अधिकार नहीं है इस युद्ध में बोलने का क्योंकि आप न्यूट्रल रहना चाहते थे ताकि आपको न कौरवों का, न पांडवों का साथ देना पड़े। इसलिए आप चुपचाप तीर्थ यात्रा का बहाना करके निकल लिए।

(१) भीम को दुर्योधन ने विष दिया तब आप न्यूट्रल रहे,
(२) पांडवो को लाक्षागृह में जलाने का प्रयास किया गया, तब आप न्यूट्रल रहे,
(३) द्यूत क्रीड़ा में छल किया गया तब आप न्यूट्रल रहे,
(४) द्रौपदी का वस्त्रहरण किया आप न्यूट्रल रहे,
(५) अभिमन्यु की सारे युद्ध नियम तोड़ कर हत्या की गयी, तब भी आप न्यूट्रल रहे!

आपने न्यूट्रल रह कर, मौन रह कर, दुर्योधन के हर अधर्म का साथ ही दिया! अब आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप कुछ बोलें।

क्योंकि धर्म-अधर्म के युद्ध में अगर आप न्यूट्रल रहते हैं तो आप भी अधर्म का साथ दे रहे हैं…

आज हमारा ये देश 712 ई. से धर्म युद्ध लड़ रहा है और हर नागरिक इसमें एक सैनिक है!
यदि मैं न्यूट्रल रह कर अधर्म का साथ देता हूँ तो मुझे भी अधिकार नहीं है शिकायत करने का कि देश में ऐसा वैसा बुरा क्यों हो रहा है, अगर मैं उस बुरे का विरोध नहीं करता।

भाजपा धर्म के साथ है या नहीं ये मैं नहीं जानता पर दूसरी पार्टियाँ और संग़ठन अधर्म के साथ हैं,

ये मैं पक्का जानता हूँ।

ये हर नागरिक का कर्त्तव्य है कि वो राष्ट्रहित में जो है उसका साथ दे !🚩

@जेपी अंथवाल (लाखीराम बिजल्वाण के वाट्स एप ग्रुप Friends Group में)

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