10 राज्यों में हिंदू हैं अल्पसंख्यक,सुको के नोटिस का केंद्र से 17 महीने से ज़वाब नहीं,7500₹ जुर्माना
Hindu Minority SC News: ऐसे बहाने मत बनाइए…. केंद्र सरकार पर क्यों भड़का सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को उस याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का वक्त दिया है जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए गाइडलाइंस बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है।
हाइलाइट्स
सरकार ने हलफनामा दाखिल करने में देरी पर की कोविड की चर्चा
सुप्रीम कोर्ट नाराज, कहा- ऐसे बहाने मत बनाइए
SC ने 7500 का हर्जाना लगाया और दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा
नई दिल्ली31जनवरी: ’10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक….’ वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के रुख पर सख्त नाराजगी जताई है। दरअसल, केंद्र सरकार ने अब तक याचिका पर अपना जवाबी हलफनामा (Hindu Minority) दाखिल नहीं किया है। केंद्र ने जब कोविड-19 का जिक्र किया तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे बहाने मत बनाइए। याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा 2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने पत्रकारों को बताया कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में केंद्र सरकार की ओर से कुछ और वक्त देने की मांग की गई। सरकार की ओर से कहा गया कि कोविड के कारण जवाब दाखिल नहीं हो पाया है और ऐसे में सुनवाई टाली जाए और कुछ वक्त दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर 7500 ( साढ़े सात हजार) रुपये का हर्जाना लगाया और दो हफ्ते में जवाब दखिल करने को कहा है।
10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक….
याचिका में केंद्र सरकार को राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक की पहचान के लिए गाइडलाइंस देने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन वे अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ उठाने में सक्षम नहीं हैं। शीर्ष अदालत ने सात जनवरी को केंद्र को चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का “अंतिम अवसर” दिया था। न्यायालय ने कहा था कि सरकार को इस मुद्दे पर “एक रुख” अपनाना होगा।
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ को सोमवार को सूचित किया गया कि केंद्र ने सुनवाई स्थगित करने के अनुरोध के साथ एक पत्र दिया है। याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि उन्हें केंद्र द्वारा केवल सीमित उद्देश्य के लिए प्रसारित पत्र पर आपत्ति है क्योंकि मामले में सरकार का रुख महत्वपूर्ण होगा और उन्हें कम से कम इसमें तेजी लानी चाहिए।
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जब कोर्ट ने कहा, ऐसे बहाने मत बनाइए
पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कहा, ‘आपने एक पत्र प्रसारित किया है लेकिन आप केवल पत्र दे रहे हैं। बाकी सब कुछ हो रहा है। आपको एक रुख अपनाना होगा।’ एएसजी ने कोविड-19 की स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि सरकार इस पर कोई फैसला लेगी। पीठ ने कहा कि याचिका पर 28 अगस्त 2020 को नोटिस जारी किया गया था। न्यायालय ने कहा, ‘ऐसे बहाने मत बनाइए जिन्हें स्वीकार करना हमारे लिए बेहद मुश्किल हो।’ पीठ ने कहा कि यह “अनुचित” है कि केंद्र ने अभी तक जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है।
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पीठ ने कहा, “हम याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील के अनुरोध के अनुसार एससीबीए (सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन) अधिवक्ता कल्याणा निधि में 7,500 रुपये की रकम जमा करने पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का एक और अवसर प्रदान करते हैं।” इस मामले में अगली सुनवाई 28 मार्च को होगी।
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राज्य के स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा तय करने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आखिरी मौका दिया है। अभी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।
बता दें कि याचिका के अनुसार 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और वे अल्पसंख्यकों के लिए बनी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की तरफ से और समय मांगने के बाद केंद्र को 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
इस याचिका को भी मिली स्वीकृति
देश की शीर्ष अदालत ने पांच समुदायों जिनमे – मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित करने की केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ कई उच्च न्यायालयों से मामले स्थानांतरित करने का अनुरोध करने वाली याचिका को भी स्वीकृति दी और मामले को मुख्य याचिका के साथ संलग्न कर दिया।
उपाध्याय ने अपनी याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा 2(एफ) की वैधता को भी चुनौती दी है और कहा कि यह केंद्र को बेलगाम शक्ति देती है और स्पष्ट रूप से मनमाना, तर्कहीन और अपमानजनक है।
याचिका में क्या कहा गया:
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि ‘वास्तविक’ अल्पसंख्यकों को लाभ से वंचित करना और उनके लिए योजनाओं के तहत मनमाने और अनुचित संवितरण का मतलब संविधान के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया, ‘प्रत्यक्ष और घोषित करें कि यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं, टीएमए पाई रुलिंग की भावना के अनुरूप अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन कर सकते हैं।’