भू-कानून में धामी संशोधन:ये रहा उत्तराखंड में भू-कानूनों का इतिहास
Uttarakhand: उत्तराखंड विधानसभा में भू-कानून बिल पास, जमीन खरीदने वालों के लिए ये हैं नियम; जानें इतिहास
Uttarakhand Land Law: सशक्त भू-कानून की मांग को देखते धामी सरकार करीब तीन साल से काम कर रही थी। वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने पांच सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
उत्तराखंड विधानसभा में सशक्त भू-कानून के विधेयक को मंजूरी मिली। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) संशोधन विधेयक 2025 प्रस्तुत किया। इस दौरान उन्होंने इस कानून में होने वाले संशोधन पर भी बात की। उन्होंने सदन को बताया कि राज्य में जमीनों को भू-माफियाओं से बचाने, प्रयोजन से इतर उनका दुरुपयोग रोकने की जरूरत को समझते हुए कानून में बदलाव किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस बदलाव को लाने से पहले हमारे समक्ष भौगोलिक, निवेश, रोजगार को लेकर भी चुनौतियां थीं। मुख्यमंत्री ने कहा, पिछले वर्षों में देखा गया कि विभिन्न उपक्रम स्थापित करने, स्थानीय लोगों को रोजगार देने के नाम पर जमीन खरीदकर उसे अलग प्रयोजनों में इस्तेमाल किया जा रहा था। इस संशोधन से न केवल उन पर रोक लगेगी, बल्कि असल निवेशकों व भू-माफिया के बीच के अंतर को पहचानने में भी कामयाबी मिलेगी।
धामी सरकार करीब तीन साल से कर रही थी काम
सशक्त भू-कानून की मांग को देखते धामी सरकार करीब तीन साल से काम कर रही थी। वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने पांच सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। समिति ने सशक्त भू-काननू को लेकर 23 सिफारिशें की थीं। सरकार ने समिति की रिपोर्ट और संस्तुतियों के अध्ययन के लिए उच्च स्तरीय प्रवर समिति का गठन भी किया था। इससे पहले कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने से पहले खरीदार और विक्रेता का सत्यापन करने के निर्देश भी दिए थे।
ये बदलाव हुए लागू
हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर को छोड़कर बाकी 11 जिलों में राज्य के बाहर के व्यक्ति कृषि और बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे।
नगर निकाय क्षेत्रों को छोड़कर बाकी जगहों पर बाहरी राज्यों के व्यक्ति जीवन में एक बार आवासीय प्रयोजन के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि खरीद सकेंगे। इसके लिए उन्हें अब अनिवार्य शपथपत्र देना होगा।
औद्योगिक प्रयोजन के लिए जमीन खरीद के नियम यथावत रहेंगे।
हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में कृषि-औद्यानिकी की जमीन खरीदने के लिए जिलाधिकारी के स्तर से अनुमति नहीं होगी। इसके लिए शासन स्तर से ही अनुमति मिलेगी।
11 जनपदों में 12.5 एकड़ भूमि की सीलिंग खत्म कर दी गई है। हरिद्वार-ऊधमसिंह नगर में भी 12.5 एकड़ भूमि खरीद से पहले जिस प्रयोजन के लिए खरीदी जानी है, उससे संबंधित विभाग को आवश्यकता प्रमाणपत्र जारी करना होगा। तब शासन स्तर से अनुमति मिल सकेगी।
खरीदी गई भूमि का निर्धारित से अन्य उपयोग नहीं करने के संबंध में क्रेता को रजिस्ट्रार को शपथपत्र देना होगा। भू-कानून का उल्लंघन होने पर भूमि सरकार में निहित होगी।
पोर्टल के माध्यम से भूमि खरीद प्रक्रिया की निगरानी होगी। सभी जिलाधिकारी राजस्व परिषद और शासन को नियमित रूप से भूमि खरीद से जुड़ी रिपोर्ट भेजेंगे।
नगर निकाय सीमा के अंतर्गत भूमि का उपयोग केवल निर्धारित भू-उपयोग के अनुसार ही किया जा सकेगा.
भू-कानून उल्लंघन के 599 मामले
मुख्य मंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सदन में बताया कि राज्य में पिछले दिनों में भू-कानून उल्लंघन के 599 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 572 मामलों में न्यायालय में वाद चल रहे हैं, जबकि अन्य निस्तारित हो चुके हैं। इस अभियान के दौरान 9.47 एकड़ भूमि सरकार में निहित भी हुई है।
23 साल में कई बदलावों से गुजरता रहा उत्तराखंड का भू-कानून
उत्तराखंड राज्य गठन के दो साल बाद बना भू-कानून 23 साल में कई बदलावों से गुजर चुका है। जिस एनडी तिवारी सरकार ने 2002 में भू-कानून बनाया था, उसने ही 2004 में इसे सख्त करते हुए संशोधन किया था। कानून में सबसे ज्यादा छूट 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने बढ़ाई थी।
उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में यूपी का ही कानून चल रहा था, जिसमें उत्तराखंड में जमीन खरीद को लेकर कोई पाबंदियां नहीं थीं। वर्ष 2003 में एनडी तिवारी सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) अधिनियम की धारा-154 में संशोधन कर बाहरी लोगों के आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीद का प्रतिबंध लगाया।
साथ ही कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया था। 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था। चिकित्सा, स्वास्थ्य, औद्योगिक उपयोग को भूमि खरीदने को सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया था। तिवारी सरकार ने यह प्रतिबंध भी लगाया था कि जिस परियोजना को भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा। बाद में परियोजना समय से पूरी न होने पर कारण बताने पर विस्तार दिया गया।
औद्योगिक पैकेज से नए उद्योग लगे। इस बहाने जमीनों का इस्तेमाल गलत होने लगा। तब जनरल बीसी खंडूड़ी की सरकार ने वर्ष 2007 में भू-कानून में संशोधन कर उसे और सख्त बना दिया। सरकार ने आवासीय भूमि खरीद की सीमा 500 से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया। फिर 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने कानून में संशोधन कर, उद्योग स्थापित करने के उद्देश्य से पहाड़ में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता खत्म कर दी थी। साथ ही, कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलना आसान कर दिया था। पहले पर्वतीय फिर मैदानी क्षेत्र भी इसमें शामिल किए गए थे।
- Uttarakhand bhu kanoon committee send CM Pushkar Singh Dhami 80 page report for changes in Land Law
सरकार को मिली उत्तराखंड भू-कानून में बदलाव पर 80 पन्नों की रिपोर्ट में 23 संस्तुतियां, धार्मिक स्थल का भी जिक्र
उत्तराखंड में भू-कानून के अध्ययन और परीक्षण के लिए गठित समिति ने मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को 80 पन्नों की रिपोर्ट दी जिसका गहन अध्ययन कर प्रदेश के लिए भू-कानून में संशोधन किया गया.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (फाइल फोटो).
उत्तराखंड में भू-कानून में संशोधन की संभावनाओं को देखते हुए अध्ययन और परीक्षण को गठित समिति की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंपी रिपोर्ट में नदी-नालों और सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमणकारियों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान, कुछ बड़े कामों को छोड़कर अन्य के लिए भूमि क्रय के स्थान पर लीज पर देने, परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेखों से जोड़ने जैसी सिफारिशें थी.
पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय-विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए भू-कानून में संशोधन के लिए 23 संस्तुतियां की.
गौरतलब है कि जुलाई 2021 में प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद धामी ने भू-कानून के अध्ययन को उच्चस्तरीय समिति गठित की था. बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय, पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण ढौंडियाल व डीएस गर्ब्याल के अलावा समिति में पदेन सदस्य सचिव के रूप में हाल तक सचिव राजस्व का कार्यभार संभाल रहे दीपेंद्र कुमार चौधरी सदस्य थे. राज्य के हितधारकों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार-विमर्श कर लगभग 80 पन्नों की अपनी रिपोर्ट तैयार करने को समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक भूमि क्रय को स्वीकृतियों के विवरण मांगे थे और उनका परीक्षण किया.
80 पन्नों की रिपोर्ट का सार
समिति ने नदी-नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों या अन्य सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे, निर्माण या धार्मिक स्थल बनाने वालों के खिलाफ कड़ी सजा के साथ ही संबंधित विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के प्रावधान की सिफारिश की. समिति ने कहा है कि ऐसे अवैध कब्जों के खिलाफ प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाए.
समिति ने कृषि या औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदी गई कृषि भूमि के कुछ प्रकरणों में दुरुपयोग के मद्देनजर इसकी अनुमति जिलाधिकारी के स्तर से हटाकर शासन स्तर से दिए जाने की संस्तुति की. इसी तरह, वर्तमान में सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों के लिए भूमि क्रय करने की अनुमति भी जिलाधिकारी स्तर से हटाकर शासन स्तर पर ही दिए जाने की सिफारिश की गई.
अब तक चली आ रही राज्य सरकार के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान, पर्यटन और कृषि को 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक को देने की व्यवस्था समाप्त कर, इसे हिमाचल प्रदेश की तरह न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर दिए जाने की सिफारिश की.
समिति ने अपनी सिफारिश में कहा कि बड़े उद्योगों के अतिरिक्त केवल चार या पांच सितारा होटल/ रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट को ही भूमि क्रय अनुमति दी जाए, जबकि अन्य प्रयोजनों को लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए.
उत्तराखंड में मौजूदा समय में कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन को खरीद सकता है. समिति ने सिफारिश की कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम से अलग-अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने को परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेखों से जोड़ दिए जाएं.
रिपोर्ट में भूमि, जिस प्रयोजन को क्रय की गई, उसका उल्लंघन रोकने को जिला, मंडल, शासन स्तर पर एक कार्य बल बनाने की अनुशंसा की गई, ताकि ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किया जा सके. संस्तुति में था कि सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं.
सिफारिशों में कहा गया कि विभिन्न प्रयोजनों को खरीदी जाने वाली भूमि पर समूह ‘ग’ व ‘घ’ श्रेणियों में स्थानीय लोगों को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो और उच्चतर पदों पर उन्हें योग्यतानुसार वरीयता दी जाए.
अभी तक भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने को दो साल की अवधि निर्धारित है. राज्य सरकार अपने विवेक अनुसार इसे बढ़ा सकती है. इसमें संशोधन की सिफारिश करते हुए समिति ने इसे विशेष परिस्थितियों में एक वर्ष बढाकर अधिकतम तीन वर्ष करने को कहा.
पारदर्शिता को क्रय- विक्रय, भूमि हस्तांतरण और स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया ऑनलाइन करने और वेबसाइट के माध्यम से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने की संस्तुति भी की गई.
समिति ने सिफारिश की कि प्राथमिकता के आधार पर सिडकुल और अन्य औद्योगिक आस्थानों में खाली पड़े औद्योगिक भूखंड और बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आवंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए.
प्रदेश में बंदोबस्त की प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने की सिफारिश की गई. कहा गया है कि धार्मिक प्रयोजन को कोई भूमि क्रय या निर्माण किया जाता है, तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए.