इतिहास:26 साल पहले पूरा नहीं होने दिया था ज्ञानवापी का सर्वे
हनुमान मूर्ति से लेकर गणेश मंदिर और परिक्रमा पथ से लेकर पुस्ती तक: 26 साल पहले भी हुआ था एक ज्ञानवापी सर्वे, जानें क्या-क्या मिला था
17 May, 2022
ज्ञानवापी सर्वे 1996
ज्ञानवापी में 26 साल पहले हुआ सर्वे
ज्ञानवापी में तीन दिन हुए सर्वे के बाद हिंदू पक्ष का दावा है कि विवादित ढाँचे में इंच-इंच पर उन्हें हिंदू प्रतीक मिले हैं। सर्वे अनुसार न केवल इस ढाँचे में खंभों पर भगवान की मूर्तियाँ दिखी हैं बल्कि संस्कृत के श्लोक से लेकर ऊँ का चिह्न और 12 फीट लंबा शिवलिंग भी वजूखाने में मिला है। ये सारे सबूत देखकर हिंदू पक्ष में खुशी की लहर है। हालाँकि, इस बीच ये जानना जरूरी है कि ये पहली बार नहीं है जब किसी सर्वे में ज्ञानवापी से हिंदू चिह्न मिले हों। ऐसा सर्वे 26 साल पहले 30 जुलाई 1996 में भी हुआ था। इस रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी में 26 वर्ष पहले भी मंदिर अवशेष बरामद हुए थे। इस संबंध में रिपोर्ट वकील राजेश्वर सिंह द्वारा कोर्ट में दी गई थी।
ज्ञानवापी में 26 साल पहले हुआ सर्वे
इस रिपोर्ट को मीडिया चैनल एबीपी ने एक्सक्लूसिव दिखाया। शुरू करने से पहले बता दें कि 30 जुलाई 1996 को 1 दिन का सर्वे लॉर्ड विश्वेश्वर और अन्य वादीगण मामले में करवाया गया था। सर्वेक्षण के दौरान कोर्ट के कमिश्नर राजेश्वर सिंह थे और वादी सोमनाथ व्यास थे। इस रिपोर्ट में सामने आया था कि विवादित ढाँचे की दीवारों पर प्राचीन काल की पुस्ती देखी गई। ये पुस्ती प्राचीन मंदिर के अवशेष जैसी दिखाई दे रही थी। पुस्ती के पूरब में एक बड़ा चबूतरा है। वहीं पश्चिम में मंदिर के भग्नावेश मौजूद हैं। इसके अलावा मंदिर के जो टूटे-फूटे दरवाजे हैं उन्हें चुन कर बंद किया गया है। चबूतरे के पश्चिमी तरफ गणेश और शृंगार गौरी मंदिर है। परिक्रमा पथ वाले पत्थर जैसी एक ऊँची जगह भी परिसर में है। दक्षिण में एक विशाल चबूतरे के नीचे तहखाना है।
रिपोर्ट बताती है कि 1996 में हुए इस एक दिन के सर्वे में अधिकारी तहखानों में जा जाकर अपनी जाँच नहीं कर पाए थे। कहा जाता है कि प्रशासन ने उस समय उन्हें तहखाने में जाने के लिए चाभी नहीं दी थी। लेकिन रिपोर्ट ये बताती है कि इस तहखाने के गेट के सामने कूप, नंदी और गौरीशंकर महेश्वर हैं।
1996 में हिंदू पक्ष की बात कोर्ट में रखने वाले वकील विजय शंकर रस्तोगी ने एबीपी को बताया कि ये लॉर्ड विश्वेश्वर के नाम पर ये केस उस समय दर्ज किया गया था जब तत्कालीन सरकार ने चारों ओर बैरिकेडिंग करना शुरू कर दिया था और मंदिर में भक्तों को परिक्रमा करने से रोका गया था, उस समय ये केस यूपी सरकार के विरुद्ध फाइल हुआ था। रस्तोगी ने बताया कि 1996 में उन्हें शिवलिंग के बारे में पता नहीं चल सका था क्योंकि कई जगह मस्जिद में जाने से उन्हें मनाही हो गई थी। ऐसे में इसका अवलोकन नहीं हो पाया था।
गौरतलब है कि न्यायालय में पेश रिपोर्ट बताती है कि 26 साल पहले भी विवादित ढाँचे के परिसर में भग्नावशेष मिलने के दावे के साथ परिसर के पूरब तट पर हनुमान प्रतिमा, गंगा व गंगेश्वर मंदिर की पुष्टि हुई थी। बाद में इसी रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2019 में कोर्ट ने एएसआई को रडार तकनीक से सर्वे का आदेश दिया था। लेकिन तब इस मामले में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी थी।
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