मोदी का जिल बायडेन को दिया हरित हीरा बना कैसे? कीमत क्या है?
प्रधानमंत्री मोदी ने जिल बाइडन को जो कृत्रिम हीरा दिया वो कैसे बनाया गया?
22 जून 2023
जय शुक्ल
लैब में बना हीरा इमेज स्रोत,ANI
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर हैं. बुधवार को उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात की और उन्हें कई तोहफे़ दिए. इनमें सबसे ज़्यादा चर्चा ग्रीन डायमंड की हो रही है.
पीएम मोदी ने अमेरिका की फ़र्स्ट लेडी जिल बाइडन को 7.5 कैरेट का इको-फ्रेंडली हीरा उपहार में दिया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने जो हीरा दिया है वो अनमोल है और इसे आधुनिक तकनीक से लैब में बनाया गया है.
इसके निर्माण में रिन्यूएबल एनर्जी का उपयोग किया गया है.
भले ही यह एक लैब में बना हीरा है, लेकिन इसमें रासायनिक और ऑप्टिकल गुण पृथ्वी से निकाले गए हीरे के समान ही हैं.
लैब में बना हीरा क्या है, इसे कैसे बनाया जाता है, इसमें क्या ख़ास है और यह सामान्य हीरों से कैसे अलग है?
इन सवालों के जवाब के लिए हमने हीरा उद्योग से जुड़े लोगों से बात की है.
ग्रीन डायमंड को किसने बनाया?
प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका की फ़र्स्ट लेडी जिल बाइडन को जो हीरा उपहार में दिया, वह गुजरात के सूरत में बना है.सूरत को भारत में हीरा उद्योग का केंद्र कहा जाता है और दुनिया के 11 हीरों में से 9 सूरत में कट-पॉलिश किए जाते हैं.ग्रीन डायमंड को सूरत की ‘ग्रीनलैब’ नाम की कंपनी में तैयार किया गया है, जिसके मालिक मुकेश पटेल हैं.
ग्रीनलैब की स्थापना 1960 में हुई थी. वर्तमान में यह कंपनी लैब में तैयार किए गए हीरों के अग्रणी उत्पादकों में से एक है.कंपनी ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में 25 मेगावाट का सोलर प्लांट भी लगाया है. यह सोलर प्लांट 90 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है.ग्रीनलैब में दो हज़ार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. यहां हर महीने 1 लाख 25 हज़ार कैरेट के हीरे तैयार किए जाते हैं.
मुकेश पटेल के बेटे स्मित पटेल बताते हैं कि बाइडन को यह हीरा भारत के सभी हीरा उद्योग की ओर से उपहारस्वरूप दिया गया है.स्मित पटेल कहते हैं, ”यह हीरा अनमोल है और सूरत में उभरते लैब में बने हीरा उद्योग का प्रतीक है.”
ग्रीनलैब का टर्नओवर एक हज़ार करोड़ रुपए है.हीरे की कट-पॉलिशिंग के अलावा, यहां लैब में विकसित हीरे के साथ-साथ आभूषण भी बनाए जाते हैं.
लैब में बना ग्रीन डायमंड क्या है?
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, प्रधानमंत्री मोदी ने जिल बाइडन को जो हीरा उपहार में दिया है, वह ऐसी तकनीक से बना है जो प्रति कैरेट केवल 0.028 ग्राम कार्बन उत्सर्जित करता है.इस हीरे को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है क्योंकि इसके निर्माण में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे संसाधनों का उपयोग किया गया है.इस हीरे को जेमोलॉजिकल लैब, आईजीआई (इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट) से प्रमाणित है.यह कट, रंग, कैरेट और स्पष्टता के सारे मापदंडों पर खरा उतरता है.इसका उत्पादन लैब में उच्च तापमान और उच्च दबाव में किया जाता है.यह भौतिक-रासायनिक गुणों से लेकर बनावट में एकदम प्राकृतिक हीरे जैसा दिखता है.अगर कोई पहली बार इसे देखता है तो लैब में बने हीरे और प्राकृतिक हीरे में बमुश्किल अंतर कर पाएगा.
हीरा उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि दिए गए उपहार की कीमत के बारे में कुछ पता नहीं है लेकिन इस हीरे की कीमत लगभग 17 हजार डॉलर यानी लगभग 15 लाख रुपए है.अगर 7.5 कैरेट का प्राकृतिक हीरा खरीदना हो तो इसकी कीमत लगभग 5 करोड़ रुपए होगी. लैब में 7.5 कैरेट के हीरे को बनाने में 40 दिन लगते हैं.
सूरत के हीरा उद्योग व्यापारियों की माने तो लैब में बने हीरों की इन दिनों बाज़ार में खूब मांग है और उद्योग भी तेज़ी से बढ़ रहा है.पहले, अमेरिकी हीरे, क्यूबिक ज़िरकोनिया, मोज़ोनाइट और सफेद पुखराज सबसे लोकप्रिय कृत्रिम हीरे थे.लेकिन उनकी चमक और पहचान प्राकृतिक हीरों से अलग होती थी. लैब में बने हीरों के साथ ऐसा नहीं होता है.
लैब में हीरे बनाने के कई तरीके हैं, लेकिन उन्हें उच्च दबाव और उच्च तापमान पर बनाना एक आम तरीका है. इसे एचपीएचटी (हाई प्रेशर, हाई टेम्परेचर) विधि कहा जाता है.इस प्रक्रिया में दवाब सात लाख तीस हज़ार वर्ग इंच और तापमान लगभग 1500 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है.आमतौर पर ग्रेफाइट का उपयोग हीरे के बीज के रूप में किया जाता है और इसे 1500 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पहुंचते ही विशेष विधि के जरिए हीरे में बदल दिया जाता है.कृत्रिम हीरे बनाने की एक और तरीके को केमिकल वेपर डिपोजिशन या सीवीडी के रूप में भी जाना जाता है.इसमें मीथेन और हाइड्रोजन को 800 डिग्री सेल्सियस के तापमान और दबाव पर चैंबर में डाला जाता है.फिर चैंबर में माइक्रोवेव, लेजर या इलेक्ट्रॉन बीम आदि द्वारा रासायनिक क्रिया कराई जाती है.यहां हाइड्रोकार्बन गैस और मीथेन में मौजूद कार्बन हीरे में बदल जाता है.
लैब में बने हीरे का भविष्य क्या है?
लैब में बना हीरा
जानकारों का कहना है कि भविष्य में प्राकृतिक हीरा उद्योग को यह लैब निर्मित हीरा उद्योग पीछे छोड़ सकता है.
सूरत डायमंड एसोसिएशन के सचिव दामजीभाई मावाणी कहते हैं, ”अगर भारत में लैब हीरा उद्योग फलता-फूलता है तो सूरत के हीरा उद्योग को फायदा होना तय है. क्योंकि लैब में बने हीरे प्राकृतिक हीरों की तुलना में एक तिहाई कीमत पर उपलब्ध होते हैं. इसलिए जो वर्ग प्राकृतिक हीरे नहीं खरीद सकता, वह लैब वाले हीरे खरीदेगा और कुल मिलाकर भारत के हीरा उद्योग को फायदा होगा.”
क्या लैब में विकसित हीरे प्राकृतिक हीरे से सस्ते होते हैं? जवाब है हां, कृत्रिम हीरे प्राकृतिक हीरे की तुलना में 30 प्रतिशत तक सस्ते होते हैं लेकिन उनका कोई पुनर्विक्रय मूल्य नहीं होता है.
हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, बजट में हुए ऐलान के बाद अगर लैब में तैयार हीरे का उत्पादन भारत में होने लगेगा तो इनकी कीमत में और भी कमी आ सकती है.हालांकि, कुछ लोग इससे इत्तेफाक़ नहीं रखते हैं.कुछ हीरा व्यापारियों का मानना है कि केवल लैब वाले हीरे को बढ़ावा देने से प्राकृतिक हीरा उद्योग को नुकसान हो सकता है.
हीरा उद्योग के निर्यातक कीर्ति शाह कहते हैं कि लैब के हीरे का कोई रीसेल वैल्यू नहीं होती है. इसलिए भले ही वे सस्ते हों, फिर भी उनकी तुलना प्राकृतिक हीरों से नहीं की जा सकती.
भारत की डायमंड इंडस्ट्री में नई चमक से हो रही है क्रांति
सूरत के हीरा उद्योग का क्या कहना है?
कोयले के बीच हीरा
सूरत स्थित हीरा निर्माण और निर्यात कंपनी हरिकृष्ण एक्सपोर्ट्स के संस्थापक और अध्यक्ष सवजीभाई धोलकिया कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिल बाइडन को ग्रीन डायमंड देकर सूरत के हीरा उद्योग को गौरवान्वित किया है.
सवजीभाई धोलकिया कहते हैं, ”लैब में विकसित हीरे ही हीरा उद्योग का भविष्य हैं. पहले कच्चे हीरे की सामग्री को आयात करना पड़ता था लेकिन लैब में विकसित हीरे अब भारत में उत्पादित किए जाएंगे और इससे देश की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा.”सवजीभाई धोलकिया कहते हैं, “सूरत के कई उद्योगपति अब लैब में तैयार हीरों की ओर रुख कर रहे हैं और मांग भी बढ़ रही है.”
सूरत डायमंड एसोसिएशन के सचिव दामजीभाई मावाणी कहते हैं, ”अगर सूरत का हीरा उद्योग अपनी प्रोसेसिंग यूनिट में सौर ऊर्जा का उपयोग करता है, तो सूरत के हीरे अच्छी खुशबू देंगे. सूरत का हीरा उद्योग इस प्रकार के ग्रीन डायमंड की बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम है.”
इंडियन डायमंड इंस्टीट्यूट के कार्यकारी सदस्य दिनेशभाई नवाडिया ने बीबीसी को बताया, “सूरत में कुछ लोगों ने सीवीडी तकनीक से लैब में विकसित हीरे के उत्पादन करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग करना शुरू कर दिया है. जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है और इस तरह से उत्पादित हीरे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं.”
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ करते हुए कहा, ”आज़ादी का अमृतकाल चल रहा है, यानी आज़ादी के 75 साल के प्रतीक के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका की फ़र्स्ट लेडी को सूरत में बना 7.5 कैरेट का इको-फ्रेंडली हीरो देकर ‘मेक इन इंडिया’ के सपने को साकार किया है.”
हीरा उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का यह भी कहना है कि श्रीमती बाइडन को सूरत का हीरा उपहार में देकर प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के लैब में तैयार हीरों को अमेरिका में और अधिक लोकप्रिय बना दिया है.
श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स के निदेशक जयंतीभाई नरोला ने बताया, ”प्राकृतिक हीरे को नॉन ब्लड हीरे के रूप में प्रमाणित कराना पड़ता है जबकि लैब में विकसित हीरे को नहीं. साथ ही इसका उत्पादन असीमित तरीकों से किया जा सकता है. अगर इसकी मांग बढ़ती है तो इसकी कीमत और भी कम हो सकती है.
भारत में लैब में तैयार हीरों की कितनी है मांग?
हीरे की सांकेतिक तस्वीर
इंडियन डायमंड इंस्टीट्यूट के कार्यकारी सदस्य दिनेशभाई नवाडिया ने कहा, “भारत में लैब में विकसित हीरों को बढ़ावा देने से सूरत के हीरा उद्योग का मूल्य बढ़ेगा.”
दिनेशभाई आगे कहते हैं, “पहले हम हीरे की कट-पॉलिश और उसके आभूषण भी बनाते थे, अब हम लैब हीरे, कट-पॉलिश और आभूषण भी बनाएंगे.हम सालाना 24 अरब डॉलर मूल्य के प्राकृतिक हीरे निर्यात करते हैं. जबकि लैब में बने हीरों का निर्यात सिर्फ 1.25 अरब डॉलर है. अगर भारत में इसी तरह लैब में हीरे का उत्पादन किया जाए तो इसका निर्यात चार अरब डॉलर तक पहुंच सकता है.’
दिनेशभाई ने इस साल के बजट में सिंथेटिक हीरे के बीज पर सीमा शुल्क लगाने के सरकार के कदम की सराहना करते हुए कहा, “इससे भारत में सिंथेटिक हीरा निर्माताओं को काफी फायदा होगा.”
सूरत के हीरा उद्योग का यह भी कहना है कि सिंथेटिक हीरे की बढ़ती वैश्विक मांग को देखते हुए, भारत के हीरा उद्योग के प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए लैब में विकसित हीरे के बुनियादी ढांचे के लिए सहायता प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है.
लैब में विकसित हीरे के निर्यात के बारे में जानकारी देते हुए, दिनेशभाई कहते हैं, “वर्तमान में भारत 15,000 करोड़ रुपए के लैब में विकसित हीरे या आभूषण का निर्यात करता है. घरेलू बाज़ार छोटा है लेकिन जिस तरह से भारत में उत्पादन ज़ोर-शोर से शुरू हुआ है, आने वाले दिनों में घरेलू मांग बढ़ेगी और निर्यात भी बढ़ेगा.”
सूरत डायमंड एसोसिएशन के सचिव दामजीभाई मावाणी कहते हैं, ”लैब में विकसित हीरे बनाने के लिए हमें बीजों की ज़रूरत होती है. ये बीज चीन से आयात किये जाते हैं. इसलिए अगर ये बीज भारत में बनाए जाएं तो सस्ते दाम पर भारत के लिए लैब हीरे तैयार किए जा सकते हैं.’
दामजीभाई आगे कहते हैं, ‘लैब डायमंड दो तरीकों से बनते हैं. एक एचपीएचटी और दूसरा सीवीडी. जिसमें चीन से एचपीएचटी टाइप सिंथेटिक डायमंड सीड्स का आयात किया जाता है. सीवीडी भारत में निर्मित है. इसलिए अगर एचपीएचटी प्रकार के सिंथेटिक हीरे भी भारत में बनाए जाएं तो हमें चीन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और हीरा उद्योग को भी फायदा होगा और भारत की विदेशी मुद्रा भी बचेगी.