रामपुर में आज़म की हार:चार बड़े कारण, परिणाम -स्वतंत्रता बाद पहला सनातनी विधायक
Rampur By Election: आजम खां के गढ़ रामपुर में इन 3 मुख्य कारणों से लहराया भाजपा का ध्वज, आसिम का भी हुआ था विरोध
कानूनी शिकंजे में फंसे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां अब राजनीतिक युद्ध भी हार गए। उनके गढ़ में ही भाजपा का ध्वज लहरा गया। चार दशक से आजम खां का गढ़ बने रामपुर में भाजपा की जीत के तीन मुख्य कारण सामने आये हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट
रामपुर,10 दिसंबर: कानूनी शिकंजे में फंसे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां अब राजनीतिक युद्ध भी हार गए। उनके गढ़ में ही भाजपा का ध्वज लहरा गया। जहां एक ओर इस उपचुनाव में भाजपा को जीत मिली है तो वहीं, आजम के साथ ही उनके विधायक बेटे अब्दुल्ला के खिलाफ तीन मुकदमे भी दर्ज हो गए है।
चार दशक से आजम खां का गढ़ बने रामपुर में भाजपा की जीत की तीन मुख्य कारण सामने आऐ हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट-
रामपुर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां का मजबूत गढ़ रहा है। पिछले 42 साल से रामपुर की राजनीति में उनका सिक्का चल रहा था। 1980 में पहली बार विधायक बने और 10 बार जीते। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में तो सीतापुर जेल में बंद रहते हुए रिकार्ड वोटों से जीते। एक बार उनकी पत्नी डाक्टर तजीन फात्मा भी शहर विधायक बनीं।
पहला कारण- आजम का परिवार का प्रत्याशी न होना
इस उपचुनाव में न तो आजम खां प्रत्याशी थे और न ही उनके परिवार का कोई सदस्य। आजम खां के करीबी आसिम राजा सपा प्रत्याशी बने, लेकिन रामपुर की जनता ने उनका साथ नहीं दिया। उन्हें मात्र 47296 वोट ही मिल सके, जबकि भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना को 81432 वोट मिले। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में आजम खां को 1.31 लाख वोट मिले थे, लेकिन आसिम राजा उनसे आधे वोट भी नहीं पा सके। दरअसल, उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने का शुरू से ही विरोध हो रहा था।
दूसरा कारण- अपने ही छोड़ गए साथ
जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष मशहूर अहमद मुन्ना ने तो पार्टी में रहते हुए समाजवादी पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आजम खां के करीबी लोग भी उनका साथ छोड़ गए। उनके मीडिया प्रभारी रहे फसाहत अली खां शानू भी भाजपा में चले गए। शानू के बूथ पर पहली बार भाजपा जीत गई।
साये की तरह आजम खां के साथ रहने वाले भूमि विकास बैंक चमरौआ के अध्यक्ष रहे शाहबेज खां ने भी उनका साथ छोड़ दिया। इनके अलावा आजम खां के और भी कई करीबी भाजपा में शामिल हो गए। उनके मोहल्ले के ही सभासद तनवीर गुड्डू भी भाजपा में चले गए।
तीसरा कारण- भाजपा के करीब आए मुसलमान
उपचुनाव के नतीजों से यह बात साफ हो गई है कि अब मुसलमान भाजपा के करीब आ रहे हैं। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में तमाम मुसलमान सपा के साथ रहे, लेकिन उपचुनाव में ऐसा नहीं रहा। वे भाजपा के साथ भी खुलकर नजर आए। भाजपा नेता भी उनके घरों तक पहुंचे। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना मुसलमानों के घर-घर जाकर प्रचार करते रहे। प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने भी मुसलमानों को गले लगाया।
भाजपा ने मजबूत की स्थिति
उपचुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने गांव-गांव खिचड़ी पंचायतें आयोजित कर सभी वर्गों में भाजपा की स्थिति को मजबूत करने का काम किया। राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली भी रामपुर में डेरा डाले रहे। पसमांदा मुसलमानों का सम्मेलन भी कराया। इस सबके चलते भाजपा जीत गई और समाजवादी पार्टी को आजम के गढ़ में हार का मुंह देखना पड़ा।
तो रामपुर में आजम का जादू खत्म! उनके बूथ पर भी साइकिल नहीं भर सकी रफ्तार, यहां BJP को नौ वोट अधिक मिले
रामपुर उपचुनाव में सबसे अधिक चर्चा रजा डिग्री कॉलेज स्थित बूथ संख्या पांच के परिणाम ही हैं। जहां भाजपा को नौ वोट अधिक मिले हैं। इस बूथ पर आजम खां के परिवार के सदस्यों ने मतदान किया था।
रामपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा को हार का सामना करना पड़ा है। पुराने शहर के कई बूथों पर जो सपा का गढ़ माने जाते थे वहां पार्टी के प्रत्याशी बढ़त बनाने में कामयाब नहीं हुए हैं। सबसे अधिक चर्चा रजा डिग्री कॉलेज स्थित बूथ संख्या पांच के परिणाम ही हैं। जहां भाजपा को नौ वोट अधिक मिले हैं। इस बूथ पर आजम खां के परिवार के सदस्यों ने मतदान किया था। हालांकि रजा डिग्री कॉलेज के अन्य बूथों पर सपा को ही बढ़त मिली है।
नफरती भाषण में सजा के बाद आजम खां की विधायकी रद्द होने पर इस सीट पर उपचुनाव हुआ था। सजा पाए होने से उनका मताधिकार भी समाप्त हो गया। उपचुनाव में उन्होंने इस सीट से अपने परिवार के किसी सदस्य को मैदान में उतारने के बजाय अपने करीबी आसिम राजा पर दांव खेला। आसिम राजा को चुनाव जितवाने को उन्होंने दिन रात एक कर दिया। पूरी ताकत लगा दी। भावनात्मक अपील भी की। आचार संहिता उल्लंघन में उन पर दो मुकदमे भी हुए। पूरी ताकत लगाने पर भी आजम खां सपा प्रत्याशी को चुनाव नहीं जीता पाए।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आजम खां का बूथ पर भी इस बार कमल खिल गया। मतदान के आंकड़ों के मुताबिक रजा डिग्री कॉलेज के बूथ संख्या पर भाजपा को 96 और सपा को 87 वोट मिले। इस बूथ पर आजम खां की पत्नी डॉक्टर तजीन फात्मा, पुत्र सपा विधायक अब्दुल्ला आजम, आजम खां के भाई शरीफ खां और अन्य परिजनों ने भी वोट डाला था। हालांकि रजा डिग्री कॉलेज में 10 में से 9 बूथों पर सपा बढ़त बनाने में कामयाब रही है। वहीं चमरौवा सपा के विधायक नसीर अहमद खां के बूथ संख्या 200 पर पार्टी प्रत्याशी को 215 वोट मिले, यहां भाजपा को केवल 39 वोट ही मिले हैं।
नवेद मियां के बूथ पर जीती भाजपा
उपचुनाव में कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने भाजपा प्रत्याशी को अपना समर्थन दिया था। इससे उनको पार्टी ने छह साल के निष्कासित भी कर दिया था। नवेद मियां ने भाजपा प्रत्याशी का खुलकर चुनाव लड़वाया था। कई मंचों पर भी वो भाजपा प्रत्याशी के साथ दिखे थे। नवेद मियां के बूथ संख्या 259 पर भाजपा को 406 और सपा को 52 वोट मिले। नवेद मियां के पीआरओ काशिफ खां के बूथ पर भी भाजपा ने जीत हासिल की। मनकरा गांव के बूथ संख्या 426 पर भाजपा को 196 और सपा को 177 वोट मिले।
शानू के बूथ पर खिला कमल
उपचुनाव में आजम खां के करीबी फसाहत अली खां शानू सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्होंने उस वक्त कहा था कि अब्दुल दरी नहीं बिछाएगा बल्कि कमल खिलाएगा। ऐसा ही हुआ। उनके बूथ संख्या 161 पर भाजपा को 147 वोट मिले, जबकि सपा 88 वोट ही हासिल कर सकी। सपा छोड़ने वाले मोईन पठान के बूथ संख्या 141 पर भाजपा को 189 और सपा को 125 वोट मिले हैं। वहीं भाजपा के कई मुस्लिम नेता अपना बूथ जितवाने में सफल नहीं हुए हैं। इनमें ऐसे लोग भी हैं जो निकाय चुनाव में पालिकाध्यक्ष के पद के टिकट पर अपना दावा ठोक रहे है।
हालांकि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी आसिम राजा पुलिस पर मुसलमानों के वोट न डालने देने और बूथ कैप्चरिंग करने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना सभी वर्गों का समर्थन मिलने और चुनाव निष्पक्ष होने की बात कह रहे हैं।
रामपुर शहर से अब तक चुने गए विधायक
विधायक चुनाव वर्ष
1-फजले हक खां 1952
2-असलम खां 1957
3-किश्वर आरा 1962
4-अख्तर अली खां 1967
5-मुर्तजा अली खां 1969
6-मंजूर अली खां 1974
7-मंजूर अली खां 1977
8-आजम खां 1980
9-आजम खां 1985
10-आजम खां 1989
11-आजम खां 1991
12-आजम खां 1993
13-अफरोज खां 1996
14-आजम खां 2002
15-आजम खां 2007
16-आजम खां 2012
17-आजम खां 2017
18-तंजीन फात्मा 2019
19-आजम खां 2022
20-आकाश सक्सेना- उपचुनाव 2022