डॉ. मनमोहन सिंह और अमर्त्य सेन ने कैसे बर्बाद किया डॉ. कलाम का ड्रीम प्रोजेक्ट नालंदा विवि
अमर्त्य सेन ने कैसे नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार को लगभग पंगु बना दिया?
अमर्त्य सेन का विवादास्पद कार्यकाल और कार्य.
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की विद्वता और प्रतिष्ठा अपनी जगह लेकिन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने के प्रयास में सेन ने पूरी परियोजना को पटरी से उतार दिया और सार्वजनिक धन बेदर्दी से लुटाया।यह इस बात का प्रतीक है कि हम इस देश में स्थायी संस्थाओं के निर्माण के कार्य को कितनी लापरवाही से लेते हैं।
इतिहास: मनमोहन सिंह सरकार ने 28 जून 2007 को “नालंदा मेंटर ग्रुप (एनएमजी)” की स्थापना की।अमर्त्य सेन को इसका प्रमुख चुना गया।लेकिन सेन ने लगभग एक दशक लंबे कार्यकाल में नालंदा का केवल नियमित दौरा ही किया।सेन ने एनएमजी की बैठकें केवल न्यूयॉर्क, दिल्ली, टोक्यो और सिंगापुर जैसे स्थानों पर ही आयोजित कीं।
तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने स्थिति को कुछ हद तक सामान्य बनाने को हस्तक्षेप किया ।डॉक्टर कलाम ने कहा कि कुलाधिपति और उपकुलपति जैसे पद असाधारण बुद्धि और प्रबंधन विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षित होने चाहिए। यह संकेत देते हुए कि सेन नालंदा को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, कलाम ने सुझाव दिया कि शीर्ष अधिकारी, विशेषकर कुलाधिपति और उपकुलपति को मौके पर – अर्थात बिहार के नालंदा में – उपस्थित रहना चाहिए।
कैसे चूक हुई: सेन की अध्यक्षता वाली एनएमजी को नए विश्वविद्यालय के गठन के नौ महीने के भीतर अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत करनी थीं। इसमें उन्हें 36 महीने से अधिक समय लगा – आवंटित समय से नौ गुना अधिक।
रामचंद्र गुहा और प्रताप भानु मेहता जैसे उच्च प्रोफ़ाइल, विवादास्पद नामों को रेक्टर नियुक्त करने की सिफारिश की गई – जबकि एनएमजी के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था!अन्य नियुक्तियां भी बिना उचित कानूनी प्राधिकार के की गईं।
सीएजी भड़के: केंद्र सरकार के वैधानिक लेखा परीक्षा निकाय सीएजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के संचालन के बारे में कई गंभीर बातें कहीं लेकिन अमर्त्य सेन के हाईप्रोफाइल सैलिब्रिटी होने से उनकी टिप्पणियां हवा में उड़ गई।
देरी के बारे में: “विश्वविद्यालय समय पर स्कूल स्थापित करने में विफल रहा और विश्वविद्यालय परिसर का निर्माण कार्य शुरू नहीं कर सका”
कुलपति के चयन पर: “अंतर्राष्ट्रीय मानक तो छोड़िए, कुलपति (नामित) के चयन में यूजीसी के सुझाए गए मानकों का भी पालन नहीं किया गया…. अधिकारियों का चयन पिक एंड चूज़ के आधार पर किया गया, न कि व्यापक प्रचार करके। “कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिवशंकर मेनन भी उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने सेन के कार्यकाल में नालंदा में कुछ वित्तीय लेन-देन और शासन संबंधी मुद्दों पर आपत्ति जताई थी।
राष्ट्रीय इच्छाशक्ति के बिना एक प्राचीन विश्वविद्यालय – जिसका नाम और प्रतिष्ठा नालंदा जैसी हो – के पुनरुद्धार जैसी परियोजना को अत्यंत गंभीरता से लिया जाना चाहिए था।
–@अमर गोविंदराजन)
हमेशा विवादों में रहे हैं नोबेल विजेता अमर्त्य सेन
भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का सपना देखा और बिहार सरकार को दिखाया। राज्य सरकार ने हामी भरी तो वे पहले विजिटर भी बने। अमर्त्य सेन को भी विश्वविद्यालय के साथ जोड़ा गया। हालांकि सेन के कुछ विवादास्पद निर्णय के विरोध में तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम ने उस विश्वविद्यालय से खुद को अलग कर लिया था। डाक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो नालंदा विश्वविद्यालय के मामलों को लेकर अमर्त्य सेन के खिलाफ मुकदमा चलाने की केंद्र सरकार से मांग भी की थी।
कलाम की कल्पना पर सेन ने पानी फेरा
नालंदा यूनिवर्सिटी के गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने की कल्पना भूत पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी। अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम नालंदा यूनिवर्सिटी के पहले विजिटर भी बने। 8 मार्च 2006 को बिहार विधानमंडल के साझा अधिवेशन को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने नालंदा यूनिवर्सिटी की पुनर्स्थापना का विचार रखा था। भारतीय इतिहास में यह पहला अवसर था, जब देश का कोई राष्ट्रपति विधानमंडल को संबोधित कर रहा था। उन्होंने बिहार को 2015 तक विकसित राज्य बनाने का खाका पेश किया। कलाम ने इसी क्रम में 800 साल पहले बिहार के राजगीर में बने विश्वस्तरीय नांलदा यूनिवर्सिटी को पुराने रूप में विकसित करने की योजना बतायी। लेकिन अमर्त्य सेन ने भूत पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सपने पर पानी फेर दिया।
मनमोहन सिंह के क्लीग रहे हैं अमर्त्य
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और ऩोबेल विजेता अमर्त्य सेन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में साथ-साथ पढ़े हैं। प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह ने अपने दोस्त सेन से यारी निभायी। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की जिम्मेवारी उन्होंने अपने मित्र अमर्त्य सेन को सौंप दी। उसके बाद ही कलाम ने नालंदा से अपना नाता तोड़ लिया। हुआ यों कि अमर्त्य सेन ने अपना कुनबा विश्वविद्यालय में बिठाना शुरू कर दिया। विश्वविद्यालय में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप रोकने को डॉक्टर मनमोहन सिंह ने इसे यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन और मानव संसाधन मंत्रालय से अलग रखा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर का विश्वविद्यालय बनाने के नाम पर इसकी कमान विदेश मंत्रालय के हाथों सौंप दी गई। विदेश मंत्री तब एस एम कृष्णा थे।
मनमोहन की बेटियां मेंटर ग्रुप में शामिल
जून 2007 में विदेश मंत्रालय ने नालंदा मेंटर ग्रुप (एनएमजी) बनाया। इसके अध्यक्ष बने मनमोहन सिंह के मित्र अमर्त्य सेन। नालंदा मेंटर ग्रुप की पहली बैठक सिंगापुर में हुई। 19 सदस्यों की अंतर्राष्ट्रीय परामर्श समिति बनायी गई। परामर्श समीति में भारत से जिन व्यक्तियों को शामिल किया गया, उनमें मनमोहन सिंह की दोनों बेटियां डॉक्टर उपेन्दर सिंह, डॉक्टर दमन सिंह और इनकी सहेली डॉक्टर नवजोत लाहिरी थीं। जब दोस्त ही मेंटर ग्रुप का अध्यक्ष था तो जाहिर है कि सरकार धन की कमी नहीं होने देती।
घर का प्रोजेक्ट समझने लगे थे अमर्त्य
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मित्र होने के नाते अमर्त्य सेन को कोई चिंता नहीं थी। वह नालंदा विश्वविद्यालय को अपने घर की योजना समझने लगे। उनके किसी भी निर्णय पर सरकार कोई सवाल नहीं कर सकती थी। मेंटर ग्रुप के दिल्ली में स्थित कार्यालय और उसमें कार्यरत लोगों का खर्च सरकार बिना किसी सवाल के उठाती रही। निर्माणाधीन विश्वविद्यालय के लिए दिल्ली में वाइस चासंलर डॉक्टर गोपा सबरवाल और अन्य कई लोगों को अमर्त्य सेन ने मनमाने तरीके से नियुक्त किया। इनकी सैलरी 50,000 से 55,000 डॉलर सालाना थी। यह तब 25 से 30 लाख रुपए बैठता था। अमर्त्य सेन ने लेडी श्रीराम कालेज की एक रीडर डॉक्टर गोपा सबरवाल को वाइस चांसलर बना दिया। डॉक्टर गोपा सबरवाल और डॉक्टर मनमोहन सिंह की बेटियां मित्र थीं। डॉक्टर सबरवाल की नियुक्ति से डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम नाराज हो गए। अमर्त्य सेन के मनमाने तरीके से धन खर्च को लेकर सीएजी ने भी सवाल उठाए थे।
मनमोहन सिंह के साथ जब नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन भी रेनकोट पहनकर नहाने पहुंचे… तो देखिए क्या हुआ…
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 08 फरवरी, 2017 को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए जब कहा, “पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इतने भ्रष्टाचार हुए, लेकिन उन पर एक दाग तक नहीं लगा। बाथरूम में रेनकोट पहनकर नहाने की कला तो कोई डॉक्टर साहब से सीखे”। तब देश की जनता के सामने, उन डॉक्टर मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि से पर्दा उठा था, जिसे वर्षों से कांग्रेसी मीडिया ने डाला हुआ था। आज जब वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय की स्थिति की तुलना उसके गौरवशाली अतीत से करें, जिसे प्राप्त करने की कल्पना पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल्ल कलाम ने की थी, तो पता चलेगा कि डॉक्टर मनमोहन सिंह और उनके जिगरी दोस्त डॉक्टर अमर्त्य सेन, दोनों ने इस योजना में एकसाथ रेनकोट पहनकर किस प्रकार जमकर नहाया है। आइए! डॉक्टर साहब की इस कला के बारे में जानते हैं-
28 मार्च, 2006 को बिहार विधान सभा के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने नांलदा विश्वविद्यालय की स्थापना करने का विचार सामने रखा था। देश में पहली बार राष्ट्रपति किसी राज्य में विधानसभा को संबोधित कर रहे थे। इस संबोधन में उन्होंने बिहार को 2015 तक विकसित राज्यों की श्रेणी में लाने का रोडमैप दिया था। इसी रोडपैम में 800 साल पहले बिहार के राजगीर में स्थित विश्वस्तर के ज्ञान के केन्द्र नांलदा विश्विद्यालय को उसके पुराने रूप में विकसित करने की योजना थी।
नालंदा विश्वविद्यालय से डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को दूर किया
लेकिन इस योजना को मूर्तरूप देने वाली डॉक्टर मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के इस स्वप्न के साथ ऐसा भद्दा मजाक करना शुरू किया कि खिन्न होकर डॉक्टर कलाम ने 04 जुलाई, 2011 को विश्वविद्यालय के पहले विजिटर पद से इस्तीफा दे दिया। त्यागपत्र देने से पहले उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नांलदा विश्वविद्यालय के साथ हो रहे खिलवाड़, मनमानी और भ्रष्टाचार की बातों को रोकने के लिए समझाया, लेकिन मौनी बाबा डॉक्टर मनमोहन सिंह इन सुझावों पर मौन रहे।
देश के राष्ट्रपति की बात पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसलिए मौन रहे, क्योंकि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की बागडोर उन्होंने अपने पचास साल के लंगोटिया मित्र डॉक्टर अमर्त्य सेन को दे रखी थी। अमर्त्य सेन और डॉक्टर मनमोहन सिंह पचास के दशक में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में एक साथ पढ़ाई करने के दौरान मित्र बने थे। डॉक्टर मनमोहन सिंह और अमर्त्य सेन की मित्रता यह बताती है कि नालंदा विश्वविद्यालय की योजना में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने रेनकोट पहनकर बाथरूम में कैसे स्नान किया। आप भी उनके इस तरीके को पढ़कर हैरान रह जाएंगे।
डॉ. मनमोहन सिंह ने अमर्त्य सेन को नांलदा विश्वविद्यालय सौंप दिया
नालंदा विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर के केन्द्र के रूप में स्थापित करने के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह को डॉक्टर अमर्त्य सेन से अच्छा कोई व्यक्ति नजर नहीं आया। पहली नजर में यह सभी को पसंद भी आ गया क्योंकि अर्थशास्त्र के लिए अमर्त्य सेन को नोबेल पुरस्कार मिल चुका था और विश्व में उनकी पहचान का फायदा नालंदा विश्वविद्यालय को मिलना स्वाभाविक था। लेकिन सतह से दिखने वाले इस कारण के पीछे सबसे बड़ा कारण कुछ और ही था। वह कारण यह था कि मनमोहन सिंह और अमर्त्य सेन पचास साल के लंगोटिया मित्र थे। इस विश्वविद्यालय को भारत सरकार की किसी भी तरह की दखलंदाजी से दूर रखने के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह ने नालंदा विश्वविद्यालय को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के साथ-साथ मानव संसाधन मंत्रालय से भी अलग रखा और इसे अंतरराष्ष्ट्रीय स्तर का बनाने के लिए इसकी जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय के हाथों में दे दी। तत्कालीन विदेश मंत्री एस एम कृष्णा थे।
जून 2007 में विदेश मंत्रालय ने नालंदा मेंटर ग्रुप (NMG) गठित किया और इसका अध्यक्ष डॉक्टर मनमोहन सिंह के लंगोटिया अमर्त्य सेन को बना दिया। बिहार के राजगीर में स्थापित होने वाले नालंदा विश्वविद्यालय पर नालंदा मेंटर ग्रुप (NMG) की पहली बैठक स्थापित होने के कुछ दिन बाद ही सिंगापुर में 13-15 जुलाई के बीच हुई। बैठक में 19 सदस्यों वाली एक अंतर्राष्ट्रीय परामर्श समिति गठित की गई, जिसे विश्वविद्यालय के विभिन्न पहलुओं पर सुझाव देना था। परामर्श समिति में भारत से डॉक्टर मनमोहन सिंह की दोनों बेटियां डॉक्टर उपेन्दर सिंह, डॉक्टर दमन सिंह और इनकी सहेली डॉक्टर नवजोत लाहिरी थीं। अमर्त्य सेन को नालंदा विश्वविद्यालय के लिए धन की कोई कमी नहीं आने दी गई और उनके हर निर्णय को मानना सरकार के लिए आदेश समान था।ग्रुप की पहली बैठक में इस निम्न सूची के व्यक्तियों को परामर्श समिति में शामिल किया गया-
नालंदा विश्वविद्यालय और अमर्त्य सेन की मनमानी
सईंया भये कोतवाल तो डर कांहे का? भारत के प्रधानमंत्री के मित्र अमर्त्य सेन का डर एकदम खत्म था। वह नालंदा विश्वविद्यालय को घरेलू योजना समझते थे। उनके किसी भी निर्णय पर सरकार कोई सवाल नहीं कर सकती थी। अमर्त्य सेन की अध्यक्षता वाले मेंटर ग्रुप को विदेश मंत्रालय को नौ महीनों में अपने सुझाव देने थे, लेकिन 2010 तक इस ग्रुप ने कोई सुझाव नहीं दिए। इसके बावजूद मेंटर ग्रुप के दिल्ली कार्यालय और उसमें कार्यरत लोगों का खर्च सरकार बिना किसी सवाल उठाती रही।
बिहार के राजगीर में जो विश्वविद्यालय निर्माणाधीन था, उसके लिए दिल्ली में वाइस चासंलर डॉक्टर गोपा सबरवाल और अन्य कई लोगों को अमर्त्य सेन ने मनमाने तरीके से नियुक्त कर दिया। इनकी सैलरी 50,000 से 55,000 डॉलर प्रति वर्ष थी, यानि रुपयों में 50 से 60 लाख रुपये साल, मतलब हर माह 5 से 6 लाख रुपये। इतनी सैलरी तो भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी नहीं मिलती, लेकिन अमर्त्य सेन ने मनमाने तरीके से लेडी श्रीराम कालेज की एक रीडर डॉक्टर गोपा सबरवाल को वाइसचांसलर बनाने में सभी नैतिकताएं किनारे कर दी और उन्हें सैलरी मनमाने तरीके से दी क्योंकि डॉक्टर गोपा सबरवाल डॉक्टर मनमोहन सिंह की बेटियों की मित्र थीं, या यूं कह लें नालंदा के मेंटर ग्रुप में इनकी ही चलती थी। डॉक्टर सबरवाल की नियुक्ति से न केवल डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम, बल्कि विदेश मंत्रालय भी काफी नाराज हुआ था। डॉक्टर मनमोहन सिंह के मित्र अमर्त्य सेन के मनमाने तरीके से धन उड़ाने को लेकर सीएजी ने भी कई सवाल उठाए थे, लेकिन मनमोहन सिंह ने अपने मित्र से कुछ नहीं कहा, भले ही विश्वविद्यालय के पहले विजिटर डॉक्टर कलाम ने इस्तीफा दे दिया।
डॉ. मनमोहन सिंह के मित्र अमर्त्य सेन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप
2700 करोड़ रुपये वाले नालंदा विश्वविद्यालय के निर्माण को डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपने मित्र को हर सरकारी निगरानी से मुक्त कर दिया। नालंदा विश्वविद्यालय के लिए नालंदा मेंटर ग्रुप को सरकार के धन को खर्च करने की पूरी छूट थी, पी चिंदाबरंम का वित्त मंत्रालय सवाल तो खड़े करता था,परन्तु प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कारण कोई कदम नहीं उठा पाता था। 2010 में संसद से पारित नालंदा विश्वविद्यालय कानून में नालंदा मेंटर ग्रुप को एक साल को अंतरिम गवर्निंग बॉडी बनाया गया और यह प्रावधान है कि एक साल में सरकार एक गवर्निंग बोर्ड बनाएगी,लेकिन यह बोर्ड सरकार ने कभी नहीं बनाया और नालंदा मेंटर ग्रुप का ही समय हर साल बढ़ाती रही। 2013 में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने नालंदा मेंटर ग्रुप का कार्यकाल अनिश्चितकाल तक को बढ़ा दिया। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में नालंदा मेंटर ग्रुप की वित्तिय अनियमितताओं पर सवाल भी खड़े किए-
जिस नालंदा मेंटर ग्रुप को 9 महीने के अंदर अपना काम समाप्त कर देना चाहिए था, उसे किसी न किसी तरह बने रहने का मौका डॉक्टर मनमोहन सिंह ने दिया। ऐसा करने में देश की जनता के हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जिसे प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह दोनों हाथों से अपने मित्र पर लुटाते रहे और किसी को खबर भी नहीं लगी की कितने हजार करोड़ रुपये लुट गए। इस पर अगर उनके अपने ही वित्त मंत्रालय ने सवाल भी उठाना चाहा, तो डॉ. अमर्त्य सेन ने नालंदा विश्वविद्यालय को छोड़ने की धमकी देकर चुप करा दिया-
क्षेपक ————————————————–अमर्त्य सेन पर विश्वभारती की जमीन कब्जाने का आरोप
Amartya Sen Has An Old Relationship With Controversies First Nalanda And Now Visva Bharati
पहले नालंदा और अब विश्वभारती… विवादों से पुराना रिश्ता रहा है नोबेल विजेता अमर्त्य सेन का
नोबेल विजेता अमर्त्य सेन इन दिनों भूमि कब्जा करने के आरोपों से घिरे हैं। विश्वभारती विश्वविद्यालय ने अपनी 13 डिसमिल जमीन से कब्जा हटाने को कहा है। अमर्त्य सेन अब इसे लेकर हाईकोर्ट पहुंच गए हैं। वैसे देखें तो उनका विवादों से पुराना नाता रहा है।
अमर्त्य सेन पर विश्वभारती की जमीन कब्जाने का आरोप
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का अमर्त्य सेन को समर्थन
सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर है। पर, यह सच है। नोबेल विजेता अमर्त्य सेन पर रविंद्र नाथ टैगोर के स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय ने अपनी 13 जिसमिल जमीन कब्जा करने का आरोप लगाया है। जमीन खाली कराने का नोटिस भी विश्विद्यालय ने सेन को दिया। जमीन पर कब्जा हटाने को विश्वविद्यालय प्रशासन ने बल प्रयोग की चेतावनी दी तो अमर्त्य सेन हाईकोर्ट की शरण में चले गए। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कब्जा बनाए रखने को सेन के घर के पास धरना देने की घोषणा कर दी। दरअसल केंद्रीय विश्वविद्यालय होने से विश्वविद्यालय प्रशासन पर केंद्र सरकार की पकड़ है। अतिक्रमण हटाने को केंद्रीय बल की मदद विश्वविद्यालय ले सकता था।
विश्वभारती विश्वविद्यालय ने अमर्त्य सेन से 13 मई 2023 तक विश्वविद्यालय की 13 डिसमिल जमीन खाली कर देने का नोटिस दिया। जमीन पर उनका अवैध कब्जा था। वे हाईकोर्ट चले गए हैं। लेकिन विश्वविद्यालय की ओर से जमीन से कब्जा हटाने के खिलाफ ममता बनर्जी का सेन के साथ खड़ा होना थोड़ा आश्चर्य पैदा करता है। इसलिए कि कोई मुख्यमंत्री जमीन कब्जे का पक्षधर नहीं हो सकता।
ममता बनर्जी के हितचिंतक रहे हैं अमर्त्य सेन
2020 से ही अमर्त्य सेन और वीबीयू के बीच इसे लेकर विवाद चल रहा है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस विवाद में कूद पड़ी । सेन को जमीन कब्जा करने के आरोपों से बचाने को ममता ने 30 जनवरी को जमीन से जुड़े दस्तावेज सेन को सौंपे थे। ममता बनर्जी ने कहा है कि अमर्त्य सेन का ऐसा अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकती। ममता ने सेन को जेड प्लस सुरक्षा देने का भी आदेश दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सेन से जमीन वापस लेने के लिए अगर सख्ती की गई तो वह वहीं धरने पर बैठ जाएंगी। विश्व भारती केंद्रीय संस्थान होने से वह अतिक्रमण हटाने को केंद्रीय बलों की मदद लेने में सक्षम है।