कहां तक पहुंचा इंडी गठबंधन,घटक दल खेल रहे परस्पर दांव
गाँधी परिवार से कौन सी खुन्नस निकाल रहीं ममता बनर्जी? चाय-बिस्कुट पर सिमटी INDI बैठक में नीतीश ही नहीं, राहुल-प्रियंका को भी ठिकाने लगाने की कोशिश
भाजपा और नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए विपक्षी दलों का बना I.N.D.I गठबंधन अब असली रंग दिखा रहा है। षड्यंत्र अब परतों से बाहर झाँकने लगे हैं। दाँव-पेंच चले जा रहे हैं। एक गुट दूसरे गुट को नीचा दिखा रहा है। किसी तीसरे के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चलाई जा रही है।
नीतीश कुमार की तड़प सामने आ चुकी है तो मध्यप्रदेश में कॉन्ग्रेस-सपा की झड़प किसी से नहीं छिपी। एक तरफ दिल्ली से लेकर पंजाब तक आम आदमी पार्टी कॉन्ग्रेस को चुनौती दे रही है, तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अड़ी हुई हैं। बिहार में आरजेडी चुप है, क्योंकि नीतीश कुमार फ्रंट पर हैं, लेकिन सीट बँटवारे की बात आएगी तो अदावत यहाँ भी होगी।
झारखंड में जेएमएम को भी सम्मान देना होगा तो तमिलनाडु में डीएमके-एआईएडीएमके के साथ भी संबंधों में पेंच फँसेगा। एआईएडीएमके एनडीए से निकल चुकी है। उसे भी साथी की तलाश है। महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) को भाव दिया जाए या एनसीपी (शरद पवार गुट) को, इसको लेकर भी मामला फँसने वाला है। सीटों की शेयरिंग को लेकर भी मामला फँस सकता है।
I.N.D.I गठबंधन का सबसे बड़ा दल जो खुद कई राज्यों में छोटे दलों से कमजोर है, वो अपनी गुफा में गुर्राता है तो पलटकर छोटा दल भी दहाड़ता है कि यहाँ से निकलकर मेरी ‘गली’ में आओ, फिर बताते हैं। अब ‘गली’ वॉर पूरे राज्य में फैल चुका है। दूसरे की माँद में घुसा वो साथी कह रहा है कि इस माँद में अब मत आ जाना। आना भी तो एक कोने में…। जगह भी हमारी होगी, कोना भी हमारा होगा। वहाँ जमीन कितनी देंगे, इसका फैसला भी हमारा होगा।
खैर, हम जिक्र कर रहे हैं I.N.D.I गठबंधन के सबसे बड़े दल कॉग्रेस की और दूसरे सबसे बड़े दल (सीटों पर चुनाव लड़ने की संख्या के मामले में) समाजवादी पार्टी की। वो दिन ज्यादा दूर के नहीं है, जब मध्य प्रदेश के अपने गढ़ में कॉन्ग्रेस के कमलनाथ ने मीडिया से बातचीत में उखड़े मूड़ में कह दिया था कि ‘छोड़िए अखिलेश-वखिलेश को’। इसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस में खास भाव देने के मूड में नहीं हैं।
I.N.D.I गठबंधन में होने के बावजूद अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में हुई अपनी बेईज्जती का बदला लेने के लिए एकतरफा फैसला कर लिया है। उन्होंने साफ कह दिया है कि वो 60 सीटों पर तो सीधे चुनाव लड़ेंगे, इसके बाद ही किसी सीट के बँटवारे पर बातचीत होगी। ऐसे में बाकी की 20 सीटों पर कॉन्ग्रेस और RLD किन सीटों पर चुनाव लड़ेगी, ये मामला उलझ सकता है।
समाजवादी पार्टी ऐसी सीटों को सहयोगियों के लिए छोड़ना चाहती है, जिन पर वो कभी चुनाव नहीं जीत सकी है। ऐसी पार्टियाँ भाजपा या बसपा की गढ़ भी हो सकती हैं। वहीं, कॉन्ग्रेस की ओर से बसपा को इंडी गठबंधन में शामिल करने की माँग पर भी अखिलेश यादव ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “जो हमारी बात होनी थी, हो गई है। हम 2-3 सप्ताह में सीटों के बँटवारे को फाइनल कर लेंगे।”
वहीं, शिवसेना (यूटीबी) के नेता उद्धव ठाकरे ने इंडी गठबंधन से पहले ही नीतीश कुमार को झटका दे दिया था। उन्होंने कहा था कि कोई जरूरी नहीं है कि संयोजक को ही प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया जाए। वहीं, नीतीश कुमार ने खुद को भाव न मिलता देख गठबंधन की बैठक में ही हंगामा मचा दिया। हंगामा भी हिंदी वर्सेज अन्य भाषा को ही लेकर।
बिहार की दूसरी पार्टी आरजेडी ने अभी तक अपना मुँह भी नहीं खोला है। शायद वो नीतीश कुमार को अंतिम परिणति तक पहुँचते हुए देखना चाहती है। चूँकि, बिहार में सरकार बने रहने को नीतीश कुमार की हाँ में हाँ मिलाना राष्ट्रीय जनता दल की मजबूरी है,साथ ही अपनी हैसियत भी बनाए रखना जरूरी है। इसलिए आरजेडी अभी वेट एंड वॉच की मुद्रा में है।
राहुल, खगड़े या प्रियंका नेता?
वैसे, इंडी गठबंधन के गठन के बाद से ही इसमें खींचतान शुरू हो गई थी। गठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिशें चल रही हैं। सबसे अधिक निशाने पर नीतीश कुमार और गाँधी परिवार हैं। आम आदमी पार्टी और टीएमसी की महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय पार्टी बनने की है। इसके लिए उन्हें गाँधी परिवार को कमजोर करना होगा।
इसलिए ममता ने इंडी गठबंधन की चौथी बैठक में राहुल गाँधी की जगह मल्लिकार्जुन खडगे का नाम प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने का प्रस्ताव दे दिया। बात यहीं तक नहीं रुकी। इससे आगे बढ़ते हुए टीएमसी ने प्रियंका गाँधी को वाराणसी से चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव भी दे दिया। यह भी एक ऐसा कदम है,जिसका उद्देश्य गाँधी परिवार को कमजोर करना है।
टीएमसी चाहती है कि गाँधी परिवार अपना जोर मोदी को रोकने में और उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस को ज्यादा से ज्यादा सीटें दिलाने में लगाए। ऐसे में पश्चिम बंगाल में वो कॉन्ग्रेस के साथ मोलभाव करने की स्थिति में रहेगी। चूँकि एक अन्य महत्वपूर्ण नेता नीतीश कुमार को लगभग अलग-थलग ही कर दिया गया है। ऐसे में बाकी के क्षेत्रीय क्षत्रप अपने सामने आने वाली चुनौतियों को धीरे-धीरे मिटाना चाहते हैं।
खड़गे पर दांव… INDIA गठबंधन की मीटिंग में क्या कांग्रेस को लेने के देने पड़ गए हैं?
इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई चौथी बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को चेहरा बनाने का प्रस्ताव रखा. ममता के खड़गे पर दांव के बाद इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या कांग्रेस को इस मीटिंग में लेने के देने पड़ गए?
ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में खड़गे का नाम आगे करने से फंस गई है कांग्रेस
दिल्ली में इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक हुई. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये बैठक बुलाई थी. कांग्रेस की ओर से बुलाई गई इस बैठक में बात सीट शेयरिंग को लेकर होनी थी. बैठक से ठीक पहले शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चेहरे, संयोजक की मांग उठा दी तो जेडीयू ने पोस्टर लगाकर नीतीश को चेहरा घोषित करने की मांग कर दी. इंडिया गठबंधन की बैठक जब शुरू हुई, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए इंडिया गठबंधन की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर दिया.
ममता बनर्जी ने कहा है कि हर कोई पूछता है कि एक फेस तो होना चाहिए, इंडिया गठबंधन का पीएम फेस कौन है? मैंने इसी सवाल के जवाब में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे बढ़ाया है. ममता बनर्जी ने ये भी कहा कि उनके प्रस्ताव का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी समर्थन किया है. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने खड़गे पर दांव चल दिया है तो सवाल ये भी उठने लगे हैं कि इंडिया गठबंधन की मीटिंग में टीएमसी और आम आदमी पार्टी के खड़गे कार्ड से कांग्रेस को लेने के देने पड़ गए हैं?
ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का चेहरा बताते रहे हैं. बात इसे लेकर भी होती रही है कि क्या ममता बनर्जी, शरद पवार, नीतीश कुमार जैसे अनुभवी और दिग्गज नेता क्या राहुल का नेतृत्व स्वीकार करेंगे? ममता बनर्जी के खड़गे पर दांव को इस चर्चा पर विराम लगाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है तो साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि खड़गे पर दांव से कांग्रेस फंस गई है.
कांग्रेस कैसे फंस गई
मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं. ममता बनर्जी ने अब अगर उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए बढ़ा ही दिया है तो ये भी कांग्रेस के पक्ष में ही नजर आ रहा है, कांग्रेस की स्वीकार्यता ही बताता है. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि कांग्रेस फंस कैसे गई है?
दरअसल, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का चेहरा बताते ही रहे हैं, पिछले एक-डेढ़ साल में चीजें इसी तरफ बढ़ती नजर आई हैं. भारत जोड़ो यात्रा हो या फर्नीचर की दुकान में पहुंच मेज बनाना, युवाओं के बीच पहुंच बात करना हो या ट्रक में सवार होकर सफर करना या आजादपुर सब्जी मंडी पहुंच जाना, पिछले एक साल में कांग्रेस की रणनीति राहुल की इमेज कॉमन मैन की तैयार करने की रही है.
अब अगर प्रधानमंत्री पद के लिए खड़गे का नाम आगे आया तो कांग्रेस के लिए मुश्किल ये होगी कि इसे ठुकराएं कैसे और अगर अपनाएं तो अपनाएं कैसे? खड़गे को प्रधानमंत्री बनाने से इनकार कर राहुल का नाम आगे करने के मायने यही निकाले जाएंगे कि कांग्रेस नेहरू गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को प्रधानमंत्री बनने देना नहीं चाहती. एंटी दलित इमेज बनेगी सो अलग.
क्या कहते हैं जानकार
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने कहा है कि खड़गे पर वंशवाद के आरोप नहीं चलते और वह उस क्षेत्र में मजबूती से खड़े हैं जहां बीजेपी कमजोर है. संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता, केंद्र सरकार में मंत्री का अनुभव भी खड़गे को प्रधानमंत्री पद के लिए आदर्श उम्मीदवार बनाते हैं. हो सकता है कि गांधी परिवार पार्टी के अंदर एक पावर सेंटर के रूप में उनके उभार को लेकर गांधी परिवार सहज न हो.
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि कांग्रेस ऐसे दोराहे पर आ खड़ी हुई है जहां से उसके लिए एक राह चुन पाना आसान नहीं होने वाला.कांग्रेस चुनाव बाद प्रधानमंत्री चुनने की बात कर रही है तो वह भी एक रणनीति का हिस्सा है.खड़गे के चेहरे में वह करिश्मा नहीं है जो वोट आकर्षित कर सके और ना ही उनकी शैली ही आक्रामक है. खड़गे के पक्ष में जो एक बात जाती है, वह है उनका दलित होना.
उन्होंने ये भी कहा कि एनडीए के पास नरेंद्र मोदी के रूप में करिश्माई नेता है जो एक बहुत ही अच्छा वक्ता भी है और पैन इंडिया लोकप्रियता रखता है. इंडिया गठबंधन में खड़गे हों या राहुल गांधी या कोई और नेता, कम से कम अभी लोकप्रियता के मामले में नरेंद्र मोदी के आसपास भी नहीं नजर आते. जब आपके पास विरोधी के कद का कोई नेता न हो तो प्रेसिडेंशियल स्टाइल वाली पिच पर उतरना रणनीतिक लिहाज से सही फैसला बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता.
कांग्रेस को इतनी उलझन क्यों है
अब कांग्रेस की उलझन इसे लेकर भी होगी कि खड़गे को चेहरा घोषित कर प्रेसिडेंशियल स्टाइल वाली पिच पर उतरे, चुनाव मोदी बनाम खड़गे हुआ तो भाजपा को हरा पाना मुश्किल होगा. अगर बगैर पीएम फेस चुनाव में गए तो परिवारवाद का टैग पीछा नहीं छोड़ेगा. इसे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति से जोड़कर देखा जाएगा. इंडिया गठबंधन की चौथी मीटिंग में ममता के इस दांव से कांग्रेस ‘आगे कुआं, पीछे खाई’ वाली स्थिति में पहुंच गई है.
प्रधानमंत्री पद के कितने दावेदार?
इंडी गठबंधन की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे,राहुल गाँधी, अखिलेश यादव,ममता बनर्जी,नीतीश कुमार,अरविंद केजरीवाल जैसे नेता प्रधानमंत्री पद की दौड़ में हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में जो पार्टी जितनी अधिक सीट हासिल करेगी, उसकी पार्टी के नेता का इस रेस में आगे निकलना उतना ही आसान रहेगा।
चूँकि कॉग्रेस पूरे देश में चुनाव लड़ती है,लेकिन अखिलेश यादव का 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान और साथ में आरएलडी का उसे मिलने वाला साथ… उसे इस रेस में दूसरे नंबर पर खड़ा करती है। हालाँकि,सवाल ये है कि क्या प्रियंका गाँधी के वाराणसी सीट से उतरने पर भी कॉन्ग्रेस सपा की 60 सीटों वाली बात मान लेगी?
गठबंधन में जल्द से जल्द सीट बँटवारे का ऐलान करने का दबाव लगभग सभी पार्टियाँ कॉन्ग्रेस पर डाल ही रही हैं। टीएमसी, सपा, AAP की कोशिश है कि इस माह के आखिर में या अगले माह की शुरुआत में शीट शेयरिंग पर बात हो ही जाए, लेकिन सीटें कम मिलने की सूरत में भी क्या ये गठबंधन खड़ा रह पाएगा? ये बड़ा सवाल है।
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