कौन थे महाप्रतापी राणा सांगा? सपा बेच रही बाबर का झूठ?
तोप से डरे न तलवार से, 80 घाव लेकर भी खड़े रहे बाबर के खिलाफ मैदान में: सपा सांसद ने जिन ‘राणा सांगा’ को बताया ‘गद्दार’, उनके बारे में जानते ही क्या हैं आप
इब्राहिम लोदी,बाबर और राणा सांगा
उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा के नाम से विख्यात महाराणा संग्राम सिंह को गद्दार बताकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। शनिवार (22 मार्च) को राज्यसभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने ही बाबर को बुलाया था। उन्होंने हिंदुओं को ‘गद्दार’ राणा सांगा की औलाद बताया। अब सवाल है कि इतिहास इस को लेकर क्या कहता है।
नफरत करने वाले लोग अक्सर ये दावा करते हैं कि दिल्ली तत्कालीन सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था। हालाँकि, यह सच है कि राणा सांगा इब्राहिम लोदी को पहले ही बार-बार हरा चुके थे। इसके अलावा उन्होंने गुजरात और मालवा के सुल्तानों की सेना को कई बार अलग-अलग हराने के बाद दोनों की संयुक्त सेना तक को हराया था। ऐसे में उन्हें किसी बाहरी के सहायता की क्या जरूरत थी?
सन 1508 में मेवाड़ के शासक बने महाराणा सांगा ने अपने जीवन में कुल 100 से अधिक लड़ाइयाँ लड़ीं, लेकिन खानवा के सिवाय किसी में भी उनकी हार नहीं हुई थी। यही कारण है कि उनके पराक्रम को देखते हुए उन्हें ‘हिंदूपत’ की उपाधि मिली थी। इन लड़ाइयों की वजह से उनका एक आँख नहीं था। एक हाथ नहीं था। एक पैर काम नहीं करता था। शरीर पर 80 से अधिक गंभीर घाव के निशान थे।
महाराणा संग्राम सिंह के शासन में मेवाड़ा की सीमाएँ दूर-दूर तक फैल गईं। मेवाड़ की सीमा पूर्व में आगरा (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) और दक्षिण में गुजरात की सीमा तक पहुँच गई थीं। राजपूताना इतिहास के विद्वान कर्नल जेम्स टाड के अनुसार, महाराणा संग्राम सिंह के पास 80,000 घोड़े, 500 हाथी और करीब 2 लाख पैदल सैनिक सैनिक थे।
कर्नल जेम्स टॉड ने बताया है कि महाराणा संग्राम सिंह के पास ऊँचे दर्जे के सात राजा, 9 राव और 104 रावल थे। मारवाड़ और आम्बेर उन्हें सम्मान देते थे। ग्वालियर, अजमेर, सीकरी, रायसेन, कालपी, चंदेरी, बूंदी, गागरौन, रामपुरा और आबू के राजा उन्हें अपना अधिपति मानते थे। वहीं, हिंदू उन्हें अपना देवता मानते थे।
इब्राहिम लोदी को ही नहीं, मालवा-गुजरात के सुल्तानों को भी राणा सांगा ने हराया
राणा सांगा ने दिल्ली, मालवा और गुजरात के सुल्तानों के साथ 18 भीषण युद्ध लड़े और सबको हराया। उनके शासन काल में आधुनिक राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात के उत्तरी हिस्से और पाकिस्तान स्थित अमरकोट सहित कुछ अन्य हिस्सों पर विजय प्राप्त करके अपने राज्य में मिला लिया था। सन 1305 ईस्वी में परमार साम्राज्य के पतन के बाद उन्होंने पहली बार मालवा में राजपूत सत्ता को दोबारा स्थापित किया।
दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के नेतृत्व वाले लोदी वंश और राणा सांगा के नेतृत्व वाले मेवाड़ साम्राज्य के बीच 1517 में खतोली की लड़ाई लड़ी गई थी। इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी को बुरी तरह हराया था। उसने दोबारा 1518-19 में हमला करके राणा सांगा से बदला लेने की कोशिश की, लेकिन राणा सांगा ने फिर से उसे राजस्थान के धौलपुर में बुरी तरह परास्त किया। इब्राहिम लोदी वहाँ से भाग गया।
इब्राहिम लोदी ने कई बार सांगा से युद्ध किया, लेकिन हर बार उसे हार का सामना करना पड़ा। इन युद्धों के कारण आधुनिक राजस्थान में इब्राहिम ने अपनी पूरी ज़मीन खो दी। वहीं, राणा सांगा ने अपना प्रभाव आगरा के पीलिया खार तक फैला दिया। 16वीं सदी की पांडुलिपि ‘पार्श्वनाथ-श्रवण-सत्तवीसी’ के अनुसार, राणा सांगा ने मंदसौर की घेराबंदी के ठीक बाद रणथंभौर में इब्राहिम लोदी को हराया।
सन 1517 और फिर सन 1519 में उन्होंने मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय को हराया। यह लड़ाई ईडर और गागरोन में हुई। उन्होंने महमूद को पकड़ कर 2 महीने तक बंधक बनाकर रखा। बाद में महमूद ने माफी माँगी और दोबारा हमले नहीं करने की कसम खाई तो राणा सांगा ने सनातन युद्ध नियमों का पालन करते हुए उसे छोड़ दिया। हालाँकि, बदले में महमूद के राज्य के एक बड़े हिस्से को अपने राज्य में मिला लिया।
सन 1520 में राणा सांगा ने इडर राज्य के निज़ाम खान की मुस्लिम सेना को हराया और उसे अहमदाबाद की ओर धकेल दिया। अहमदाबाद की राजधानी से 20 मील दूर राणा सांगा ने अपना आक्रमण रोक दिया। कई लड़ाइयों के बाद राणा सांगा ने सफलतापूर्वक उत्तरी गुजरात पर कब्ज़ा कर लिया और अपने एक जागीरदार को वहाँ का शासक बना दिया। हटेली में मालवा और गुजरात के सुल्तान की संयुक्त सेना को राणा सांगा ने हराया।
इसी तरह राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान नासिरुद्दीन खिलजी को बुरी तरह हराया औऱ गागरोन, भीलसा, रायसेन, सारंगपुर, चंदेरी और रणथंभौर को अपने राज्य में मिला लिया। महाराणा सांगा ने अपने द्वारा जीते गए सभी राज्यों से मुस्लिमों द्वारा गैर-मुस्लिमों पर लगाए जाने वाले जजिया कर को खत्म कर दिया और उनके द्वारा बनवाए गए मस्जिद-मकबरों को ध्वस्त करवा दिया।
राणा सांगा ने बयाना के युद्ध में बाबर को बुरी तरह परास्त किया
बाबर ने पंजाब और सिंध पर जीत के बाद दिल्ली पर कब्जा करने की योजना बनाई। उसने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के खिलाफ हमला कर दिया। 21 अप्रैल 1526 ईस्वी में बाबर और इब्राहिम लोदी के खिलाफ हरियाणा के पानीपत में भयानक लड़ाई हुई। इस लड़ाई में बाबर जीत गया और उसने इब्राहिम लोदी की हत्या कर दी। इस तरह बाबर का प्रभाव कई क्षेत्रों पर फैल गया।
हालाँकि, चित्तौड़ में राणा सांगा और पूर्व में अफगान उसके लिए मुश्किल खड़ी कर रहे थे। राणा सांगा बाबर की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए तैयारी करने लगे। उन्होंने बाबर के अधिकार क्षेत्र वाले आगरा पर चढ़ाई की तैयारी शुरू की। बाबर को इसकी खबर लगी तो उसने अपने बेटे हुमायूँ को बुलाया और आगरा के बाहर धौलपुर, ग्वालियर और बयाना के मजबूत किले पड़ते थे।
बाबर ने पहले इन किलों को अपने अधिकार में लेने की योजना बनाई। वहीं, बयाना का किला पर निजाम खाँ के अधिकार में था। बाबर ने उससे समझौते की कोशिश की। बाद में निजाम खाँ बाबर की तरफ जा मिला। 21 फरवरी 1527 को बयाना में बाबर और राणा सांगा की सेना युद्ध के मैदान में आ गईं। इस युद्ध में बाबर की सेना की करारी हार हुई। वह वापस आगरा लौट गया।
इस युद्ध में बाबर महाराणा सांगा का साथ मारवाड़ के शासक राव गांगा के पुत्र मालदेव, चन्देरी के मेदिनी राय, मेड़ता के रायमल राठौड़, सिरोही के अखैराज दूदा, डूंगरपुर के रावल उदय सिंह, सलूम्बर के रावत रत नसिंह, सादड़ी के झाला अज्जा, गोगुन्दा का झाला सज्जा, उत्तर प्रदेश के चन्दावर क्षेत्र से चन्द्रभान सिंह, माणिकचन्द चौहान और मेहंदी ख्वाजा आदि वीरों ने दिया था।
स्कॉटिश इतिहासकार विलियम एर्स्किन ने लिखा है, बाबर ने राणा सांगा के पराक्रम में पहले से ही जानता था, लेकिन उसका सामना पहली बार बयाना के युद्ध में हुआ। उन्होंने लिखा है, “बयाना में मुगलों को अहसास हुआ कि उनका सामना अफगानों से कहीं भयंकर सेना के साथ हुआ है। राजपूत किसी भी वक्त जंग के मैदान में दो-दो हाथ करने के लिए तैयार रहते थे और जान देने से गुरेज नहीं करते हैं।”
इस युद्ध को लेकर बाबर ने खुद अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में लिखा, “काफिरों ने वो भयंकर युद्ध किया कि मुगल सेना का मनोबल टूट गया। वो घबरा गए थे।” इतिहासकार वीके कृष्णराव के अनुसार, राणा सांगा बाबर को एक आततायी और विदेशी आक्रांता मानते थे। वे दिल्ली और आगरा को जीतकर विदेशी आक्रांताओं का अंत करना चाहते थे।
खानवा का युद्ध और एक तीर ने बदली तकदीर
बयाना के भयानक हार से बाबर हतोत्साहित हो चला था। उसके सैनिक उससे वापस लौटने की बात करने लगे थे। हालाँकि, बाबर एक मौका और आजमाना चाहता था। उसने सेना में एकजुटता रखने के लिए इस्लाम का सहारा लिया। उसने राजपूतों का साथ देने वाले अफगानों को काफिर और गद्दार बताकर अपने साथ मिलाने की कोशिश की। इस्लाम के नाम पर उसने अपने सैनिकों में जोश भर दिया।
उसने अपने सैनिकों से कहा, “सरदारों और सिपाहियों, संसार में आने वाला प्रत्येक मनुष्य अवश्य मरता है। जब हम चले जाएँगे तब एक खुदा ही बाकी रहेगा। यहाँ बदनाम होकर जीने की से अच्छा इज्जत के साथ मरना अच्छा है। खुदा ने हम पर बड़ी मेहरबानी की है। इस जंग में मरेंगे तो ‘शहीद’ होंगे और जीतेंगे तो ‘गाजी’ कहलाएँगे। इसलिए कुरान हाथ में लेकर कसम खाना है कि जान रहते कोई जंग में पीठ नहीं दिखाएगा।”
उधर ‘मानवों का खंडहर’ कहलाने वाले राणा सांगा भी बाबर को अंतिम चोट देना चाहते थे। इसकी तैयारी उन्होंने शुरू कर दी। आखिरकार 16 मार्च 1527 के बाबर और राणा सांगा की सेना आगरा के 60 किलोमीटर पश्चिम में स्थित खानवा में आमने-सामने आ गईं। कहा जाता है कि राणा सांगा की सेना में 1 लाख सैनिक थे, जबकि बाबर के पास 80 हजार। सभी इतिहासकार इसमें एकमत हैं कि राणा सांगा की सेना बाबर से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी।
उस समय बाबर के बारूद से राजपूतों के तलवार से हो रहा था। यह पहली बार था, जब भारत बारूद, तोप और बंदूक देख रहा था। इतिहासकारों का मानना है कि अगर बाबर के पास तोपें नहीं होती तो राणा सांगा को हराना मुश्किल था। अपने पूर्वज बप्पा रावल की तरह की राणा सांगा ने भी हिंदू शासकों का गठबंधन बनाकर विदेशी हमलावरों का मुकाबला कर रहे थे।
इतिहासकार प्रदीप बरुआ लिखते हैं कि अगर बाबर ने तोपों की मदद नहीं ली होती और पानीपत वाली रणनीति न दोहराई होती तो शायद दिल्ली में मेवाड़ का केसरिया ध्वज फहरा रहा होता। इस युद्ध के बाद राणा सांगा द्वारा गठित हिंदुओं का गठबंधन हमेशा के लिए बिखर गया और अगले लगभग 250 सालों तक मुगलों का भारत में शासन रहा।
क्या राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था?
इतिहासकारों का मानना है कि पंजाब के गवर्नर दौलत खान दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी की जगह लेना चाहता था। वह यह जानता था कि फरगना का शासक बाबर अफगानिस्तान को जीतते हुए भारत की ओर आ रहा है। वहीं, इब्राहिम लोदी का चाचा आलम खान भी सल्तनत पर कब्जा करना चाहता। वह बाबर को जानता था। आलम खान और दौलत खान ने बाबर को भारत आने का न्योता भेजा।
दरअसल, सन 1523 में बाबर को दिल्ली सल्तनत के प्रमुख लोगों ने भारत आने का निमंत्रण दिया था। इसमें सुल्तान सिकंदर लोदी का भाई आलम खान लोदी, पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और इब्राहिम लोदी के चाचा अलाउद्दीन लोदी शामिल था। ये लोग इब्राहिम लोदी के शासन को चुनौती देने के लिए उसकी मदद माँगी थी। आलम खान ने बाबर के दरबार में भी गया किया।
वहाँ आलम खान लोदी ने बाबर से भारत में राजनीतिक अस्थिरता के बारे में बताया था। इसके बाद बाबर ने पंजाब में अपने दूत को भेजा। अपने दूत की रिपोर्ट आलम खान की बात को सही बताया। इसके बाद बाबर हिंदुस्तान फतह करने का सपना देखने लगा। उसने भारत पर सन 1503, फिर 1504, उसके बाद 1518 और 1519 में हमला किया। हालाँकि, सफल नहीं हो पाया।
इसके बाद बाबर ने 1526 में इब्राहिम लोदी के खिलाफ हमला कर दिया। राणा सांगा कई बार के युद्ध में हराकर उसे पहले ही कमजोर कर चुके थे। इसके कारण पानीपत के इस युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को बुरी तरह हराया और हिंदुस्तान की गद्दी पर कब्जा कर लिया। इससे पहले वह गद्दी हथियाने की कोशिश में लगा था, लेकिन उसे राणा संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा से भय था।
इतिहासकार इस बात से इनकार करते हैं कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाया था। दरअसल, राणा सांगा उस समय के सबसे शक्तिशाली शासक थे। उन्होंने राजपूताना (राजस्थान का पुराना नाम) के सभी शासकों को मिलाकर एक गठबंधन बना लिया था। उन्हें हराना नामुमकिन था। उन्होंने दिल्ली के सुल्तान से लेकर शक्तिशाली गुजरात और मालवा के मुस्लिम शासकों को तक को हरा दिया था।
राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को बार-बार हराया था। यहाँ तक कि एक बार बाबर को भी बयाना के युद्ध में हराया। इसलिए यह कहना है कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाने था, पूरी तरह से गलत है। बयाना के युद्ध में हार के बाद बाबर अपनी आत्मकथा बाबरनामा में खुद लिखा है, “हिंदुस्तान में राणा सांगा और दक्कन में कृष्णदेव राय से महान शासक कोई नहीं है।”
‘राष्ट्रीय राजनीति में मेवाड़ का प्रभाव’ नाम का पुस्तक लिखने वाले डॉक्टर मोहनलाल गुप्ता भी इससे सहमत नहीं है। उन्होंने लिखा है कि बाबर दिल्ली पर कब्जा करना चाहता था और वह इब्राहिम लोदी और राणा सांगा की शत्रुता से परिचित था। इसको देखते हुए बाबर ने राणा सांगा के पास एक दूत भेजा और कहा कि बाबर दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी से युद्ध करना चाहते हैं।
दूत ने राणा सांगा को बताया कि इसी वजह से बाबर ने उनके साथ संधि का पत्र भेजा है। अपनी पुस्तक में मोहनलाल गुप्त आगे लिखते हैं कि बाबर ने आगे लिखा कि वे दिल्ली पर आक्रमण करेगा। हालाँकि, अधिकांश इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका मानना है कि उस समय के सबसे शक्तिशाली राजा को किसी बाहरी के सहयोग की जरूरत नहीं थी।
जीएन शर्मा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा जैसे कई इतिहासकारों का मानना है कि बाबर ने भारत पर आक्रमण करने की योजना पहले ही बना रखी थी। उसने पानीपत की पहली लड़ाई जीतने से पहले भारत पर आक्रमण का चार बार प्रयास कर चुका था, लेकिन जीत नहीं मिली थी। वह राणा सांगा के पराक्रम से परिचित था। वह चाहता था कि राणा सांगा हस्तक्षेप ना करे.
@सुधीर गहलौत
क्या राणा सांगा ने वाकई बाबर को बुलाया था, खानवा का युद्ध कैसे बन गया जिहाद… क्या कहते हैं इतिहासकार?
16वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत का राजनीतिक परिदृश्य अत्यंत जटिल और अस्थिर था. दिल्ली सल्तनत कमजोर हो रही थी, और विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियां अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही थीं. इस संदर्भ में, बाबर का भारत आगमन और खानवा का युद्ध (1527 ई.) ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण घटनाएं हैं.
राणा सांगा और बाबर को लेकर बहस जारी है
औरंगजेब के बाद अब चर्चाओं का रुख राजपूती इतिहास की ओर मुड़ गया है. इसमें भी राणा सांगा चर्चा में बने हुए हैं. ‘क्या राणा सांगा ने बाबर को भारत आमंत्रित किया था?’ यह सवाल बहस का विषय बना हुआ है. ज़्यादातर इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि बाबर के भारत आगमन में काफी हद तक दौलत खान लोदी ने मदद की थी, जिन्होंने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के खिलाफ बाबर की सहायता मांगी थी. हालांकि, ऐसे सुझाव हैं कि मेवाड़ के शक्तिशाली राजपूत राजा राणा सांगा ने भी बाबर के साथ किसी तरह का संवाद किया होगा, जिसने उसके आक्रमण के लिए मंच तैयार किया.
जटिल रहा है 16वीं सदी के भारत का राजनीतिक परिदृश्य
16वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत का राजनीतिक परिदृश्य अत्यंत जटिल और अस्थिर था. दिल्ली सल्तनत कमजोर हो रही थी, और विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियां अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही थीं. इस संदर्भ में, बाबर का भारत आगमन और खानवा का युद्ध (1527 ई.) ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण घटनाएं हैं. इतिहासकारों के बीच यह सवाल उठता रहा है कि क्या मेवाड़ के शक्तिशाली राजपूत राजा राणा सांगा ने बाबर को भारत आने के लिए आमंत्रित किया था? साथ ही, क्या खानवा का युद्ध भारत में पहला जिहाद था, जैसा कि कुछ स्रोतों में दावा किया गया है?
बाबर का भारत आगमन: दौलत खान लोदी की भूमिका
अधिकांश इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि बाबर का भारत आगमन मुख्य रूप से दौलत खान लोदी के निमंत्रण के कारण हुआ था. दौलत खान लोदी, जो पंजाब का सूबेदार था, दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के खिलाफ विद्रोह कर रहा था. उसने बाबर से सहायता मांगी ताकि इब्राहिम को सत्ता से हटाया जा सके. इतिहासकार सतीश चंद्रा अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ मेडिवल इंडिया में लिखते हैं, “इसी समय बाबर को दौलत खान लोदी का एक दूत मिला, जिसका नेतृत्व उसके पुत्र दिलावर खान ने किया. उन्होंने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया और सुझाव दिया कि वह इब्राहिम लोदी को हटाए, क्योंकि वह एक अत्याचारी शासक था और उसे अपने अमीरों का समर्थन प्राप्त नहीं था.”
दौलत खान ने मांगी थी बाबर से सहायता
आर.सी. मजूमदार अपनी पुस्तक मुगल एम्पायर में भी इस बात की पुष्टि करते हैं. वे लिखते हैं कि दौलत खान और इब्राहिम के चाचा आलम खान, दोनों ने बाबर से सहायता मांगी थी. दौलत खान को डर था कि इब्राहिम उसे पंजाब के सूबेदार पद से हटा देगा, इसलिए उसने बाबर को अपना संप्रभु मानने और इब्राहिम के खिलाफ सहायता मांगने का प्रस्ताव दिया. बाबर ने इस निमंत्रण को स्वीकार किया और 1524 में अपनी छठी भारत यात्रा शुरू की.
ऐन डेविडसन की पुस्तक द मुगल एम्पायर भी इस तथ्य का समर्थन करती है. वे लिखती हैं कि दौलत खान लोदी के नेतृत्व में एक छोटे समूह ने बाबर को दिल्ली पर हमला करने और इब्राहिम को उखाड़ फेंकने के लिए आमंत्रित किया. बाबर ने इसे हिंदुस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने के अवसर के रूप में देखा.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
हालांकि दौलत खान की भूमिका स्पष्ट है, राणा सांगा के बाबर को आमंत्रित करने के सवाल पर इतिहासकारों के बीच मतभेद है. राणा सांगा मेवाड़ केएक शक्तिशाली राजपूत राजा थे, जिसने विभिन्न राजपूत गुटों को एकजुट कर दिल्ली के मुस्लिम शासकों के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा खड़ा किया था. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राणा सांगा ने बाबर के साथ अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क किया हो सकता है ताकि इब्राहिम लोदी को कमजोर किया जा सके, जिससे वह स्वयं हिंदुस्तान में अपनी शक्ति बढ़ा सके.
सतीश चंद्रा लिखते हैं कि बाबर ने अपने संस्मरण में राणा सांगा पर यह आरोप लगाया था कि उसने उसे भारत आने के लिए आमंत्रित किया था और इब्राहिम लोदी के खिलाफ सहायता करने का वादा किया था, लेकिन बाद में उसने कोई कदम नहीं उठाया. बाबर के अनुसार, “राणा सांगा ने मुझसे समझौता किया था, लेकिन जब मैंने दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया, तो उसने मेरे साथ सहयोग नहीं किया.”
आखिर क्या थी राणा सांगा की वास्तविक मंशा?
चंद्रा आगे कहते हैं कि राणा सांगा की वास्तविक मंशा क्या थी, यह स्पष्ट नहीं है. हो सकता है कि वह एक लंबे युद्ध की उम्मीद कर रहे हों, जिसके दौरान वह अपने वांछित क्षेत्रों पर कब्जा कर सकें, या यह मान रहे हों कि बाबर, तैमूर की तरह, दिल्ली को लूटकर वापस चला जाएगा. आर.सी. मजूमदार भी इस संभावना का उल्लेख करते हैं. वे लिखते हैं कि राणा सांगा ने बाबर को काबुल में एक मित्रवत दूत भेजा था और इब्राहिम के खिलाफ सहायता की पेशकश की थी, लेकिन उनका उद्देश्य एक राजपूत साम्राज्य की स्थापना करना था, न कि बाबर को स्थायी रूप से भारत में बसाना. हालांकि, बाबरनामा में राणा सांगा के निमंत्रण का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, जिसके कारण इस सिद्धांत को लेकर संदेह बना हुआ है.
बाबरनामा
खानवा के युद्ध में क्या हुआ था?
खानवा का युद्ध (17 मार्च, 1527) बाबर और राणा सांगा के बीच लड़ा गया एक निर्णायक युद्ध था. यह युद्ध न केवल क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि इसे धार्मिक संदर्भ में भी देखा जाता है. कई इतिहासकारों का मानना है कि बाबर ने इस युद्ध को जिहाद (पवित्र युद्ध) घोषित किया था, जिसे भारत में पहला जिहाद माना जाता है. आर.सी. मजूमदार लिखते हैं, “बाबर ने राणा संग्राम सिंह के खिलाफ अपना पहला जिहाद घोषित किया. उसने अपने सैनिकों को प्रेरित करने के लिए शराब का त्याग किया और एक प्रेरक भाषण दिया.” बाबर ने राणा सांगा को “काफिर” (अविश्वासी) करार दिया और अपने सैनिकों को इस्लाम के नाम पर एकजुट होने का आह्वान किया. 11 फरवरी, 1527 को बाबर ने सिकरी में डेरा डाला और राणा सांगा की सेना से भिड़ने के लिए आगे बढ़ा.
ऐन डेविडसन भी इस बात की पुष्टि करती हैं. वे लिखती हैं, “जब बाबर को पता चला कि राजपूत-अफगान गठबंधन की सेना उसकी सेना से कहीं बड़ी है, तो उसने इसे जिहाद घोषित किया. उसने सभी अफगानों से अपील की कि वे हिंदू “काफिरों” के खिलाफ उसके साथ शामिल हों.” बाबर ने खुद को “गाजी” (इस्लामी योद्धा) कहकर इस युद्ध को धार्मिक रंग दिया.
बाबरनामा में भी इस युद्ध का उल्लेख है. बाबर राणा सांगा को एक शक्तिशाली शासक के रूप में वर्णन करता है, जिसने अपनी वीरता और तलवार से अपनी शक्ति बढ़ाई थी. वह लिखता है, “राणा सांगा का मूल देश चित्तौड़ था. मांडू के सुल्तानों के पतन के बाद, उसने रणथंभौर, सारंगपुर, भिलसन और चांदेरी जैसे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया.” बाबर आगे बताता है कि उसने चांदेरी पर हमला किया और वहाँ के हिंदुओं का नरसंहार किया, जिसे उसने इस्लाम के लिए एक विजय के रूप में देखा.
खानवा का युद्ध, पहला जिहाद
खानवा के युद्ध को पहला जिहाद कहना भी पूरी तरह निर्विवाद नहीं है. बाबर ने निश्चित रूप से इसे धार्मिक युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन यह उसकी सैन्य रणनीति का हिस्सा भी हो सकता था ताकि वह अपनी छोटी सेना का मनोबल बढ़ा सके. फिर भी, इतिहासकार इसे भारत में इस्लामी शासन और राजपूत प्रतिरोध के बीच एक महत्वपूर्ण टकराव के रूप में देखते हैं.
अंत में, यह कहा जा सकता है कि बाबर का भारत आगमन और खानवा का युद्ध उस समय की जटिल राजनीतिक और धार्मिक गतिशीलता का परिणाम था. राणा सांगा और बाबर, दोनों ही अपने-अपने लक्ष्यों के लिए संघर्षरत थे, और इस संघर्ष ने भारत के इतिहास को एक नया मोड़ दिया.
खानवा का युद्ध
बाबरनामा में हिंदुस्तान के शासकों का वर्णन
बाबरनामा में बाबर ने हिंदुस्तान के प्रमुख शासकों का वर्णन किया है. वह पांच मुस्लिम शासकों का उल्लेख करता है, जो अपने विशाल सैन्य बल और व्यापक क्षेत्र के लिए जाने जाते थे. इसके बाद वह “पैगन” (अर्थात् गैर-मुस्लिम या हिंदू) शासकों की चर्चा करता है, जिनमें से वह विजयनगर के राजा को सबसे बड़ा बताता है। इसके बाद वह राणा सांगा का उल्लेख करता है, जिन्हें वह अपने समय का एक महान और प्रभावशाली राजा मानता है. बाबर लिखता है:
“दूसरे राजा राणा सांगा थे, जो इन दिनों अपनी वीरता और तलवार के दम पर महान बन गए थे. उनका मूल देश चितूर था; मांडौ सुल्तानों की सत्ता से पतन के बाद, उन्होंने उनके कई आश्रित क्षेत्रों जैसे कि रणतनबुर, सारंगपुर, भीलसन और चंदिरी पर अधिकार कर लिया.” यहां बाबर राणा सांगा की शक्ति और प्रभाव को स्वीकार करता है. राणा सांगा ने मांडू के सुल्तानों की कमजोरी का लाभ उठाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था. उनकी वीरता और सैन्य कौशल ने उन्हें राजपूतों के बीच एक सम्मानित नेता बनाया था. बाबर का यह विवरण दर्शाता है कि वह राणा सांगा को एक योग्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता था.
चांदेरी का युद्ध और परिणाम
बाबरनामा में आगे चांदेरी के युद्ध का उल्लेख है, जो 934 हिजरी (1528 ई.) में लड़ा गया था. यह युद्ध राणा सांगा के प्रभाव क्षेत्र में हुआ, हालांकि इस समय तक राणा सांगा खानवा के युद्ध (1527 ई.) में हार चुके थे और उनकी शक्ति कमजोर हो चुकी थी. बाबर लिखता है- “चांद्री पर 934 हिजरी (1528 ई.) में आक्रमण किया और ईश्वर की कृपा से कुछ ही समय में उसे अपने अधीन कर लिया. इसमें राणा सांगा के महान और विश्वसनीय व्यक्ति मिदनी थे; हमने इसमें मूर्तिपूजकों का व्यापक नरसंहार किया और, जैसा कि वर्णित किया जाएगा, जो कई वर्षों से शत्रुता का भवन था, उसे इस्लाम का भवन बना दिया.” (* विश्वजीत)
Rana sanga invited babur claimed sp mp ramji lal suman what do historians say
बाबर का झूठ बेच रहा सपा सांसद रामजी लाल सुमन
क्या राणा सांगा ने ही बाबर को भारत में आने का न्योता दिया था?
बाबर को भारत में मुगल शासन स्थापना का श्रेय है.1526 ईसवी में उसने इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली सल्तनत पर कब्जा कर लिया.बाद में बाबर का युद्ध राणा सांगा से भी हुआ,जिसे खानवा के युद्ध के नाम से जाना जाता है.राणा सांगा मेवाड़ के राजा थे और उस महाराणा प्रताप के पूर्वज थे,जिन्होंने हल्दीघाटी की लड़ाई में एक अन्य मुगल बादशाह अकबर से लोहा लिया था.खानवा की लड़ाई में राणा सांगा मारे गए और इस तरह से मुगलों से राजपूतों की पराजय हुई.
बाबरनामा के हवाले से इतिहासकार बताते हैं कि राणा सांगा ने अपना एक दूत भेजकर बाबर को दिल्ली पर हमले का न्योता दिया था. सतीश चंद्रा के संपादन में छपी किताब ‘मध्यकालीन भारत का इतिहास’ में लिखा है,‘1520-21 के आसपास की बात है. बाबर के पास दौलत ख़ान लोदी के पुत्र दिलावर ख़ान के नेतृत्व में दूत पहुंचे.उन्होंने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया और कहा कि इब्राहिम लोदी अत्याचारी शासक है और उसके सरदार अब उसके साथ नहीं हैं.ऐसे में बाबर को दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लेना चाहिए.’
किताब में आगे लिखा है कि ऐसी संभावना है कि इसी समय राणा सांगा का दूत भी ऐसा ही प्रस्ताव लेकर बाबर के दरबार में पहुंचा था.
मेवाड़ पक्ष से क्या मिला?
हालांकि, इस दावे पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं. इतिहासकार रीमा हूजा बताती हैं कि इतिहास में हम प्रमाण और साक्ष्य पर चलते हैं.बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि राणा सांगा ने उसके पास अपना दूत भेजा था.उसे निमंत्रण मिला था. लेकिन मेवाड़ में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिलता.अगर कोई दूत गया होता तो कहीं न कहीं रिकॉर्ड होना चाहिए.जैसे बाबरनामा की प्रतियां मिलीं,इधर से भी कुछ मिलना चाहिए था.
हूजा के अनुसार
उन्होंने कहा कि इब्राहिम लोदी शक्तिशाली राजा था. उसके अपने खानदान के लोगों ने उनसे नाराजगी जाहिर करते हुए बाबर से संपर्क बनाया था. उस समय कई लोग ऐसा करते थे. दूसरे की सहायता लो. अपनी दाल गला लो और फिर पैसे देकर उसे वापस भेज दो. हालांकि, बाबर आया तो गया ही नहीं.
इतिहास के अध्येता राजवीर शेखावत बताते हैं कि बाबर ने पहले भी दिल्ली पर आक्रमण किया था.अगर राणा सांगा ने उसे बुलाया होता तो उसके पहले के आक्रमण किस उद्देश्य से हुए थे. 1505 में बाबरनामा में बाबर ये क्यों लिख रहा है कि दिल्ली तैमूर का इलाका है और वो इसे प्राप्त करना चाहता है.उन्होंने कहा कि लोदी के दो रिश्तेदार दौलत खान और अलम लोदी बाबर को बुलाने जाते हैं.सांगा ने न्योता दिया था,इसका उल्लेख सिर्फ बाबर ने किया है.इसके अलावा कोई इतिहासकार इस बात का उल्लेख नहीं करता.
शेखावत कहते हैं कि इब्राहिम लोदी इतना बड़ा शासक नहीं था कि उसके लिए बाबर को बुलाया जाए.सांगा पहले भी लोदी को युद्ध में हरा चुके थे.
बाबर ने भेजा था संधिपत्र
‘राष्ट्रीय राजनीति में मेवाड़ का प्रभाव’ पुस्तक लिखने वाले डॉक्टर मोहनलाल गुप्ता ने लिखा है कि बाबर ने अपना एक दूत राणा सांगा के यहां भेजा था. उसके दूत ने राणा से निवेदन किया कि बादशाह बाबर इब्राहिम लोदी से युद्ध करना चाहते हैं. इसलिए आपको यह संधि पत्र भेजा है. पत्र में बाबर ने लिखा कि मैं दिल्ली पर आक्रमण करूंगा और आप उधर से आगरा पर आक्रमण करें. इस प्रकार लोदी हमारी अधीनता स्वीकार कर लेगा. कई इतिहासकारों का मानना है कि महाराणा सांगा ने तब बाबर के प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति दे दी थी. कहा ये भी जाता है कि राणा सांगा ने यह मंजूरी इसलिए दी थी क्योंकि वह विदेशी शक्ति से ही विदेशी शासक का अंत चाहते थे.
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि राणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया था. उन्हें यह उम्मीद थी कि बाबर जीत के बाद भारत छोड़ देगा. बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में दावा किया है कि राणा सांगा ने उसके साथ एक समझौता किया था, लेकिन बाद में उसे धोखा दिया.
सांगा ने दिया था न्योता?
जीएन शर्मा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा जैसे इतिहासकारों के अनुसार बाबर ने भारत पर आक्रमण करने का मन पहले ही बना रखा था. इसकी कोशिश वह पहले भी कई बार कर चुका था. सबसे पहले उसने 1519 में पंजाब पर हमला किया. 1526 में पानीपत की जीत से पहले बाबर ने दिल्ली पर 4 बार हमले का प्रयास किया. बाबर की मजबूरी थी. उसे 1511-12 में समरकंद छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था. ऐसे में भारत भागने के सिवा उसके पास कोई दूसरा चारा नहीं था.
इतिहासकार यदुनाथ सरकार राणा सांगा के बाबर को भारत आने का न्योता देने को झूठ बताते हैं. उन्होंने बताया कि बाबर का आक्रमण उसकी अपनी महत्वाकांक्षाओं और लोदी विद्रोहियों के साथ गठबंधन से प्रेरित था.
कौन थे राणा सांगा?
राणा सांगा मेवाड़ के शासक थे.अपने शासन काल में उन्होंने राजपूतों को एक कर अपनी शक्ति बढ़ाई. कुछ विवरणों में उन्होंंने 100 से भी ज्यादा लड़ाइयां लड़ीं.इसके चलते उनके शरीर पर 80 घाव थे. एक हाथ कट गया था और एक पैर ने भी काम करना बंद कर दिया था.इसके बावजूद उन्होंने दिल्ली,मालवा और गुजरात के शासकों को हरा आज के राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर गुजरात, और अमरकोट, सिंध तक अपनी रियासत फैलाई थी. चित्तौड़ उनकी राजधानी थी.बाबरनामा में बाबर ने राणा सांगा के बारे में लिखा है कि हिंदुस्तान में राणा सांगा और दक्कन में कृष्णदेव राय से महान शासक कोई नहीं है.(-राघवेेंद्र शुक्ला)