जगदीश गुप्ता का हास्य-व्यंग्य: लॉक डाउन में हेयरकट को तीसरी शर्त-अंतिम किस्त
प्रिय मित्रो,
व्यंग्यालेख “तीसरी शर्त ” का अन्तिम भाग आपके मनोरंजन हेतु प्रस्तुत है, कृपया आनन्द लें।
तीसरी शर्त (अन्तिम भाग)
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पत्नी ने कहा कि पारिश्रमिक के रूप में उन्हें सोने का हार चाहिये, मैंने आश्चर्य से पूंछा… क्या कहा?… सोने का हार?वे बोलीं, हां… सोने का हार चाहिये, मैंने कहा -यह तो ब्लैकमेलिंग है।पत्नी ने उत्तर दिया… वैसे आप सुनते ही कहां हैं, पिछले 10 साल से हार के लिये कह रही हूं लेकिन आपने मेरी बातों को कोई कान नहीं दिया।मैंने दीन भाव से कहा कि जिन्दगी में जो कमाया वह बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, उनके शादी-ब्याह व मकान बनाने में खर्च हो गया।रिटायरमेंट के बाद जो पेंशन मिलती है उससे रोजमर्रा के खर्च ही मुश्किल से चल पाते हैं व रिटायरमेंट के बाद जो फण्ड मिला है वह आपात परिस्थितियों के लिये है।वैसे भी आजकल असली सोने के जेवर पहनता ही कौन है? चोर-उचक्कों के डर से शादी समारोहों में महिलाएं नकली आभूषण पहनकर जाती हैं।धर्मपत्नी जी तुनककर बोलीं, यह सब तुम मर्दों की उड़ाई अफवाह है जिससे पत्नियां आभूषणों की मांग न करें।मैंने दूसरा तीर छोड़ा कि अब तो घर में बहू आ गई है, नाती-पोते वाली हो गई हो…इस उम्र में सोने का नया हार पहनते क्या अच्छा लगेगा? अब तो राम नाम का जाप करने की उम्र आ गई है।इस पर वह बोलीं कि आप मर्द लोग औरतों को कभी नहीं समझोगे, जेवर ही ऐसी वस्तु है जिसका आकर्षण स्त्री को जीवनपर्यन्त रहता है,पति के प्रति भले ही आकर्षण कम हो जाये लेकिन आभूषणों के प्रति आकर्षण कभी समाप्त नहीं होता।इस नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिये मैंने पत्नी को मन ही मन धन्यवाद दिया।
मैं सोच में पड़ गया, कितना भी हल्का हार क्यों न हो,पांच-छै तोले से कम का नहीं बनेगा।आजकल सोने की कीमतें आसमान छू रही है अतः हार बनवाने में कम से कम चार-पांच लाख तो खर्च हो ही जायेंगे। सोचा कि हेयरकटिंग का सौदा बहुत ही मंहगा होने जा रहा है।घर में कोई बच्चे भी साथ नहीं रहते हैं कि उनकी सेवायें ले ली जायें,एक बार मन में आया कि पत्नी की इस शर्त को मानने से इंकार कर दें व लाकडाउन के बाद किसी सैलून में जाकर हेयरकटिंग करा लेंगे,लेकिन यह विचार मन में ज्यादा देर टिक नहीं पाया।आजकल सोशल मीडिया में लगभग प्रतिदिन इस तरह के भयंकर मैसेज फ्लैश हो रहे हैं कि लाकडाउन की समाप्ति के बाद भी कई महीनों तक बार्बर शाप व सैलून में न जायें क्योंकि कोरोना संक्रमण का सबसे अधिक खतरा इन्हीं स्थानों में है,प्रदेश सरकार की एडवाइजरी में भी यही कहा गया है। लाकडाउन कब तक चलेगा, इसके बाद भी बार्बर शाप या सैलून में जाने की अनुमति मिलेगी या नहीं, निश्चित नहीं है।एक अजीब बात यह भी है कि साठ वर्ष पार कर चुके वरिष्ठ नागरिकों को घर से निकलने की पूर्ण मनाही है जैसे कि गेट के बाहर खड़ा होकर कोरोना बुड्ढों का ही इंतजार कर रहा है।आगे भी तीन-चार माह तक वरिष्ठ नागरिकों को शायद ही घर से निकलने की अनुमति मिले,अतः हेयरकटिंग के लिये इतनी लम्बी प्रतीक्षा नहीं की जा सकती। ऐसे में पत्नी की शर्त मानने के अलावा विकल्प ही क्या है?
अचानक मन में विचार आया कि यदि पत्नी का कोई विकल्प होता तो शायद यह नौबत नहीं आती।मन द्वापर व त्रेतायुग की ओर उड़ान भरने लगा,उस समय राजा-महाराजा व अमीर व्यक्ति तथा कुछ जनसाधारण लोग भी एक से अधिक पत्नियां रखते थे, राजा दशरथ के तीन रानियां थीं, भगवान श्रीकृष्ण की 16 हजार आठ रानियां थीं।उन्हें शायद यह अंदेशा रहा होगा कि एक ही रानी होने से उसकी मोनोपोली होने का खतरा है अतः उन्होंने दूरदर्शिता दिखाई।वर्तमान युग में पता नहीं किसने एक ही पत्नी रखने का कानून बना दिया, यह पतियों के साथ सरासर अन्याय है व उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है।इस कानून के विरोध में आवाज उठाने को पत्नी की मोनोपोली व ज्यादतियों को रोकने के लिये सभी पतियों को एक साथ आना चाहिए अन्यथा उन्हें भी इस प्रकार की समस्या से दो-चार होना पड़ सकता है।
हमने सोचा कि यदि हमारी भी एक से अधिक पत्नियां होतीं तो इस समस्या से कब का छुटकारा मिल गया होता।हम कल्पनालोक में विचरण करने लगे कि अगर एक से अधिक पत्नियां होतीं तो कितना आनन्द आता, कभी एक के साथ घूमते कभी दूसरी के साथ, नित नये-नये व्यंजन का स्वाद चखने को मिलता,हमारी सेवा करने को पत्नियों में हमेशा प्रतिस्पर्धा रहती । जीवन कितना सुन्दर व आनन्दमय होता।हम इस सुन्दर सपने को और अधिक विस्तारित करते कि धर्मपत्नी जी की आवाज सुनाई दी कि… इतनी देर से क्या सोच रहे हो?हमने विनोदपूर्ण स्वर में कहा कि हम सोच रहे थे कि यदि एक-दो पत्नियां और होतीं तो बिना किसी शर्त के अब तक हमारी हेयरकटिंग हो गई होती।इस पर वे भड़ककर बोलीं…..अभी क्या हुआ है, दूसरी कर लो।अभी तो तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियां भी नहीं पड़ी हैं, अधिकांश बाल भी काले हैं, देखने में 53-54 साल के लगते हो । दूसरी आसानी से मिल जायेगी।पत्नी के इन उदार वचनों से पहले तो अत्यधिक प्रसन्नता हुई लेकिन यह प्रसन्नता क्षणिक ही रही।सन्तों के इन वचनों का स्मरण हो आया कि बुढ़ापे की शादी अत्यन्त दुखदायी होती है,अतः यह विचार सिरे से खारिज कर दिया गया, सोचा कि अगले जन्म में इस पर विचार किया जायेगा।पुनःविचारमग्न देखकर पत्नी ने विनोदपूर्वक कहा कि लगता है कि मन में लड्डू फूट रहे हैं, मैंने भी विनोद में कहा कि जब असली लड्डू नहीं मिल रहे हैं तो मन के लड्डू खाने में क्या हर्ज है।
पत्नी ने पुनः कहा कि हार के बारे में क्या सोचा?मन में आया कि अभी इनकी शर्त मान लेता हूं जब इसके पूरा करने का समय आयेगा तब इससे बचने का कोई न कोई रास्ता निकाल लिया जायेगा।लेकिन अन्तरात्मा ने धिक्कारा कि यह उचित न होगा,इससे धर्मपत्नी जी के हृदय में हमारी विश्वसनीयता कम हो जायेगी और हम झूठे साबित हो जायेंगे।लेकिन पत्नी की शर्त को स्वीकार करना भी आसान नहीं था।हम सोच रहे थे कि धर्मपत्नी जी को क्या जवाब दें कि तभी पत्नी जोर से हंसी।उनका असमय हंसना हमें अपने घावों में नमक छिड़कने जैसा लगा लेकिन हम शान्त रहे।जब उनकी हंसी रुकी तो उन्होंने कहा कि…. हे आर्यपुत्र! उन्हें कुछ नहीं चाहिए वे तो केवल मजाक कर रही थीं तथा मेरी परीक्षा ले रही थीं।मैंने अविश्वास भरे स्वर में कहा कि क्या तुम सही कह रही हो….तुम्हें हार नहीं चाहिए?…वे बोलीं नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिये।
मैंने धर्मपत्नी को गौर से देखा व उनके मनोभावों को पढ़ने की चेष्टा की।उनके चेहरे पर नाराजगी के भाव दूर-दूर नहीं थे, बल्कि चेहरे पर वही कोमलता. तरलता व मासूमियत थी जो 40 वर्ष पूर्व थी जब वह मात्र 20 वर्ष की वय में हमारे संयुक्त परिवार में बड़ी बहू बनकर आई थीं।इन 40 वर्षों में संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों का पूरा ध्यान रखते हुए उन्होंने अपने बच्चों के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी।अपने पद-ओहदे व कार्य व्यस्तता के आवरण में हम इसका अहसास भी नहीं कर पाये।यह सोचकर हमें अपने ऊपर ग्लानि हुई व अपराधबोध से ग्रस्त हो गये, यह विश्वास हो गया कि पत्नी ने हमारी दुविधा देखकर ही अपनी चिरप्रतीक्षित अभिलाषा को अपने अन्दर इस तरह दबा लिया जैसे कुछ हुआ ही न हो।हमने संकल्प किया कि जैसे भी हो, हम पत्नी को शीघ्र ही सोने का एक हार सरप्राइज गिफ्ट के रूप में देंगे व भविष्य में उनकी इच्छा/अनिच्छा को सम्मान देंगे व उन्हें खुश रखने का यथासंभव यत्न करेंगे।
इन भावनाओं को अपने चेहरे पर न लाते हुये हमने हास्य स्वर में पत्नी से कहा कि कहानी तो पूरी हो गई लेकिन मूल बात तो रह ही गई कि मेरी हेयरकटिंग का क्या होगा, इस पर उन्होंने विनोद के स्वर में कहा कि हेयरकटिंग के लिये कल सुबह नौ बजे तैयार रहना।मैंने कहा कि अब तो कोई शर्त नहीं है, इस पर हम दोनों एक साथ हंस पड़े।।
नोट:-अगले दिन धर्मपत्नी जी ने सुरुचिपूर्ण तरीके से हमारी हेयरकटिंग कर दी। ये हैं हेयरकट बाऊ निखर कर निकले हम
@ लेखक जगदीश गुप्ताउत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं