भारत मदद न करता तो खत्म हो गया होता श्रीलंका
श्रीलंका में इमरजेंसी पर पूर्व मंत्री डॉक्टर हर्षा डीसिल्वा – गोटबाया सरकार ने बर्बाद कर दिया, भारत मदद नहीं भेजता तो खत्म हो जाते
नई दिल्ली पांच अप्रैल(पूनम कौशल)श्रीलंका में महंगाई और अव्यवस्था के खिलाफ लोगों का गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। गुरुवार रात को प्रदर्शन कर रही भीड़ राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गई। पुलिस से झड़प में कई लोग घायल हुए थे। इसे देखते हुए श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इमरजेंसी लागू कर दी।
श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक हालात और इसके जनता पर असर समझने को हमने श्रीलंका के अर्थशास्त्री, सांसद और पूर्व आर्थिक सुधार और सार्वजनिक वितरण मंत्री डॉक्टर हर्षा डीसिल्वा से बात की। वो उप-विदेश मंत्री और राष्ट्रीय नीति और आर्थिक मामलों के राज्य मंत्री भी रहे हैं।
सवाल :
आप श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक हालात को कैसे देखते हैं?
जवाब :
अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से गिर रही है। एक तरह से ये क्रैश हो चुकी है। स्थिति बहुत अस्थिर और डरावनी है।
सवाल :
क्या सरकार हालात से निपटने को कोई ठोस कदम उठा रही है?
जवाब :
सरकार कुछ भी नहीं कर पा रही है। अब किसी को सरकार पर भरोसा भी नहीं। उनके पास सत्ता में रहने का हक भी नहीं रह गया। मुझे नहीं लगता कि अब मौजूदा सरकार के पास ऐसा कोई तरीका है कि वो इन हालात को सुधार सके।
सवाल :
आप इस आर्थिक पतन के क्या कारण देखते हैं?
जवाब :
इस स्थिति के कई कारण हैं। लेकिन इस क्रैश को सरकार के टैक्स में कटौती करने के फैसले ने ट्रिगर किया। सरकार ने टैक्स में बड़ी कटौती की जिससे एक तिहाई राजस्व खत्म हो गया।
टैक्स कटौती दिसंबर 2019 में महामारी में की गई थी। इसे पैंडेमिक टैक्स कट कहा गया। गोटबाया राजपक्षे ने चुनाव जीतने के तुरंत बाद ये टैक्स कटौती की और घाटा पाटने को नोट छापने शुरू किए। ये एक तरह का पागलपन था।
महामारी बीच ही सरकार ने रासायनिक फर्टिलाइजर का आयात रोक दिया जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। इससे कृषि क्षेत्र गंभीर संकट में आ गया और कृषि उत्पादन गिर गया। कई इलाकों में कृषि उत्पादन 40 से 60 प्रतिशत तक गिर गया। इससे बड़ी समस्याएं पैदा हुईं।
सरकार अब इस जटिल परिस्थिति में फंसी है। इस बीच सरकार के पास राजस्व नहीं था। कर्ज की किस्त चुकाने के पैसे नहीं थे। सरकार ने ऐसे हालात में रिजर्व का इस्तेमाल किया। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ तो वो भुगतान नहीं कर पाया। अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजार तक हमारी पहुंच नहीं रही।
डॉलर का कर्ज चुकाने के लिए हमें रिजर्व का इस्तेमाल करना पड़ा। हमारा रुपया लगातार गिरता गया, लेकिन हमने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कोई आर्थिक कार्यक्रम नहीं लिया।
अगर ऐसा करते तो श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में विश्वास पैदा होता और ये राय बनती कि श्रीलंका अपनी समस्याओं का समाधान करना चाहता है।
ये करने की बजाय, करेंसी का समर्थन करने के लिए ब्याज दर बढ़ाने के बजाय सेंट्रल बैंक के गवर्नर ने एक अप्रत्याशित कदम उठा अचानक नोट छापने का फैसला किया। श्रीलंका के रुपए की कीमत अचानक गिर गई।
एक डॉलर के बदले जो रुपया दो सौ रुपए पर था वो अब अधिकारिक तौर पर तीन सौ रुपए है और गैर अधिकारिक तौर पर एक डॉलर के बदले रुपया चार सौ रुपए का है।यही वजह है कि लोग अपनी जरूरी चीजों की कीमत नहीं चुका पा रहे। ना वो दवा खरीद सकते। ना खाने-पीने का सामान और ना ही बिजली आ रही है।
सवाल :
नागरिक प्रदर्शन कर रहे हैं, उनमें बेचैनी बढ़ रही है, आपकी नजर में अभी के हालात में सरकार क्या कदम उठा सकती है?
जवाब :
सरकार के पास इस संकट के समाधान का कोई रास्ता नहीं। हालात अब नियंत्रण से बाहर हैं। जनता सरकार से अब सत्ता छोड़ने को कह रही है। लेकिन भले ही जनता ये नारा लगा रही हो लेकिन संवैधानिक रूप से गोटबाया को घर नहीं भेजा जा सकता। वो वैध रूप से चुनाव जीतकर आए हैं और उनके पास नवंबर 2024 तक सत्ता है। वो जल्द चुनाव को भी नवंबर 2023 में ही कह सकते हैं।
अभी हम अप्रैल 2022 में ही हैं। तो संवैधानिक रूप से उनके पद छोड़ने में अभी समय है, लेकिन संसद खुद को भंग कर सकती है। सांसद साधारण बहुमत में संसद भंग करने का प्रस्ताव पारित करें तो ऐसा हो सकता है। संसद भंग करके नए चुनाव करा सकते हैं। नई सरकार सत्ता में आ सकती है, लेकिन राष्ट्रपति का कार्यकाल फिर भी रहेगा। हालांकि, उन्हें नई सरकार से मिलकर काम करने का रास्ता निकालना होगा।
सवाल :
क्या अभी के हालात में एक मजबूत विपक्ष है, क्या जनता के पास कोई बेहतर विकल्प है?
जवाब :
हम सबसे बड़ा विपक्ष हैं और अभी हम जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार हैं। हम लोकतांत्रिक तरीके से सरकार में आना चाहते हैं। हम कोई गैर-संवैधानिक तरीका नहीं अपनाना चाहते हैं। यही वजह है कि हम नए चुनाव चाहते हैं।
सवाल :
श्रीलंका की मदद के लिए भारत क्या कदम उठा सकता है?
जवाब :
भारत श्रीलंका का सबसे करीबी मित्र है। भारत ने श्रीलंका की मदद को हाथ बढ़ाया है। पिछले दो सप्ताह में भारत ने श्रीलंका के लिए जो किया है अगर वो नहीं किया होता तो हम अब तक खत्म हो गए होते।
भारत ने हमें क्रेडिट दिया है, ईंधन, दवाएं और खाद्य सामग्री दी है। हम इसके लिए भारत के शुक्रगुजार हैं। लेकिन भारत की ये मदद श्रीलंका की सरकार के लिए नहीं है बल्कि श्रीलंका के लोगों के लिए है और ये बिलकुल स्पष्ट है।
मैं अभी कुछ दिन पहले भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिला। हमने श्रीलंका के मौजूदा हालात पर चर्चा की। भारत को संकट के इस समय में श्रीलंका के लोगों की मदद जारी रखनी चाहिए। भारत अगर मदद जारी रखता है तो ये हमारे लिए काफी होगा।
सवाल :
अगर आपकी पार्टी सत्ता में आ जाती है तो आप तुरंत क्या कदम उठाएंगे?
जवाब :
हमें तुरंत मैक्रो इकोनॉमी (लघु अर्थव्यवस्था) को स्थिर करना होगा। ऐसा करने के लिए हमें कई कदम उठाने होंगे। हम जानते हैं कि क्या करना है और हम ऐसा करेंगे।
हम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सहयोग लेंगे। हम अपने बहु-पक्षीय और द्विपक्षीय सहयोगियों की मदद लेंगे। श्रीलंका में पिछले कुछ महीनों में गरीबी बढ़ी है।
बहुत से मध्यमवर्गीय लोग गरीब हो गए हैं। ये लोग अपनी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं। हमें तुरंत इन्हें राहत देने के लिए पैकेज लाना होगा ताकि वो अपनी जरूरतें पूरी कर सकें।
हमें अल्पकालिक और मध्यकालिक सुधार लाने होंगे। देश को रीसेट किए जाने और बड़े बदलावों की जरूरत है।
अब किसी एक व्यक्ति के हाथ में अकूत ताकत नहीं रह सकती है। संवैधानिक स्तर पर भी बदलावों की जरूरत है। बुनियाद को ठोस किए बिना ये देश अब आगे नहीं बढ़ सकता है। हमें ये समझना होगा कि इस देश में रहने वाले सभी समुदायों के पास बराबर अधिकार और जिम्मेदारियां हैं।
श्रीलंका का आपातकाल
1-जन सुरक्षा कानून में इमरजेंसी लगाई जाती है।
ये कानून राष्ट्रपति को नियम लागू करने का अधिकार देता है।
2-राष्ट्रपति लोगों को हिरासत में लेने, किसी संपत्ति को जब्त करने और किसी भी ठिकाने की तलाशी के आदेश जारी करने का अधिकार देता है।
3-राष्ट्रपति किसी भी कानून को निलंबित कर सकते हैं या संशोधित कर सकते हैं।