आईआईटी रुड़की में आयोजित हुआ वर्चुअल ईयू डे
ग्रीन रिकवरी हेतु जलवायु कार्रवाई व स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन को आगे ले जाने के लिए सहयोग को आगे बढ़ाएगा यूरोपीय संघ और भारत: यूरोपीय संघ के राजदूत
– आईआईटी रुड़की के साथ आयोजित हुआ वर्चुअल ईयू डे
नई दिल्ली / रुड़की, 23 अप्रैल: अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के अवसर पर, यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के साथ आज “ईयू-इंडिया कॉर्पोरेशन इन क्लाइमेट एंड एनर्जी” थीम पर एक वर्चुअल चर्चा सत्र का आयोजन किया। यूरोपीय संघ (ईयू) दिवस शृंखला के अंतर्गत आयोजित यह ऑनलाइन कार्यक्रम नीतिगत संवाद और नवाचार की भूमिका समेत जलवायु कार्रवाई, स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन और जैव विविधता के क्षेत्र में भारत के साथ संयुक्त पहल पर केंद्रित था। कार्यक्रम में यूरोपीय जलवायु और ऊर्जा नीतियां, यूरोपीय संघ के रिकवरी पैकेज नेक्स्टजेनरेशन ईयू, यूरोपीय ग्रीन डील और अनुसंधान व नवाचार पहल पर भी चर्चा की गई।
यूरोपीय संघ-भारत स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदारी पर 2016 में यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई थी और जुलाई, 2020 में 15 वें यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन के दौरान पुन: इसकी पुनरावृति हुई थी। इसमें ऊर्जा दक्षता, नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट ग्रिड व ग्रिड इंटीग्रेशन, स्टोरेज, सस्टेनेबल फाइनांस, कूलिंग और पेरिस समझौते के कार्यान्वयन शामिल है।
भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत श्री उगो एस्टुटो ने मुख्य भाषण देते हुए यूरोपीय संघ ग्रीन रिकवरी एजेंडा, यूरोपीय ग्रीन डील की केंद्रीय भूमिका व जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और परिपत्र अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में यूरोपीय संघ और भारत के सामूहिक प्रयासों के महत्व को उजागर किया। उन्होंने कहा, “पहला पृथ्वी दिवस वर्ष 1970 में आयोजित हुआ था। अब, 51 साल बाद, यह दिन पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि प्लानेट जलवायु परिवर्तन के अस्तित्व संबंधी मुद्दे का सामना कर रहा है। आज, अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस पर, हमें याद रखना चाहिए कि हमारा प्लानेट कितना नाजुक है और इसकी जलवायु और जैव विविधता की रक्षा करना कितना महत्वपूर्ण है। यदि हम पेरिस में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहते हैं, तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सामंजस्यपूर्ण और लगातार कार्य करने की आवश्यकता है। यूरोपीय संघ और भारत वैश्विक एजेंडा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ”
अपने उद्घाटन भाषण में, आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजीत के. चतुर्वेदी ने यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और संस्था के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “जहां पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने वाले समाधानों के लिए शिक्षाविदों के बीच आम सहमति है वहीं, नीति और निर्णय निर्माताओं के तक प्रभावी संवाद के जरिए समाधान पहुंचाना भी महत्वपूर्ण है। इन समाधानों को भारत की विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति के मौजूदा संदर्भों और नीतिगत ढांचे के अंतर्गत रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यूरोपीय संघ का जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाएं भारत के दृष्टिकोण के साथ अच्छी तरह से मेल खाती हैं। यह महत्वपूर्ण है कि यूरोपीय संघ-भारत साझेदारी प्रगाढ़ हो ताकि हम सामूहिक रूप से उन समस्याओं को हल कर सकें जिन्हें हम स्वतंत्र रूप से हल नहीं कर सकते हैं। भारत-यूरोपीय संघ स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदारी (सीईसीपी) परियोजना द्वारा संबोधित किए जाने वाले मुद्दों और आईआईटी रुड़की में उपलब्ध विशेषज्ञता एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। आज की चर्चा हमें यूरोपीय संघ के संस्थानों के साथ हमारे सहयोग को मजबूत करने में सक्षम करेगी।”
श्री एडविन कोएकेक, काउंसलर एनर्जी एंड क्लाइमेट एक्शन, भारत में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल ने ‘ईयू-इंडिया क्लीन एनर्जी एंड क्लाइमेट पार्टनरशिप’ पर प्रकाश डाला, और जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा, यूरोपीय संघ की नीतियों और स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन पर ईयू-भारत सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया। उस साझेदारी को दोहराते हुए उन्होंने कहा, “यूरोपीय संघ और भारत दोनों ने महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य निर्धारित किए हैं और स्वच्छ, सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा, हरित विकास और नौकरियों को सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी, नियामक और वित्तीय चुनौतियों और संभावित समाधानों पर ज्ञान और विशेषज्ञता का आदान-प्रदान व पेरिस समझौते का कार्यान्वयन कर रहे हैं।”
वहीं, एनटीपीसी स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर आर. गोपीचंद्रन ने कहा, “ऊर्जा परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण आपस में जुड़े हुए हैं। प्रौद्योगिकियों के रूप व कार्य इस इंटरफ़ेस में महत्वपूर्ण परिणाम निर्धारित करते हैं। साइंटिफिकली टेंपर्ड सोसाइटी नामक तीसरा एलीमेंट हालांकि; संबंधित और सिर्फ बदलाव के केंद्र में है। सार्वजनिक नीति प्रक्रियाओं पर विचार-विमर्श करना महत्वपूर्ण है जो इस तरह के एकीकृत लाभ प्रदान कर सकते हैं।”
फ्रांस, जर्मनी और स्वीडन के प्रतिनिधियों सहित यूरोपीय संघ के सदस्य राज्यों ने भी स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भारत के साथ चल रहे सहयोग पर चर्चा में भाग लिया।
सुश्री लुइसा टेरानोवा, काउंसलर, फ्रांस के दूतावास ने कहा, “वर्ष 2021 हमारे प्लानेट के लिए महत्वपूर्ण है। यह पर्यावरण का इंडो-फ्रेंच वर्ष भी है जिसमें फ्रांस और भारत यूरोपीय संघ के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई करने के लिए काम करेंगे। फ्रांस अपने पारिस्थितिक परिवर्तन में भारत का समर्थन करने के लिए पहले से अधिक प्रतिबद्ध है।” एएफ़डी (AgenceFrançaise de Développement) के कंट्री डायरेक्टर, श्री ब्रूनो बोसले ने कहा एएफ़डी पिछले 12 वर्षों से भारत में ऊर्जा परिवर्तन में योगदान दे रहा था। “फाइनेंसिंग से अधिक, हम अभिनव समाधानों में भाग लेकर प्रसन्न हैं जो अन्य देशों को प्रेरित कर रहे हैं और पेरिस समझौते के उद्देश्यों में योगदान कर रहे हैं।”
डॉ. एंटजे बर्जर, काउंसलर, जलवायु और पर्यावरण, जर्मनी दूतावास ने कहा, “जर्मन सरकार का मानना है कि वैश्विक एनर्जाइवेन्डे (ऊर्जा परिवर्तन) संभव है। नई और नवीकरणीय ऊर्जा में बदलाव की चुनौतियां हैं, लेकिन आर्थिक विकास के लिए यह अवसर का एक क्षेत्र भी है। यूरोपीय संघ और अन्य यूरोपीय संघ के सदस्य राज्यों के साथ मिलकर, जर्मनी वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा के महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने के अपने प्रयास में भारत का समर्थन करने के लिए तैयार है।’ डॉ. विनफ्रेड डैम, इंडो-जर्मन एनर्जी प्रोग्राम के प्रमुख ने डॉ. एंटजे के विचारों को दोहराते हुए कहा, “अगले कुछ दशकों में शून्य-उत्सर्जन के प्रति वैश्विक परिवर्तन न केवल ऊर्जा क्षेत्र को बल्कि परिवहन और उद्योग को भी व्यापक रूप से बदल देगा। मानव समाज के लाभ के लिए इन क्षेत्रों में भारतीय परिवर्तन में समर्थन देने में सक्षम होना हमारा सौभाग्य है।”
इसके अलावा, श्री विग्गो बर्मन, सेकेंड सेक्रेट्री, ट्रेड, इकनॉमिक एंड कल्चरल अफेयर्स, स्वीडन एंबेसी ने वर्ष 2045 तक जलवायु तटस्थता के लिए अपने लक्ष्य समेत जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए स्वीडन के दृष्टिकोण को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “स्वीडन और भारत नवाचार और उद्योग परिवर्तन में प्रमुख भागीदार हैं। आम चुनौतियों के लिए ग्रीन सोल्यूशंस को जारी रखने के लिए तत्पर हैं।”
सुश्री तानिया फ्रेडरिच, हेड ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन, यूरोपीय संघ प्रतिनिधिमंडल ने वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थ बनने के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अनुसंधान और नवाचार के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “इस समग्र उद्देश्य में, स्वच्छ ऊर्जा के लिए परिवर्तन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसके लिए , ऊर्जा दक्षता बढ़ाने, नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा बढ़ाने और समाधान को सस्ता बनाने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है। नई लो-कार्बन प्रौद्योगिकियां उस गति को भी प्रभावित करेंगी जिस पर परिवर्तन हो सकता है, और इसमें स्टार्ट-अप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उद्योग (निर्माण, रसायन) द्वारा ऊर्जा के उपयोग को कम करने के लिए अधिक शोध भी आवश्यक है। यूरोपीय संघ नए अनुसंधान और नवाचार कार्यक्रम ‘हराइज़न यूरोप’ के तहत ऊर्जा अनुसंधान पर अपने प्रयासों को बढ़ाएगा।“ प्रपोज़ल के लिए पहला कॉल मई 2021 के अंत से पहले लांच किया जाएगा और इसमें भारत के साथ सहयोग के कई अवसर शामिल होंगे, जिसमें पोस्ट-डॉक्टरेट फेलो शामिल हैं। उच्च शिक्षा इरास्मस+ पर प्रमुख कार्यक्रम भी अपनाया गया है और आईआईटी रुड़की जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए फ़र्स्ट कॉल के आवेदन खुले हैं।
इस आयोजन में अन्य प्रमुख वक्ताओं में आईआईटी रुड़की के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. एनपी. पाढ़ी व आईआईटी रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के चंद्रशेखर प्रसाद ओझा भी शामिल थे। इस कार्यक्रम का संचालन श्री सोविक भट्टाचार्य, एसोसिएट डायरेक्टर, इंटीग्रेटेड पॉलिसी एनालिसिस डिवीजन, टीईआरआई और आईआईटी रुड़की के प्रो. अंजन सिल, प्रो. हिमांशु जैन और प्रो. अंकित अग्रवाल ने किया। आईआईटी रुड़की में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और भौतिकी विभाग के डीन प्रो. पी. अरुमुगम के वक्तव्य से समारोह का समापन हुआ।
बैकग्राउंड इंफोर्मेशन :
जुलाई 2020 में 15 वें ईयू-भारत शिखर सम्मेलन में, यूरोपीय संघ और भारत ने जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा के लिए साझेदारी को कार्यान्वित करने के लिए रोडमैप 2025 के भाग के रूप में सहमति व्यक्त की, जो कि स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर एक दृष्टिकोण के साथ यूरोपीय संघ और भारत के बीच सहयोग को मजबूत करने की दिशा में है। इसका लक्ष्य ऊर्जा दक्षता (ईई), नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) और जलवायु परिवर्तन (सीसी) पर ध्यान केंद्रित करके, सभी के लिए एक सुरक्षित, स्वच्छ, सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना और पेरिस समझौते के कार्यान्वयन में प्रगति करना है।
यूरोपीय संघ और भारत स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन , संसाधन दक्षता और परिपत्र अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिए सहयोग को बढ़ावा देकर स्थायी आधुनिकीकरण के समर्थन में अपनी साझेदारी को बढ़ाने पर भी सहमत हुए।
यूरोपीय संघ और जलवायु परिवर्तन: यूरोपीय संघ घर में महत्वाकांक्षी नीतियों और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ निकट सहयोग के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से लड़ रहा है। यह 2020 के लिए अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए पहले से ही ट्रैक पर है और 2030 तक कम से कम 55% उत्सर्जन में कटौती करने की योजना को आगे बढ़ाया है। 2050 तक, यूरोप का लक्ष्य दुनिया का पहला जलवायु-तटस्थ महाद्वीप बनना है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के साथ, यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सामंजस्य बिठाने का भी प्रयास कर रहा है। 2050 तक, यूरोप का उद्देश्य क्लाइमेट- रेसिलियंट सोसाइटी बनना है।