यूक्रेन युद्ध में इससे बेहतर नहीं हो सकती भारत की नीति
भारत को डराकर नहीं होगा अमेरिका का भला, जानें क्यों बाइडन के लिए जरूरी है मोदी-पुतिन की दोस्ती
भारत और रूस की दोस्ती बाइडन के लिए है फायदेमंद
डॉक्टर महेंद्र कुमार सिंह
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध पांचवें हफ्ते में प्रवेश कर गया है। यह युद्ध इतना लंबा चलेगा इसकी कल्पना शायद रूस या विश्व के किसी भी अन्य देश को नहीं थी। युद्ध के लंबा चलने से रूस की वह चिंता सही साबित हो रही है जिसमें उसे यह आशंका थी कि अमेरिका के नेतृत्व वाला नाटो उसके खिलाफ यूक्रेन को खड़ा कर रहा है। रूस ने दुनिया को यह भी दिखा दिया कि वह अपनी सीमाओं पर किस तरह का खतरा महसूस कर रहा था। अमेरिका अब भारत पर लगातार दबाव डाल रहा है कि वह रूस के खिलाफ उसके गठबंधन का हिस्सा बने लेकिन भारत ने दोनों ही महाशक्तियों के बीच बहुत अच्छा संतुलन बना रखा है। आलम यह है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी भारत की इस सफल नीति की तारीफ की है। भारत के रूस से दोस्ती बनाए रखने में खुद अमेरिका का भी फायदा है। आइए समझते हैं….
भारत ने यूक्रेन और रूस दोनों से दूरी के साथ-साथ निकटता भी बनाए रखी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां रूस के राष्ट्रपति पुतिन से दो बार बात की, वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की से भी बातचीत जारी रखी है। प्रधानमंत्री मोदी अब जल्द ही क्वॉड की बैठक में हिस्सा लेने को जापान यात्रा पर जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र में रूस को लेकर आए निंदा प्रस्ताव पर भारत के तटस्थ रहने का फैसला करने पर देश-विदेश के तमाम विशषज्ञों ने आलोचना शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि भारत अभी भी शीतयुद्ध के समयकाल के पूर्वी और पश्चिमी विभाजन तथा गुटनिरपेक्षता की नीति से आगे बढ़ पा रहा है।
भारत ने इसलिए रूस- यूक्रेन पर लिया कठिन फैसला
उधर, भारत ने निंदा प्रस्ताव पर वोटिंग ना करके गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन नहीं किया, बल्कि स्पष्ट कर दिया कि वह हर पक्ष के साथ रहने की नीति अपनाई है। भारत ने साफ किया है कि वह सभी पक्षों के वैध सुरक्षा हित ध्यान में रखते हुए संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है। यूक्रेन का हित उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता है, जबकि रूस चाहता है कि यूक्रेन और सोवियत संघ के विघटन के बाद के अन्य राज्यों को नाटो में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाए। यह यूक्रेन की स्वतंत्रता कमजोर कर सकता है, लेकिन शायद यह रूस के मुख्य सुरक्षा हित की गारंटी दे सकता है।
भारत ने यह कठिन फैसला इतिहास से सीख लेते हुए और समकालीन वैश्विक व्यवस्था ध्यान में रखते हुए लिया है। रूसी हमले बाद पश्चिम देशों के नेता कह रहे हैं कि यूक्रेन का नाटो में शामिल होना उनके अजेंडे में नहीं है। अगर ऐसा है तो साल 2008 में यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की घोषणा किसलिए हुई थी ? नाटो की ‘ओपन डोर पॉलिसी’ की बात क्यों की जा रही थी। वर्ष 1991 में सोवियत संघ विघटन के बाद 14 देश नाटो में शामिल किये गये थे। रूस और यूक्रेन की लड़ाई दो देशों में नहीं असल में ये महाशक्तियों रूस और अमेरिका के बीच की लड़ाई है। ऐसी सूरत में भारत किसी एक पक्ष के साथ खड़ा दिखता तो हासिल कुछ नहीं होता।
भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक दोस्ती
रूस से भारत के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं। पहले सोवियत संघ और साल 1991 के बाद रूस से भारत के मधुर संबंध रहे हैं। रूस भारत का एक विश्वसनीय मित्र है। चीन के साथ सीमा विवाद में रूस ने हमेशा भारत की मदद की है। इसके साथ ही रक्षा क्षेत्र में रूस और भारत में सहयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। वैसे तो रक्षा हथियारों की खरीद में रूस पर अपनी निर्भरता कम करने को भारत अब फ्रांस, अमेरिका, इजरायल, ब्रिटेन से भी हथियार ख़रीद रहा है लेकिन मास्को के साथ रक्षा क्षेत्र में विशेष संबंध है। भारत का लगभग 70% सैन्य हार्डवेयर रूसी मूल का है। डीआरडीओ की मिसाइल हो या न्यूक्लियर सबमरीन रूस जो मदद कर सकता है, वह अमेरिका या अन्य देश नहीं कर सकते। एस-400 डिफेंस सिस्टम की खरीद हो या असाल्ट राइफल का रायबरेली में निर्माण, रूस भारत को जिस तरह तकनीक देता है, दूसरे देश नहीं देते। कुल मिलाकर भारत के रक्षा और सुरक्षा प्रणाली की नीतियों का ‘आधार बिंदु’ रूस ही है।
भारत और रूस के संबंधों में एक अहम पहलू और भी हैं। भारत, ईरान, रूस, मध्य एशियाई देशों के बीच माल ढुलाई को जहाज़, रेल और सड़क मार्ग का 7200 किलोमीटर लंबा एक नेटवर्क है जिसे उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा कहा जाता है। भारत के लिए ये ट्रेड ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बहुत महत्वपूर्ण है। इस इलाके में भारत चाबहार के अलावा बस इसी एक ट्रेड नेटवर्क का हिस्सा है। ये ऐसा कॉरिडोर भी है जिसका हिस्सा पाकिस्तान और चीन नहीं है। इस नेटवर्क में बने रहने को रूस के साथ अच्छे रिश्ते रखना भारत के लिए जरूरी है। भारत मध्य एशिया में अपना दखल बढ़ाना चाहता है। इस साल 26 जनवरी को भारत ने मध्य एशियाई देशों जिसमें पूर्व सोवियत संघ के पांच गणराज्य भी शामिल हैं, के राष्ट्राध्यक्षों को निमंत्रण भी दिया था। इन देशों में बिजनस और कनेक्टिविटी बढ़ाने को भारत इच्छुक है और इन देशों पर रूस का अपना अलग प्रभाव है। अफगानिस्तान में भी भारत को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने को रूस की जरूरत पड़ेगी।
चीन पर लगाम लगाने के लिए भारत ने बनाया संतुलन
अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि अगर भारत के लिए रूस इतना ही महत्वपूर्ण है तो वह खुलकर मास्को की तरफ क्यों नहीं दिखना चाहता। दरअसल, रूस- यूक्रेन संकट के बीच भारत क्वॉड समूह की महत्वपूर्ण बैठक में शामिल हुआ। जहां एक तरफ भारत दोस्त रूस से बेहतर संबंध बनाए रखना चाहता है वहीं वह क्वॉड में शामिल हो शी जिनपिंग के विस्तारवादी, सम्राज्यवादी चीन को भी महत्वपूर्ण संदेश दे रहा है। भारत खुलकर रूस को समर्थन देकर अमेरिका विरोधी खेमे में खड़ा होता दिखना नहीं चाह रहा है। अमेरिका के साथ बेहतर संबंधों का ही नतीजा है कि बाइडन प्रशासन ने रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने पर नई दिल्ली के खिलाफ प्रतिबंध नहीं लगाए। यही नहीं, रूस- यूक्रेन संघर्ष से अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि हो रही है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर गंभीर बोझ पड़ सकता है।
भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से ज्यादा तेल आयात करता है। पश्चिम के प्रतिबंधों की अनदेखी कर रूस से सस्ता तेल खरीदने पर भारत के खिलाफ कुछ दंडात्मक कार्रवाई हो सकती थी। लेकिन अमेरिका ऐसा करने से बच रहा है। मानवता और नैतिकता की दुहाई देते हुए पश्चिम ने चिंता जाहिर की है कि भारत ने रूस का विरोध नहीं किया है और न ही यूक्रेन पर हमला करने को पुतिन की निंदा की है। हालांकि हकीकत यह है कि जब चीन ने भारत के क्षेत्रों पर आक्रमण किया, भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की, और जब पाकिस्तान ने आतंकवाद के माध्यम से छद्म युद्ध शुरू किया तब यही पश्चिमी देश मूकदर्शक बने रहे।
बाइडन को चीन से निपटने के लिए होगी भारत की जरूरत
ध्यान रहे कि यदि चीन पुतिन को जंग से बाहर निकालने को यूक्रेन युद्ध में भाग लेता है, तो अमेरिका और अन्य नाटो देशों की ओर से भी जवाबी कार्रवाई की भी आशंका है। इससे न केवल युद्ध और लंबा चलेगा बल्कि इसे वास्तव में बहुआयामी भी बना देगा। युद्ध अक्सर इसमें हिस्सा लेने वाले पक्षों के कमजोर हो जाने पर ही समाप्त होता है। दो एशियाई दिग्गजों के मौजूदा समीकरण को देखते हुए चीन कमजोर स्थिति में है जबकि भारत मजबूत स्थिति में है। इसके साथ ही यह भारत की तटस्थ (दोनों पक्षों के साथ वाली) स्थिति है जो उसे यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के लिए रूस और पश्चिम के बीच एक संभावित मध्यस्थ बनाती है। आज वैश्विक व्यवस्था बहुत हद तक चीन केंद्रित होती जा रही है। अमेरिका को इससे निपटने को भारत की सख्त जरूरत है। भारत को भी चीन से निपटने को अमेरिका और रूस दोनों की आवश्यकता है। अत्यधिक ध्रुवीकृत दुनिया में एक तटस्थ पोर्टफोलियो बनाए रखने से भारत के लिए दोनों ही पक्षों के नुकसान और नकारात्मक पक्ष का अंत हो सकता है।
(डॉक्टर महेंद्र कुमार सिंह वरिष्ठ स्तंभकार हैं और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक हैं)