भारत विभाजन ने ली थी 20 लाख लोगों की जान, डेढ़ करोड़ बेघर

Partition Of India Hindus Lahore To Muslims Pakistan 450000 Square Km Division Redcliff Line Connection Bangladesh Also
लंच के दौरान हिंदुओं के लाहौर को मुस्लिमों के पाकिस्तान को दे दिया, रेडक्लिफ लाइन ही है बांग्लादेश की सीमा
पाकिस्तान के बनने के 3 दिन बाद यानी 17 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के बीच रेडक्लिफ लाइन खींच दी गई। 1971 के बाद यह सीमा रेखा पाकिस्तान के साथ-साथ बांग्लादेश को भी अलग करती है। लंदन से आए एक वकील ने 10 दिन में ही यह बंटवारा कर दिया था, जिसमें लाखों लोग मारे गए और लाखों ही बेघर हुए। जानते हैं, उस लकीर के खिंचने की खूनी कहानी।

सर रेडक्लिफ को दिया गया था बंटवारा करने के लिए 5 हफ्ते का वक्त
वह कभी भारत नहीं आए थे और आए भी तो प्लेन से दौरा करके चले गए
अब रेडक्लिफ लाइन पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों से गुजरती है
10 दिन में 4.5 लाख वर्ग किलोमीटर वाले भारत का किया बंटवारा

नई दिल्ली 17 अगस्त: ‘मुझे लगता है कि पंजाबी और बंगाली चेतना ही है जिसने अपने प्रांत के प्रति वफादारी दिखाई है। इसलिए मुझे लगा कि यह जरूरी है कि भारत के लोग विभाजन के इस सवाल का फैसला खुद करें।’ भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने एक रेडियो प्रसारण के दौरान हिंदुस्तानी आवाम से ये बातें कहीं।
जब यह तय हो गया कि भारत का बंटवारा होकर रहेगा तो माउंटबेटन ने जून, 1947 में लंदन में प्रैक्टिस करने वाले एक बैरिस्टर सर सिरिल रेडक्लिफ को बंगाल और पंजाब का बंटवारा करने के लिए बने दो सीमा आयोग का चेयरमैन बना दिया। रेडक्लिफ इससे पहले कभी पेरिस के उस पार भी नहीं गए थे। माउंटबेटन के प्रस्ताव पर पहले तो सर रेडक्लिफ ने बंटवारा करने से यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें इसका कोई अनुभव नहीं है। उन्होंने कहा-मैं कोई भूगोलवेत्ता भी नहीं हूं। मगर, माउंटबेटन के जोर देने पर वह मान गए। हर कमीशन में तब कांग्रेस और मुस्लिम लीग की ओर से 4-4 प्रतिनिधि शामिल किए गए थे, ताकि विवाद न बढ़े। 17 अगस्त को आखिरकार भारत-पाकिस्तान के बीच रेडक्लिफ लाइन खींच दी गई।

इतने बड़े देश का बॉर्डर तय करने के लिए बस 5 हफ्ते का समय
सर रेडक्लिफ 8 जुलाई को लार्ड माउंटबेटन के एक पत्र के बुलावे पर ब्रिटिश प्लेन से भारत आए। उन्हें करीब 4.5 लाख वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले हिंदुस्तान और 8.8 करोड़ हिंदुस्तानियों की किस्मत के बंटवारे के लिए बस 5 हफ्ते का ही समय दिया गया। वह प्लेन से ही दोनों आयोगों के सदस्यों से मुलाकात करने के लिए तत्कालीन कलकत्ता और लाहौर गए। उन्होंने कांग्रेस नेता जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की मांग करने वाली मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना से मुलाकात की।

अगर 3 साल और मिलते तो मैं बंटवारा बेहतर करता
कवि डब्ल्यूएच ऑडेन ने 1966 में अपनी कविता ‘पार्टीशन’ में भारत और पाकिस्तान के विभाजन में रेडक्लिफ की भूमिका का जिक्र किया है। तब बॉर्डर कमीशन के चेयरमैन रहते सर रेड क्लिफ ने कहा था कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। इतने कम समय में मैं इससे बेहतर काम नहीं कर सकता था। अगर मेरे पास 2 या 3 साल होते, तो मैं अपने काम को और बेहतर कर सकता था। वह इससे पहले कभी भारत नहीं आए थे और न ही वह भारत के बारे में जानते थे।

एक सुनसान हवेली में बंद होकर दिन-रात किया काम
कविता के अनुसार, रेडक्लिफ एक सुनसान हवेली में बंद होकर पुलिस की सुरक्षा के बीच लाखों लोगों के भाग्य का फैसला करने के लिए जुट गए। भारत का मौसम गर्म था, ऐसे में उन्हें इस दौरान पेचिश भी हो गई। जब वह यह काम करके लंदन लौटे तो वह बंटवारे को जल्द भुला देना चाहते थे। रेडक्लिफ को हमेशा ये लगता था कि उन्हें गोली मारी जा सकती है।

माउंटबेटन को अपनी शर्त को पूरा करने की पड़ी थी
सर रेडक्लिफ ने 5 हफ्ते में बंटवारे पर आपत्ति जताई, मगर सभी पार्टियों का यह जोर था कि बंटवार हर हाल में 15 अगस्त से पहले हो जाना चाहिए। दरअसल, माउंटबेटन ने वायसराय का पद ही इसी शर्त पर लिया था कि वह जल्द से जल्द भारत ओर पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा तय कर दी जाए। हालांकि, राजनीतिक उठापटक के चलते यह सीमाई लकीर 17 अगस्त को ही खींची जा सकी। रेडक्लिफ ने 9 अगस्त 1947 को अपना विभाजन का नक्शा पेश कर दिया, जिसमें पंजाब और बंगाल को लगभग आधे हिस्से में विभाजित कर दिया। नई सीमाओं की औपचारिक घोषणा पाकिस्तान की आजादी के तीन दिन बाद यानी 17 अगस्त 1947 को की गई।

हिंदुओं के वर्चस्व वाले लाहौर को मुस्लिमों को दे दिया
1976 में लंदन गए चर्चित पत्रकार कुलदीप नैयर ने रेडक्लिफ से मुलाकात की थी। अपनी किताब ‘स्कूप, इनसाइड स्टोरीज फ्रॉम पार्टिशन टू द प्रेजेंट’ और किताब ‘द पार्टीशन ऑफ इंडिया एंड माउंटबेटन’ के अनुसार, रेडक्लिफ ने तब नैयर से कहा था-मुझे सीमारेखा खींचने के लिए 10-11 दिन मिले थे। उस वक्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज से दौरा किया था। उस वक्त मेरे पास जिलों के नक्शे भी नहीं थे। मैं लाहौर को भारत को देने वाला था। मगर, मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज्यादा है। उस वक्त पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर नहीं था। ऐसे में मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया। अब इसे सही कहो या कुछ और लेकिन ये मेरी मजबूरी थी। पाकिस्तान के लोग मुझसे नाराज हैं, लेकिन उन्हें खुश होना चाहिए कि मैने उन्हें लाहौर दे दिया।

फिरोजपुर पाकिस्तान जाते-जाते रह गया था
रेडक्लिफ ने बंटवारे में पंजाब के फिरोजपुर जिले को हिंदुस्तान में देना तय किया था। हालांकि, माउंटबेटन के दबाव में उन्हें ये फैसला बदलना पड़ा था। माउंटबेटन ने उन्हें लंच पर बुलाया और कई जगहों को इधर से उधर कर दिया गया। इनमें लाहौर, फिरोजपुर और जार तहसील भी शामिल थी। दरअसल, नेहरू के दबाव में माउंटबेटन ने यह दबाव डाला था कि फिरोजपुर भारत को दिया जाए।

रेडक्लिफ के सीमा बंटवारे में मारे गए 20 लाख लोग
रेडक्लिफ की वजह से दोनों पक्षों से करीब 1.5 करोड़ लोगों को जबरन बेघर होना पड़ा। इसमें से कई ऐसे भी थे, जिन्हें पता चला कि नई सीमाओं ने उन्हें “गलत” देश में छोड़ दिया है। स्वतंत्रता के बाद हुई हिंसा में करीब 20 लाख लोगों को जान गंवानी पड़ी। सीमा के दोनों ओर हो रही तबाही को देखने के बाद रेडक्लिफ ने तब अपना 40,000 रुपए वेतन नहीं लिया। उन्हें 1948 में नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर का खिताब दिया गया था। 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान से अलग हुए बांग्लादेश की भी रेडक्लिफ लाइन सीमा बनाती है।

लार्ड कर्जन के बंगाल विभाजन से शुरू हुई थी यह कहानी
भारत के बंटवारे की असली कहानी बंगाल विभाजन के उस प्रस्ताव से शुरू हुई थी, जब लार्ड कर्जन भारत का गवर्नर जनरल बनकर आया। उसने देश में स्वदेशी आंदोलन को खत्म करने के लिए बंगाल विभाजन का प्रस्ताव दिया। हालांकि, यह कभी सफल नहीं हो सका, मगर इसने बंटवारे की नींव तो रख ही दी। डॉ. बीआर आंबेडकर ने अपनी किताब ‘थॉट्स ऑफ पाकिस्तान’ में जिन्ना की जमकर आलोचना की गई है। हालांकि, उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि पंजाब में मुस्लिम बहुल वाले 16 पश्चिमी जिले बताए, जबकि 13 पूर्वी जिलों में गैर मुस्लिम आबादी की बात कही। इसी तरह उन्होंने बंगाल में 15 ऐसे जिले बताए जो मुस्लिम बहुल थे।

&

How India And Pakistan Divide Their Wealth
कुर्सी-टेबल, बल्ब से लेकर घोड़ागाड़ी तक… भारत और पाकिस्तान ने कैसे बांटी थी संपत्ति?
स्वतंत्रता के बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्तियों, कर्मचारियों और संसाधनों का बंटवारा जटिल रहा। विभाजन परिषद ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के साथ इस कार्य को सुलझाया। इसके चलते विभिन्न विवाद उत्पन्न हुए, विशेषकर मोनेटरी और सैन्य संपत्तियों में। आज भी, दोनों देशों के बीच आर्थिक दावों को लेकर मुद्दे लगातार बने हुए हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्ति का बंटवारा अलग-अलग तरीके से किया गया
विभाजन परिषद ने पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक को 75 करोड़ रुपये आवंटित किए
भारत और पाकिस्तान दोनों ने मौजूदा सिक्कों और मुद्रा को जारी रखने का फैसला किया
स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त में महज कुछ दिनों का वक्त बचा है। देशभर में आजादी का उत्सव मनाने की तैयारियां चल रही हैं। 15 अगस्त ही वो तारीख थी जब भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी। आजादी के साथ ही मिला बंटवारा। अपना देश दो भागों में बंट गया। 76 साल पहले जब भारत को दो हिस्सों में बांटा गया था, तब भारत और पाकिस्तान के बीच जमीन का बंटवारा बस नक्शे पर एक लकीर खींचने जैसा था। इतिहास बताता है कि अंग्रेजी हुकूमत ने देश के बंटवारे के लिए लॉर्ड रेडक्लिफ को चुना था। वे लंदन से आये और नक्शे पर एक लकीर खींच दी।

दोनों देशों का भौगोलिक बंटवारा तो हो गया, लेकिन संपत्ति का मसला बाकी था। सिर्फ पैसे ही नहीं, कर्मचारियों और कलाकृतियों का भी बंटवारा करना था। यह ऐसा बंटवारा था जिस पर बातचीत करना बहुत मुश्किल था।

जब सिक्का उछाल कर बांटी गई घोड़ागाड़ी
इन संपत्तियों का बंटवारा अलग-अलग तरीके से किया गया। भारत के वायसराय की घोड़ागाड़ी का मालिकाना हक सिक्का उछालकर तय किया गया, जिसमें भारत जीत गया। इस घोड़ागाड़ी का इस्तेमाल भारत के राष्ट्रपति के लिए राष्ट्रपति भवन में किया जाता था। सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक समारोहों में इसका इस्तेमाल बंद होने के तीन दशक बाद, 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस समारोह में इसका इस्तेमाल किया था। हालांकि, कुछ अन्य संपत्तियों, जैसे कि मानव संसाधन, को बहुत ही सावधानी से विभाजित किया गया था।

बंटवारे के लिए बनाई गई कमिटी
बंटवारे की जिम्मेदारी 12 जून को गठित विभाजन परिषद को सौंपी गई, जिसकी अध्यक्षता लॉर्ड माउंटबेटन ने की। इसमें सरदार वल्लभभाई पटेल और राजेंद्र प्रसाद, कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जबकि अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व लियाकत अली खान और अब्दुर रब निश्तर ने किया। निश्तर की जगह बाद में मुहम्मद अली जिन्ना ने ले ली और पैनल का नाम बदलकर विभाजन परिषद कर दिया गया। इसके अंतर्गत 10 विशेषज्ञ आयोग थे जो विभाजन के विवरण की देखरेख करते थे। जबकि विभाजन किसी भी मायने में सौहार्दपूर्ण नहीं था। लेकिन विभाजन के कुछ हिस्से ठीक से बंट गए जिसमें रक्षा, मुद्रा और सार्वजनिक वित्त समझौते शामिल थे।

कैसे हुआ पैसों का बंटवारा?
विभाजन समझौते के तहत, पाकिस्तान को ब्रिटिश भारत की संपत्ति और देनदारियों का 17.5% हिस्सा मिला। लेकिन यह बंटवारे का अंत नहीं था, पाकिस्तान के नए केंद्रीय बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक को नकद शेष राशि के निपटान पर फैसला लेना था। उस समय, भारत सरकार के पास लगभग 400 करोड़ रुपये थे। विभाजन परिषद ने पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक को 75 करोड़ रुपये आवंटित किए, जिसमें 20 करोड़ रुपये का कार्यशील शेष शामिल था जो 15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तानियों को पहले ही उपलब्ध करा दिया गया था।

आजादी के बाद भी दोनों देशों का एक ही बैंक
आजादी के बाद, भारत और पाकिस्तान दोनों को एक ही केंद्रीय बैंक द्वारा एक वर्ष से अधिक समय तक सेवा दी जाती रही। RBI ने अगस्त 1947 से सितंबर 1948 तक यह भार उठाया। मूल रूप से, दोनों देशों को अक्टूबर 1948 तक केंद्रीय बैंक साझा करना था। लेकिन RBI और पाकिस्तान सरकार के बीच 55 करोड़ रुपये के भुगतान को लेकर संबंध तेजी से बिगड़ने के बाद विभाजन को एक महीने के लिए आगे बढ़ा दिया गया। यह राशि 1947 में तय हुई थी। इस अवधि के दौरान भारत और पाकिस्तान ने रुपये भी सांझा किए। विशेषज्ञ समिति ने 31 मार्च, 1948 तक भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए मौजूदा सिक्कों और मुद्रा को जारी रखने का फैसला किया।

जब भारत ने रोक दिया 75 करोड़ का फंड
पहली किश्त 20 करोड़ रुपये की 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को जारी कर दी गई थी। शेष 75 करोड़ रुपये की राशि एक विवादास्पद मुद्दे में फंस गई। ये मुद्दा था विभाजन के ठीक बाद भाड़े के सैनिकों की मदद से पाकिस्तानी सेना का कश्मीर पर आक्रमण। भारत ने यह राशि रोक ली। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्पष्ट किया कि भारत कश्मीर मुद्दे के सुलझने तक किसी भी भुगतान के लिए सहमत नहीं होगा। पाकिस्तान ने तब कोई आपत्ति नहीं जताई। लेकिन 22 दिसंबर, 1947 को कश्मीर मुद्दे पर अंतिम बातचीत के समय, उसने वित्तीय मुद्दों और कश्मीर प्रश्न को एक साथ रखे जाने पर आपत्ति जताई और 55 करोड़ रुपये तुरंत ट्रांसफर करने की मांग की। भारत ने कहा कि वह समझौते पर कायम है, लेकिन कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैये को देखते हुए बातचीत के दौरान उनके रुख के अनुसार भुगतान स्थगित करना होगा।

गांधी ने अनशन कर पाकिस्तान को दिलाए पैसे
हालांकि, RBI के इतिहास के अनुसार महात्मा गांधी को भारत का रुख पसंद नहीं आया। उनका विचार था कि शेष राशि पाकिस्तान को जारी की जानी चाहिए। इस सिलसिले में उन्होंने अनशन भी किया। परिस्थितियों को देखते हुए, भारत सरकार ने मामले की समीक्षा की और 15 जनवरी, 1948 को घोषित किया कि वे ‘सरकार के योगदान के रूप में, उनकी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार, अहिंसक और महान प्रयास के लिए नकद शेष राशि के संबंध में समझौते को तुरंत लागू करने के अपने निर्णय की घोषणा करते हैं। इस महान देश की गौरवशाली परंपराओं के अनुसार शांति और सद्भावना के लिए गांधीजी ने जो प्रयास किया था।

आज भी फंसा है पेंच
अब, 76 साल बाद, भारत और पाकिस्तान दोनों का दावा है कि दूसरा पक्ष का उन पर बकाया है। भारत हर साल आर्थिक सर्वेक्षण में केंद्र सरकार की बकाया देनदारियां में विभाजन पूर्व कर्ज के हिस्से के कारण पाकिस्तान से देय राशि शीर्षक से एक लाइन जोड़ता है। कितना कर्ज? 300 करोड़ रुपये जो विभाजन के बाद से आगे बढ़ाए गए हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने 2014 में दावा किया था कि भारत पर उसका 560 करोड़ रुपये बकाया है क्योंकि RBI ने पाकिस्तानी सरकार को कुछ संपत्तियां सौंपने से इनकार कर दिया था। आर्थिक सर्वेक्षण की तरह ही, पाकिस्तान के स्टेट बैंक ने भी अपनी बैलेंस शीट में एक पंक्ति जोड़ी है, जिसमें दावा किया गया है कि भारत के रिजर्व बैंक का उस पर पैसा बकाया है। मुद्रास्फीति, विनिमय दरों आदि के कारण बकाया राशि बढ़ गई है।

अजीबोगरीब तरीके से बंटी संपत्ति
इसके अलावा सभी चल संपत्तियों को 80-20 के अनुपात में विभाजित किया गया था और इनमें कार्यालय फर्नीचर, स्टेशनरी आइटम और यहां तक कि लाइट बल्ब भी शामिल थे। यही वजह है कि कुछ लोग बंटवारे की इस प्रक्रिया को हास्यापद मानते हैं।

लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लापियरे ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में एक दिलचस्प वाकया बताया है। वे लिखते हैं, ‘उन विभाजनों से कभी-कभी जो भावना और संकीर्णता पैदा होती थी, वह चौंका देने वाली थी। लाहौर में, पुलिस अधीक्षक पैट्रिक रिच ने अपने उपकरण एक मुस्लिम और एक हिंदू डिप्टी के बीच बांट दिए। उसने सब कुछ बांट दिया: लेगिंग, पगड़ी, राइफल, लाठी। आखिरी लॉट में पुलिस बैंड के उपकरण शामिल थे। रिच ने उन्हें अलग कर दिया, पाकिस्तान के लिए एक बांसुरी, भारत के लिए एक ढोल, पाकिस्तान के लिए एक तुरही, भारत के लिए झांझ की एक जोड़ी, जब तक कि एक वाद्य यंत्र, एक ट्रॉम्बोन नहीं रह गया। उसकी अविश्वासी आंखों के सामने उसके दो डिप्टी, जो वर्षों से कॉमरेड थे, उस आखिरी ट्रॉम्बोन को लेकर आपस में भिड़ गए कि वह आखिरी ट्रॉम्बोन किस प्रभुत्व को मिलेगा।’

कर्मचारियों का ट्रांसफर
विभाजन को देखने के लिए बुलाई गई विशेषज्ञ समितियों के पास अपना काम करने के लिए मुश्किल से 70 दिन थे। सभी विभागीय संपत्तियां और वित्तीय देनदारियां मेज पर थीं, जिन्हें विभाजित किया जाना था। इन विभागीय संपत्तियों का एक बड़ा हिस्सा सरकारी अधिकारी थे जो देश के उत्तरी भाग में फैले हुए थे। भौगोलिक स्थिति से लेकर धर्म तक के मानदंडों के आधार पर कर्मचारियों को छांटने के कई प्रयासों के बाद, परिषद ने अंत में फैसला किया कि कर्मचारियों को केंद्र स्तर और प्रांतीय दोनों स्तरों पर भारत सरकार या पाकिस्तान सरकार में सेवा करने का विकल्प दिया जाएगा।

पाकिस्तान में कर्मचारियों की भारी कमी
असली समस्या तब खड़ी हुई जब सरकारों ने अपनी रिक्तियों का मिलान किया और पाया कि उनमें से एक के पास कर्मचारियों की अधिकता है जबकि दूसरे के पास रिक्तियों की अधिकता है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल सरकार ने पूर्वी बंगाल से कर्मचारियों की आमद देखी क्योंकि जो लोग अविभाजित बंगाल के विभिन्न हिस्सों में तैनात थे, वे सभी पश्चिम बंगाल सरकार में शामिल होने का विकल्प चुने थे। हालांकि, पूर्वी पाकिस्तान सरकार के सामने इसके विपरीत समस्या थी। बहुत से लोगों ने भारत में काम करने का विकल्प चुना। नए बने राष्ट्र में कर्मचारियों की भारी कमी थी जिससे रिक्तियों की अधिकता हो गई थी।

यह अराजकता उन कर्मचारियों की ओर से फैसला न लेने की स्थिति से और बढ़ गई जिनके परिवार दो विकल्पों के बीच फंसे हुए थे। कई कर्मचारी सरकारों के बीच पलटते रहे। दूसरी ओर, अचानक बदलाव ने सरकारी कामों में अड़ंगा डाल दिया। सीमा पार के कई विभाग स्थानान्तरण पर समन्वय स्थापित करने में विफल रहे, जिससे कई कर्मचारी अधर में लटके रहे। कुछ लोग काम पर आने पर पाते थे कि उनके पद पहले ही भरे जा चुके हैं, जबकि अन्य ने पाया कि समन्वय करने वाला कोई नहीं था।

कैसे हुआ सेना का बंटवारा?
सरकारी कर्मचारी नई सरकारों में से किसी एक को चुन सकते थे, रक्षा कर्मियों को बहुत कम छूट दी गई थी। विभाजन परिषद ने धार्मिक भेद करने का फैसला किया। हीरूभाई एम. पटेल ने अपनी पुस्तक ‘राइट्स ऑफ पैसेज’ में लिखा है, ‘सशस्त्र बलों में सेवारत सभी कर्मचारी उस प्रभुत्व का चुनाव करने के हकदार होंगे जिसमें वे सेवा करना चाहते हैं, इस शर्त के अधीन कि, पाकिस्तान का कोई मुस्लिम जो सशस्त्र बलों में सेवारत है, उसके पास भारतीय प्रभुत्व में सशस्त्र बलों में शामिल होने का विकल्प नहीं होगा और शेष भारत के किसी गैर-मुस्लिम के पास, जो अब सशस्त्र बलों में सेवारत है, पाकिस्तान के सशस्त्र बलों में शामिल होने का विकल्प नहीं होगा।’

भारतीय सेना को एक फील्ड मार्शल क्लाउड ऑचिनलेक ने दोनों देशों के बीच विभाजित किया था, जिसमें 2,60,000 कर्मी भारत चले गए, जबकि 1,40,000 पाकिस्तान चले गए। तब से दोनों देशों की सैन्य ताकत में तेजी से वृद्धि हुई है। पाकिस्तान ने 2022 में 51 अरब डॉलर के रक्षा आवंटन किया, जबकि भारत ने उसी वर्ष 81 अरब डॉलर के बजट बढ़ाया। दोनों देश अब परमाणु शक्ति संपन्न हैं। हालांकि विभाजन के दौरान संपत्ति का बंटवारा किसी भी तरह से सौहार्दपूर्ण नहीं था। लेकिन दोनों देश दूसरे पक्ष के बकाया के संबंध में गतिरोध पर पहुंच चुके हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *