बच्ची को आत्महत्या को उकसाने वाले किशोर को सुको से भी जमानत नहीं
Sc Refuses To Interfere In High Court Order Denying Bail To Minor
वीडियो वायरल होने पर बच्ची ने की थी आत्महत्या, सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त की किशोर की जमानत याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने एक किशोर को जमानत से मना कर दिया है और उत्तराखंड हाई कोर्ट का निर्णय यथावत रखा है। किशोर पर 14 वर्ष की लड़की का वीडियो बनाकर उसे वायरल करने का आरोप है।
नई दिल्ली 22 मई 2024.: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप से मना कर दिया है, जिसमें उसने पिछले साल आत्महत्या करने वाली 14 वर्षीय लड़की का वीडियो बनाकर प्रसारित करने वाले एक किशोर को जमानत से मना कर दिया था। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मिथल की अवकाशकालीन पीठ ने एक अप्रैल के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली किशोर की याचिका निरस्त कर दी। उसने अपनी मां के माध्यम से याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त की याचिका
किशोर आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों में हरिद्वार जिले के मामले में आरोपित है। हाई कोर्ट ने 20 मई के अपने आदेश में कहा, ‘याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील के सारे तर्क सुनने और रिकॉर्ड पर सामग्री का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद हम इस स्तर पर हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप के इच्छुक नहीं हैं। विशेष अनुमति याचिकाएं निरस्त श की जाती हैं। किशोर जूविनियल बोर्ड के उस आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट गया था, जिसमें उसकी जमानत प्रार्थना निरस्त कर दी गई थी।
लड़की का वीडियो बनाने और शेयर करने का आरोप
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि लड़की पिछले साल 22 अक्टूबर से अपने घर से लापता थी और बाद में उसका शव मिला था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि किशोर पर अपनी सहपाठी लड़की का एक वीडियो बना उसे छात्रों में शेयर करने का आरोप था। लड़की उसे सहन नहीं कर सकी और उसने आत्महत्या कर ली।
10 जनवरी को जुवेनाइल कोर्ट हरिद्वार (JJB) ने कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे की जमानत याचिका निरस्त कर दी थी। उत्तराखंड हाईकोर्ट के जेजेबी के फैसले को यथावत रखे जाने के बाद लड़के ने अपनी मां के नाम से जमानत को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
14 साल की स्कूली लड़की के वीडियो वायरल होते ही दबाव में आकर सुसाइड करने का मामला सामने आने पर आरोपित पर आईपीसी की धारा 305 और 509 और पोक्सो अधिनियम की धारा 13 और 14 में मुकदमा लिखा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यथावत रखा हाईकोर्ट का फैसला
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय का निर्णय यथावत रखा। किशोर पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 305 (आत्महत्या को उकसाना) और 509 के साथ पोक्सो अधिनियम की धारा 13 और 14 में मुकदमा अंकित है।
किशोर के वकील लोक पाल सिंह ने तर्क दिया कि किशोर के माता-पिता उसकी देखभाल को मौजूद हैं और उसे जुवेनाइल होम भेजने से अच्छा है उनकी देखभाल में रखा जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले के रिकॉर्ड की सावधानीपूर्वक जांच के बाद, उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करने का फैसला किया।
पिछले साल लड़की 22 अक्तूबर को गायब हो गई थी और कुछ दिन बाद मृत पाई गई थी। मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने 1 अप्रैल को अपने फैसले में लड़के को अनुशासनहीन बताते हुए जमानत से मना कर दिया था। कोर्ट ने तब स्कूल से मिली रिपोर्ट,जांच रिपोर्ट आदि को आधार बनाकर उसे कस्टडी में ही रखने के आदेश दिए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी नई लकीर
उत्तराखंड मामले में अदालत के जमानत न देने के कठोर फैसले के बाद पुणे के उस केस (Pune Road Accident) की चर्चा तेज है, जिसमें पोर्शे कार से दो लोगों की जान लेने वाले किशोर को 300 शब्दों का निबंध लिखवा अन्य शर्तों के साथ जुबेनाइल कोर्ट से जमानत मिल गई. हालांकि पुलिस आरोपित को कठोर सजा मांग रही है.
उत्तराखंड में किशोरी को आत्महत्या को उकसाने के आरोपित की जमानत याचिका निरस्त करने के निर्णय से एक उदाहरण बना है कि कानून तोड़ने वाले बच्चों को अपराध गंभीर होने के बाद भी जमानत मिले ही मिले, जरूरी नहीं. उत्तराखंड मामले से पुणे के उस केस (Pune Road Accident) की चर्चा तेज हो गई है, जिसमें पोर्शे कार से दो लोगों की जान लेने वाले किशोर को मात्र 300 शब्दों का निबंध लिखवा कुछ शर्तों के साथ जुबेनाइल कोर्ट से जमानत मिल गई. पुलिस आरोपित को कठोर सजा मांग रही है. उत्तराखंड का मामला पुणे केस में भी एक उदाहरण बन सकता है.
अश्लील वीडियो बनाने वाले बच्चे को नहीं मिली बेल
उत्तराखंड के स्कूल में अश्लील वीडियो मामले में इस साल 10 जनवरी को, जुबेनाइल कोर्ट, हरिद्वार ने ‘कानून के उल्लंघनकर्ता बच्चे’ की जमानत याचिका निरस्त कर दी थी. जिसकी नैनीताल हाईकोर्ट ने पुष्टि कर दी।
HC के जमानत न देने के फैसले को SC ने रखा यथावत
सीनियर वकील लोक पाल सिंह ने अदालत में तर्क दिया कि बच्चे के माता-पिता उनकी देखभाल को तैयार हैं, उसे बाल सुधार गृह में न रख हिरासत उसकी मां को दी जानी चाहिए. लेकिन न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की शीर्ष अदालत की बेंच ने सोमवार को हाई कोर्ट के फैसले की जांच कर लड़के को जमानत देने से मना करने का निर्णय सही पाया.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आरोपित लड़के की अपील निरस्त करते हुए कहा, कि”रिकॉर्ड पर सामग्री ध्यान से देखने के बाद, हम हाई कोर्ट की तरफ से पारित आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं.”
बता दें कि हाई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार करते हुए लड़के को ‘गैर अनुशासित बच्चा’ कहा था.
क्या है अश्लील वीडियो मामला?
बच्ची के पिता ने पुलिस में शिकायत की थी कि लड़के ने बेटी का अश्लील वीडियो शूट कर क्लिप छात्रों में सर्कुलेट की.बदनामी के डर से उनकी बेटी ने जान दे दी. अश्लील वीडियो सर्कुलेट होने पर बच्ची पिछले साल 22 अक्टूबर को घर से लापता हो गई और बाद में उसका शव मिला था.
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?
उत्तराखंड हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी ने 1 अप्रैल को आरोपित को जमानत देने से मना करते हुए तर्कपूर्ण आदेश दिया.उन्होंने कहा, कि “कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को,हर अपराध जमानती है और वह सीआईएल जमानत का हकदार है,भले ही अपराध जमानती या गैर-जमानती रूप में वर्गीकृत हो.”
अदालत ने आगे कहा, कि “अगर यह मानने को उचित आधार है कि रिहाई से ‘कानून के उल्लंघनकर्ता बच्चे’को किसी ज्ञात अपराधी की संगति में लाने,उसे नैतिक,शारीरिक या मनो वैज्ञानिक खतरे की आशंका है,या फिर उसे छोड़ने से न्याय के उद्देश्य विफल हो जाएंगे,तो उसकी जमानत से मना किया जा सकता है.”
हाई कोर्ट ने किस आधार पर निरस्त की जमानत?
इस मामले में आरोपित लड़के की सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट के आधार पर हाई कोर्ट ने कहा कि वह बुरी संगत का एक अनुशासनहीन बच्चा है. उसे कठोर अनुशासन की जरूरत है. रिहा होने पर उससे और भी अप्रिय घटनाएं हो सकती हैं.
न्यायाधीश मैथानी ने आरोपित लड़के की जमानत निरस्त करते हुए कहा, कि ” सामाजिक जांच रिपोर्ट, मेडिकल जांच रिपोर्ट, स्कूल की रिपोर्ट पर विचारोपरांत बच्चे को जमानत नहीं दिया जाना ही उसके हित में है. अगर उसे जमानत पर छोड़ा जाता है, तो यह निश्चित रूप से न्याय का उद्देश्य विफल कर देगा.”