सुको की संसदीय कानून रोकने की शक्ति निर्विवाद नहीं
क्स्ट्त्र्ल्ब्र्न्ब्र्न्दििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििि
Krishi Kanoon : जानकारों से समझिए, क्या कृषि कानूनों पर रोक लगा पाएगा सुप्रीम कोर्ट?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं और संवैधानिक कानूनों के जानकारों की राय है कि सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा पास किसी कानून पर तभी रोक लगाने का अधिकार तभी मिलता है जब उसे लगे कि संबंधित कानून पहली नजर में संविधान की मूल भावना या उसके किसी प्रावधन के खिलाफ है।
हाइलाइट्स:
केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के अमल पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा सकता है या नहीं, हो रही बहस
कानून के जानकारों की राय है कि ऐसा तभी हो सकता है जब कानून पहली नजर में गैर-संवैधानिक दिखे
इस लिहाज से कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से रोक लगा पाने की संभावना कम दिखती है
नई दिल्ली 12 जनवरी। विधि विशेषज्ञों (Law Experts) ने सोमवार को कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों पर उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) रोक नहीं लगा सकता, जब तक कि वह संतुष्ट न हो जाए कि पहली नजर में यह असंवैधानिक और गैरकानूनी है। विशेषज्ञों ने विवादास्पद कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर ऐतराज जताने वाले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की राय से सहमति जताई। उधर, किसान संगठनों ने भी साफ कर दिया है कि अगर सुप्रीम कोर्ट कमेटी गठित करता है तो वो उससे बातचीत नहीं करेंगे।
अटॉर्नी जनरल की सुप्रीम कोर्ट में दलील
बहरहाल, अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब तक न्यायालय यह नहीं पाए कि अमुक कानून से मौलिक अधिकारों या संवैधानिक प्रावधानों का हनन होता है और उन्हें संसद की विधायी योग्यता के बगैर बनाया गया, तब तक उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘कानून बनाने के अधिकार के बगैर ही बनाए गए कानून पर रोक लगाई जा सकती है लेकिन किसी भी याचिकाकर्ता ने ऐसे मुद्दे नहीं उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की लगाई क्लास
शीर्ष अदालत ने किसान आंदोलन से निबटने के रवैये को लेकर सोमवार को सरकार को आड़े हाथ लिया और कहा कि वह इन कानूनों पर अमल स्थगित कर दे और अन्यथा न्यायालय द्वारा नियुक्त की जाने वाली उच्चस्तरीय समिति की सिफारिश पर वह स्वयं ऐसा कर देगी। वरिष्ठ अधिवक्ता और संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट रोक नहीं लगा सकता, जब तक कि वह संतुष्ट ना हो जाए कि प्रारंभिक नजर में यह असंवैधानिक और गैरकानूनी है।
उच्चतम न्यायालय कानून पर रोक लगा सकता है। लेकिन मैं न्यायाधीशों से सहमत नहीं हूं कि वे रोक लगा देंगे और कमेटी का गठन करेंगे। अदालत अगर ऐसा करती है तो यह शीर्ष अदालत की जगह एक प्रशासक की तरह व्यवहार करने वाला रुख होगा।
राकेश द्विवेदी, वरिष्ठ अधिवक्ता और संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ
अदालत के दायरे के बाहर का विषय: कानूनी जानकार
द्विवेदी ने कहा, ‘‘यह बहुत लंबा आदेश है, सरकार को पर्याप्त रूप से बिना सुने ही ऐसा कहा गया। बड़ी संख्या में किसानों का प्रदर्शन करना, आधार नहीं हो सकता कि अदालत कानून पर रोक लगा दे। यह कानून निर्माताओं के विवेक पर निर्भर करता है और यह अदालत के दायरे के बाहर का विषय है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अदालत यह नहीं कह सकती है लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, इसलिए हम कानून पर रोक लगा देंगे। मैं अटॉर्नी जनरल से सहमत हूं कि जब तक यह असंवैधानिक नहीं होता, कृषि कानूनों पर रोक नहीं लगायी जा सकती।’’
सुप्रीम कोर्ट के पास अधिकार, लेकिन…
वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन काटरकी ने कहा कि शीर्ष अदालत के पास संसद के कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की शक्ति है, बशर्ते कि वह संतुष्ट हो जाए कि संसद के पास विधायी योग्यता नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के पास संसद के कानून के अमल पर रोक लगाने की शक्ति है। अगर न्यायालय पहली नजर में संतुष्ट है कि कानून बनाने में संसद ने विधायी योग्यता नहीं थी और अधिनियम संविधान के किसी प्रावधान से असंगत हो तो वह रोक के पक्ष में आदेश दे सकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संतुलन बनाने पर विचार करते हुए न्यायालय कंपकंपाती ठंड में किसानों के लंबे और शांतिपूर्ण प्रदर्शन का संदर्भ ले सकता है।’’
मराठा आरक्षण के कानून पर रोक लगी थी तो कृषि कानूनों पर क्यों नहीं
वरिष्ठ अधिवक्ता अजित कुमार सिन्हा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार इन कानूनों का अमल स्थगित नहीं करती है तो वह उन पर रोक लगा सकती है। सिन्हा ने कहा, ‘‘मामला सुलझाने तक इसके अमल पर रोक लगायी जा सकती है। अदालत ऐसा कर सकती है क्योंकि वार्ता जारी है और इसमें जनहित का भी मुद्दा है। ’’ वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी कुमार दुबे ने कहा कि शीर्ष अदालत कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा सकता है, जैसा कि उसने मराठा आरक्षण के मामले में किया।