आतंकवाद से कोई समझौता नहीं,इसलिए इसराइल पर यूएनओ में तटस्थ रहा भारत
Israel-Hamas Conflict Why India Did Right Staying Away From Un Resolution
इजरायल-हमास संघर्ष: UN में प्रस्ताव से दूरी बनाकर भारत ने क्यों किया सही?
इजरायल-हमास में जारी जंग के बीच हाल में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव आया। इस पर वोटिंग करने से भारत ने दूरी बनाई। इसे लेकर विपक्ष उस पर खूब बरसा। हालांकि, भारत के रुख में कुछ भी गलत नजर नहीं आता है। उसने अपने हितों को देखते हुए बिल्कुल सही किया है। इसके जरिये उसने दुनिया को कड़ा मैसेज भी दिया है।
मुख्य बिंदु
इजरायल-हमास में जारी जंग के बीच हाल में यूएन में आया प्रस्ताव
प्रस्ताव पर वोटिंग करने से भारत ने बनाई दूरी, विपक्ष हुआ हमलावर
दूरी बनाकर भारत ने आतंकवाद समेत कई मोर्चो पर दिया है मैसेज
नई दिल्ली 29 अक्टूबर: संयुक्त राष्ट्र में हाल में लाए गए इजरायल-हमास संघर्ष संबंधी एक प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत ने दूरी बनाई। यह इजरायल-हमास संघर्ष को विराम और गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने से जुड़ा था। इस प्रस्ताव के पक्ष में 121 देशों ने वोटिंग की। भारत सहित 44 सदस्यों ने वोटिंग से दूरी बनाई। 14 मुल्कों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। भारत के रुख पर विपक्ष ने तीखी नाराजगी जताई। वहीं,सरकार ने अपने स्टैंड का मजबूती से बचाव किया है। मतदान से दूर रहने का सबसे बड़ा कारण उसने आतंकवाद बताया है। उसने दो-टूक कहा है कि आतंकवाद की कोई सीमा,राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं है। दुनिया को आतंकी गतिविधियां उचित ठहराने को महत्व नहीं देना चाहिए। दूसरी ओर उसने गाजा में उभरते मानवीय संकट को लेकर चिंता भी जताई है। भारत का यह रुख बिल्कुल सही है। यह कई चीजों को लेकर साफ मैसेज देता है। इसमें किसी तरह का घोलमेल नहीं हैं। आइए, यहां समझते हैं क्यों।
आतंकवाद पर जरा भी कमजोर नहीं दिखना चाहता भारत
इजरायल-हमास संघर्ष संबंधी प्रस्ताव से दूरी बनाकर भारत ने साफ कर दिया है कि वह आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी रखता है। वह इसे लेकर कोई समझौता नहीं करने वाला है। उसने दिखाया है कि वह मानवीय सहायता के पक्ष में है। लेकिन,आतंकवाद पर किसी तरह कोई कंप्रोमाइज नहीं करेगा। 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुले शब्दों में इसकी आलोचना की थी। साथ ही मुश्किल समय में इजरायल के साथ खड़े होने की बात कही थी। उन्होंने इसे आतंकी हमला करार दिया था। भारत आतंकवाद से दशकों से पीड़ित रहा है। उसने जितने आतंकी हमलों को देखा है,शायद ही दुनिया में किसी और मुल्क ने देखे हैं। प्रस्ताव से दूरी बनाकर उसने अपने स्टैंड पर मुहर लगा दी है। उसने बता दिया है कि जब बात आतंकवाद की आएगी तो वह अपने स्टैंड से रत्तीभर टस से मस नहीं होने वाला है। इसके जरिये उसने कनाडा जैसे देशों को भी मैसेज दिया है। उसने दिखा दिया है कि वह विदेश से भी अपने खिलाफ किसी भी तरह की आतंकी साजिश को बर्दाश्त नहीं करेगा।
शांति और सहयोग की वकालत में कभी नहीं पीछे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा बुद्ध और गांधी की बात करते रहे हैं। वह कई मौकों पर कह चुके हैं कि यह युग युद्ध का नहीं हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान भी दोनों देशों के प्रमुखों से बातचीत कर उन्होंने यही बात कही थी। इजरायल-हमास संघर्ष में भी भारत ने यही बात दोहराई है। भारत ने कहा है कि गाजा में उभरते मानवीय संकट को लेकर वह चिंतित है। वह गाजा में मानवीय सहायता पहुंचाने को लेकर प्रतिबद्ध रहेगा। हाल में प्रधानमंत्री मोदी ने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से भी बातचीत की थी। भारत शुरू से ही फिलिस्तीन की मांगों का समर्थक है। वह 1947 में फिलिस्तीन के बंटवारे के खिलाफ था। 1988 में वह भारत ही था जिसने फिलिस्तीन को एक देश की मान्यता दी थी। यानी भारत के पुराने स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आया है। यह बात वह कह भी चुका है।
दूसरों के विवादों में पार्टी नहीं बनाना चाहता
पिछले कुछ सालों में भारत की विदेश नीति में बड़ा बदलाव दिखा है। वह दूसरों के विवादों में फंसने से बचता है। कुछ यही रूस-यूक्रेन युद्ध में भी दिखा था। अमेरिका और यूरोपीय देशों के चौतरफा दबाव के बावजूद वह किसी भी खेमे में शामिल नहीं हुआ। उसने सिर्फ अपने हितों को महत्व दिया । उसने अपने पुराने दोस्त रूस को बिल्कुल भी दगा नहीं दिया। न उसके खिलाफ खड़े देशों को नाराज किया। कुछ यही भारत ने इजरायल-हमास युद्ध में भी किया है। इजरायल और भारत के संबंध बहुत अच्छे हैं। वह किसी भी तरह इन संबंधों को ताक पर नहीं रखना चाहता। उसने सही को सही और गलत को गलत कहा है।
अपने हितों के साथ नहीं करने वाला समझौता
भारत ने दिखाया है कि वह अपने हितों से दूसरों के लिए समझौता नहीं करेंगा। उसने हमेशा इजरायल और फिलिस्तीन में संतुलन रखा है। दिलचस्प यह है कि मुसलमानों के नेतृत्व वाले अरब देशों का नजरिया भी कुछ सालों में इजरायल के प्रति बदला है। वे इजरायल का समर्थन करते दिख रहे थे। यही कारण है कि भारत ने भी अपने हित देखते हुए इजरायल और फिलिस्तीन को अलग नजरिये से देखना शुरू किया। भारत ही नहीं,ताजा प्रस्ताव पर हुई वोटिंग के दौरान दूरी बनाने वालों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा,जर्मनी,जापान,यूक्रेन और ब्रिटेन भी थे। यह बात समझ से बिल्कुल परे है कि क्यों भारत को जबरन इसमें घसीटा जा रहा है। दुनिया की स्थिति बिल्कुल साफ है। वह अपने हित देख रही है। फिर भला भारत ही क्यों पार्टी बन जाए।
Reasons Why India Abstained In United Nations Vote On Israel Hamas Conflict
आतंकवाद से कोई समझौता नहीं…समझें इजरायल-हमास युद्ध पर UN में वोटिंग से क्यों दूर रहा भारत
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजरायल-हमास युद्ध को रोककर संघर्षविराम लागू करने से जुड़े प्रस्ताव पर वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि, प्रस्ताव भारी बहुमत से पास हो गया। इसे लेकर विपक्ष सरकार को घेर रहा है लेकिन भारत ने ऐसा इसलिए किया कि आतंकवाद से उसे किसी तरह का समझौता गंवारा नहीं है।
मुख्य बिंदु
इजरायल-हमास जंग को लेकर यूएन में वोटिंग से दूर रहा भारत
विपक्ष इसे लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर है
प्रस्ताव में 7 अक्टूबर के आतंकी हमले का कहीं कोई जिक्र नहीं था
भारत ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि वह आतंकवाद पर समझौता नहीं करेगा
भारत गाजा में उभरते मानवीय संकट को लेकर चिंतित है लेकिन साथ ही पूरी दृढ़ता से मानता है कि आतंकवाद को लेकर कोई भी समझौता नहीं हो सकता है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने इजरायल-हमास संघर्ष से जुड़े संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर मतदान से भारत के दूर रहने के फैसले के बारे में शनिवार को विस्तार से बताया कि भारत आतंक को लेकर कोई भी समझौता नहीं कर सकता है।
भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘आम नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी, मानवीय दायित्वों को कायम रखने’ शीर्षक वाले जॉर्डन के प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा। इस प्रस्ताव में इजरायल-हमास युद्ध में तत्काल मानवीय संघर्ष-विराम और गाजा पट्टी में निर्बाध मानवीय पहुंच सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र की 193 सदस्यीय महासभा ने शुक्रवार को उस प्रस्ताव को अपनाया, जिसमें तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष-विराम का आह्वान है, ताकि शत्रुता समाप्त हो सके।
सूत्रों ने कहा कि प्रस्ताव में हमास की तरफ से 7 अक्टूबर के आतंकवादी हमलों की कोई स्पष्ट निंदा नहीं है। भारत ने प्रस्ताव के अंतिम मूलपाठ में उसके दृष्टिकोण को लेकर सभी तत्व शामिल नहीं किए जाने से मतदान में भाग नहीं लिया।
सूत्र ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के प्रस्ताव में 7 अक्टूबर के आतंकवादी हमलों की स्पष्ट रूप से निंदा नहीं है। मुख्य प्रस्ताव पर मतदान से पहले इस पहलू को शामिल करने को संशोधन आया था।’ भारत ने संशोधन के पक्ष में मतदान किया और उसके पक्ष में 88 वोट पड़े लेकिन अपेक्षित दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला।
हमास की तरफ से इजरायल पर हमलों का जिक्र करते हुए सूत्रों ने कहा कि ‘आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं हो सकता’।
सूत्रों ने कहा कि भारत के ‘एक्सप्लेनेशन ऑफ वोट’ (ईओवी) में स्पष्ट कहा गया है कि ‘सात अक्टूबर को इजरायल में आतंकवादी हमले निदंनीय थे।’
भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि, योजना पटेल ने कहा, ‘हमारी संवेदनाएं बंधक बनाए गए लोगों के साथ भी हैं। हम उनकी तत्काल और बिना शर्त रिहाई चाहते हैं।’ ईओवी में गाजा में उभरते मानवीय संकट पर भारत की चिंताओं से दृढ़ता से अवगत कराया गया है।
पटेल ने ईओवी में कहा, ‘गाजा में जारी संघर्ष में हताहतों की संख्या गंभीर और निरंतर चिंता का विषय है। नागरिक, विशेषकर महिलाएं और बच्चे अपनी जान देकर इसकी कीमत चुका रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘इस मानवीय संकट का समाधान करने की आवश्यकता है। हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के तनाव कम करने के प्रयासों और गाजा के लोगों को मानवीय सहायता का स्वागत करते हैं। भारत ने भी इस प्रयास में योगदान दिया है।’
पटेल ने कहा कि भारत ‘बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और जारी संघर्ष में नागरिकों की मौतों से बेहद चिंतित है।’
उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा इजरायल-फलस्तीन मुद्दे पर बातचीत से दो-देश समाधान का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, ‘इसके लिए, हम सभी पक्षों से आग्रह करते हैं कि वे तनाव कम करें, हिंसा से बचें और शांति वार्ता जल्द से जल्द फिर से शुरू करने की दिशा में काम करें।’