संविधान बचाओ: BJP सीधे कांग्रेस पर हमलावर,लोस अध्यक्ष,राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति भी आपात निंदा में
First Lok Sabh Speaker Om Birla Then President Draupadi Murmu And Vice President Jagdeep Dhankhar Attacked Congress With Emergency Rhetoric
इमरजेंसी पर तीन तरफा हमले से कांग्रेस ’99’ पर आउट , मोदी सरकार की रणनीति समझें
संविधान बचाओ बनाम आपातकाल के नैरेटिव से कांग्रेस और भाजपा संसद से सड़क तक के संग्राम लड़ रही है। राहुल गांधी ने संविधान हाथ में लेकर सांसद पद की शपथ ली तो जवाब में आपातकाल की याद दिलाकर कांग्रेस पर तिहरा वार किया गया। लोकसभा अध्यक्ष ने जिसकी शुरुआत की, उसे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने आगे बढ़ाया।
मुख्य बिंदु
लोकसभा अध्यक्ष ने आपातकाल की निंदा की तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने भी इसका जिक्र किया
विपक्ष लोकसभा चुनावों के दौर से ही ‘संविधान बचाओ’ के नैरेटिव से सरकार पर हमलावर रहा है
भाजपा ने इंदिरा गांधी सरकार के आपातकाल से संविधान पर कांग्रेस का कमजोर नस दबा दिया
नई दिल्ली 27 जून 2024: शुरुआत लोकसभा अध्यक्ष बनते ही ओम बिरला ने की। फिर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने आपातकाल पर कांग्रेस को पानी-पानी कर दिया। यह ‘संविधान की जीत’ के नैरेटिव पर खेल रहे राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी को भाजपा का जवाब है। राष्ट्रपति का पद संविधान के सरंक्षक का होता है। अगर राष्ट्रपति ही संविधान पर वक्तव्य दें तो स्वाभाविक है कि उसकी सर्वोच्च मान्यता होगी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने अभिभाषण में संविधान को कुचलकर आपातकाल लगाने की निंदा की तो कांग्रेस कितनी असहज हुई होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। संविधान पर घेरने की रणनीति में खुद घिरने वाली कांग्रेस को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के वक्तव्यों से भी जोर का झटका लगा। राष्ट्रपति के अभिभाषण का अनुमोदन करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आपातकाल में संविधान की हत्या का जिक्र किया।
कांग्रेस के आक्रामक रवैये पर भाजपा का पलटवार
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और स्पीकर एक तरह से सरकार के लिखे हुए भाषण को ही पढ़ते हैं। राष्ट्रपति तो पूरे अभिभाषण में ‘मेरी सरकार, मेरी सरकार’ ही कहती रहती हैं। मोदी सरकार के लिए इससे बड़ा मौका और हो भी क्या सकता है! उसने संविधान पर कांग्रेस की चीख निकालने को ‘ट्रिपल अटैक’ की स्ट्रैटिजी अपना ली। आपातकाल के बहाने कांग्रेस पर लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का तीन तरफा हमला हुआ। कांग्रेस पार्टी ऐसा दिखाने की कोशिश में जुटी है कि जैसे मोदी और भाजपा हार गए हैं और मतदाताओं ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मान लिया है। कांग्रेस की यह आक्रामकता संसद में भी दिखी जब लोकसभा अध्यक्ष पद पर आम सहमति के लिए उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देने की शर्त रख दी। राजनीतिक दांव-पेच के इस खेल में भाजपा भी कहां कदम पीछे खींचने वाली। उसने भी सत्र की शुरुआत में ही कांग्रेस को बोल्ड करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
99 सीटें आने से खूब उत्साहित है कांग्रेस
2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए सिर्फ 44 सीटें जीती थीं। अगली बार 2019 में वह सिर्फ आठ सीटें बढ़ाकर 52 पर सिमट गई। इस बार 2024 के चुनाव में जब उसे 99 सीटें मिल गईं तो उसके हौसले सातवें आसमान पर चले गए। यह वाकई बड़ी उपलब्धि थी। बीते दोनों बार की सीटें जोड़कर उसे 44+52= 96 ही होती हैं, लेकिन इस बार इससे भी तीन ज्यादा सीटें ले आई। मतलब बीते दो बार के प्रदर्शन को मिलाकर भी थोड़ा ज्यादा। इसी से उत्साहित होकर कांग्रेस पार्टी ने संविधान बचाने के अभियान को बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाए रखा। लेकिन, भाजपा ने कांग्रेस की धज्जियां उड़ाने को संविधान पर 50 साल पहले हुए प्रहार का जिक्र हर मंच से करने की नीति अपना भाजपा ने नहले पर दहला जड दिया।
कांग्रेस की कमजोर नस से इंडिया ब्लॉक में ‘दरार’
दरअसल, भाजपा इस मुद्दे पर इंडिया ब्लॉक में भी कांग्रेस को अलग-थलग करने की उम्मीद देखती है। इमरजेंसी कांग्रेस की ऐसी कमजोर नस है जिस पर विपक्ष में आसानी से फूट डाली जा सकती है और इस मामले में कांग्रेस के अभी के कुछ सहयोगी भी दबे स्वर में ही सही कांग्रेस की आलोचना करने से नहीं चूकेंगे। इसका एक सबूत बुधवार को लोकसभा में ही दिख गया जब स्पीकर आपातकाल की निंदा कर रहे थे। उस वक्त कांग्रेस सांसद तो खड़े होकर नारेबाजी कर रहे थे, लेकिन बगल में बैठे सहयोगी दलों के सांसदों ने मौन साधकर सरकार का ही समर्थन किया। सपा, टीएमसी, टीडीपी जैसे दलों के सांसद अपनी सीट पर बैठे रहे जिससे कांग्रेसी काफी असहज महसूस कर रहे थे।
फिर काम आ गया संविधान और आरक्षण का श्योर शॉट फॉर्म्युला
पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में संविधान बदलने का डर दिखाया। आरक्षण खत्म होने के डर से मतदाता भाजपा के विरोध में चले गए। यही आजमाई तरकीब फिर इस बार के लोकसभा चुनाव में खरा उतरी, खासकर उत्तर प्रदेश में। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा दिया। जवाब में विपक्ष ने मतदाताओं के मन में संदेह पैदा कर दी कि अबकी बार 400 पार इसलिए चाहिए क्योंकि भाजपा संविधान बदलकर आरक्षण समाप्त करना चाहती है।। विपक्ष के इस नैरेटिव ने देश के सबसे बड़े राज्य में भाजपा की सीटें आधी कर दी।
स्वाभाविक है कि संविधान की रट से सीटें बढ़ाने में सफल रहा विपक्ष खासा उत्साहित है। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने तो ‘संविधान बचाओ’ को ही सरकार को घेरने का श्योर शॉट फॉर्म्युला बना लिया। राहुल ने विपक्ष को पहले से ज्यादा मजबूत करने के लिए मतदाताओं का आभार प्रकट करते हुए इसी बात पर जोर दिया कि आखिरकार संविधान बचाने के लिए लोग एकजुट हो गए। फिर वो कुछ इस अंदाज में ललकारने लगे कि अब कोई माई का लाल संविधान से छेड़छाड़ नहीं कर सकता। यहां तक तो ठीक था, जब राहुल के नेतृत्व में पूरा विपक्ष संसद में संविधान का मुद्दा ले आया तो सरकार भी पलटवार की मुद्रा में आ गई। अब नतीजा सबके सामने है।