जगदीप धनखड़ देश के14वें उपराष्ट्रपति,मत मिले 725मे़528,अल्वा सिमटी182 में

जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति चुनाव जीते:कुल 725 में से 528 वोट मिले, मार्गरेट अल्वा 182 पर सिमटीं

नई दिल्ली 06 अगस्त।जगदीप धनखड़ देश के 14वें उपराष्ट्रपति होंगे। उपराष्ट्रपति के लिए शनिवार शाम 5 बजे वोटिंग खत्म हुई। संसद में दोनों सदनों को मिलाकर फिलहाल 780 सदस्य (राज्यसभा में 8 सीटें खाली) हैं। लेकिन 725 (92.94%) सदस्यों ने ही वोट किया। 710 वैध वोटों में धनखड़ को जीत को सिर्फ 356 वोटों की ही जरूरत थी।

काउंटिंग में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) के कैंडिडेट जगदीप धनखड़ को 528 वोट मिले, जबकि विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 182 वोट मिले। 15 वोट निरस्त कर दिए गए। धनखड़ 11 अगस्त को उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म हो रहा है।

ममता के सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की

ममता ने अपने 36 सांसदों को वोटिंग से दूर रहने की बात कही थी, लेकिन TMC सांसद शिशिर अधिकारी और दिव्येंदु अधिकारी ने ममता के फैसले के खिलाफ वोट किया। आंकड़ों के हिसाब से NDA कैंडिडेट धनखड़ की जीत के लिए BJP के ही वोट काफी है। BJP के दोनों सदनों में 394 सांसद हैं, यह बहुमत के आंकड़े से ज्यादा है।

सपा और शिवसेना के 2, जबकि बसपा के एक सांसद ने वोट नहीं किया। वही, भाजपा सांसद सनी देओल और संजय धोत्रे ने वोट नहीं किया।

कांग्रेस के सीनियर लीडर और राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी कोरोना संक्रमित हैं। वे PPE किट पहन कर संसद भवन पहुंचे और वोट डाला। शुक्रवार को कोविड टेस्ट में सिंघवी पॉजिटिव पाए गए थे।

780 का निर्वाचन मंडल, 741 सांसदों ने हिस्सा लिया
अभी लोकसभा में 543 सांसद हैं, जबकि राज्यसभा में 245 में से 8 सीटें खाली हैं। यानी निर्वाचन मंडल 788 के बजाय 780 सांसदों का था। ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव से दूर रहने का फैसला किया था। राज्यसभा और लोकसभा के सांसदों को मिलाकर TMC के 36 सांसद हैं।

NDA की बात करें तो 441 सांसद हैं, 5 मनोनीत सांसदों का भी साथ मिला । इस तरह से धनखड़ के पक्ष में पहले से ही 446 वोट थे। NDA के सांसदों के अलावा धनखड़ को BJD, YSRC, BSP, TDP, अकाली दल और शिंदे गुट का भी समर्थन मिला। इनके 81 सांसद हैं।

मार्गरेट अल्वा को इन पार्टियों का समर्थन

2009 में मार्गरेट अल्वा को उत्तराखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। अल्वा उत्तराखंड की पहली महिला राज्यपाल बनी थीं।

UPA की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को कांग्रेस, DMK, RJD, NCP और समाजवादी पार्टी के वोट मिले। इन पार्टियों के वोटों की संख्या 139 थी। इनके अल्वा झारखंड मुक्ति मोर्चा, TRS और आम आदमी पार्टी ने भी अल्वा को वोट देने का फैसला किया था। इन तीनों के 29 सांसद हैं। शिवसेना के उद्धव गुट के 9 सांसद अल्वा के साथ थे।

जब जगदीप धनखड़ की जिंदगी में टूटा दुखों का पहाड़, आज भी याद करके रोने लगते हैं

ये बात 1994 की है। शायद धनखड़ की जिंदगी का सबसे काला समय यही था। जिसे वह आज तक भूल नहीं पाए हैं।

राजस्थान के झुंझुनू के एक छोटे से गांव से निकलकर देश के दूसरे सबसे सर्वोच्च पद तक का सफर तय करने वाले धनखड़ की जिंदगी काफी संघर्षों वाली रही। जिस क्षेत्र में उन्होंने कोशिश की, उसमें उन्हें सफलता मिली। 12वीं के बाद आईआईटी में सिलेक्शन हुआ। एनडीए के लिए भी चयन हो गया। स्नातक के बाद सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास की। लेकिन उन्होंने वकालत का पेशा ही चुना।

राजनीति में आने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े और जीतकर मंत्री तक का सफर पूरा किया। लेकिन इसके बाद उन्हें जिंदगी का सबसे बड़ा दुख मिला।

आइए जानते हैं

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़।

14 साल के इकलौते बेटे की मौत ने झकझोर दिया
धनखड़ की शादी 1979 में सुदेश धनखड़ के साथ हुई। दोनों के दो बच्चे हुए। बेटे का नाम दीपक और बेटी का नाम कामना रखा। लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन नहीं रही। 1994 में जब दीपक 14 साल का था, तब उसे ब्रेन हेमरेज हो गया। इलाज के लिए दिल्ली भी लाए, लेकिन बेटा बच नहीं पाया। बेटे की मौत ने जगदीप को पूरी तरह से तोड़ दिया। हालांकि, किसी तरह उन्होंने खुद को संभाला।
बेटे की मौत का गम आज भी नहीं भुला पाए धनखड़
महज 14 साल के बेटे के खोने का गम आज भी धनखड़ भूल नहीं पाए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो धनखड़ बेटे को याद करके आज भी रोने लगते हैं।

जगदीप धनखड सैनिक स्कूल में पढ़े, राजनीति में हासिल की नई मुकाम

फोटो में लाल घेरे में जगदीप धनखड़

जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझनू जिले के किठाना में हुआ था। पिता का नाम गोकल चंद और मां का नाम केसरी देवी है। जगदीप अपने चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर आते हैं। शुरुआती पढ़ाई गांव किठाना के ही सरकारी माध्यमिक विद्यालय से हुई। गांव से पांचवीं तक की पढ़ाई के बाद उनका दाखिला गरधाना के सरकारी मिडिल स्कूल में हुआ। इसके बाद उन्होंने चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में भी पढ़ाई की।

12वीं के बाद उन्होंने भौतिकी में स्नातक किया। इसके बाद राजस्थान विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की। 12वीं के बाद धनखड़ का चयन आईआईटी और फिर एनडीए के लिए भी हुआ था, लेकिन नहीं गए। स्नातक के बाद उन्होंने देश की सबसे बड़ी सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास कर ली थी। हालांकि, आईएएस बनने की बजाय उन्होंने वकालत का पेशा चुना। उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत भी राजस्थान हाईकोर्ट से की थी। वे राजस्थान बार काउसिंल के चेयरमैन भी रहे थे।

जगदीप धनखड़

जनता दल से चुनाव लड़े, सांसद चुने जाते ही मंत्री बन गए
धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी। धनखड़ 1989 में झुंझनुं से सांसद बने थे। पहली बार सांसद चुने जाने पर ही उन्हें बड़ा इनाम मिला। 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया था। हालांकि जब 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया तो वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और अजमेर के किशनगढ से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1993 में चुनाव लड़ा और विधायक बने। 2003 में उनका कांग्रेस से मोहभंग हुआ और वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। 2019 में जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था।

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