राजस्थान: बोरवेल से निकला पानी छह करोड़ साल पुराना, सरस्वती नदी कनेक्शन?
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60 Million-year-old Water Erupts In Jaisalmer Tubewell Machine Sinks
Jaisalmer Water News Update : जैसलमेर में निकला 6 करोड़ साल पुराना पानी बना आफत! जानें जमीन के मालिक को सता रहा रोजी-रोटी का डर
मोहनगढ़ में ट्यूबवेल खुदाई के दौरान 6 करोड़ साल पुराना पानी मिला जिससे ट्यूबवेल की मशीन और ट्रक जमीन में धंस गए। प्रशासन ने इस क्षेत्र को सीज कर दिया है। मशीन मालिक ने सरकार और प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है। भूजल वैज्ञानिकों के अनुसार पानी सरस्वती नदी का नहीं है।
मोहनगढ़ में ट्यूबेल खुदाई के दौरान पानी का तेज बहाव हुआ था
खुदाई करने वाली मशीन भी जमीन में धंसी, अब तक वहीं जमीदोज
जिला प्रशासन ने 500 मीटर क्षेत्र को सीज किया
भूजल वैज्ञानिक का कहना है, पानी 6 करोड़ साल पुराना है
जैसलमेर : मोहनगढ़ क्षेत्र मे कुछ दिन पहले ट्यूबेल खुदाई के दौरान जमीन से तेज पानी का बहाव निकलने के कारण ट्रक सहित ट्यूबेल मशीन जमीन मे धंस गई थी। अब पानी का स्तर तो कम हो गया है वहीं जिला प्रशासन ने इस क्षेत्र को सीज कर दिया है। पानी सूखने के बाद ट्रक का थोड़ा हिस्सा दिखने लगा है। लेकिन पानी का टीडीएस 500 के पार होने के कारण मशीन सहित ट्रक गल कर नष्ट होने की आशंका जताई जा रही है। इस मामले को 9 दिन बीत जाने के बाद भी मशीन मालिक अपनी मशीन बाहर निकालने का इंतजार कर रहा है।
जैसलमेर में उसी बोरिंग से फिर पानी निकलना शुरू हो जाएगा!
प्रशासन ने पानी निकलने की जगह से तीन महीने तक दूर रहने की बात कही गई है। ONGC कंपनी ने कहा कि मशीन को निकालना अभी उतावलापन होगा। अगर मशीन को बाहर निकाला गया तो हो सकता है फिर से पानी का प्रेशर निकलना शुरू हो जाये। ऐसे में जमीन के मालिक और बोरिंग मशीन मालिक के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
मशीन मालिक से छीना रोजगार, मदद की लगा रहा गुहार
मशीन मालिक तग सिंह का कहना है कि पिछले 10 सालों से उन्होंने मोहनगढ़ और नाचना नहरी क्षेत्र में सैकड़ों ट्यूबेल की खुदाई की है। लेकिन इस तरह की घटना पहले कभी नहीं हुई है। ट्यूबेल खुदाई के दौरान जमीन से अचानक पानी का फव्वारा निकला था, तब उन्हें मशीन हटाने का समय नहीं मिला। उन्होंने कहा, मेरी आंखों के सामने अपनी रोजी रोटी देने वाली मशीन को जमीन मे धंसते देखा, लेकिन मैं बेबस था। कुछ नहीं कर सकता था। मेरे पूरे परिवार का पालन पोषण इस मशीन के जरिये होता था।’ अब इस मशीन को निकालने के लिए मशीन मालिक सरकार व प्रशासन से मदद गुहार लगा रहा है।
6 करोड़ साल पुराना पानी, सरस्वती नदी का नहीं है पानी
भूजल वैज्ञानिक नारायण इनखिया ने इस संबंध में बताया है कि ट्यूबेल के पानी के जो सैंपल लिए गए थे। इसमें यह सामने आया है कि यह पानी करीब 6 करोड़ साल पुराना है। इसकी रिपोर्ट हमने जिला कलेक्टर को पेश की है। उन्होंने सरस्वती नदी के पानी की बात को सिरे से खारिज करते हुए बताया कि यह पानी सरस्वती नदी का नहीं है। इनखिया ने कहा कि सरस्वती नदी के प्रमाण वैदिक काल के मिलते हैं जो आज से 5 हजार साल पहले की समयावधि का बताया जाता है। जबकि ये पानी 6 करोड़ वर्ष पुराना है।
28 दिसंबर की घटना, अब 500 मीटर की परिधि में प्रतिबंध
जैसलमेर में यह पूरा घटनाक्रम 28 दिसम्बर से शुरू हुआ था। यहां मोहनगढ़ इलाके के 27 BD के तीन जोरा माइनर पर मोहनगढ़ निवासी विक्रम सिंह के खेत में ट्यूबेल की खुदाई के दौरान जमीन धसने से पानी का बहाव शुरू हुआ था। वहीं चार से पांच फीट तक पानी ऊपर उछलने लगा। पानी के बढ़ते स्तर को देखकर आसपास के लोगों में जहां दहशत का माहौल फैल जाता है। वही सूचना पर भू विभाग व प्रशासन मौके पर पहुंचता है। जिसके बाद जिला प्रशासन ने 500 मीटर की परिधि में जहां प्रतिबंध लगा दिया था।
जैसलमेर में जिस खेत से फूटा फव्वारा, क्या वहीं से बहती थी सरस्वती नदी? क्या कहते हैं जानकार?
Saraswati River: जानकारों का कहना है कि यह बात सही है कि एक समय में सरस्वती नदी राजस्थान के इस क्षेत्र से बहा करती थी.
हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर जिले में एक खेत से ट्यूबवेल की खुदाई के दौरान अचानक बहुत ज्यादा पानी निकलने लगा. मोहनगढ़ नहरी क्षेत्र के शास्त्रीनगर ग्राम पंचायत के तारागढ़ गांव की इस घटना की बड़ी चर्चा हो रही है. किसान विक्रम सिंह भाटी के खेत में पानी का फव्वारा इतनी तेजी से निकला कि देखते-देखते आस-पास के सारे खेतों में पानी भर गया और लोग डरने लगे. वहां की जमीन धंस गई और भारी मशीन से लदा एक ट्रक 850 फीट गहरे गड्ढे में समा गया. तीन दिन बाद वहां पानी रुका, लेकिन प्रशासन ने उस क्षेत्र को लेकर सतर्क रहने को कहा है. चेतावनी दी गई है कि वहां से फिर से पानी और गैस का रिसाव हो सकता है. उस ट्यूबवेल के 500 मीटर के क्षेत्र में सामान्य लोगों के जाने पर रोक है.
लेकिन वहां अचानक से जमीन से इतना ज्यादा पानी कैसे निकला इसे लेकर कई तरह के कयास लग रहे हैं. इनमें एक चर्चा ये भी है कि क्या यह प्राचीन सरस्वती नदी का पानी था जिसका उल्लेख वैदिक ग्रंथों में मिलता है और जो अब विलुप्त हो चुकी है. जानकारों का कहना है कि यह बात सही है कि एक समय में सरस्वती नदी (Saraswati River) राजस्थान के इस क्षेत्र से बहा करती थी.
जानिए क्या है जानकारों की राय
जानकारों का कहना है कि सरस्वती नदी आज भौतिक रूप से विलुप्त मानी जाती है, लेकिन इसके अवशेष और भूगर्भीय प्रमाण भारत के विभिन्न भागों में पाए गए हैं. राजस्थान के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर बीकानेर का भी सरस्वती नदी से जुड़ाव रहा है. जानकार बताते हैं कि भूगर्भीय अध्ययनों और ऐतिहासिक संदर्भों से पता चलता है कि प्राचीन समय में सरस्वती नदी का प्रवाह थार के मरुस्थल से होकर गुजरता था और बीकानेर इसी थार क्षेत्र का हिस्सा है.
वेदों के प्रख्यात विद्वान और सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. जानकी नारायण श्रीमाली के मुताबिक, सरस्वती नदी का उद्गम तो गढ़वाल से होता था, लेकिन इसकी एक धारा बीकानेर से होकर बहती थी. डॉ. श्रीमाली ने कहा,”सरस्वती नदी का वर्णन वेदों में भी मिलता है. वहीं वैज्ञानिक अनुसंधानों और उपग्रह चित्रों के माध्यम से भी सरस्वती नदी के पुराने मार्ग का पता लगाया गया है, जिसमें बीकानेर क्षेत्र को भी शामिल किया गया है. भूगर्भीय जांचों में बीकानेर के आसपास के क्षेत्र में नदी की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं, जैसे कि सूखी नदी की धाराएँ, तलछट और जल स्तर के अवशेष. ये सभी सरस्वती नदी के बीकानेर से होकर बहने की कहानी कहते हैं.
सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. जानकी नारायण श्रीमाली के मुताबिक, सरस्वती नदी का उद्गम तो गढ़वाल से होता था, लेकिन इसकी एक धारा बीकानेर से होकर बहती थी.
बीकानेर में मौजूद है सरस्वती नदी के प्रमाण
विख्यात भू-गर्भ शास्त्री और सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. शिशिर शर्मा भी बताते हैं कि सरस्वती नदी के बीकानेर से होकर बहने के प्रमाण चारों तरफ़ मिल जाएंगे. डॉ. शर्मा कहते हैं,”बीकानेर के शहरी इलाक़ों में बने कुओं का पानी आज भी मीठा है, जबकि बाहरी क्षेत्र में बने कुओं का पानी खारा है. वहीं यहाँ जो बजरी निकलती है उसका रंग लाल और पीला है. इसके अलावा जिन इलाक़ों से सरस्वती नदी बहती थी, वहां की मिट्टी रेगिस्तानी मिट्टी से अलग क़िस्म की है. उसमें पत्थर पाए जाते हैं. ये तमाम बातें इस बात का प्रमाण है कि सरस्वती नदी का बहाव ईसा पूर्व आज से 9000 साल पहले यहाँ से था.”
वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार और सरस्वती नदी के जानकार राजाराम स्वर्णकार कहते हैं,”बीकानेर के क्षेत्र में सरस्वती नदी के प्रवाह के कारण यहां प्राचीन काल में कृषि और जल आपूर्ति का समृद्ध साधन रहा होगा. इसके साथ ही यह क्षेत्र व्यापारिक मार्गों का केंद्र भी बना, जिससे बीकानेर की सभ्यता और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान हुआ.”
विख्यात भू-गर्भ शास्त्री और सरस्वती नदी के शोधकर्ता डॉ. शिशिर शर्मा बताते हैं कि सरस्वती नदी के बीकानेर से होकर बहने के प्रमाण चारों तरफ़ मिल जाएंगे.
शोधकर्ता डॉ. चक्रवर्ती नारायण श्रीमाली ने सरस्वती नदी का उद्गम और विकास नाम से उनका शोध ग्रंथ भी है. वो कहते हैं,”जलवायु परिवर्तन और भूगर्भीय गतिविधियों के कारण सरस्वती नदी धीरे-धीरे सूख गई. इसका प्रवाह रेगिस्तान में विलुप्त हो गया, और इसके परिणामस्वरूप बीकानेर क्षेत्र में जल संकट उत्पन्न हुआ. हालांकि, सरस्वती नदी की यादें और इसके महत्व का वर्णन आज भी भारतीय इतिहास, पौराणिक कथाओं और साहित्य में जीवित है.”
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