जमीयत उलेमा-ए-हिंद लड़ेगा अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट के दोषियों के केस

अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस: आतंकियों को फांसी से बचाने के लिए हाईकोर्ट जाएगी जमीयत उलेमा ए हिंद

अहमदाबाद को सीरियल बम धमाकों से दहलाने वाले और 56 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार आतंकियों को फांसी के फंदे से बचाने के लिए जमीयत उलेमा ए हिंद हाईकोर्ट जाएगी।

मुजफ्फरनगर 18 फरवरी। अहमदाबाद को सीरियल बम धमाकों (Ahmedabad Serial Blast Case) से दहलाने वाले और 56 लोगों की मौत के जिम्मेदार आतंकियों को फांसी के फंदे से बचाने को जमीयत उलेमा ए हिंद (Jamiat Ulema e Hind) हाईकोर्ट जाएगी। जमीअत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने अहमदाबाद बम धमाकों पर कोर्ट के आदेश पर नाराजगी जताई है।

उन्होंने कहा कि विशेष अदालत का फैसला अविश्वसनीय है। हम इसके खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे। अरशद मदनी ने कहा कि हम कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे और दोषियों को फांसी से बचाने को कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। उम्मीद है कि हाईकोर्ट से न्याय मिलेगा। जरूरी हुआ तो हम सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे। पहले भी ऐसा कई बार हुआ है जब निचली अदालतों में सजा पाए दोषी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी कर दिए गए। इसमें उन्होंने अक्षरधाम मंदिर आतंकी हमले की याद दिलाई जिसके आरोपित सुप्रीम कोर्ट से छूट गये थे।

दरअसल, 2008 में हुए अहमदाबाद सीरियल बम ब्लास्ट केस में 13 साल बाद शुक्रवार को सजा का ऐलान हो गया। कोर्ट ने IPC 302 और UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) में 38 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई, जबकि 11 आरोपितों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। कुल 7015 पेज का फैसला है। इससे पहले सत्र न्यायालय के न्यायाधीश एआर पटेल ने 8 फरवरी को फैसला सुनाते हुए 49 आरोपितों को दोषी करार दिया था। अदालत ने 77 में से 28 आरोपितों को बरी कर दिया था।

 

56 लोगों की हुई थी मौत

बता दें कि 26 जुलाई 2008 की शाम अहमदाबाद में धमाके हुए थे। शाम साढ़े 6 बजे अचानक जोरदार धमाका हुआ था। इसके बाद सिलसिलेवार 21 धमाके हुए। 45 मिनट में सब कुछ तबाह हो गया था। 56 लोग मारे गए थे और 260 घायल हुए थे। इस मामले में कुल 82 आरोपी गिरफ्तार किए गए। केस चलने के दौरान दो की मौत हो गई थी। चार के खिलाफ अभी आरोप दायर करना बाकी है। कुल 76 आरोपितों की सुनवाई हो चुकी है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पिछले साल सितंबर में पूरी कर ली थी। दिसंबर 2009 में शुरू हुए इस मुकदमे में 1100 लोगों की गवाही हुई। सबूत नहीं मिलने की वजह से 28 लोगों को बरी कर दिया गया।

जब उलझती जा रही थी जांच एजेंसी, तब भरूच से एक फोन कॉल ने दी ‘उम्मीद’

26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में शाम 6 बजकर 45 मिनट पर पहला बम धमाका हुआ था. ये धमाका मणिनगर में हुआ था. मणिनगर उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसक्षा क्षेत्र था. इसके बाद 70 मिनट तक 20 और बम धमाके हुए थे. इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.

अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट (फाइल फोटो)

गुजरात के भरूच से अचानक आई थी फोन कॉल
कॉन्स्टेबल की मदद से मिली थी पहली लीड

अहमदाबाद में जुलाई 2008 को सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में स्पेशल कोर्ट ने दोषियों की सजा का ऐलान कर दिया. कोर्ट ने 49 में से 38 दोषियों को फांसी की सजा और 1 दोषियों को आखिरी सांस तक कैद में रहने की सजा सुनाई गई है. इतिहास में ये पहली बार है जब एक साथ इतने सारे दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है.

अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट में एक के बाद एक 21 धमाकों से पूरा शहर दहल गया था. इंडियन मुजाहिदीन ने ईमेल कर इन धमाकों की जिम्मेदारी ली थी. 70 मिनिट में अस्पताल समेत कई जगहों पर धमाकों से चारों तरफ खून ही खून नजर आ रहा था. इस बम धमाकों के पीछे मास्टरमाइंड को पकड़ना एक चुनौती बन चुका था. हालांकि यह पहली बार नहीं है, इससे पहले 2002 में देश में बम धमाकों की शुरुआत हुई थी. कलकत्ता, मुंबई, वाराणसी, जयपुर, बेंगलुरु जैसे शहरों में पहले भी धमाके हो चुके थे.

अहमदाबाद में धमाकों के बाद सभी एजेंसी इसकी जांच में जुटी हुई थीं. अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को इस बम धमाके की प्रमुख जिम्मेदारी सौंपी गई थी. जिसमें ज्वाइंट पुलिस कमिशनर  आशीष भाटिया और डिप्टी पुलिस कमिशनर अभय चुदास्मा थे.

पहली लीड तलाश रहे थे जांच अधिकारी

सभी अधिकारी अपने सभी तरह के सोर्स लगा रहे थे कि कहीं से इस ब्लास्ट को लेकर लीड मिल जाए. क्योंकि पुलिस अधिकारी मानते हैं कि अगर एक मजबूत लीड मिलती है तो उसके बाद जांच उसके अंत तक पहुंचती ही पहुंचती है. लेकिन कहीं से भी लीड मिल नहीं पा रही थी. उस वक्त इस मामले की लीड देने वाले पुलिस के दो कॉन्स्टेबल थे. याकूब अली पटेल और दिलीप ठाकुर.

ब्लास्ट में घायलों को अस्पताल लाया गया. लेकिन अस्पताल में भी एक बड़ा ब्लास्ट हुआ जो गाड़ी में सिलिंडर से किया गया. पुलिस को इस गाड़ी की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. पुलिस लगातार ढूंढ रही थी कि ये गाड़ी किसकी है और कहां से आयी.

भरूच से फोन कॉल ने दी उम्मीद

क्राइम ब्रांच में देश में चोरी हुई सभी गाड़ियों की जानकारी इकट्ठा की गई, लेकिन इस गाड़ी की कोई जानकारी क्राइम ब्रांच को नहीं मिली थी. लेकिन अभय चुदास्मा जो कि अपनी ह्यूमन इंटेलिजेंस के लिए जाने जाते हैं, उन्हें अचानक भरुच के एक कॉन्स्टेबल याकूब अली का फोन आया . याकूब अली ने अभय को पूछा कि सर जिस गाड़ी में ब्लास्ट हुआ है उसकी कोई जानकारी मिली है, हालांकि अभय चुदास्मा को उलझन हुई कि एक कॉन्स्टेबल ये सवाल क्यों कर रहा है.

याकूब ने तुरंत ही कहा कि सर मैंने ब्लास्ट केस के फोटो देखे । जो कार दोनों अस्पताल में ब्लास्ट के लिए इस्तेमाल हुई हैं, वो मैंने भरुच में देखी हैं. अभय सुन कर चौंक गए. कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल रही थी, ऐसे में इतनी बड़ी जानकारी मिलना बड़ी बात थी.  कॉन्स्टेबल ने आगे कहा कि सर भरुच में एक गुलामभाई रहते हैं, मैं एक दिन उनके घर के पास से निकल रहा था तब मुझे लगता है कि ये दोनों गाड़ियां उनकी पार्किंग में मौजूद थीं.

ऐसे हासिल हुई पहली लीड

अभय चुदास्मा ने कहा कि तुंरत जांच कर बताओ कि ये कार किसकी है और कौन लेकर आया था. याकूब तुरंत गुलामभाई के घर गए. उनके हाथ में एक पुराना अखबार भी था. कॉन्स्टेबल ने गुलामभाई को अखबार में छपी गाड़ी की तस्वीर दिखा पूछा कि इस गाड़ी को पहचानते हैं?

गुलामभाई भी तस्वीर को देख चौंके और बताया कि ये कारें उनके घर दो-तीन दिन को किराये पर रुकने वाले लोगों की है. याकूब ने पूरा मामला समझाया. गुलामभाई का नंबर लिख याकूब तुरंत पुलिस स्टेशन आया और डीसीपी चुदास्मा को सारी जानकारी दी. याकूब अली को पता नहीं था कि उसकी ये जानकारी कितनी महत्वपूर्ण हैं जिससे क्राइम ब्रांच को जांच की पूरी लीड हासिल हुई.

तो वहीं दिलीप ठाकुर ने 26 जुलाई 2008 जब ब्लास्ट हुआ तो उस वक्त जितने भी नंबर से फोन किए गए थे. उस नंबर का एक के बाद एक सर्विलांस किया. लाखों फोन नंबर  दिलीप ठाकुर ने मैन्युली चेक कर ऐसे कुछ संदिग्ध नंबर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के दिए, जिससे इस पूरे मामले की लीड लेते हुए क्राइम ब्रांच लखनऊ में अबु बसर तक पहुंची थी.

 हाईटेक WIFI का इस्तेमाल करते थे, कॉल के बाद बंद कर लेते थे फोन…ऐसे पकड़े गए आतंकी

स्पेशल कोर्ट ने शुक्रवार को अहमदाबाद ब्लास्ट के 49 दोषियों को सजा सुनाई है. इसमें से 38 को फांसी की सजा, जबकि 11 को अजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

अहमदाबाद में 2008 में हुए सीरियल ब्लास्ट के मामले में स्पेशल कोर्ट ने 38 आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई ।  11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इतिहास में पहली बार एक साथ इतने लोगों को फांसी की सजा दी गई . धमाकों करने वाले आतंकी बेहद शातिर किस्म के हैं. वे न सिर्फ हाईटेक WIFI का इस्तेमाल करते थे, बल्कि कॉल के बाद फोन बंद कर लेते थे. 26 जुलाई 2008 को गुजरात के अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे. आइए जानते हैं कैसे इस टेरर मॉड्यूल का खुलासा हुआ और इन्हें कैसे गिरफ्तार किया गया.

22 जुलाई 2008 को दिल्ली से आजमगढ़ मॉड्यूल का चीफ आतिफ अमीन, मोहम्मद साजिद उर्फ पंकज और मोहम्मद सैफ अहमदाबाद गए थे. इसमें से आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद बाद में बाटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए. इसके बाद 25 जुलाई 2008 को मोहम्मद शकील, जिया उर रहमान, जीशान अहमद, सलमान, आरिफ, सैफुर रहमान, आरिज खान, मिर्जा शादाब बेग और मोहम्मद खालिद अहमदाबाद पहुंचे. 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में बम प्लांट कर ये उसी शाम की ट्रेन से दिल्ली वापस आ गए.

हाइटेक तौर-तरीकों से भेजा ईमेल

अहमदाबाद में ब्लास्ट के बाद पुलिस की एक टीम जांच को पहुंची थी. गुजरात विस्फोट से जुड़ा ईमेल एडवांस WI-FI तकनीक से मुंबई से भेजा गया था. WI-FI इंटरनेट कनेक्शन इस्तेमाल करने वाले का बाद में पता नहीं लगाया जा सकता था. ब्लास्ट के बाद सबसे पहले पुलिस की जांच में 3 मोबाइल नंबर संदेह के घेरे में आए जो 14 जुलाई तक अहमदाबाद और सूरत में बेहद एक्टिव थे और ब्लास्ट वाले दिन अचानक बंद हो गए.

दिल्ली के जामिया नगर से किया गया फोन

पुलिस को एक और नंबर की जानकारी मिली. यह नंबर 17 जुलाई को दिल्ली में एक्टिव था और 24 जुलाई को अचानक अहमदाबाद में एक्टिव हो गया. इस नंबर पर 5 अलग-अलग मोबाइल और लैंडलाइन से फोन किया गया. सभी 5 नंबर दिल्ली के जामिया नगर इलाके के थे. लेकिन कॉल करने वालों को ट्रेस नहीं किया जा सका. इसके अलावा कुछ नंबर महाराष्ट्र के मुंबई और गुजरात में भी ट्रेस किए गए. नंबरों को इंटरसेप्ट करने पर पता चला कि फोन पर बात कर रहे लोगों तक हवाला से मोटी रकम पहुंचाई जा रही है. इनके बीच आपस में ऑटो पार्किंग, सूटकेस और क्रॉकरी को लेकर बातचीत की गई थी. इसे ही आधार बनाकर पुलिस ने जांच की और सभी आरोपितों को बारी-बारी से गिरफ्तार किया था.

नरेंद्र मोदी के विधानसभा क्षेत्र में हुए थे धमाके

26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में शाम 6 बजकर 45 मिनट पर पहला बम धमाका मणिनगर में हुआ था. मणिनगर उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसक्षा क्षेत्र था. इसके बाद 70 मिनट तक 20 और बम धमाके हुए थे. इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. बम धमाके इंडियन मुजाहिदीन ने 2002 में गोधरा कांड का बदला लेने को किए थे.आतंकियों ने टिफिन में बम रखकर उसे साइकिल पर रख दिया था. भीड़-भाड़ और बाजार वाली जगहों पर ये धमाके हुए थे. इन धमाकों में इंडियन मुजाहिदीन (IM) और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) से जुड़े आतंकी शामिल थे. धमाकों में इंडियन मुजाहिदीन के 12 आतंकी शामिल थे. धमाकों से 5 मिनट पहले आतंकियों ने न्यूज एजेंसियों को एक मेल भी किया था जिसमें लिखा था, ‘जो चाहो कर लो. रोक सकते हो तो रोक लो.

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