कोरोना सरवाईवर पत्रकार जितेन्द्र अंथवाल, अनुभव और अनुभूति

जीवन चलने का नाम….
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कभी-कभी प्रकृति हमें वह अवसर देती है कि हम अपने आसपास को ज्यादा समग्रता के साथ समझ पाएं। जीवन में सबसे ज्यादा घबराता था तो इस बात से कि कभी कोई रात अस्पताल में न गुजारनी पड़े। मगर, ऊपर वाले को शायद कुछ और ही मंजूर था। तकरीबन 100 साल बाद दुनिया कोविड-19 के रूप में महामारी के जिस स्वरूप को झेल रही है, साल भर से निरन्तर सक्रियता के साथ उसके तमाम पक्षों को मैंने भी करीब से जाना-समझा। पर, लगता है कुछ अधूरा रह गया था। सो, ऊपरवाले ने गहन चिकित्सीय रास्ते से उस अनुभव से भी दो-चार किया। यानी, अब कोविड के सभी पक्ष ज्यादा बेहतर जानने-समझने के अनुभव के साथ पूरे हुए।
हां, इस बार दिसम्बर की शुरुआत से ही स्वास्थ्य को लेकर पिछले वर्षों के मुकाबले ज्यादा सतर्क था। मगर, कई बार हमारी सतर्कता के बावजूद दूसरे की कम सतर्कता हमारे लिए घातक हो जाती है। यही हुआ भी। दूसरे विशेषज्ञ पर बेहतर इलाज की निर्भरता में 15-16 दिन समय चला गया, जिससे जीवन निश्चित तौर पर गहन संकट में चल गया था। 25 दिसम्बर अस्पताल में भर्ती हुआ तो चेस्ट में कोविड जनित निमोनिया का स्तर 12-14 वाली रेटिंग (घातकतम) तक पहुंच चुका था। ऑक्सीजन लेवल सामान्यतः 95+ आवश्यकता के विपरीत 70 तक गोते लगा रहा था। निःसन्देह, ऐसे वक्त में प्रेस क्लब कार्यकारिणी के साथी नौजवान चांद मोहम्मद की तात्कालिक पहल और दून मेडिकल कॉलेज के पीआरओ सेक्शन के एमएस भंडारी, संदीप राणा, गौरव चौहान आदि की टीम ने सक्रियता दिखाते हुए अहम ततपरता दिखाई। डॉक्टर जैनेंद्र जी ने स्वयं मोर्चा संभाला और शुरू हुई एक ऐसी लड़ाई, जिसका अंत मुझे तो नहीं ही, मगर उस वक़्त तक मेडिकल टीम को भी पता नहीं था।
ऐसे वक्त में सबसे आवश्यक है कि टूटती-बिखरती ऊर्जा को नकारात्मक होने से बचाते हुए सहेज कर सकारात्मक रूप दिया जाए। मगर, मुझ जैसे किसी भी अदने से इंसान के लिए यह अकेले दम सम्भव न था। तब सुबह से देर रात तक हर कुछ घण्टे पर चांद से मिलने वाले हौसले और अपडेट ने हिम्मत बढ़ाई। प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र सती ने यहां फिर किसी अच्छे मैनेजर की तरह मोर्चा संभाला और हर देर शाम मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डिप्टी एमएस डॉक्टर एनएस खत्री जी से अपडेट होकर मुझे रोजमर्रा की हालात की जानकारी देने के साथ मिलने वाली जरूरी सावधानियां भी बरतने की सलाह देने का क्रम शुरू किया। पत्रकार गौरव मिश्र खुद पीड़ित होने के बावजूद इस मामले में सक्रिय रहा। ज्यों-ज्यों पता चला, असंख्य मित्रों की चिंताएं भी बढ़ गईं। फ़ोन के कम इस्तेमाल की सलाह के बावजूद वार्ड और आईसीयू में फोन पहले के मुकाबले 5-7 गुना तक ज्यादा व्यस्त हो गया। चिंतित मित्रों ने दुआओं का भी दौर शुरू किया। किसी ने किसी धाम की मन्नत मानी, तो किसी ने किसी दूसरे। किसी ने यज्ञ में आहुतियां डालीं, किसी ने मज़ार में मन्नत मानी, तो किसी ने गुरुदारे में अरदास का सहारा लिया। युवा पत्रकार अनुपम सकलानी, वरिष्ठ साथी शूरवीर भंडारी सुबह से रात तक व्हाटसप पर सकारात्मक बनाए रहे। आंदोलनकारी मित्र जयदीप सकलानी और अजय राणा मैसेंजर पर निरन्तर अपडेट लेते रहे। प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रदीप गुलेरिया, महामंत्री गिरिधर शर्मा, पूर्व महामंत्री संजीव कण्डवाल,नवीन थलेड़ी, अमर उजाला के वरिष्ठ साथी कुमार अतुल, अनिल चमोली, जागरण के किरण शर्मा, पत्रकार संतोष थपलियाल, दयाशंकर पांडेय, संजय झा, राजीव थपलियाल, विनोद पोखरियाल, खुर्रम शम्शी, सुबोध भट्ट, आंदोलनकारी रामलाल खंडूरी, प्रदीप कुकरेती, जगमोहन नेगी, कवि डॉक्टर अतुल शर्मा, पारिवारिक मित्र दिनेश गर्ग के अलावा नोएडा, दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई, जयपुर, चेन्नई यहां तक कि देश से बाहर बैठे मित्र भी कोई दिन और कोई मध्य रात्रि में समयानुसार लगातार साथ बने रहे। चेन्नई में आयी सर्जन भतीजा डॉक्टर दीपक लगातार मैसेज कर ठिठोली करता रहा कि अंकल, चेता रहा था न कि वेट घटाओ। खैर, अब भी ठीक हो कर सबसे पहले वेट लूज करना, वरना फिर दिक्कत होगी। मैं मुस्कुरा कर हामी भरने के और कुछ नहीं कह पा रहा था, क्योंकि समस्या की एक बड़ी वजह मेरा लम्बाई के अनुपात में बहुत ज्यादा वजन है ही। बाद में जानकारी हुई कि दैनिक जागरण के सुमन सेमवाल व अन्य साथी सरकारी प्रक्रियाओं में आवश्यक भूमिका निभाते रहे।
हल्द्वानी से वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला और श्रीनगर/गैरसैण से गंगा असनोड़ा थपलियाल फोन के माध्यम से हौसला बढ़ाने में जुटे रहे। इसके अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से असंख्य बढ़ो का स्नेह और समकक्षों की शुभकामनाएं साथ बनी रहीं। परिजन और अपने गांव-समाज के लोग तो खैर साथ रहे ही। इस पूरे कालखंड में एक उपलब्धि यह रही कि गांव-परिवार के तमाम युवा पहाड़ से देशभर में जहां कहीं हैं, वे अपनी चिंताओं के साथ जुड़े। इनमें अधिसंख्य से तो मेरा कभी सीधा संपर्क भी नहीं हुआ था, मगर अब होगा।
जनार्दन अंथवाल और देवेश्वरी समेत हेल्थ सिस्टम में परिवार और गांव के कई लोग हैं, जो यथा सम्भव साथ बने रहे। सभी के इस अपार स्नेह और आशीष का ज्यों-ज्यों पता चलता रहा, मुझे लगा कि इस अद्भुत स्नेह का प्रतिफल तो कभी नहीं चुका पाऊंगा, मगर हां कोशिश जरूर करूंगा कि और ज्यादा ज़िम्मेदारी के साथ कुछ कर पाऊं। फिलहाल, सभी का नामोल्लेख सम्भव नहीं, मगर सभी का ह्रदय की अतल गहराइयों से आभार। क्योंकि, प्राण रक्षा हुई तो उसमें हर किसी का स्नेह और आशीर्वाद रहा। चूंकि, भावनाएं कई बार शब्दों पर भारी होती हैं। ऐसे में लिखा जा रहा कुछ लम्बा, बल्कि काफी लम्बा हो जाता है। वह यहां हो भी रहा। मगर, वजह यह है कि अनुभव से गुजर कर सीखी-जानी कई चीजें, अक्सर दूसरे के लिए भी मददगार हो सकती हैं।

इन अनाम योद्धाओं को सलाम…..
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तकरीबन 15 दिन के पूरे अनुभव के बाद एक जरूरी बात जो समझ आयी, वह अवश्य साझा करना चाहता हूं। वह यह कि यदि आप अथवा आपका कोई भी परिचित ईश्वर न करे कोविड जैसी स्थिति से गुजरे, तो कतई भी किसी बड़े या निजी अस्पताल की दौड़ न लगाएं। हम किसी बड़े हॉस्पिटल में महंगे बिल के भुगतान के प्रतिफल में पंचतारा सुविधा जरूर पा सकते हैं, लेकिन गम्भीर अवस्था में प्राण रक्षा हो इसकी गारंटी नहीं। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में न केवल में, बल्कि पत्रकार साथी गौरव गुलेरी भी भर्ती रहे। हमने पूरी तरह अपनी पेशेगत पहचान गुप्त रखी। ताकि, हालात को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकें। तब लगा कि नहीं, सोशल मीडिया और हमारी वैचारिक चश्मे से इतर भी बहुत कुछ अच्छा हो रहा है। सुबह 5-6 बजे से रात 11-12 बजे तक पीपीई किट में कौन योद्धा आकर अपने दायित्वों का साथ आपकी सेवा कर रहा पता ही नहीं चलता। चाहे वार्ड में आएँ या न आएं, हर 2-3 घण्टे में डॉक्टर लगातार एक-एक मरीज की वास्तविक स्थिति से अपडेट हो रहे। हर घण्टे-दो घण्टे पर पैरा मेडिकल स्टाफ बेड पर आकर आवश्यक जांचों के साथ ही दवा तक खिला जा रहा। दिन भर में 5-7 बार झाड़ू लग रहा। स्थिति यह कि अगर आपका ऑक्सीजन मास्क हटा हुआ है, तो पता नहीं पीपीई किट पहने कौन सफाई योद्धा ही आपकी चिंताजनक डपट लगा कर चल दे रहा कि मास्क लगाओ, जिंदगी की चिंता नहीं, क्यों हटाया? खाना-नाश्ता-पानी जो भी, जैसा भी पहुंच रहा, वह प्रत्येक तक बहुत केयर और सम्मान के साथ पहुंच रहा।
दवा और सारे खर्च जोड़ लें, तो एक मरीज पर तकरीबन 50 हजार का औसतन खर्च आ रहा है। कुछेक में यह दोगुना तक भी हो रहा। बावजूद इसके, आपको अपनी जेब से एक रुपया भी नहीं देना पड़ रहा। सब कुछ सरकारी स्तर पर मुफ्त। दूसरे, हर तरह का मरीज पहुंचने के कारण यहां डॉक्टर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ का अनुभव भी कहीं ज्यादा व्यापक और गहरा हुआ है। यहां, एक बार मरीज एडमिट हो गया, तो फिर पूरी तरह अस्पताल के हवाले है। क्योंकि, उसके अपने भी वहां नहीं आ-जा सकते।
हां, दुखद यह भी लगा कि महीनों से अपनी जान की परवाह किए बगैर सेवा में जुटे इन वॉरियर्स में से बहुत से महज 8-10 हजार के अल्प ठेका भुगतान वाले नौजवान हैं। यकीनन इन्हें किसी भी स्थिति में 20-25 हजार से कम नहीं ही मिलना चाहिए, क्योंकि इन एक-एक पर उनका पूरा परिवार निर्भर है। उम्मीद है बड़े भाई @सूर्यकांत धस्माना और @रविन्द्र जुगरान जैसे संघर्षशील नेतृत्वकारी, इनकी लड़ाई लड़ेंगे। बहरहाल, कोविड काल में इस तरह के प्रयास सरकारी सिस्टम में आम आदमी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं। डॉक्टर्स से लेकर एकदम निचले स्तर तक के इन सभी योद्धाओं का आभार।

छुपाएं नहीं, बताएं…..
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एक अलग तरह की हिचक कई लोगों में कोरोना काल की शुरुआत से देखने को मिली। इस हिचक के चलते, वे अपनी बीमारी को तो छिपाने का प्रयास करते रहे, अपनी जांच से भी बचे। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। आप कोविड ग्रस्त हैं, एचआईवी ग्रस्त नहीं। ऐसे में आपके कोविड ग्रस्त रहने के दौरान के अनुभव दूसरे को पॉजिटिव एनर्जी ही देंगे। उसके लिए, निराशा से बाहर निकलने का सकारात्मक माध्यम बनेंगे। जैसा, कोविड से निकले कई मित्रों का अनुभव मेरा सम्बल बना।

…. और अंत में
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मन तो कर रहा कि पुनः एक्टिवा उठाऊं और त्रिवेणी किनारे या पौंटा साहिब जैसे अपने किसी फेवरेट डेस्टिनेशन की दौड़ लगा आऊं। मगर, आफ्टर कोविड इफ़ेक्ट और डॉक्टर्स की सलाह सबकुछ भूल कर फिलहाल डाइट और पूरी तरह आराम पर है। सो, 15-16 दिन बाद आज केवल छत पर धूप का आनंद ही उठा पाया। हां, फिलहाल सर्दियों को देखते हुए डॉक्टर्स की कुछ सलाह हैं, जो आपके और आपके अपनो के लिए भी उतनी ही उपयोगी हैं, जितनी मेरे जैसों के लिए। मसलन, सर्दी से बचें। दिनभर में दो नहीं, तो एक बार नियमित तौर पर सब्ज़ियों का सूप अवश्य लें। गर्म पानी का सेवन ही करें। आवश्यकता महसूस हो तो रात को स्टीम लें। हम इस पहाड़ी के क्षेत्र के लोग ख़ुशकिस्मत हैं कि हमारे पास तोर, गहत, मक्की, कोड-मंडुआ, भट्ट जैसे मोटे और गर्म अनाज हैं। लिहाजा इनका ज्यादा प्रयोग करें। गर्म नींबू पानी, मल्टी विटामिन और रात को हल्दी वाले दूध का सेवन करें। सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के साथ मास्क और सेनिटाइजर का इस्तेमाल तो करना ही। सब भला ही होगा……। सर्वे भवन्तु सुखिनः……
@देहरादून(उत्तराखंड) के पत्रकार की फेसबुक वॉल से,अविकल

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