उत्तराखंड की पत्रकारिता की क्षेत्रीय विकास में रही है निर्णायक भूमिका
वैसे तो पत्रकारिता की सामान्य प्रवृत्ति ही सब जगह जनता की आवाज बनकर सत्ता और व्यवस्था में मीन-मेख निकाल कर विकास के लिए रास्ता निकालना होता है जिसमें उसे सत्ता का कोपभाजन भी बनना पड़ता है। लेकिन उत्तरांखड के लिए यह इसलिए यथातथ्य कहा जा सकता है कि पहाड़ों में साक्षरता अपेक्षाकृत अच्छी रही और दिल्ली के अलावा राष्ट्रीय नेतृत्व की निकटता से भी उत्तराखंड मुख्य धारा का अंग रहा।
मोटे तौर पर शुरू में अंग्रेजी राज समर्थक पत्रकारिता के राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनते देर नहीं लगी और यह स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर सामाजिक सुधार तक की वाहक बनीं।
स्वतंत्र भारत में हम ओबीसी आरक्षण विरोधी आंदोलन को उत्तराखंड राज्य जनांदोलन के बदलते संक्रमण काल में स्थानीय पत्रकारिता कंधे से-कंधा मिला हिस्सेदारी निभाते देखते हैं। विशेषकर रामपुर तिराहा कांड के बाद। राज्य बनने के बाद उत्तरांखड की पत्रकारिता विकास के लिए सत्ता पर दबाव बनाने की भूमिका में हैं ।
उत्तराखंड में पत्रकारिता की भूमिका चार भागों में समझी जा सकती है
1.प्रथम चरण(1842-1870 ई०)
2.दूसरा चरण(1900-1939 ई०)
3.तीसरा चरण(1940-47 ई०)
४.चौथा चरण(1947से अब तक)
उत्तराखंड की पत्रकारिता के प्रारम्भिक काल के समाचार पत्रों ने अधिकांश अंग्रेजी सरकार की नीतियों को प्रमुखता दी क्योंकि सभी समाचार पत्रों का संचालन व संपादन अंग्रेजों ने ही किया।
इस चरण के पत्रों में –
1.हिल्स(1842 ई०)- समाचार पत्र का प्रकाशन जॉन मैकिनन ने 1842 में किया।यह उत्तरांखड ही नहीं, उतरी भारत का भी प्रथम अंग्रेजी समाचार पत्र था। शुरू में गाजियाबाद और बाद में मसूरी सेमिनरी स्कूल परिसर से प्रकाशन हुआ। ‘द हिल्स’ के संपादकीयों में आयरलैंड-इंग्लैंड के संघर्षो पर चर्चाएं होती थी।सन 1849-50 में प्रकाशन बंद हो गया ।1860 में डॉ स्मिथ ने ‘द हिल्स’ का पुनः प्रकाशन किया। 1865 में प्रकाशन बंद हो गया।
2.मेफिसलाइट(1845)-मेफिसलाइट समाचार पत्र का प्रकाशन 1845 में हुआ। संपादक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के वकील रहे जोन लेग थे। प्रकाशन मसूरी से ।अंग्रेजी भाषी लेकिन अंग्रेज नीतियों का विरोध।
1857ई० में ‘इंग्लिश मैन क्लब मसूरी ‘ की बैठक में लार्ड डलहौजी ने इसे साम्राज्य विरोधी अखबार करार दिया। करीब 130 साल बाद इसे जयप्रकाश उत्तराखंडी ने हिंदी-अंग्रजी में शुरू किया है।
3.समय विनोद समाचार पत्र (1868-78ई०)-समय विनोद का प्रकाशन 1868 में हुआ। उत्तरांखड से प्रकाशित हिंदी के इस पहले समाचार पत्र के संस्थापक व सम्पादक जयदत्त जोशी थे।यह पाक्षिक नैनीताल से छपता था। हिन्दी व उर्दू दो भाषाओं में छपता था।1878 में इसका प्रकाशन बंद हो गया।
4.मसूरी एक्सचेंज(1870ई०)-मसूरी एक्सचेंज का प्रकाशन 1870 में हुआ लेकिन यह कुछ समय बाद बंद हो गया।
5 अल्मोड़ा अखबार (1870),1870 ई० में अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब शुरू हुआ और1871 ई० में अल्मोड़ा अखबार।डिबेटिंग क्लब व अल्मोड़ा अखबार के संस्थापक संंपादक बुद्धि वल्लभ पंत थे। उनके बाद सदानन्द सनवाल , मुंशी इम्तियाज अली , जीवानन्द जोशी , विष्णु दत्त जोशी सम्पादक रहे लेकिन अखबार सरकार समर्थक ही रहा।1913 ई० में बद्रीदत्त पांडे अल्मोड़ा अखबार के संपादक बने। उन्होंने इसे साप्ताहिक कर स्वंतत्रता आंदोलन से जोड़ा।14 जुलाई 1913 ई० को अल्मोड़ा अखबार ने कुली बेगार प्रथा व जंगलात नीति के विरोध में लेख छापा।बद्रीदत्त पाण्डे के इन लेखोंं पर तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर लोमश ने बद्रीदत्त पांडे को धमकी दी कि वह अखबार बंद कर देगा।1918 ई० में बद्रीदत्त पांडे ने “भालुसाही’ लिखा और अप्रैल 1918 ई० में अल्मोड़ा अखबार पर प्रतिबंध लग गया।अल्मोड़ा अखबार प्रतिबंधित होने पर गढ़वाल समाचार पत्र ने छापा”एक गोली के तीन शिकार- मुर्गी ,कुली व अल्मोड़ा अखबार।
6.मसूरी सीजन(1872)- पत्र का प्रकाशन 1872 ई० में कॉलमैन व नॉर्थम ने मसूरी से प्रकाशित किया।अखबार 2 वर्ष में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाया और 1874 ई० में बंद हो गया।
8.द ईगल(1878-85 ई०)-प्रकाशन- 1878,संपादन- मॉर्टन,बंद हुआ- 1885
उत्तराखंड में पत्रकारिता का द्वितीय चरण (1900-1939)
इस महत्वपूर्ण समय में उत्तराखंड की पत्रकारिता ने स्वतंत्रता संघर्षो के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।इस कालखण्ड में कई साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक पत्रिकायें प्रकाशित हुई जिनमें-
1.रियासत टिहरी गढ़वाल का प्रकाशन टिहरी रियासत के तात्कालिक राजा कीर्तिशाह पंवार ने सन 1901 में पाक्षिक किया।
यह पत्र टिहरी रियासत के नियम कानून प्रकाशित करता था ।जन समस्याओं से दूर रहा और कुछ समय बाद बंद हो गया।
2.गढ़वाल समाचार (1902ई०)का मासिक प्रकाशन गिरिजा दत्त नैथानी ने 1902 में लैंसडोन से किया। गढ़वाल से निकला पहला हिंदी समाचार पत्र रहा।गिरिजा दत्त गढ़वाल में पत्रकारिता के जनक कहे जाते हैं।यह आर्थिक अभाव से दो वर्ष में बंद हो गया।
1912ई० में गिरिजा दत्त नैथानी ने दुग्गड्डा में प्रेस स्थापित कर फरवरी 1913ई० में गढ़वाल समाचार का पुनः प्रकाशन किया।गढ़वाल समाचार पत्र ने अंग्रेज सरकार के अत्याचारों के साथ सामाजिक समस्याओं पर भी लिखा।
3.गढ़वाली समाचार पत्र (1905ई०) गढ़वाल के शिक्षित वर्ग के सामूहिक प्रयासों से प्रकाशित हुआ।गढ़वाल में राजनीतिक व सामाजिक चेतना को 1901 में गढ़वाल यूनियन स्थापना हुई जिसने 1905 में गढ़वाली समाचार पत्र प्रकाशित किया।इस प्रकाशन में पंडित विश्वभर दत्त चंदोला की विशेष भूमिका रही। पहला अंक मई 1905ई० में प्रकाशित हुआ। पहले पाक्षिक था, 1913 से साप्ताहिक बनाया गया।1916 में इसे आर्थिक और अन्य कठिनाइयों से पाक्षिक किया गया।
गढ़वाली समाचार पत्र ने क्षेत्रीय जनसमस्याओं कुली बेगार, वन आंदोलन, सड़क आंदोलन, महिला जागृति को प्राथमिकता दी।
4.कास्मोपेलेटिन (1910ई०) अंग्रेजी साप्ताहिक समाचार पत्र था।बैरिस्टर बुलाकी राम ने 1910ई० में देहरादून में कचहरी रोड पर भास्कर प्रेस खोल प्रकाशित किया।यह देेेहरादून से प्रकाशित पहला आंग्ला भाषी साप्ताहिक था।
1910 में बद्रीदत्त पांडे ने इस पत्र में काम किया।
5. निर्बल सेवक(1913ई०) साप्ताहिक समाचार पत्र 1913 ई० में प्रकाशित हुआ।वृन्दावन के राजा महेंद्रप्रताप ने देहरादून से इसका संपादन किया।
6. विशाल कीर्ति-प्रकाशित- 1913ई०संपादन- सदानन्द कुकरेती
पौड़ी में ब्रह्मानंद थपलियाल की बद्री केदार प्रेस से फरवरी 1913ई० में विशाल कीर्ति प्रकाशित हुआ और दो साल में बंद हो गया।
7. पुरुषार्थ-प्रकाशन-1917संपादन- गिरिजादत्त नैथानी
गढ़वाल समाचार पत्र बंद होने पर गिरिजादत्त नैथानी ने अक्टूबर 1917 में पुरुषार्थ मासिक पत्र प्रकाशित किया।
पुरुषार्थ बिजनौर में छप दुग्गड्डा से या गिरिजादत्त नैथाणी के पैतृक गांव नैथाणा सेे प्रकाशित होता था ।
1927 को गढ़वाल पत्रकारिता के जनक गिरिजादत्त नैथानी के निधन के साथ ही पुरुषार्थ समाचार पत्र बंद हो गया ।
8. शक्ति
प्रकाशन -18 अक्टूबर 1918 विजयदशमी के अवसर पर
सम्पादक – बद्रीदत्त पांडे
1918 में अल्मोड़ा अखबार प्रतिबंधित हुआ तो बद्रीदत्त पांडे ने यह समाचार पत्र प्रकाशित किया।
1918 में देशभक्त प्रेस लगी और 18 अक्टूबर 1918 को विजयादशमी पर बद्रीदत्त पांडे के सम्पादन में शक्ति का पहला अंक प्रकाशित हुआ।सन 1942-45 तक प्रकाशन बंद रहा।1946 में प्रकाशन पुनः प्रारंभ हुआ।शक्ति समाचार पत्र ने राष्ट्रीय संघर्षों के साथ छोटे-छोटे सामाजिक मुद्दे भी उजागर किये।
9. क्षत्रिय वीर,प्रकाशन -1922,संपादक -प्रताप सिंह नेगी
विशाल कीर्ति के पश्चात पौड़ी से निकला यह दूसरा समाचार पत्र था ।15 जनवरी 1922 को प्रकाशन प्रारंभ हुआ। उद्देश्य क्षत्रिय जाति का सामाजिक व शैक्षणिक आकलन था।
10. कुमाँऊ कुमुद,प्रकाशन -1922,सम्पादन-बसन्त कुमार जोशी
1922 में बसन्त कुमार जोशी ने अल्मोड़ा से यह राष्ट्रवादी प्रकाशन शुरू किया। पूर्व नाम’बाजार समाचार ‘था।
11. तरुण कुमाँऊ,प्रकाशन-1922,सम्पादन-बैरिस्टर मुकंदी लाल
बैरिस्टर मुकंदी लाल ने 1922 में लैंसडोन से ‘तरूण कुमाँऊ’ हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित किया।
1923 में यह बंद हो गया।
12. अभय,प्रकाशन-1928,सम्पादन-स्वामी विचारानन्द सरस्वती
स्वामी विचारानन्द सरस्वती देहरादून में अभय प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे ।अपने राष्ट्रवादी विचारों से स्वाधीनता को प्रेरित करने 1928ईo में साप्ताहिक हिंदी समाचार पत्र अभय प्रकाशित किया।
13. स्वाधीन प्रज्ञा,प्रकाशन-1930,सम्पादन-मोहन जोशी
जनवरी 1930 को ‘स्वाधीन प्रज्ञा’ का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ।10 मई 1930 को पत्र से छः हजार रुपये की जमानत मांगी गई जो किसी भी समाचार पत्र से मांगी गई सर्वाधिक जमानत थी।1932 में यह अखबार बंद हो गया।
14. गढ़ देश-प्रकाशन-1929ई०सम्पादन- कृपाराम मिश्र मनहर
गढ़देश अप्रैल 1929 से कोटद्वार सेे प्रकाशित हुआ।13 जून 1930ई० के अंक के साथ गढ़ देश का प्रकाशन बंद हो गया।
1934ई० में मनहर इसे पुनः प्रकाशित किया। मुद्रण देहरादून से होता था। सरकार विरोधी लेखों पर गढ़देश के संपादक व मुद्रक से 2-2 हजार रुपये जमानत मांगी गयी।जमानत की व्यवस्था न होने पर प्रकाशन बंद हो गया।
15. स्वर्गभूमि-प्रकाशन-1934,संपादन- देवकीनंदन ध्यानी
स्वर्गभूमि पाक्षिक समाचार पत्र का प्रकाशन 15 जनवरी 1934 को हल्द्वानी से हुुआ । 3-4 अंक पश्चात यह बंद हो गया।
16. समता-प्रकाशन-1934ई०। सम्पादन-मुंशी हरिप्रसाद टम्टा
दबेे-कुचले पिछडे समाज को अधिकार दिलाने को हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र समता का प्रकाशन मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने 1934ई० में किया।सन 1935ई० मेंं उत्तराखंड की पहली दलित महिला पत्रकार श्रीमती लक्ष्मी देवी टम्टा अखबार की संपादक बनीं ।
17. हादी ए-आजम-प्रकाशन-1936ई०,सम्पादन- मोहम्मद इकबाल सिद्दीकी
उत्तराखंड की पहली मासिक उर्दू-धार्मिक पत्रिका हादी-ए-आजम 2-3 अंकों बाद 1936ई० में ही बंद हो गयी।
18. हितैषी-प्रकाशन-1936ई०,सम्पादन-पीताम्बर दत्त पारबोल
पीताम्बर पारबोल ने सन 1936ई० में लैंसडोन से हितैषी पाक्षिक का संपादन व प्रकाशन किया। यह अंग्रेज समर्थक था। पीताम्बर दत्त पारबोल को “रायबहादुर”उपाधि मिली।
19. उत्तर भारत-प्रकाशन 1936,संपादन – महेशानंद थपलियाल
महेशानंद थपलियाल ने पौड़ी गढ़वाल में प्रकाशन किया ।यह1937 में बंद हो गया।
20. क्रांतिकारी मानवेन्द्र राय ने 1937 में साप्ताहिक इंडिपेंडेंट इंडिया और रेडिकल ह्यूमनिस्ट प्रकाशित किए। इसी समय ठाकुर चंदसिंह का नेपाली अखबार गोर्खा संसार और विजय रतूड़ी का हिमालय केसरी भी आया।
21. उत्थान-प्रकाशन 1937,संपादन – ज्योति प्रसाद माहेश्वरी
यह साप्ताहिक क्षेत्रीय आंदोलनों व सामाजिक मुद्दों की बेबाक पत्रकारिता से प्रसिद्ध हुआ।
22. जागृत जनता,प्रकाशित -1938,संपादन – पीतांबर पांडे
यह एक सप्ताहिक पत्र था।
उत्तराखंड में पत्रकारिता का तीसरा चरण 1940-47
उत्तराखंड में तीसरे चरण की पत्रकारिता 7 साल रही जब अंग्रेजों भारत छोड़ो व अन्य छोटे-छोटे स्थानीय आंदोलनों में पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. संदेश -प्रकाशन – 1940,संपादन – कृपाराम मिश्रा मनहर
कृपाराम मिश्र ने छोटे भाई हरीराम मिश्र चंचल के सहयोग से सन 1940 में कोटद्वार से संदेश समाचार पत्र प्रकाशित किया।
1939 में मनहर के जेल जाने से समाचार पत्र बंद हो गया ।
2.आचार्य गोपेश्वर कोठियाल ने 1940 में हस्तलिखित ‘रणभेरी’ शुरू किया।
3-समाज -प्रकाशित – 1942,संपादन – राम प्रसाद बहुगुणा
हस्तलिखित समाचार पत्र था। 2 वर्ष तक नियमित छपाा।भारत छोड़ो आंदोलन में रामप्रसाद बहुगुणा के जेल जाने पर पत्र बंद हो गया ।
4-. मसूरी एडवरटाइजर -प्रकाशित – 1942,संपादन – के एफ मेकागोंन
यह समाचार पत्र 1947 में स्वतंत्रता बाद समाचार पत्र बंद हो गया।
5. स्वराज संदेश (1942 )-प्रकाशन – 1942 ई०,सम्पादन- हुलास वर्मा
हिंदी पाक्षिक समाचार पत्र था । सरकार के विरुद्ध समाचार छापने तथा आक्रामक व भड़काऊ लेखों पर हुलास वर्मा से दो बार जमानत मांगी गई।
6-कांग्रेस ने 1942 में ‘ ढिंढोरा’ प्रकाशित कर अंग्रेजों को खूब परेशान किया।
7. युगवाणी 1947,प्रकाशन -1947,संपादन – भगवती पांथरी
इसका पहला अंक 15 अगस्त 1947 को देहरादून से भगवती प्रसाद पांथरी के संपादन में।
टिहरी जनक्रांति में पत्र की महत्वपूर्ण भूमिका थी।पहले पाक्षिक रूप में व फिर साप्ताहिक रूप में प्रकाशित हुआ।
टिहरी रियासत जनक्रांति में युगवाणी की भूमिका देख इसकी तुलना रूसी क्रांति में लेनिन के पत्र इस्रा से हुई।
सन 2001 से युगवाणी स्वर्गीय संपादक आचार्य गोपेेश्वर कोठियाल के पुुुुत्र संजय कोठियाल के संंपादन में मासिक प्रकाशित होती है।
6.प्रजाबन्धु,प्रकाशन- 1947ई०,संपादन- जयदत्त वैला
इसका प्रकाशन 1947ई० में जयदत्त वैला ने रानीखेत से प्रारम्भ किया
उत्तराखंड की पत्रकारिता का चौथा चरण ( 1947 से अब तक)
चौथे चरण में मुख्यत: राजधानी दिल्ली की पत्रकारिता मुख्य धारा रही लेकिन राज्य आंदोलन ने समीकरण बदल दिया जब मेरठ से प्रकाशित दैनिक जागरण और अमर उजाला हवा का रुख भांप आंदोलन के समर्थन में खड़े हो गए। दैनिक जागरण पर तो तत्कालीन सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने हल्ला बोल रिपोर्टरों से लेकर हाकरों तक को पीटा। एस वासू के दून दर्पण और सुभाष शर्मा के हिमालय दर्पण ने भी आंदोलन में जमकर मोर्चा लिया।
-रवीन्द्र नाथ कौशिक