सनसनीखेज नाटकीयता को किसी की जान लेने का पत्रकार का अधिकार नहीं,जमानत खारिज
पत्रकार से यह उम्मीद नहीं है कि वह किसी को मौत के खतरे में डालकर भयावह घटना का नाटक करे और खबर बना ले: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पत्रकार से सनसनीखेज और भयावह घटना का नाटक करने और किसी व्यक्ति को दयनीय स्थिति में मौत के खतरे में डालकर उसकी खबर बनाने की उम्मीद नहीं की जाती है।
न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने एक पत्रकार को जमानत देने से इनकार कर दिया।
पत्रकार पर आरोप है कि उसने एक व्यक्ति को कहकर उकसाया कि अगर वह विधानसभा भवन के सामने आत्महत्या करने की कोशिश करेगा, तो वह उसका वीडियो बनाकर टेलीविजन पर टेलीकास्ट करेगा।
एक पत्रकार की भूमिका के बारे में न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की:
“पत्रकार समाज में होने वाली प्रत्याशित या अचानक होने वाली घटनाओं पर नज़र रखता है और बिना किसी छेड़छाड़ के विभिन्न समाचार मीडिया के माध्यम से सभी लोगों की जानकारी में लाता है, यह उसका व्यवसाय है।”
कोर्ट के सामने मामला
अदालत शमीम अहमद नाम के एक आरोपित द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर आईपीसी की धारा 306/511/109/506/504 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
इस पत्रकार पर “विधानसभा भवन” के ठीक सामने एक व्यक्ति (मृतक) को आग लगाने के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया है, ताकि वह इस घटना की वीडियोग्राफी कर सके और इसे टेलीविजन पर प्रसारित कर सके।
संक्षेप में तथ्य
मृतक का मकान मालिक चाहता था कि वह घर खाली कर दे और 19 अक्टूबर, 2020 को वह मृतका के घर आया और पति को अभद्र भाषा में गाली-गलौज करने लगा और घर खाली करने को कहा।
जब मृतक ने उसे बताया कि वह आर्थिक तंगी में है और घर खाली करने में असमर्थ है, तो मकान मालिक ने उसे डांटते हुए कहा कि अगर वह आवास खाली करने में सक्षम नहीं है, तो वह खुद को आग लगा ले और मर जाए।
इसके बाद, आरोपित पत्रकार ने उसे खुद को आग लगाने के लिए कहा और घटना को कवर करने का वादा किया। इसके अलावा, उसने मृतक से कहा कि यदि ऐसा होता है, तो योजना के अनुसार मामला उजागर हो जाएगा और कोई भी उसे अपने घर से बेदखल करने के लिए मजबूर नहीं करेगा।
कथित तौर पर, आरोपित द्वारा दिए गए उपरोक्त प्रलोभन के तहत सह-अभियुक्त मृतक को “विधानसभा भवन” के सामने लाया, जहां उसने प्रेरित और योजना के अनुसार उस पर तेल डाला और आग लगा दी और आरोपित पत्रकार घटना का वीडियो बना रहा था।
वहां मौजूद पुलिसकर्मी उसे कंबल से ढककर बचाने के लिए दौड़े और उसे अस्पताल ले गए, जहां 24 अक्टूबर, 2020 को उसकी मौत हो गई।
न्यायालय की टिप्पणियां
आरोपी के पास से वीडियो कैमरा और फिल्म, स्वतंत्र गवाह के साक्ष्य और विधानसभा के सी.सी.टी.वी. बरामद हुए। अदालत ने कहा कि गंभीर रूप से जले हुए मृतक को बचाने के बजाय, आरोपी इसे तब तक फिल्माता रहा जब तक कि वह बुरी तरह से झुलस नहीं गया।
इसलिए, अदालत ने पाया कि आरोपी के खिलाफ अभियोजन का मामला प्रथम दृष्टया स्थापित है कि उसने मृतक को मानसिक और वित्तीय संकट में रहने के लिए प्रलोभन दिया और उनसे छुटकारा पाने की योजना बनाई।
अदालत ने आगे कहा कि वह घटना स्थल पर मृतक के साथ मौजूद था और इसे फिल्मा रहा था। इसलिए, आरोपी द्वारा अपनी बेगुनाही का दावा प्रथम दृष्टया स्थापित नहीं किया गया है।
महत्वपूर्ण रूप से कोर्ट ने कहा:
“शिकायतकर्ता (मृतक की पत्नी), जो पहले से ही अपने पति की आर्थिक स्थिति से मानसिक रूप से परेशान है, जिसने आरोपी के प्रभाव में और आत्महत्या कर ली, अगर आरोपी को मुक्त कर दिया जाता है, तो वह खतरे में होगी। वह मामले में मुख्य गवाह है। निष्पक्ष सुनवाई के लिए शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में पूरी तरह से भय मुक्त वातावरण की आवश्यकता होगी। उसे मामले की निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।”
इस प्रकार आरोपित-आवेदक की ओर से पेश की गई जमानत की अर्जी खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक – शमीम अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
इलाहाबाद हाई कोर्ट की गंभीर टिप्पणी, पत्रकार से किसी घटना के सनसनीखेज बनाने की उम्मीद नहीं की जा सकती
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पत्रकार शमीम अहमद की जमानत खारिज कर दी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधान भवन के सामने एक व्यक्ति द्वारा आत्मदाह करने के मामले में कहा कि पत्रकार का काम प्रत्याशित या अप्रत्याशित रूप से घटी घटना पर नजर रखना और उसे बिना तोड़े मरोड़े विभिन्न माध्यमों से लोगों के सामने रखना होता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मानसिक रूप से परेशान एक किरायेदार को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पत्रकार शमीम अहमद की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। अपने आदेश में हाई कोर्ट ने पत्रकार के कृत्य पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि एक पत्रकार से किसी भयावह घटना का सनसनीखेज और नाटकीकरण करने की आशा नहीं की जाती। उससे यह भी उम्मीद नहीं की जाती कि वह मौत जैसे खतरे के समय अपने एक्टर गुण को सामने रख कर खबर को कवर करे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधान भवन के सामने एक व्यक्ति द्वारा आत्मदाह करने के मामले में कहा कि पत्रकार का काम प्रत्याशित या अप्रत्याशित रूप से घटी घटना पर नजर रखना और उसे बिना तोड़े मरोड़े विभिन्न माध्यमों से लोगों के सामने रखना होता है। यह आदेश जस्टिस वीके श्रीवास्तव की एकल पीठ ने शमीम अहमद की जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
हाई कोर्ट ने विचारण अदालत को एक साल के भीतर विचारण पूरा करने का प्रयास करने का आदेश देते हुए स्पष्ट किया कि इस आदेश में की गई टिप्पणियों से वह प्रभावित नहीं होगी। इस मामले की प्राथमिकी मृतक की पत्नी ने 20 अक्टूबर 2020 को हुसैनगंज थाने पर दर्ज कराई थी। उसने कहा था कि उसके पति सुरेंद्र चक्रवर्ती का मकान मालिक जावेद खान से मकान खाली करने को लेकर सिविल कोर्ट में मुकदमा चल रहा था। 19 अक्टूबर 2020 को जावेद ने उसके पति को डांटते हुए कहा कि यदि मकान खाली नही कर सकते तो आग लगाकर मर जाओ।
इस घटना के बाद पत्रकार शमीम अहमद व नौशाद अहमद उसके यहां आये और उसके पति से कहा कि यदि तुम विधान भवन के सामने अपने को आग लगा लो तो मैं उसे शूट करके टीवी पर चला दूंगा जिससे मामला तूल पकड़ जाएगा और जावेद तुम पर मकान खाली करने का दबाव नहीं बना पायेगा। उसके पति दिमागी रूप से परेशान चल रहे थे। अगले दिन वह विधानसभा के सामने गए और आग लगा ली।
अपर शासकीय अधिवक्ता प्रेम प्रकाश ने कोर्ट को बताया कि विवेचना के दौरान मिले सबूतों से स्पष्ट है कि शमीम विधानसभा के सामने पहले से मौजूद थे और चक्रवर्ती ने आकर जब अपने को आग लगाई तो वह वीडियो बनाता रहा जबकि पुलिस ने आकर बचाने की कोशिश की और अस्पताल ले गई जहां 24 अक्टूबर 2020 को उसकी मौत हो गई। कोर्ट ने पूरी घटना पर पत्रकार के रवैये की निंदा की और उसे जमानत देने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने उसके खिलाफ दस मुकदमों के आपराधिक इतिहास को भी संज्ञान में लिया।