जज सूर्यकांत बने अब अभिव्यक्ति की आजादी के वकील,कोर्ट में प्रताड़ित की थी नूपुर शर्मा
‘बोलने की आजादी’ पर जज सूर्यकांत ने दिया ज्ञान,सुप्रीम कोर्ट के इन्हीं मीलॉर्ड ने नुपूर शर्मा के ‘बोल’ बताये थे देश को खतरा
जस्टिस सूर्यकान्त (बाएँ) और नुपूर शर्मा (दाएँ) (चित्र साभार: @NupurSharmaBJP/X & The News Himachal)
नई दिल्ली 13 मई 2024.सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है कि बोलने की आजादी की किसी भी तरह रक्षा होनी चाहिए। इसके लिए सारे कदम उठाए जाने चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ही एक सुनवाई में पूर्व भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा को जिहादियों द्वारा की गई हत्या का जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। बोलने की आजादी की वकालत करने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने नुपूर शर्मा को उनके बयान पर माफी माँगने का निर्देश देते हुए डिबेट में हिस्सा लेने को फटकारा था।
एक किताब के विमोचन में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, कि “इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि बोलने की आजादी के अधिकार को किसी भी तरह बचाने की जरूरत है और हमें उस अधिकार की रक्षा को सभी उपाय करने चाहिए। इसे रोकने को अलग-अलग तरीकों से प्रयास हो सकते हैं,क्योंकि यह एक नई दुनिया है और लोग अलग प्रकार के तरीके और तकनीकें खोजते रहते हैं जिससे बोलने की आजादी छीनी जा सके।”
इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मीडिया के लोगों को विशेषतः बोलने की आजादी हो। “विशेष रूप से,पत्रकारों और मीडिया के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए, चाहे जो भी संवैधानिक प्रतिबंध हों। इनसे परे,अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।”
जो जस्टिस सूर्यकांत अब बोलने के अधिकार बचाने की बात कर रहे हैं,वहीं 2 वर्ष पहले पूर्व भाजपा प्रवक्ता के बोलने को लेकर ही सुप्रीम कोर्ट में ऐसे आगबबूला हुए थे कि नुपूर शर्मा पर सुनवाई के दौरान उन्होंने बोलने को लेकर कई टिप्पणियाँ की थीं।
जस्टिस सूर्यकांत ने उदयपुर में मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद के कन्हैया लाल का गला काटने का जिम्मेदार नुपूर शर्मा को बताया था। जस्टिस सूर्यकांत ने नुपूर शर्मा पर देश में आग लगाने के आरोप लगाए थे। अब बोलने की आजादी बचाने की बात कहने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने तब नुपूर शर्मा को उनके बोलने को लेकर माफ़ी माँगने को कहा था।
जस्टिस सूर्यकांत बोले थे कि नुपूर को खुद खतरा है या वो देश की सुरक्षा को खतरा बन गई हैं? जिस तरह उन्होंने देश में भावनाओं को भड़काया,उसके लिए और देश में जो कुछ हो रहा है उसके लिए उन्हें एकलौता जिम्मेदार माना जाना चाहिए। बोलने की आजादी पर बात करने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई में यहाँ तक कह दिया था कि आखिर न्यूज चैनल ने मुद्दे पर बहस रखी ही क्यों और उसमें नुपूर शर्मा ने उसमें बोला ही क्यों।
सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत ने नुपूर शर्मा के बोलने की आजादी की तुलना गधे के खाने के अधिकार और घास के बढ़ने के अधिकार से कर दी थी। जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी कह दिया था कि मीडिया की तरह नुपूर शर्मा को बोलने की आजादी नहीं हो सकती।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत खीझ गए थे कि नुपूर शर्मा को सलाखों के पीछे क्यों नहीं डाला गया। यह सभी टिप्पणियाँ उन्होंने नुपूर शर्मा की एक याचिका पर सुनवाई में की थीं। नुपूर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका लगाई थी कि उनके खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में दर्ज FIR दिल्ली ट्रांसफर कर दी जाए क्योंकि उनकी जान को खतरा है।
दरअसल, भाजपा प्रवक्ता की हैसियत से नूपुर एक टीवी डिबेट शो में वाराणसी के ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग पर अपनी बात रख रहीं थी। इस दौरान लगातार शिवलिंग पर प्रश्न उठाए जाने के कारण एक मुस्लिम वक्ता से इस्लाम सम्बंधित एक बात कही थी। इसको लेकर बाद में कट्टरपंथियों ने खूब हंगामा किया था। नुपूर शर्मा को ‘सर तन से जुदा’ की धमकियाँ दी गई थीं। उनका सार्वजनिक रूप से बाहर निकलना अभी भी बंद है। नुपूर शर्मा ने इसको लेकर माफ़ी भी मांगी थी।
सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों ने नुपूर शर्मा को ही हर चीज के लिए जिम्मेदार मान लिया था। इसके कारण उन्हें और उनके परिवार को काफी समस्याएँ झेलनी पड़ी हैं। उन्हें लगातार सुरक्षा का खतरा बना हुआ है,वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो पातीं। अब भी उनकी हत्या को लगातार कट्टरपन्थी लगे हुए हैं और इसके लिए सुपारी दे रहे हैं।
गौरतलब है कि जस्टिस सूर्यकांत ने जहाँ नुपूर शर्मा की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणियाँ की थीं और जिहादियों द्वारा कन्हैया लाल के क़त्ल का जिम्मेदार उन्हें ही माना था,वहीं इन बातों का जिक्र आधिकारिक कोर्ट रिकॉर्ड में नहीं किया था। उनकी इन टिप्पणियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली गई थी। इन टिप्पणियों को वापस लेने को कहा गया था। इन टिप्पणियों के कारण लोगों ने आलोचना करते हुए इस बेंच को ‘शरिया कोर्ट’ कहा था।
नुपूर शर्मा पर टिप्पणी करने वाली बेंच में शामिल जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत के विरुद्ध देश की बड़ी हस्तियों ने एक खुला पत्र भी लिखा था। 15 सेवानिवृत्त जजों, 77 रिटायर्ड नौकरशाहों और 25 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने खुला पत्र जारी कर के नूपुर शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की टिप्पणी को ‘दुर्भाग्यपूर्ण और गलत उदाहरण पेश करने वाला’ करार दिया था। उन्होंने लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट के दो जजों द्वारा की गई ताज़ा टिप्पणी ‘लक्ष्मण रेखा’ का उल्लंघन है और हमें इस पर बयान जारी करने को मजबूर होना पड़ा।
यह बात भी ध्यान देने वाली है कि जस्टिस सूर्यकांत ने जजों को होने वाले खतरे की बात कही थी। 2021 में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन वी रमन्ना की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) न्यायपालिका की बिलकुल भी सहायता नहीं करती। इस सुनवाई में बेंच ने अफसोस जताया था कि जांच अधिकारी जजों की चिंताओं को गंभीरता से नहीं लेते है।
ऐसे में इस बात पर अब प्रश्न उठ रहे हैं कि जजों की सुरक्षा की बात करने वाले और बोलने की आजादी को किसी तरह बचाने की वकालत करने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने नुपूर शर्मा को खतरे में होने के बाद हिंसा का जिम्मेदार क्यों माना था और उनसे अपने बयान पर माफ़ी माँगने को क्यों कहा था।
स्वतंत्र भाषण को उत्साहपूर्वक संरक्षित करने की जरूरत है, खासकर पत्रकारों के लिए: न्यायमूर्ति सूर्यकांत
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने हाल ही में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को उत्साहपूर्वक संरक्षित करने की जरूरत है, खासकर पत्रकारों और मीडिया के लिए।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कम करने के लिए नवीन और अलग-अलग तरीके ईजाद किए जा सकते हैं लेकिन ऐसे प्रयासों को अदालतों ने दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया है।
उन्होंने कहा, “इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को उत्साहपूर्वक संरक्षित करने की आवश्यकता है और हमें उस अधिकार की रक्षा के लिए सभी उपाय करने चाहिए। अलग-अलग तरीकों से कुछ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयास हो सकते हैं [स्वतंत्र भाषण के अधिकार को कम करने के लिए] क्योंकि यह एक अभिनव दुनिया है और लोग विभिन्न प्रकार के तरीकों और तंत्रों का आविष्कार करते रहते हैं। कभी-कभी इस अधिकार को कुचलने के लिए इनका दुरुपयोग किया जाता है। लेकिन मुझे लगता है कि हमारा सिस्टम ऐसा है… यह [अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता] न केवल एक संवैधानिक गारंटी है बल्कि गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है। गरिमापूर्ण जीवन के इस अधिकार में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी शामिल है।”
विशेष रूप से पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर, न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि मीडिया पर लगाम लगाने के प्रयासों को अदालतों ने अस्वीकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति कांत वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर एम लाल द्वारा लिखित ‘तुलनात्मक विज्ञापन: कानून और अभ्यास’ नामक पुस्तक के लॉन्च पर बोल रहे थे।
10 मई को आयोजित पुस्तक लॉन्च में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन, दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विभू बाखरू भी उपस्थित थे।
वरिष्ठ अधिवक्ता लाल के साथ न्यायाधीशों ने वरिष्ठ पत्रकार विक्रम चंद्रा द्वारा संचालित चर्चा में भाग लिया।
Free Speech needs to be zealously protected, especially for journalists: Justice Surya Kant
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