हनुमन्नाटक:पूंछ बिना तो सारा सौंदर्य ही बेकार है

त्योहारों का मौसम ख़त्म हो चुका है यानि अब शादियों का मौसम शुरू होगा। देव एकादशी या कार्तिक पूर्णिमा के बाद से विवाह के मुहूर्त निकलने लगते हैं। अब सोचिये कि ऐसी किसी शादी में कोई (आप हो जरूरी नहीं) दम्पति गए हों। वहां पत्नी जी को किसी अन्य युवती की साज-सज्जा या साड़ी पसंद आ जाए। वो पति महोदय को इशारा करके दिखाए, “देखो, उसकी साड़ी कितनी अच्छी है न?” तो इस प्रश्न का क्या जवाब होना चाहिए?

तकनीकी रूप से ये किंकर्तव्यविमूढ़ होने वाली स्थिति है। हाँ और ना दोनों में आगे कुआँ, पीछे खाई होगी ही होगी। अगर पति महोदय कहते हैं हाँ तो कहा जा सकता है कि तुम्हें तो हमेशा दूसरी औरतें ही पसंद आती हैं, मैं तो दिखती ही नहीं! जो कहीं ना कह दिया तो कहा जाएगा कि मुझे जो अच्छी लगे ऐसी कोई चीज़ तुम्हें पसंद आई है कभी? अब बुजुर्गों का तो पता नहीं लेकिन जिनकी शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ, 5-10 साल ही हुए हों, उन्हें इस स्थिति का अनुभव होगा।

अभी इस विकट स्थिति को यूँ ही छोड़कर हम लोग रामायण पर चलते हैं। राम-रावण युद्ध के बाद जब रावण मर चुका तो विभीषण और हनुमान जी अशोक वाटिका से माता सीता को पालकी में लेकर आ रहे थे। उधर पूरा युद्ध लड़ चुकी वानर सेना में ये देखने का कौतुक था कि जिनके कारण सेतुबंध हुआ, सेना-संतति सहित रावण मारा गया वो सीता हैं कैसी? बंद पालकी में कोई देखे कैसे? हालाँकि कोई बोल भी नहीं रहा था लेकिन श्री राम को मनोभाव समझने में देर नहीं लगी।

उन्होंने सीताजी को पालकी से उतर कर पैदल आने के लिए कहा। सीता जी पालकी से उतर कर चलने लगीं तो वानरों और रीछों ने उन्हें निहारते हुए कहा –
अहो सुरम्य वदनारविन्दं सुनासिका बिम्बफलाधरोष्ठम्।
प्रफुल्लपद्मायतलोचनायाः पुच्छं विना तुच्छमिदं हि सर्वम।
मोटे तौर पर इसका मतलब होता है इनकी आवाज कितनी मीठी है, इनकी नाक भी बड़ी नुकीली है, होंठ कितने लाल हैं! इनकी तो आँखें भी कितनी बड़ी बड़ी हैं! अब वानरों ने देखने की कोशिश की कि इनकी पूँछ है या नहीं? जैसे ही दिखा कि इनकी पूँछ नहीं है वानर बोले कि पूँछ के बिना तो सारा सौन्दर्य बेकार ही है ! “पुच्छं विना तुच्छमिदं हि सर्वम्।”

वाल्मीकि रामायण में राम पूर्व का समय देखें तो उस समय जंगल का कानून चलता था। शक्तिशाली कुछ भी लूट सकता था। एक पत्नी जैसी परिपाटी भी नहीं थी। इन्द्र किसी अहिल्या पर कुदृष्टि रख सकता था। बाली किसी रूमा का अपहरण कर सकता था। रावण के लिए अनेक बलात्कार या सीता अपहरण कोई बड़ी अजीब बात नहीं थी। युद्ध समाप्त हुआ तो वानर कहते हैं सुन्दर तो है, लेकिन मेरे लिए सौन्दर्य व्यर्थ है! परिपाटी बदल चुकी थी। किसी और की पत्नी में माता का भाव जागृत करना श्री राम की सबसे बड़ी उपलब्धि रही होगी।

दूसरे के धन को मिट्टी समझने का भाव न हो तो फिर भला दरवाजों पर ताला लगाए बिना काम कैसे चलता? नियम-कानूनों का दबाव किसी को बाहर से ज्यादा देर तो नहीं रोकेगा। आज नहीं तो कल जैसे ही इस अनैतिक व्यक्ति को मौका मिलेगा वो कुछ न कुछ गलत करेगा ही। शायद इसलिए आज कहना पड़ता है कि ईमानदार आदमी वो है जिसे बेईमानी करने का मौका न मिला हो। नैतिक मूल्यों को व्यक्ति के अन्दर प्रतिष्ठित कर देना ही रामराज्य का आधार है।

बाकी जो कठिन समस्या अधूरे पर छोड़कर रामायण पर कूद आये थे, वहां वापस चलें तो “साड़ी अच्छी है, मगर तुम पर ज्यादा अच्छी लगती” कहना शायद सबसे सुरक्षित जवाब होगा। किसी और का सौन्दर्य मेरे लिए बेकार है, ये मानने से बेहतर कोई और विकल्प याद आता हो तो याद दिला दीजियेगा। तब तक हम ये सोचते हैं कि रामायण-गीता पढ़ने के लिए उकसाने के लिए और कौन सा कपट रचा जाए!

(हमने इस श्लोक का सन्दर्भ वाल्मीकि रामायण में ढूँढने की कोशिश की है लेकिन मिला नहीं। संभवतः किसी अन्य रामायण से हो, क्योंकि कथा तो प्रचलित है। अगर किसी को सन्दर्भ पता हो तो कृपया इंगित कर दें।)

“#शेष तुम्हें व्याकरण पता था ना ? ये अतिशयोक्ति अलंकार क्या होता है ?”

“कहाँ तो हम आपकी खूबसूरती में खोये हैं #ईति, कहाँ आप अतिशयोक्ति की बातें कर रही हैं सरकार ! हाउ बोरिंग !”

“वो रहने दो, तुम्हारी तारीफ़ कभी ख़त्म नहीं होने वाली, मुझे पता है | पहले अतिशयोक्ति बताओ |”

“कहाँ आपकी खूबसूरती, जिसे उपरवाले ने चाँद से तौलना चाहा तो चाँद का पलड़ा आसमान तक ऊँचा चला गया | ऊपर वाले तो अब तक उस पल्ले में तारे डाल डाल कर वजन बराबरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं ! और आप हो कि हमसे ख़ूबसूरती की तारीफ छोड़कर, अतिशयोक्ति पूछने में लगी है !”

“अब ये तारीफ कुछ ज्यादा नहीं हो गई ! माय गॉड ! तराजू में ख़ूबसूरती तौलोगे, वो भी चाँद के कम्पेरीजन में | फिर चाँद का वजन इतना कम कि उसका पल्ला असमान तक जाये, और तारों से वजन बराबर करने की कोशिश | माय गॉड देटस हिलैरियस !”

“हिलैरियस !! स्ट्रेंज इन्डीड स्वीटहार्ट !! आपने ही तो अतिशयोक्ति पूछी थी !”

“यू मीन, ये अतिशयोक्ति अलंकार था ?”

“यप्प ! ये हनुमान्नाटक का श्लोक है :

वदनम् अमृत-रश्मिं पश्य कान्ते तवोर्व्याम्
अनिल-तुलन-दण्डेनास्य वार्धौ विधाता |
स्थितम् अतुलयद् इन्दुः खेचरोऽभूल् लघुत्वात्
क्षिपति च परिपूर्त्यै तस्य ताराः किम् एताः ||”

रामायण के अनेक प्रसंगों से आप वाकिफ होंगे। जिसे आज रामेश्वरम् के नाम से जानते हैं वहां से श्री राम ने लंका तक जाने के लिए पुल बनवाया था। भविष्य में उस पुल का दुरूपयोग ना हो इस हेतु से राम रावण युद्ध के समाप्त होने पर राम उसी पुल को तुड़वा भी देते हैं। वैसे अभी भी सेटलाइट से ली गई तस्वीरों में एक पुल के अवशेष जैसा कुछ दिख जाता है। इसे बचाए रखने और तुड़वाने को लेकर भी विवाद रहा है।

फ़िलहाल विवादों को छोड़ते हैं और पुल पर ध्यान देते हैं। वानरों द्वारा समुद्र पर पुल बना देना अपने समय में ही नहीं, आज भी अनूठी घटना होती। जाहिर है लंका से लौटते समय सीता भी इस पुल को देखना चाहती थी। तो राम सीता आदि जब पुष्पक विमान से लंका छोड़कर अयोध्या के लिए निकले तो सीता बार बार नीचे झांककर पुल देखना चाहती थी। पुल तो वहां अब था नहीं, उन्हें नज़र कहाँ से आता ?

इस घटना का जिक्र हनुमन्नाटक में है। सीता बार बार पूछती हैं कि कहाँ है पुल मुझे तो नहीं दिखता ! राम हर बार झांक के कहते, है तो पुल वहीँ नीचे ! कई बार जब ये सवाल जवाब हो चुका तो सीता ने कहा आप मुझे बुद्धू बना रहे हैं। वहां कोई पुल नहीं दिखता। राम का जवाब समझने के लिए थोड़ा सा विज्ञान जानना होगा। दिन में दो बार चाँद के असर से समुद्र में High tide और Low tide होता है। ज्वारभाटा नाम से भी कुछ लोग इसे जानते हैं।

मतलब पूर्णिमा जैसे जैसे नजदीक आएगी, समुद्र का पानी और लहरें ऊपर उठती हैं। अमावस्या के आस पास समुद्र के पानी का स्तर नीचा हो जाता है। यही कारण होता है कि अक्सर पानी के जहाज रात के समय बंदरगाह के अन्दर आते हैं, और सुबह जैसे ही पानी का स्तर घटने से बंदरगाह का पानी समंदर में जाने लगता है तो जहाज उसी लहर के साथ आसानी से बाहर निकल जाते हैं। तो कवी के अनुसार श्री राम ने कहा था :-

दृष्टोऽयं सरितां पतिः प्रियतम! क्वास्ते स सेतुः परं?
क्वेति क्वेति मुहुर् मुहुसस् सकुतकं पृष्टे परं विस्मिते।
अत्रासीद् अयम् अत्र नात्र किमिति व्यग्रे निज-प्रेयसि
व्यावृत्तास्य-सुधानिधिः समभवन् मन्दस्मिता जानकी।।

यानि आपके चाँद जैसे मुखड़े को देखकर समंदर को भी ग़लतफ़हमी हो रही है, वो चाँद का निकट आना समझकर बार बार अपना स्तर बढ़ा लेता है, डूब जाता है इसलिए आप पुल नहीं देख पाती !

एक मुद्दा तो ये भी है, कि इतने इतने साल पहले किसी वैज्ञानिक को ही नहीं, कविता करने वालों को भी ये ज्वार भाटे का पता था मगर खैर।

(एडिट : कई लोगों ने ध्यान दिलाया है कि दिन में दो High tide, और दो Low tide होते हैं, जिनका परिमाण पूर्णिमा और अमावस्या पर और बढ़ जाता है। उस वाक्य को थोड़ा सा सुधारा है। आशा है,अब स्पष्ट हो गया होगा)

✍🏻आनन्द कुमार 

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