बलिदान दिवस: काकोरी क्रांति में आज ही फांसी पाई थी बिस्मिल,ठा. रोशन व अशफाकुल्लाह खां ने

काकोरी काण्ड (अंग्रेजी: Kakori conspiracy) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की योजना में हथियार खरीदने को ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूटने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो नौ अगस्त १९२५ को घटी। इस ट्रेन डकैती में जर्मन निर्मित चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे। इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल 10 सदस्यों ने इस पूरी घटना को परिणाम दिया था।

काकोरी-काण्ड के क्रान्तिकारी


सबसे ऊपर या प्रमुख बिस्मिल थे राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ एवं अशफाक उल्ला खाँ
नीचे ग्रुप फोटो में क्रमश: 1.योगेशचन्द्र चटर्जी, 2.प्रेमकृष्ण खन्ना, 3.मुकुन्दी लाल, 4.विष्णुशरण दुब्लिश, 5.सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, 6.रामकृष्ण खत्री, 7.मन्मथनाथ गुप्त, 8.राजकुमार सिन्हा, 9.ठाकुर रोशानसिंह, 10.पं० रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, 11.राजेन्द्रनाथ लाहिडी, 12.गोविन्दचरण कार, 13.रामदुलारे त्रिवेदी, 14.रामनाथ पाण्डेय, 15.शचीन्द्रनाथ सान्याल, 16.भूपेन्द्रनाथ सान्याल, 17.प्रणवेश कुमार चटर्जी

क्रान्तिकारियों के चलाए जा रहे स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति देने को धन की तत्काल व्यवस्था को शाहजहाँपुर में हुई बैठक में राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने नौ अगस्त १९२५ को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी “आठ डाउन सहारनपुर -लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन” को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व छह अन्य सहयोगियों ने रेल पर धावा बोल सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजी सत्ता हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने,सरकारी खजाना लूटने व यात्रियों की हत्या का प्रकरण चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड और १६ अन्य क्रान्तिकारियों को चार वर्ष से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।

काकोरी काण्ड से पूर्व का परिदृश्य

हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के प्रकाशित विज्ञापन और उसके संविधान को लेकर बंगाल पहुँचे दल के दोनों नेता- शचीन्द्रनाथ सान्याल बाँकुरा में उस समय गिरफ्तार कर लिये गये जब वे यह विज्ञापन अपने साथी को पोस्ट करने जा रहे थे। योगेशचन्द्र चटर्जी कानपुर से पार्टी की मीटिंग करके जैसे ही हावड़ा स्टेशन पर ट्रेन से उतरे, एच०आर०ए० के संविधान की ढेर सारी प्रतियों के साथ पकड़ हजारीबाग जेल में बन्द कर दिया गया।

सरकारी खजाना लूटने का निर्णय

दोनों प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार होने से राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के कन्धों पर उत्तर प्रदेश के साथ बंगाल के क्रान्तिकारी सदस्यों का उत्तरदायित्व भी आ गया। बिस्मिल का स्वभाव था कि वे या तो किसी काम को हाथ में लेते न थे और यदि एक बार काम हाथ में लिया तो उसे पूरा किये बगैर छोड़ते न थे। पार्टी के कार्य हेतु धन की आवश्यकता पहले भी थी किन्तु अब तो आवश्यकता और भी अधिक बढ गयी थी। कहीं से भी धन प्राप्त होता न देख उन्होंने सात मार्च १९२५ को बिचपुरी तथा २४ मई १९२५ को द्वारकापुर में दो राजनीतिक डकैतियाँ डालीं तो परन्तु उनमें कुछ विशेष धन प्राप्त न हो सका। उल्टे डकैतियों में एक-एक व्यक्ति मारा गया। इससे बिस्मिल को आत्मिक कष्ट हुआ। उन्होंने पक्का निश्चय कर लिया कि अब केवल सरकारी खजाना ही लूटेंगे,हिन्दुस्तान के किसी भी रईस के घर डकैती बिल्कुल न डालेंगे।

ऐतिहासिक रेल डकैती

काकोरी काण्ड में प्रयुक्त माउजर की फोटो ऐसे चार माउजर इस ऐक्शन में प्रयोग किये गये थे।

आठ अगस्त को राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के घर पर हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में निर्णय लेकर योजना बनी और अगले ही दिन नौ अगस्त १९२५ को शाहजहाँपुर शहर के रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल १० लोग, जिनमें शाहजहाँपुर से बिस्मिल के अतिरिक्त अशफाक उल्ला खाँ, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल, बंगाल से राजेन्द्र लाहिडी, शचीन्द्रनाथ बख्शी तथा केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), बनारस से चन्द्रशेखर आजाद तथा मन्मथनाथ गुप्त एवं औरैया से अकेले मुकुन्दी लाल शामिल थे; ८ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए।

जर्मनी के माउजरों का प्रयोग

क्रान्तिकारियों के पास पिस्तौलों के अतिरिक्त जर्मन निर्मित चार माउजर भी थे जिनके बट में कुन्दा लगाने से वह छोटी स्वचालित रायफल लगता था और सामने वाले के मन में भय पैदा करता था। इन माउजरों की मारक क्षमता भी अधिक होती थी. उन दिनों ये माउजर आज की ए०के०-४७ रायफल की तरह चर्चित थे। लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और रक्षक के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। पहले तो उसे खोलने की प्रयास किया गया किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए।

असावधानी से दुर्घटना

मन्मथनाथ गुप्त ने उत्सुकतावश यात्री का ट्रैगर दबा दिया जिससे छूटी गोली एक यात्री अहमद अली को लग गयी। उसका वहीं प्राणांत हो गया। शीघ्रतावश चाँदी के सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बाँधकर वहाँ से भागने में एक चादर वहीं छूट गई। अगले दिन समाचार पत्रों से यह समाचार पूरे संसार में फैल गया। ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लिया।

अवरुद्धता और प्रकरण

खुफिया प्रमुख खान बहादुर तसद्दुक हुसैन ने छानबीन और जांच पड़ताल कर बरतानिया सरकार को जैसे ही पुष्टि की कि काकोरी ट्रेन डकैती क्रान्तिकारियों की सुनियोजित योजना है, पुलिस ने काकोरी काण्ड के सम्बन्ध में जानकारी व षड्यन्त्र में शामिल किसी भी व्यक्ति को अवरुद्ध करवाने को पुरस्कार की घोषणा के साथ विज्ञापन सभी प्रमुख स्थानों पर लगाये । पुलिस को घटनास्थल पर मिली चादर में लगे धोबी के निशान से पता चला कि चादर शाहजहाँपुर के किसी व्यक्ति की है। शाहजहाँपुर के धोबियों से पूछने पर मालूम हुआ कि चादर बनारसीलाल की है। बिस्मिल के साझीदार बनारसीलाल से मिलकर पुलिस ने इस डकैती का सारा भेद प्राप्त कर लिया। पुलिस को यह भी पता चला कि नौ अगस्त १९२५ को शाहजहाँपुर से राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ की पार्टी के कौन-कौन लोग शहर से बाहर गये थे और वे कब-कब वापस आये? जब खुफिया तौर से इस बात की पूरी पुष्टि हो गई कि राम प्रसाद ‘बिस्मिल’,जो हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ (एच०आर०ए०) के नेता थे,उस दिन शहर में नहीं थे तो २६ सितम्बर १९२५ की रात में बिस्मिल के साथ पूरे हिन्दुस्तान से ४० लोगों को अवरुद्ध कर लिया गया।

अवरुद्ध व्यक्ति

इस ऐतिहासिक मामले में ४० व्यक्तियों को भारत भर से अवरुद्ध किया गया था। अवरुद्धता के स्थान के साथ उनके नाम इस प्रकार हैं:

आगरा से-चन्द्रधर जौहरी,चन्द्रभाल जौहरी
इलाहाबाद से:शीतला सहाय,ज्योतिशंकर दीक्षित,भूपेंद्रनाथ सान्याल
उरई से:वीरभद्र तिवारी
बनारस से:मन्मथनाथ गुप्त,दामोदरस्वरूप सेठ,रामनाथ पाण्डे
देवदत्त भट्टाचार्य,इन्द्रविक्रम सिंह वमुकुन्दी लाल
बंगाल से-शचीन्द्रनाथ सान्याल,योगेशचन्द्र चटर्जी,राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी,शरतचन्द्र गुहा व कालिदास बोस
एटा से:बाबूराम वर्मा
हरदोई से:भैरों सिंह
जबलपुर से:प्रणवेश कुमार चटर्जी
कानपुर से;रामदुलारे त्रिवेदी,गोपी मोहन,राजकुमार सिन्हा व
सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य
लाहौर से-मोहनलाल गौतम
लखीमपुर से:हरनाम सुन्दरलाल
लखनऊ से:गोविंदचरण कार,शचीन्द्रनाथ विश्वास
मथुरा से:शिवचरण लाल शर्मा
मेरठ से:विष्णुशरण दुब्लिश
पूना से:रामकृष्ण खत्री
रायबरेली से:बनवारी लाल
सहारनपुर से:रामप्रसाद बिस्मिल
शाहजहांपुर से:बनारसी लाल,लाला हरगोविन्द,प्रेमकृष्ण खन्ना,
इन्दुभूषण मित्रा,ठाकुर रोशन सिंह,रामदत्त शुक्ला,मदनलाल
रामरत्न शुक्ला

बाद में गिरफ़्तार

फरार क्रान्तिकारियों में से दो को पुलिस ने बाद में गिरफ़्तार किया था। उनके नाम व स्थान निम्न हैं:

दिल्ली से-अशफाक उल्ला खाँ
भागलपुर से-शचीन्द्रनाथ बख्शी

उपरोक्त ४० व्यक्तियों में से तीन लोग शचीन्द्रनाथ सान्याल बाँकुरा में, योगेशचन्द्र चटर्जी हावडा में तथा राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी दक्षिणेश्वर बम विस्फोट मामले में कलकत्ता से पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे और दो लोग अशफाक उल्ला खाँ और शचीन्द्रनाथ बख्शी को तब अवरुद्ध किया गया जब मुख्य काकोरी षड्यन्त्र केस का फैसला हो चुका था। इन दोनों पर अलग से पूरक प्रकरण दर्ज किया गया।

दस में से पाँच फरार

काकोरी-काण्ड में केवल १० लोग ही वास्तविक रूप से शामिल हुए थे, पुलिस की ओर से उन सभी को भी इस प्रकरण में नामजद किया गया। इन १० लोगों में से पाँच – चन्द्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), अशफाक उल्ला खाँ व शचीन्द्र नाथ बख्शी को छोड़कर, जो उस समय तक पुलिस के हाथ नहीं आये, शेष सभी व्यक्तियों पर सरकार बनाम राम प्रसाद बिस्मिल व अन्य के नाम से ऐतिहासिक प्रकरण चला और उन्हें पांच वर्ष की कैद से फाँसी तक की सजा हुई। फरार अभियुक्तों के अतिरिक्त जिन-जिन क्रान्तिकारियों को एच०आर०ए० का सक्रिय कार्यकर्ता होने के सन्देह में गिरफ्तार किया गया उनमें से १६ को साक्ष्य न मिलने के कारण रिहा कर दिया गया। विशेष न्यायाधीश ऐनुद्दीन ने प्रत्येक क्रान्तिकारी की छवि खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी और प्रकरण को सेशन न्यायालय में भेजने से पहले ही इस बात के पक्के सबूत व गवाह एकत्र कर लिये थे ताकि बाद में यदि अभियुक्तों की तरफ से कोई याचिका भी की जाये तो इनमें से एक भी बिना सजा के छूटने न पाये।

मुल्ला जी की किरकिरी

काकोरी काण्ड का मुकदमा लखनऊ में चल रहा था। पण्डित जगतनारायण मुल्ला सरकारी वकील के साथ उर्दू के शायर भी थे। उन्होंने अभियुक्तों के लिए “मुल्जिमान” की जगह “मुलाजिम” शब्द बोल दिया। फिर क्या था पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ने तपाक से उन पर चुटीली फब्ती कसी: “मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है; अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं। पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से;कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।” मतलब स्पष्ट था कि मुलाजिम वे (बिस्मिल) नहीं, मुल्ला जी हैं जो सरकार से तनख्वाह पाते हैं। वे राजनीतिक बन्दी हैं अत: उनके साथ तमीज से पेश आयें। साथ ही ताकीद भी की कि वे समुद्र तक की लहरें अपने दुस्साहस से पलटने का दम रखते हैं; मुकदमे की बाजी पलटना कौन चीज? इसके बाद किसकी हिम्मत थी जो उनके आगे ठहरता। मुल्ला को पसीने छूट गये और उसने कन्नी काटने में ही भलाई समझी। वह चुपचाप पिछले दरवाजे से खिसक लिया। फिर उस दिन उसने कोई जिरह की ही नहीं।

बिस्मिल की बहस से सनसनी

बिस्मिल की सफाई की बहस से सरकारी तबके में सनसनी फैल गयी। मुल्ला ने सरकारी वकील की हैसियत से पैरवी करने में आनाकानी की। अदालत ने बिस्मिल की १८ जुलाई १९२७ को दी गयी स्वयं वकालत करने की अर्जी खारिज कर दी। उसके बाद उन्होंने ७६ पृष्ठ की तर्कपूर्ण लिखित बहस पेश की जिसे देखकर जजों ने शंका व्यक्त की कि बहस बिस्मिल ने स्वयं न लिखकर किसी विधिवेत्ता से लिखवायी है। अन्ततोगत्वा उन्हीं लक्ष्मीशंकर मिश्र को बहस की इजाजत दी गयी जिन्हें लेने से बिस्मिल ने मना कर दिया था। यह अदालत और सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला की मिलीभगत से हुआ क्योंकि बिस्मिल को मुकदमा खुद लडने की छूट दी जाती तो सरकार निश्चित रूप से मुकदमा हारती।

काकोरी काण्ड का अन्तिम निर्णय

काकोरी काण्ड के चार अमर बलिदानी: (बायें से) राजेन्द्र लाहिडी, अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ एवं ठाकुर रोशनसिंह

२२ अगस्त १९२७ को सुनाये गये फैसले के अनुसार
अशफाकुल्लाह खां और राम प्रसाद बिस्मिल


राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी

राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी व अशफाक उल्ला खाँ को आई०पी०सी० की दफा १२१(ए) व १२०(बी) में आजीवन कारावास तथा ३०२ व ३९६ में फाँसी एवं ठाकुर रोशन सिंह को पहली दो दफाओं में ५+५ कुल १० वर्ष की कड़ी कैद तथा अगली दो दफाओं में फाँसी का आदेश हुआ।

फांसी उपरांत ठाकुर रोशन सिंह

शचीन्द्रनाथ सान्याल, जेल से ही लिखित पश्चाताप प्रकट करते हुए भविष्य में किसी भी क्रान्तिकारी कार्रवाई में हिस्सा न लेने का वचन दे चुके थे जिसके आधार पर उनकी उम्र-कैद बरकरार रही। उनके छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल व बनवारी लाल ने अपना -अपना अपराध स्वीकार करते हुए न्यायालय की कोई भी सजा भुगतने की अण्डरटेकिंग पहले ही दे रखी थी ।उन दोनों को पांच-पांच वर्ष की सजा यथावत रही। चीफ न्यायालय में याचिका करने के बावजूद योगेशचन्द्र चटर्जी, मुकुन्दी लाल व गोविन्दचरण कार की सजायें १०-१० वर्ष से बढ़ाकर उम्र-कैद में बदली गयीं। सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य व विष्णुशरण दुब्लिश की सजायें भी सात वर्ष से बढ़ाकर १० वर्ष की गयी। रामकृष्ण खत्री को भी १० वर्ष के कठोर कारावास की सजा बरकरार रही। खूबसूरत हैण्डराइटिंग में याचिका देने से केवल प्रणवेश चटर्जी की सजा पांच वर्ष से घटाकर चार वर्ष की गई। सबसे कम सजा तीन वर्ष रामनाथ पाण्डेय को हुई। मन्मथनाथ गुप्त, जिनकी गोली से यात्री मारा गया, की सजा बढ़ाकर १४ वर्ष की गयी। एक अन्य अभियुक्त राम दुलारे त्रिवेदी को इस प्रकरण में पाँच वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी।

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