कल्याण सिंह की छह करोड़ में सुपारी लेना ही काल बना डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला की मौत
UP STF ने दी कल्याण को 24 साल अधिक जिंदगी:गोरखपुर के श्रीप्रकाश शुकला ने 1997 में ली थी कल्याण सिंह के हत्या की सुपारी, 1998 में STF ने किया था श्रीप्रकाश का पहला एनकाउंटर
गोरखपुर21अगस्त।श्रीप्रकाश शुक्ला ने 6 करोड़ रुपए में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के हत्या की सुपारी ली थी। इसके बाद 4 मई 1998 को UP STF उसे एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया था।
श्रीप्रकाश शुक्ला ने 6 करोड़ रुपए में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के हत्या की सुपारी ली थी। इसके बाद 4 मई 1998 को UP STF उसे एनकाउंटर में ढेर किया गया।
यह कहानी है यूपी के गोरखपुर के उस डॉन की, जो अपराध और ताकत की सीढ़ियां इस तेजी से चढ़ा, जिस तेजी से GTA वाइस सिटी के मिशन पूरे किए जाते हैं। बहन को छेड़ने वाले का मर्डर करके वह बदमाश बना। फिर कई नेताओं, बदमाशों और पुलिस वालों को मौत के घाट उतार कर कच्ची उम्र में ही बड़ी हैसियत बना ली। देखते ही देखते वह कुछ ही दिनों में बन गया इंडिया का मोस्ट वांटेंड श्रीप्रकाश शुक्ला। एक दौर में यूपी के अखबार उसी की खबरों से रंगे होते थे। गोरखपुर से लेकर राजधानी लखनऊ तक के हर नुक्कड़, चाय की दुकान और पान के ठीहों पर उसी की बातें होती थीं। लेकिन तब हद हो गई, जब उसने प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली।
श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर के मामखोर गांव का रहने वाला था। शहर में वह परिवार के साथ दाउदपुर मोहल्ले में रहता था। जिस मकान में आज सीआईडी का दफ्तर है, वह कभी श्रीप्रकाश का घर हुआ करता था।
श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर के मामखोर गांव का रहने वाला था। शहर में वह परिवार के साथ दाउदपुर मोहल्ले में रहता था। जिस मकान में आज सीआईडी का दफ्तर है, वह कभी श्रीप्रकाश का घर हुआ करता था।
6 करोड़ रुपए में ली थी कल्याण सिंह की सुपारी
उस दौर में इस सुपारी की कीमत थी 6 करोड़ रुपये। श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर के मामखोर गांव का रहने वाला था। शहर में वह परिवार के साथ दाउदपुर मोहल्ले में रहता था। जिस मकान में आज सीआईडी का दफ्तर है, वह कभी श्रीप्रकाश का घर हुआ करता था। पिता शिक्षक थे। शुरुआती दिनों में श्रीप्रकाश पहलवानी में निकल गया। लेकिन साल 1993 में महज 20 साल की उम्र में ही उसका नाम पुलिस रिकॉर्ड में पहली बार आया। शहर के सेंट एंड्रयूज कॉलेज के राकेश तिवारी नाम के युवक ने श्रीप्रकाश की बहन को देखकर तंज कस दी। श्रीप्रकाश ने उसे तत्काल मार डाला और पुलिस से बचने के लिए बैंकॉक भाग गया।
बहन को छेड़ने वाले की कर दी थी हत्या
जब वह वापस लौटा तो उसके मुंह में खून लग चुका था और उसे ज्यादा की दरकार थी। बिहार में मोकामा के सूरजभान उसे गॉडफादर के रुप में मिल गए। धीरे-धीरे उसने अपना साम्रराज्य खड़ा किया और यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल में सारे गैरकानूनी धंधे करने लगा। उसने फिरौती के लिए किडनैपिंग, ड्रग्स और लॉटरी की तिकड़म से लेकर सुपारी किलिंग तक में हाथ डाल दिया। एक अंदाजे के मुताबिक, अपने हाथों से उसने करीब 20 लोगों की हत्या की।
यूपी के माफिया सूची में सबसे ऊपर उसका नाम सुनते ही लोग थर्रा उठते थे। इस बदमाश के हाथ में पहली बार एके-47 देखी गई थी।
बिहार सरकार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की कर दी हत्या
यूपी के माफिया सूची में सबसे ऊपर उसका नाम सुनते ही लोग थर्रा उठते थे। इस बदमाश के हाथ में पहली बार एके-47 देखी गई थी। एके-47 उस समय सिर्फ और सिर्फ फोर्स के बड़े अफसरों के इर्द-गिर्द ही हुआ करती थी। श्रीप्रकाश का खौफ इस कदर आगे बढ़ चुका था कि उसके नाम से कई छोटे-मोटे बदमाश अपना कारोबार करने लगे थे। बात 13 जून 1998 की है। पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज करा रहे बिहार सरकार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की कुख्यात शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला ने बड़े ही नाटकीय अंदाज में हत्या कर दी थी। इस हत्या के बाद यूपी और बिहार के माफियाओं में सिर्फ एक नाम गूंजने लगा श्रीप्रकाश शुक्ला।
विरेंद्र शाही की हत्या कर बन गया क्राइम की दुनियां का बेताज बादशाह
यूपी में श्रीप्रकाश क्राइम की दुनिया की धुरी था, महाराजगंज के लक्ष्मीपुर से विधायक वीरेंद्र शाही की 1997 की शुरुआत में श्रीप्रकाश ने लखनऊ शहर में गोलियों से भून कर हत्या कर दी। इस घटना के बाद यूपी के माफियाओं की पैंट गिली हो गई। बड़े-बड़े माफियाओं ने उसके खौफ से घरों से निकलना बंद कर दिया। श्रीप्रकाश ने अपनी हिट लिस्ट में दूसरा नाम रखा कल्याण सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी का। जो चिल्लूपार विधानसभा सीट से 15 सालों से विधायक थे। जेल से चुनाव जीत चुके थे। श्रीप्रकाश ने अचानक तय किया कि चिल्लूपार की सीट उसे चाहिए। उसने बहुत कम समय में बहुत दुश्मन बना लिए।
4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को चुनकर स्पेशल टास्क फोर्स (यूपी एसटीएफ) बनाई
कल्याण की सुपारी लेना पड़ा महंगा
STF के मुताबिक, प्रभा द्विवेदी, अमरमणि त्रिपाठी, रमापति शास्त्री, मार्कंडेय चंद, जयनारायण तिवारी, सुंदर सिंह बघेल, शिवप्रताप शुक्ला, जितेंद्र कुमार जायसवाल, आरके चौधरी, मदन सिंह, अखिलेश सिंह और अष्टभुजा शुक्ला जैसे नेताओं से उसके रिश्ते थे। मगर उससे एक बड़ी गलती हो गई। उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के हत्या की सुपारी ली। इसकी भनक पुलिस को लगते ही वह हरकत में आ गई और फिर श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए यूपी एसटीएफ का गठन किया गया।
श्रीप्रकाश को ढेर करने के लिए 4 मई 1998 को बनी STF
इसके बाद 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को चुनकर स्पेशल टास्क फोर्स (UP STF) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था। इस बीच 23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। जैसे उसकी कार इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ ने उसे घेर लिया। श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा गया लेकिन वह नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया।
श्रीप्रकाश पर बन चुकी हैं फिल्में
साल 2005 में श्रीप्रकाश शुक्ला की जिंदगी पर फिल्म भी बनी। अरशद वारसी की ‘सहर’ में श्रीप्रकाश को दर्शाया गया है। इसके बाद फिल्म निर्माताओं ने श्रीप्रकाश पर वेब सीरिज सिरीज भी बना डाली। इसका नाम था ‘रंगबाज…