जयंती: किशोरी कनकलता बरूआ ने कचहरी में झंडा फहराते सीने पर खाई थी गोलियां
कनकलता बरुआ
कनकलता बरुआ की प्रतिमा
पूरा नाम कनकलता बरुआ
जन्म: 22 दिसंबर, 1924
जन्म भूमि: असम
बलिदान: 20 सितम्बर, 1942
अभिभावक: कृष्णकांत बरुआ, कर्णेश्वरी देवी
नागरिकता :भारतीय
प्रसिद्धि: स्वतंत्रता सेनानी
विशेष: मई, 1931 में गमेरी गाँव में रैयत सभा आयोजित की गई थी। उस समय कनकलता केवल सात वर्ष की थीं। फिर भी सभा में अपने मामा देवेन्द्रनाथ और यदुराम बोस के साथ भाग लिया।
17 वर्षीय कनकलता बरुआ को अंग्रेजों ने १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गोली मार दी। उन्हें बीरबाला भी कहते हैं। वे असम की निवासी थीं। हर वर्ग से लोगों ने खुद को इस आग में झोंका. लेकिन कुछ को प्रसिद्धि मिली, कुछ को गुमनामी. असम की कनकलता बरुआ वैसी ही बलिदानी हैं जिनको प्रसिद्धि कम मिली. लेकिन इससे उनके नाम की लौ का उजाला कम नहीं होता. कनकलता के जीवन, आंदोलन और बलिदान से जुड़ी खास बातें :
पांच साल की थी कनकलता, मां चल बसी. पिता ने दूसरी शादी की. 13 साल की थी तो पिता भी गुजर गए. कुछ ही दिनों बाद सौतेली मां भी चली गईं. अब इस दुनिया में निपट अकेली रह गईं कनकलता. नानी ने उनको संभाला.
8 अगस्त सन 1942 को मुंबई में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. वहां अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ. कनकलता की तब उम्र ऐसी थी कि घर वाले शादी का दबाव बना रहे थे. कनकलता पूरे मन से आंदोलन में जुटी थी. इसी बीच तेजपुर में तिरंगा फहराने का फैसला हुआ. 20 सितंबर सन 42 का दिन मुकर्रर हुआ. कनकलता के घर से 82 मील दूर गहपुर थाने पर तिरंगा फहराना था. तो सुबह घर के काम निपटाकर वो उधर चल दी.
वहां रास्ते में कनकलता दोनों हाथों में तिरंगा लेकर चल रही थी. नेताओं ने सोचा कहीं लड़की डरकर लौट न जाए. उनकी कानाफूसी से कनकलता सब समझ गई. और उनको भरोसा दिलाया कि डरो मत. हम भागने नहीं क्रांति की आग में खुद को झोंकने आए हैं.
थाने तक पहुंचते पहुंचते भीड़ मतवाली हो गई. सबको जल्दी थी कि सबसे पहले हम झंडा फहराएं. थानेदार पीएम सोम था. वो भीड़ के आगे आ गया. कहने लगा कि आगे मत बढ़ो. गोली चल जाएगी. कनकलता ने उससे कहा हम आपसे लड़ने नहीं, सिर्फ झंडा फहराने आए हैं।
थानेदार ने हड़काया कि अब एक इंच भी आगे मत बढ़ना. लेकिन उसको सुनने वाला कौन था. सबसे आगे कनकलता चली. सिपाही ने गोली चला दी. कनकलता का सीना बींध दिया. दूसरी गोली साथी मुकुंद काकोती को लगी. गोलियां चलनी बंद नहीं हुईं. गोलियां चलती रहीं लोग घायल होते आगे बढ़ते रहे. आखिर साथी रामपति राजखोवा ने तिरंगा फहरा दिया.
साथी शहीद मुकुंद की लाश तेजपुर नगरपालिका के लोग चुपके से जला दिए. लेकिन कनकलता की बॉडी क्रांतिकारी ले जाने में कामयाब रहे. और उनके गांव ले जाकर दाह संस्कार किया।
कहते हैं कि जिस सिपाही ने कनकलता पर गोली चलाई, वो पछतावे से भर गया. कि अपने ही देश की 17 साल की क्रांतिकारी को मैंने मार दिया. वो इतना ज्यादा परेशान हो गया कि इस कुएं में कूदकर जान दे दी.
कनकलता को गोली मारने वाले सिपाही ने इसी कुऐ में कूद कर आत्महत्या कर ली थी
शहीद मुकंद काकोती के शव का तेजपुर नगरपालिका के कर्मचारियों ने गुप्त रूप से दाह संस्कार कर दिया था, किंतु कनकलता का शव स्वतंत्रता सेनानी कंधों पर उठाकर ले जाने में सफल रहे।
कनकलता बरुआ (अंग्रेज़ी: Kanakalata Barua; जन्म- 22 दिसंबर, 1924; बलिदान- 20 सितम्बर, 1942) भारत की ऐसी बलिदानी पुत्री थीं, जो भारतीय वीरांगनाओं की लंबी कतार में जा मिलीं। मात्र 18 वर्षीय कनकलता अन्य बलिदानी वीरांगनाओं से उम्र में छोटी भले ही रही हों, लेकिन त्याग व बलिदान में उनका कद किसी से कम नहीं। एक गुप्त सभा में 20 सितंबर, 1942 ई. को तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया था। तिरंगा फहराने आई हुई भीड़ पर गोलियाँ दागी गईं और यहीं पर कनकलता बरुआ ने बलिदान दिया।
कनकलता बरुआ का जन्म 22 दिसंबर, 1924 को असम के कृष्णकांत बरुआ के घर में हुआ था। ये बांरगबाड़ी गाँव के निवासी थे। इनकी माता का नाम कर्णेश्वरी देवी था। कनकलता मात्र पाँच वर्ष की हुई थी कि उनकी माता की मृत्यु हो गई। उनके पिता कृष्णकांत ने दूसरा विवाह किया, किंतु सन् 1938 ई. में उनका भी देहांत हो गया। कुछ दिन पश्चात् सौतेली माँ भी चल बसी। इस प्रकार कनकलता अल्पवय में ही अनाथ हो गई। कनकलता के पालन–पोषण का दायित्व उसकी नानी को संभालना पड़ा। वह नानी के साथ घर-गृहस्थी के कार्यों में हाथ बँटाती और मन लगाकर पढ़ाई भी करती थी। इतने विषम पारिवारिक परिस्थितियों के बावजूद कनकलता का झुकाव राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की ओर होता गया।
राष्ट्र भक्ति की भावना
जब मई 1931 ई. में गमेरी गाँव में रैयत सभा आयोजित की गई, उस समय कनकलता केवल सात वर्ष की थी। फिर भी सभा में अपने मामा देवेन्द्र नाथ और यदुराम बोस के साथ उसने भी भाग लिया। उक्त सभा के आयोजन का प्रबंध विद्यार्थियों ने किया था। सभा के अध्यक्ष प्रसिद्ध नेता ज्योति प्रसाद अग्रवाल थे। उनके अलावा असम के अन्य प्रमुख नेता भी इस सभा में सम्मिलित हुए थे। ज्योति प्रसाद आगरवाला राजस्थानी थे। वे असम के प्रसिद्ध कवि और नवजागरण के अग्रदूत थे। उनके द्वारा असमिया भाषा में लिखे गीत घर–घर में लोकप्रिय थे। अगरवाला के गीतों से कनकलता भी प्रभावित और प्रेरित हुई। इन गीतों के माध्यम से कनकलता के बाल–मन पर राष्ट्र–भक्ति का बीज अंकुरित हुआ।