कन्नडभाषी पत्रकार दत्तात्रेय होसबले बने संघ में नंबर दो
दत्तात्रेय होसबाले बने RSS में नंबर दो; आप भी जान लीजिए कैसे होता है सरकार्यवाह का चुनाव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सर्वोच्च इकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की दो दिवसीय बैठक शुक्रवार को बेंगलुरु में शुरू हुई। इस बैठक में संघ के नंबर दो का फैसला होना था। शनिवार को सर्वसम्मति से सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले को ये जिम्मेदारी दी गई। होसबाले न केवल 2024 के चुनावों तक, बल्कि 2025 में संघ के स्थापना के शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम के दौरान भी RSS के संगठनात्मक ढांचे को कंट्रोल करेंगे।
अब तक सुरेश भैयाजी जोशी 2009 से सरकार्यवाह यानी महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। तीन साल पहले 2018 में भी उन्होंने पद छोड़ने की पेशकश की थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाया गया था।
संघ में होने वाले बड़े बदलावों के मद्देनजर बेंगलुरु की बैठक महत्वपूर्ण है। यह पहला मौका है, जब हर तीन साल में होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक नागपुर से बाहर हो रही है। आम तौर पर इस सभा में 1,500 प्रतिनिधि भाग लेते हैं, लेकिन इस बार कोरोनावायरस संक्रमण को देखते हुए सिर्फ 450 प्रतिनिधि ही बेंगलुरु में हैं। करीब 1,000 प्रतिनिधि 44 स्थानों से वर्चुअल तौर पर बैठक से जुड़े हैं।
कई भाषा के जानकार हैं होसबाले, 13 साल की उम्र में बन गए थे स्वयंसेवक
दत्तात्रेय होसबाले की मातृभाषा कन्नड़ है, लेकिन वे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, तमिल और मराठी के अलावा कई विदेशी भाषाएं भी जानते हैं। वे कन्नड़ भाषा की मासिक पत्रिका असीमा के संस्थापक और संपादक भी हैं। 1968 में 13 साल की उम्र में ही स्वयंसेवक बन गए थे। 1972 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े और 15 साल तक संगठन महामंत्री रहे।
होसबाले 1975-77 तक चले जेपी आंदोलन में भी शामिल रहे और मीसा कानून के तहत 21 महीने के लिए जेल भी गए। जेल में उन्होंने हाथ से लिखित दो पत्रिकाओं का संपादन किया। 1978 में वे विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता हो गए। अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पूर्वोत्तर भारत में ABVP को आगे बढ़ाने का पूरा श्रेय इन्हीं को जाता है। दत्तात्रेय होसबाले अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड और नेपाल की यात्राएं भी कर चुके हैं। कुछ समय पहले नेपाल में आए भूंकप के बाद संघ की भेजी गई राहत सामग्री, दल के साथ लेकर वही नेपाल गए थे। 2004 में उन्हें संघ का अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख बनाया गया।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भारतमाता का पूजन कर बैठक की शुरुआत की।
कितना महत्वपूर्ण है सरकार्यवाह का पद?
यह समझने के लिए संघ की व्यवस्था को समझना होगा। संघ प्रमुख या सरसंघचालक के लिए चुनाव नहीं होते। संघ प्रमुख अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति करते हैं। केएस सुदर्शन ने ही मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत की नियुक्ति की थी। पर संघ प्रमुख की भूमिका मुख्य तौर पर मार्गदर्शन की होती है। संगठन का सारा कामकाज सरकार्यवाह ही देखते हैं।
सरकार्यवाह का चुनाव हर तीन साल में होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में होता है। तीन साल का ही कार्यकाल भी होता है। आमतौर पर सभा की बैठक मार्च के दूसरे या तीसरे हफ्ते में 3 दिन के लिए होती है और शुक्रवार को शुरू होकर रविवार को खत्म होती है। इस बार यह बैठक दो दिन के लिए है और शनिवार को ही नए सरकार्यवाह की घोषणा हो गई।
जहां तक सालाना बैठक का सवाल है तो वह देशभर में कहीं भी हो सकती है। पर तीन साल में होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक हमेशा से नागपुर में होती आई है। पिछले साल की सालाना बैठक बेंगलुरु में होनी थी, पर अंतिम क्षणों में उसे कैंसिल कर दिया गया था। उस समय तक कई प्रतिनिधि बेंगलुरु पहुंच भी चुके थे।
प्रतिनिधि सभा की इस बैठक में मंच पर सिर्फ भागवत और जोशी ही बैठे। साफ है कि सरकार्यवाह का पद कितना महत्वपूर्ण होता है।
सरकार्यवाह की चुनाव प्रक्रिया में होता क्या है?
सरकार्यवाह का चुनाव आम तौर पर तीन दिन की बैठक में दूसरे दिन होता है। इस साल यह दो दिन की मीटिंग में भी दूसरे दिन ही हुआ। आम तौर पर सरकार्यवाह अपने कार्यकाल में किए गए कामों की जानकारी देता है। साथ ही सूचना देता है कि उसका कार्यकाल खत्म हो गया है, इस वजह से नया सरकार्यवाह चुना जाना चाहिए।
तब वरिष्ठ स्वयंसेवकों में से किसी को चुनाव अधिकारी नियुक्त किया जाता है। कोई वरिष्ठ नेता नए सरकार्यवाह के नाम का प्रस्ताव रखता है। यह नाम आमतौर पर स्वीकार कर लिया जाता है और सरकार्यवाह को निर्वाचित घोषित किया जाता है। चुने जाने के बाद नया सरकार्यवाह ही अपनी टीम की घोषणा करता है। शनिवार को भी इसी तर्ज पर दत्तात्रेय होसबाले का नाम सामने रखा गया, जिस पर सभी ने सहमति दी।
सरकार्यवाह को चुने जाने की मौजूदा प्रक्रिया 1950 के दशक में अपनाई गई थी। आपातकाल (1975-77) के दौरान और 1993 में चुनाव नहीं हुए थे। बाबरी मस्जिद ढांचे के ढहने के बाद संघ को प्रतिबंधित संगठन घोषित किया गया था। इस वजह से 1993 में चुनाव नहीं हुए थे।
बेंगलुरु में आयोजित बैठक में 450 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। करीब 1,000 अन्य प्रतिनिधि वर्चुअल तौर पर इस बैठक से जुड़े।
भैयाजी जोशी को क्यों नहीं मिला एक और विस्तार?
भैयाजी जोशी 74 वर्ष के हो चुके हैं, जबकि उनकी जगह चुने गए होसबाले 65 वर्ष के हैं। अगर भैयाजी जोशी सरकार्यवाह बने रहते तो उनके नेतृत्व में 2025 में RSS का शताब्दी वर्ष मनाया जाता। इस दौरान 2024 के लोकसभा चुनाव भी महत्वपूर्ण हैं। वहीं, 2018 में जोशी पद छोड़ने के संकेत दे चुके हैं। ऐसे में एक और कार्यकाल देना थोड़ा मुश्किल लग रहा था।
संघ के कार्यकारी प्रमुख यानी सरकार्यवाह का कंट्रोल संगठन की प्रत्येक गतिविधि पर होता है। सुरेश भैयाजी जोशी तीन साल का अपना चौथा कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। इससे पहले सिर्फ एचवी शेषाद्री ही लगातार चार कार्यकाल (1987 से 2000) तक सरकार्यवाह रहे थे। अब उनके हटने के बाद यह स्पष्ट है कि संघ के इतिहास में जोशी और शेषाद्री ही ऐसे सरकार्यवाह हैं, जिन्होंने लगातार चार कार्यकाल पूरे किए।
आम तौर पर सरकार्यवाह का चुनाव सह-सरकार्यवाहों यानी संयुक्त महासचिव में से होता है। इसी वजह से भैयाजी जोशी के साथ 6 सह-सरकार्यवाह हैं। दत्तात्रेय होसबाले, सुरेश सोनी, डॉ. कृष्णा गोपाल, मनमोहन वैद्य, बी. भगैया और सीआर मुकुंद का नाम दावेदारों के तौर पर लिया जा रहा है। पर प्रक्रिया के तौर पर यह अनिवार्य नहीं होता क्योंकि 2009 में जब जोशी सरकार्यवाह चुने गए थे, तब वे अखिल भारतीय सेवा प्रमुख थे, सह-सरकार्यवाह नहीं।
होसबाले दो कार्यकाल पूरे करेंगे, तब उनकी उम्र 71 वर्ष होगी और तब तक यह दोनों बड़े कार्यक्रम का संचालन वे कर सकेंगे। इसके अलावा, संघ का दक्षिण पर फोकस है। दक्षिण भारत के कई राज्यों में चुनाव हैं। कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले होसबाले इसमें मददगार हो सकते हैं। ABVP में लंबे समय तक रहने के दौरान दत्तात्रेय के पास संगठन चलाने का अनुभव भी है। हालांकि, डॉक्टर कृष्ण गोपाल, मनमोहन वैद्य का भी नाम सरकार्यवाह पद के लिए चर्चा में था।
क्या बैठक में अन्य विषयों पर भी होती है चर्चा?
हां। प्रतिनिधि सभा में चुनाव और संगठनात्मक कामकाज के साथ-साथ कुछ और मुद्दों पर भी चर्चा हो रही है। राम मंदिर निर्माण को लेकर अब तक हुए कामकाज की समीक्षा होगी। संघ के प्रतिनिधि एक साल की गतिविधियों का ब्योरा भी देंगे। कोरोना के दौरान संघ की भूमिका, शाखाओं पर क्या असर पड़ा और भविष्य में इसके लिए क्या योजना बनाई जाए, इस पर विस्तार से चर्चा होगी।