सुप्रीम कोर्ट पर सिब्बल के बयान से बेटे ने झाड़ा पल्ला, वकीलों और मंत्री ने की आलोचना
कपिल सिब्बल के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के लिए वकीलों ने मांगी अटॉर्नी जनरल की अनुमति
राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के खिलाफ दो वकीलों ने अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की मांग की है। वकीलों ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ दिए गए बयानों पर कार्रवाई शुरू करने की सहमति मांगी है।
नई दिल्ली 09 अगस्त: राज्यसभा सदस्य और सीनियर वकील कपिल सिब्बल के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू हो सकती है। इस मामले में पहल दो वकीलों ने की है। वकीलों ने सोमवार को अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल को अलग-अलग पत्र लिखकर शीर्ष अदालत के फैसलों पर ‘निंदात्मक बयानों’ के लिए राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने को उनकी सहमति मांगी है। न्यायालय की अवमानना कानून की धारा 15 के अनुसार, शीर्ष अदालत के समक्ष आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की अनुमति एक शर्त है। अगर वे अनुमति देते हैं तो सिब्बल पर कार्रवाई शुरू हो सकती है।
दो वकीलों विनीत जिंदल और शशांक शेखर झा ने शीर्ष विधि अधिकारी से पूर्व कानून मंत्री सिब्बल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने को सहमति देने का अनुरोध किया है। झा ने अपने पत्र में कहा कि निंदात्मक भाषण न केवल उच्चतम न्यायालय और उसके न्यायाधीशों के खिलाफ है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट और उसके न्यायाधीशों, दोनों के अधिकार को बदनाम करके शीर्ष अदालत की गरिमा और स्वतंत्र प्रकृति कमजोर करने की कोशिश है।
विनीत जिंदल ने दावा किया है कि सिब्बल के बयानों ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के ‘निर्णयों की निंदा’ की है। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि अगर इस तरह के चलन को अनुमति दी गई तो नेता हमारे देश के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ बेरोक-टोक आरोप लगाना शुरू कर देंगे और यह प्रवृत्ति जल्द ही एक स्वतंत्र न्यायपालिका प्रणाली की विफलता का कारण बनेगी।
अटॉर्नी जनरल को लिखे अपने पत्र में, झा ने दावा किया कि सिब्बल ने अपने भाषण में सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता पर ‘संदेह’ पैदा किया और दुर्भावनापूर्ण इरादे से शीर्ष अदालत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। सिब्बल ने छह अगस्त को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में शीर्ष अदालत के फैसलों पर सवाल उठाए थे। सिब्बल ने जकिया जाफरी मामले में शीर्ष अदालत के हालिया फैसले के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग निवारण कानून के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित याचिकाओं की आलोचना की थी।
Two advocates Seek Attorney General Consent To Initiate Contempt Proceedings Against Kapil Sibal
कोर्ट नहीं आने के लिए स्वतंत्र’, सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाकर अपनों के बीच घिरे कपिल सिब्बल
सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नजर नहीं आती…
वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल अपने बयान के बाद घिर गए हैं। बयान की आलोचना न केवल राजनीतिक जनों ने की बल्कि बार एसोसिएशन ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) के बयान पर बार एसोसिएशन (Bar Association) अध्यक्ष ने कहा कि हार के बाद न्यायिक व्यवस्था को दोष देना ठीक नहीं है। एआईबीए अध्यक्ष आदिश अग्रवाल ने कहा कि सिब्बल का बयान अपमानजनक है |
ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (एआईबीए) के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल ने सिब्बल का बयान को अपमानजनक बता कहा कि अदालत पेश किए गए तथ्यों को देखकर फैसला करती है, वे भारत के संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं। उन्हें वास्तव में संस्था में उम्मीद की कमी महसूस होती है, तो वह अदालतों के सामने पेश नहीं होने को स्वतंत्र हैं।
Kapil Sibal lamenting that he has lost hope in Indian judiciary is contemptuous. Court decides cases by applying facts presented before them, they hold allegiance to the constitution of India. He's a senior & seasoned advocate: Adish Aggarwala, Chairman, All India Bar Association pic.twitter.com/FNvL9a1RRk
— ANI (@ANI) August 8, 2022
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एमके मिश्रा ने कहा कि कुछ मामले हारने के बाद न्यायिक व्यवस्था को दोष देना उचित नहीं है। उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि इस तरह के बयान की कोई सराहना करेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी ने कहा कि संस्था को उच्च सम्मान में रखना चाहिए, क्योंकि यह एक वकील और सांसद होने का कर्तव्य है।
I don't think such a statement can be appreciated by anyone. He was practicing law for a long time,& court gave him so much respect,now at this stage when he has lost a few cases blaming entire judicial system isn't proper: MK Mishra, Chairman, Bar Council of India on #KapilSibal pic.twitter.com/ycEwsxpWVo
— ANI (@ANI) August 8, 2022
कपिल सिब्बल ने एक कार्यक्रम में कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही। सिब्बल ने शीर्ष अदालत के हालिया फैसलों की खुलकर आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह सब बोलते हुए उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है। ‘मैंने यहां 50 साल प्रैक्टिस की है लेकिन अब यह कहने का वक्त आ गया है, अगर हम नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा?’ वह एक संस्था की ओर से आयोजित पीपुल्स ट्रिब्यूनल में बोल रहे थे। कार्यक्रम का फोकस 2002 गुजरात दंगों और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के नरसंहार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर था।
सुप्रीम कोर्ट पर कपिल सिब्बल के बयान से बेटे अखिल ने ही किया किनारा
कपिल सिब्बल ने कहा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं बची. अदालत के आदेश और जमीनी हकीकत में बहुत बड़ा अंतर होता है. सिब्बल ने कहा कि लोगों को सड़कों पर आना होगा. अगर उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें न्याय देगा, तो वे गलत हैं. मैं यह बात 50 साल के अनुभव के साथ कह रहा हूं।
सुप्रीम कोर्ट को लेकर दिए गए कपिल सिब्बल के बयान से अब उनके ही बेटे ने किनारा कर लिया है. कपिल सिब्बल के बेटे अखिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के प्रति नकारात्मक सोच का हल सकारात्मक कानूनी उपाय में छिपा है.
कोर्ट में भरोसा खत्म होने की बात करना गंभीर अपराध है. कोर्ट की अवमानना जनता में ऐसा खौफ पैदा करेगी कि फिर से अदालत, कानून और संविधान में विश्वास जगाना मुश्किल होगा.
बता दें कि कपिल सिब्बल ने 6 अगस्त को कहा था कि मुझे सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं बची है. अदालत के आदेश और जमीनी हकीकत में बहुत बड़ा अंतर बताते हुए सिब्बल ने कहा था कि लोगों को सड़कों पर आना होगा. अगर आपको लगता है कि सुप्रीम कोर्ट आपको न्याय देगा, तो आप गलत हैं. मैं यह बात 50 साल के अनुभव के साथ कह रहा हूं.
संवेदनशील मामले केवल चुनिंदा जजों को ही सौंपे जाते हैं
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों पर सिब्बल ने नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्हें कोर्ट से अब कोई उम्मीद नहीं बची है। अगर आपको लगता है कि सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी, तो आप बहुत गलत हैं। मैं यह सुप्रीम कोर्ट में 50 साल के अनुभव के बाद कह रहा हूं। सिब्बल ने यह बयान शनिवार को कांस्ट्यूशन क्लब आफ इंडिया के दिल्ली में आयोजित पीपुल्स ट्रिब्यूनल में दिया।
50 साल पूरे होने के बाद भी कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं
उन्होंने कहा ‘भले ही कोर्ट कोई भी ऐतिहासिक फैसला सुना दे, लेकिन इससे जमीनी हकीकत शायद ही कभी बदलती हो। इस साल मुझे सुप्रीम कोर्ट के अभ्यास के 50 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन इसके बावजूद भी मुझे कोई उम्मीद नहीं है। हम सुप्रीम कोर्ट के दिए प्रगतिशील निर्णयों की बात करते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर जो होता है, उसमें बहुत बड़ा अंतर है। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने निजता पर फैसला दिया और दूसरी तरफ ईडी के अधिकारी आपके घर आए। इसमें आपकी निजता कहां है।’
गुजरात दंगों की खारिज याचिका पर की आलोचना
सिब्बल ने कहा कि 2002 के गुजरात दंगों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य लोगों को SIT ने क्लीन चिट दे दी थी। इसे लेकर कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई।
धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों को कायम रखना जो ED को एक बड़ा अधिकार देता है। उन्होंने कहा 2009 में छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियानों के दौरान सुरक्षा बलों ने 17 आदिवासियों को मार दिया था। इस घटना की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका को भी खारिज कर दिया गया। यह सभी फैसले जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता में लिए गए थे, जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं। सिब्बल जकिया जाफरी और पीएमएलए अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे।
संवेदनशील मामले केवल चुनिंदा जजों को ही सौंपे जाते हैं
सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि संवेदनशील मामले केवल चुनिंदा जजों को ही सौंपे जाते हैं। इसके चलते कानून को आमतौर पर पहले से पता होता है कि फैसले का परिणाम क्या होगा। मैं ऐसी अदालत के बारे में बात नहीं करना चाहता, जहां मैंने 50 साल तक अभ्यास किया, लेकिन अब बोलने का समय आ गया है। अगर हम नहीं बोलेंगे तो कौन आवाज उठाएगा।
सिब्बल ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि कोर्ट में जो जज बिठाए जाते हैं, केवल समझौता की प्रक्रिया होती है। सुप्रीम कोर्ट जहां यह तय करने की कोई व्यवस्था ही नहीं है कि किस मामले की अध्यक्षता किस बेंच द्वारा की जाएगी। जहां भारत के चीफ जस्टिस तय करें कि किस मामले को कौन सी बेंच कब निपटाएगी वह अदालत कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकती। लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे तो स्थिति नहीं बदलेगी।
स्वतंत्रता तभी संभव जब हम अपने अधिकारों को खड़े हों
भारत में हमारी माई-बाप संस्कृति है, लोग शक्तिशाली के पैरों में गिरते हैं। लेकिन समय आ गया है कि लोग बाहर आएं और अपने अधिकारों की सुरक्षा की मांग करें। स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें।
उन्होंने कोर्ट में पेंडिंग धर्म संसद मामले का भी जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और सरकारों से जवाब मांगा। उन्होंने कहा कि आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया और गिरफ्तार होने पर भी उन्हें 1-2 दिनों में जमानत पर रिहा कर दिया गया। फिर दो सप्ताह के बाद धर्म संसद की बैठकें जारी रखीं।
उन्होंने कहा था कि जिस कोर्ट में जजों को समझौते की प्रक्रिया से बनाया जाता है, जिस कोर्ट में यह सिस्टम नहीं है कि कौन किस तरह के मामलों की सुनवाई करेगा, जिस कोर्ट में सीजेआई फैसला करते हैं कि यह मामला किस बेंच के पास जाएगा, कब जाएगा, कब सुना जाएगा. ऐसा होने पर अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती है.
सिब्बल ने इस दौरान जकिया जाफरी के मामले और ईडी के एक्शन को लेकर आए फैसले पर भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था,’मैंने भी इस कोर्ट में 50 साल काम किया है. मुझे यह पसंद नहीं है कि मैं कोर्ट के बारे में ये बातें कह रहा हूं, लेकिन समय आ गया है. हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा?
उन्होंने आगे कहा था कि वास्तविकता यह है कि जो भी संवेदनशील मामले हैं, जिसमें हम जानते हैं कि समस्या है. वे चुनिंदा न्यायाधीशों के समक्ष सूचीबद्ध हैं. जब ऐसे मामले अदालत के सामने पेश होते हैं तो हम जानते हैं कि परिणाम क्या होने वाला है.