भाजपा की छवि को लगता बट्टा, भ्रष्टाचार नहीं, जिहाद है कश्मीर की मूल समस्या

Jammu-Kashmir Target Killing: In Protest Against The Killings In Kashmir, A Big Demonstration And Fasting For A Day At Jantar Mantar On Saturday
Jammu-Kashmir Target Killing: पता था एक दिन घाटी में फिर शुरू होगा मौत का तांडव, सरकार से यहां हुई थी यह बड़ी चूक
आशीष तिवारी
हमने ऐसे ही संगठन और लोगों से बात की, तो उनका डर और दर्द सामने आया। कश्मीर में लगातार हो रही हो रही टारगेट किलिंग और हत्याओं के विरोध में शनिवार को जंतर-मंतर पर बड़ा प्रदर्शन और एक दिन का उपवास भी होने जा रहा है…
प्रदर्शन करते कश्मीरी पंडित

हम लोगों को पता था एक दिन कश्मीर में फिर से मौत का सिलसिला शुरू होगा। फिर से ये बम फूटेगा और हालात बदतर होंगे। क्योंकि कश्मीर में जो शांति थी, दरअसल वह अंदर ही अंदर एक बड़े तूफान को जन्म दे रही थी। सरकार से बड़ी चूक हुई। कश्मीर में लड़ाई भ्रष्टाचार या अन्य दूसरी चीजों की नहीं है। यहां पर असली लड़ाई जेहाद की है। सरकार को यह बात समझनी होगी। जब तक इस पर चोट नहीं होगी, तब तक स्थितियां अनुकूल नहीं हो सकतीं। कश्मीर में बीते कुछ समय से लगातार हो रही हत्याओं पर कश्मीरी पंडितों और कश्मीर के लोगों के लिए आवाज बुलंद करने वाले संगठन और लोगों का यही कहना है।

कश्मीर में असली लड़ाई जेहाद की

बीते कुछ दिनों से कश्मीर में हो रही लगातार हत्याओं पर कश्मीर के बड़े संगठन रूट्स इन कश्मीर के प्रवक्ता अमित रैना कहते हैं कि कश्मीर की असली समस्या को समझ कर ही घाटी में हो रही हत्याओं को रोका जा सकता है। रैना कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सरकार ने सख्ती नहीं दिखाई या सरकार ने प्रयास नहीं किए। लेकिन कश्मीर में असली लड़ाई जेहाद की है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और आतंकियों की ओर से जेहाद की लड़ाई दिमाग में भरी जा रही है। दरअसल उसी की वजह से यह सारे परिणाम सामने आ रहे हैं। अमित कहते हैं कि उनको और उनके जैसे तमाम कश्मीरी पंडितों को इस बात का अहसास था कि आज नहीं तो कल इस थोड़ी देर वाली शांति का बम फटेगा। क्योंकि घाटी में जो शांति थी वह क्षणिक थी। अशांति के दौरान पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को स्थानीय युवाओं में जहर की तरह जेहाद के नाम पर भरा जा रहा है और यही समस्या की मूल जड़ हैै। .

स्थानीय प्रशासनिक लोगों को बेहतर तरीके से करें इस्तेमाल

कश्मीर घाटी में लंबे समय तक रहने वाले हरि कौल कहते हैं कि सरकार को भी बहुत बारीकी स्तर पर कश्मीर की परिस्थिति पर नजर रखनी होगी। उनका कहना है कश्मीर में कहने को तो जमात-ए-इस्लामी संगठन प्रतिबंधित है। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। जमीनी स्तर पर आज भी यह संगठन न सिर्फ सक्रिय है, बल्कि संगठन से जुड़े लोग अपने मंसूबों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास भी करते रहते हैं। हरि कहते हैं कि दरअसल सरकार को कश्मीर में जिहादी मानसिकता से निपटने के लिए स्थानीय प्रशासनिक लोग को भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना होगा। जबकि ऐसा इस वक्त नहीं हो रहा है। वह कहते हैं कि जो स्थानीय अधिकारी होंगे या लंबे समय से कश्मीर की परिस्थितियों से वाकिफ होंगे, वह न सिर्फ जिहादी मानसिकता का एनकाउंटर कर पाएंगे बल्कि सरकार की मंशा अनुरूप योजनाओं को भी आगे बढ़ाने में मदद कर सकेंगे। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि कोई भी नया पुलिस या प्रशासन का अधिकारी कहीं जाने पर वहां की परिस्थिति को नहीं समझ सकता है, लेकिन कश्मीर एक अलग विषय है। यहां की परिस्थिति से निपटने और समझने के लिए सरकार को स्मार्ट तरीके से बंदोबस्त करने चाहिए। अभी जो हालात हैं वह डरावने हैं।

सरकार को करनी चाहिए थी त्वरित कार्यवाही

रूट्स इन कश्मीर के प्रवक्ता अमित रैना कहते हैं कि यह लापरवाही नहीं तो और क्या है कि जब पहली हत्या होती है उसके बाद भी सरकार कर्मचारियों को स्थानांतरित नहीं कर पाती है। उन्होंने कहा कि जब राहुल भट की हत्या हुई थी, उसी वक्त अगर त्वरित कार्यवाही करते हुए सभी कर्मचारियों को अपनी-अपनी जगहों पर तैनात कर दिया जाता, तो शायद रजनी बाला की हत्या ना होती। वह कहते हैं यह सरकारी ढीला-ढीला रवैया ही है कि राहुल की हत्या के 14 दिन बाद भी अपनी मूल जगह न पहुंचने वाली रजनी बाला की हत्या हो जाती है। अमित कहते हैं कि कश्मीर में समस्याएं देश के अन्य हिस्सों की तरह नहीं है। यहां पर आतंक और दहशत फैलाने वाले लोगों के दिमाग में जेहाद भरा हुआ है। जिसको पाकिस्तान और पाकिस्तान के खुफिया तंत्र के अलावा वहां के आतंकी संगठन घाटी के युवाओं में भर कर कट्टर मुस्लिम आतंकी बना रहे हैं। उनका कहना है कि दहशत सिर्फ हिंदुओं को मार कर ही नहीं फैलाई जा रही है बल्कि मुस्लिमों की भी हत्याएं हो रही हैं। यह हालात बेहतर नहीं है।

कश्मीर में हो रही टारगेट किलिंग पर कश्मीरी पंडितों और वहां के समुदाय से जुड़े लोग शनिवार को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने जा रहे हैं। इस दौरान प्रदर्शन में शामिल लोग शनिवार को कश्मीर में हो रही हत्याओं के विरोध में पूरे दिन का उपवास भी रखेंगे। जम्मू-कश्मीर विचार मंच की ओर से आयोजित होने वाले एक दिवसीय उपवास और विरोध में शामिल होने वाले हेमंत रैना कहते हैं कि कश्मीर में पाकिस्तान के सहयोग से जिहादी जहर भरा जा रहा है। उससे निपटने के लिए ही हमें और सरकार को मिलकर न सिर्फ आगे बढ़ना होगा बल्कि पीड़ितों और पीड़ित परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर एकजुट होना भी होगा।

कश्‍मीर से पलायन, बंगाल हिंसा, शाहीन बाग… घरेलू मोर्चे पर कैसे सरकार की छवि को लग रहा है बट्टा?

अमित शुक्‍ला |
कश्‍मीर में हिंदुओं की हत्‍याओं के मामले ने तूल पकड़ लिया है। इसने 1990 की याद ताजा कर दी है। कश्‍मीरी पंडित और गैर-मुस्लिम घाटी से पलायन करने पर मजबूर हैं। उन्‍हें चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। इसने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर विपक्ष को बरसने का मौका दे दिया है।

Kashmir Protest; CAA Protest; WB Protest; Delhi Riots

हाइलाइट्स
कश्‍मीर में टार‍गेट किलिंग को लेकर सरकार पर हमलावर है पूरा विपक्ष
विदेश नीति में सरकार ने बजाया डंका, पर आंतरिक मोर्चे पर वो तेवर गुम
कश्‍मीर से हिंदुओं के पलायन, बंगाल हिंसा जैसी घटनाओं ने छवि पर डाला असर
Modi Government Image: कश्‍मीर में पिछले कुछ समय में आतंकियों ने चुन-चुनकर गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया है। हिंदुओं की टारगेट किलिंग (Target Killing) के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है। शाहीन बाग से शुरू हुई सुगबुगाहट, बंगाल हिंसा के वक्त चीखों में बदली और अब कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने का मौका दे दिया है। विपक्ष सरकार को घेरने में जुट गया है। हिंदुओं के मसलों पर आक्रामक रहने वाली पार्टी पर आरोप लगने लगे हैं। कश्‍मीर में हिंदुओं की दशा का जिक्र करते हुए भगवा पार्टी से सवाल पूछे जा रहे हैं कि वह कहां है। बेशक, फॉरेन पॉलिसी (Modi Foreign Policy) के मोर्चे पर मोदी सरकार ने डंका बजाया है। लेकिन, यह बात आंतरिक मामलों के प्रबंधन को लेकर नहीं कही जा सकती है। कश्‍मीर से हिंदुओं के पलायन की खबरें मनोबल तोड़ने वाली हैं। बंगाल में चुनावों के बाद हिंसा का नाच पूरे देश ने देखा। दिल्‍ली दंगे, CAA और NRC के विरोध में शाहीन बाग को बंधक बनाकर राजधानी की रफ्तार रोक देने की घटनाएं किसी से छुपी नहीं हैं। इसने घरेलू मोर्चे पर सरकार की छवि पर बट्टा लगाने का काम किया है।

कड़े फैसले लेने का दम भरती रही है सरकार

मोदी सरकार कड़े फैसले लेने का दम भरती रही है। उसने ऐसा किया भी है। कश्‍मीर में आर्टिकल 370 हटाना, पाकिस्‍तान पर सर्जिकल स्‍ट्राइक, नोटबंदी, कोरोना के दौरान देशबंदी जैसे कदम उसकी बानगी हैं। हालांकि, कश्‍मीर में टारगेट किलिंग रोकने, बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा पर अंकुश लगाने और शाहीन बाग जैसी घटनाओं पर उसके तेवर वैसे नहीं दिखे जिसके लिए वह जानी जाती है। इन घटनाओं ने सरकार की सख्‍त और आक्रामक वाली इमेज पर बट्टा लगाया है।

श्म्ने्म्न्म्ने्म््म्ने्म्न्म्ने्?

सीएए-एनआरसी पर सरकार ने नहीं दिखाए आक्रामक तेवर

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) और राष्‍ट्रव्‍यापी नागरिक रजिस्‍टर (NRC) बनाने के प्रस्‍तावों के खिलाफ देशभर में कई जगह प्रदर्शनों का दौर चला। दिसंबर 2019 में असम, दिल्‍ली, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में इसका तीखा विरोध शुरू हुआ। बाद में विरोध की आग देशभर में फैल गई। दिल्‍ली का शाहीन बाग इसका सिंबल बन गया था। प्रदर्शनकारियों ने महीनों इसे बंधक बनाकर राजधानी की सांसें रोक दी थीं। हालांकि, अपने रुख के उलट सरकार ने यहां एहतियात बरती। यहां तक सुप्रीम कोर्ट ने तब कह दिया था कि किसी को अपने अधिकारों के इस्तेमाल के लिए दूसरे के अधिकारों को कुचलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

शाहीन बाग की तरह दिल्ली के अन्य इलाकों में भी सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने मुख्य मार्गों पर जुटना शुरू किया था। हालत ऐसी हो गई थी कि तत्‍कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से ठीक पहले राष्ट्रीय राजधानी में दंगे भड़क गए थे। जाफराबाद समेत दिल्ली के कई हिस्सों में ये दंगे हुए थे। हालांकि, सरकार ने इसे बहुत आक्रामक तरीके से हैंडल नहीं किया।

बंगाल चुनाव के बाद हिंसा पर भी कड़े रुख का रहा इंतजार

केंद्र सरकार का कुछ ऐसा ही रवैया पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में देखने को मिला। इस हिंसा में कई लोगों ने जान गंवाई। चुन-चुनकर लोगों का निशाना बनाया गया। हिंसा की जांच के आदेश भी दिए गए। लेकिन, जमीनी हकीकत यह है कि इसमें कसूरवार अब तब खुलेआम घूम रहे हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव घोषित होने के दिन हिंसा का दौर शुरू हुआ था। इसमें मुख्‍य रूप से टीएमसी विरोधियों को हिंसा और बर्बरता का सामना करना पड़ा। उनके घरों में आगजनी की गई। महिलाओं के साथ दुर्व्‍यवहार हुआ। यह और बात है कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने इसे लेकर बहुत कड़ा रुख अख्तियार नहीं किया।

र्ष्ट्किि्कि्किि्क्किि्कि्

कश्‍मीर मसले पर विरोध में खुले मुंह

अब कश्‍मीर मसले पर सरकार के खिलाफ विरोधियों के मुंह खुल गए हैं। दरअसल, आतंकियों ने पिछले कुछ समय में कश्‍मीर में चुन-चुनकर गैर-मुस्लिमों की हत्‍याएं की हैं। हत्‍याओं का यह दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते मंगलवार को आतंकियों ने कुलगाम में जम्मू के सांबा जिले की रहने वाली एक महिला शिक्षक सहित तीन लोगों की हत्‍या कर दी थी। 18 मई को आतंकियों ने उत्तरी कश्मीर के बारामूला में एक शराब की दुकान में घुसकर ग्रेनेड फेंका था। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। तीन अन्य घायल हो गए थे। 24 मई को श्रीनगर में आतंकियों ने एक पुलिसकर्मी सैफुल्ला कादरी की उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके ठीक दो दिन बाद बडगाम में एक टीवी एक्‍ट्रेस अमरीन भट्ट की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 12 मई को आतंकियों ने कश्मीर के बडगाम जिले के चदूरा इलाके में कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या कर दी थी। इसके बाद से कश्‍मीरी पंडित सहमे हुए हैं। वो न केवल सरकार का विरोध करने लगे हैं बल्कि पलायन करने पर भी मजबूर हुए हैं। कश्‍मीर में सुरक्षा के मसले पर विपक्ष भी सरकार पर हमलावर है।

कैसे सरकार की छवि को लग रहा है बट्टा?

कश्‍मीर से हिंदुओं का पलायन और उनमें डर की भावना बैठना कतई अच्‍छी खबर नहीं है। यह आतंकियों की जीत है। वो यही चाहते थे। यह सरकार पर भी सवाल खड़े करता है। इससे पता चलता है कि वह अपने वादे को पूरा करने में कामयाब नहीं हुई है। कश्‍मीर की ताजा घटनाएं हों या बंगाल और दिल्‍ली दंगों की वारदातें, इसने सरकार के लिजलिजेपन को दिखाया है। ये सभी बीजेपी की छवि पर बट्टा लगाने वाली हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *