केरल मॉडल रॉकस्टार सैलजा पैदल, विजयन ने दामाद को बनाया मंत्री
केरल की सियासत:रिकॉर्ड मतों से जीतने वाली रॉकस्टार मंत्री शैलजा को कैबिनेट में जगह नहीं; भावी CM मानी जा रही थी
स्वास्थ्य मंत्री शैलजा बोलीं- मैं अनुशासित सिपाही, जो जिम्मेदारी मिलेगी, उसे निभाऊंगी – Dainik Bhaskar
स्वास्थ्य मंत्री शैलजा बोलीं- मैं अनुशासित सिपाही, जो जिम्मेदारी मिलेगी, उसे निभाऊंगी
तिरूवनंतपुरम 19मई(ए के शादी) काेराेना महामारी से निपटने के ‘केरल माॅडल’ को दुनियाभर में पहचान मिली। इस उपलब्धि में सबसे अहम भूमिका रही पिनरायी विजयन सरकार की स्वास्थ्य मंत्री शैलजा की। उन्हें ‘कोरोना स्लेयर’ (कोरोना को मार गिराने वाला) तक कहा जाने लगा। विजयन सरकार हाल ही के चुनाव बाद ऐतिहासिक जीत के साथ सत्ता में लौटी तो उसके पीछे एक कारण यह उपलब्धि भी रही। इसके बावजूद मुख्यमंत्री विजयन दूसरी बार जब अपनी टीम (मंत्रियों की) बना रहे हैं, तो उसमें शैलजा का नाम नहीं है। इससे खुद वाम माेर्चा (एलडीएफ) के लोग हैरान हैं।
वैसे, शैलजा ने काेराेना नियंत्रण में ही नहीं राजनीति में भी झंडे गाड़े थे। विधानसभा चुनाव में उन्हाेंने मट्टानूर सीट पर रिकॉर्ड 61,035 वाेट के अंतर से जीत हासिल की। केरल में यह जीत का नया कीर्तिमान रहा। इसे केरल और उसके बाहर के लोगों ने कोरोना की दो लहरों से बखूबी मुकाबले की उनकी रणनीति पर मोहर की तरह देखा।
इससे पूर्व 2018 में राज्य में घातक निपाह वायरस भी फैला था। उससे जंग के उनके नेतृत्व की भी कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने तारीफ की थी। इसीलिए माना जा रहा था कि इस बार वे मुख्यमंत्री विजयन के नेतृत्व वाली सरकार में नंबर दो की हैसियत पर रह सकती हैं। पर उन्हें अब पार्टी सचेतक की जिम्मेदारी दी जा रही है।
विजयन को वाम गठबंधन ने अपना फिर नेता चुन लिया है। वे 20 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। वहीं इस घटनाक्रम पर सैलजा ने कहा कि वह माकपा की अनुशासित कार्यकर्ता हैं। जो भी जिम्मेदारी पार्टी देगी, वह उसे निभाएंगी। उन्होंने कहा कि पार्टी नए चेहरे सरकार में लाना चाहती है। ताकि शासन को नई सोच, नई दिशा मिले।
वैक्सीन की एक भी डोज खराब नहीं होने दी
स्वास्थ्य और समाज कल्याण मंत्री के रूप में शैलजा केरल में दोनों कोरोनावायरस तरंगों के कुशल संचालन के लिए एक ब्रांड बनकर उबरी थीं। देश में वायरस का पहला मामला केरल में आया, इसके बाद उन्होंने और उनकी टीम ने हर चुनौती का बेहतर तरीके से सामना किया। महामारी से लड़ने के ‘केरल मॉडल’ को व्यापक रूप से मान्यता मिली। यहां तक कि टीकाकरण में भी शून्य बर्बादी का मॉडल पेश किया। राज्य को मिले 65 लाख टीकों में से एक भी डोज नहीं खराब हुई।
कैबिनेट में आखिर शैलजा क्यों नहीं?
सूत्र बताते हैं कि शैलजा को नई मंत्रिपरिषद में जगह न देने के पीछे विजयन की एकछत्र राज की मंशा और माकपा की अंदरूनी लड़ाई है। राजनीतिक जानकार उनको भावी मुख्यमंत्री के रूप में भी देखते हैं। शायद यही विजयन को अपने लिए चुनौती लगी है।
पार्टी सांसद ने कहा- नीतिगत फैसला है
माकपा के राज्यसभा सदस्य इलामालाेम करीम ने कहा कि सैलजा को शामिल न करना नीतिगत फैसला है। मुख्यमंत्री के अलावा किसी काे दूसरा कार्यकाल नहीं मिला है। उन्होंने कहा, ‘हमारे नेता सत्ता के भूखे नहीं है। सैलजा के योगदान की पार्टी बहुत कद्र करती है।
शैलजा की नेकी को ‘सजा’, CM विजयन ने दामाद को मंत्री पद से नवाजा!
अपनी नई कैबिनेट में पिनराई विजयन ने अपने दामाद को तो शामिल किया लेकिन उस शख्स यानी केके शैलजा को शामिल करना भूल गए जिनकी बदौलत अभी कुछ दिनों पहले तक कोविड के मद्देनजर केरल सरकार की खूब तारीफ़ हुई थी. बताया ये भी जा रहा है कि विजयन ने अपनी पुरानी सरकार के सभी मंत्रियों को बदल कर एक बिल्कुल नई तरह का एक्सपेरिमेंट किया है.
साल 2020. ये साल भारत इसलिए भी नहीं भूलेगा क्योंकि यही वो समय था जब पूरे विश्व के साथ साथ भारत ने भी कोरोना का कोप झेला. जो अब भी बदस्तूर जारी है. भारत में Covid 19 से पहली मौत भले ही देश की राजधानी दिल्ली के जनकपुरी में हुई हो लेकिन जो सबसे पहला मामला देश में कोरोना का दर्ज हुआ, वो केरल से था. पहले कोविड 1 और अब ये दूसरी लहर देश के तमाम राज्य एक तरफ केरल एक तरफ. जिस तरह बिना केंद्र को घेरे में लिए केरल ने कोविड की रोकथाम के लिए काम किया वो तारीफ के काबिल है. जिसका श्रेय यदि किसी को जाता है तो वो कोई और नहीं बल्कि राज्य की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा होंगी. लेकिन इसे विडंबना कहें या कुछ और शैलजा ने जो नेकी अपने कार्यकाल में की थी वो राज्य के मुख्यमंत्री विजयन की बदौलत दरिया में चली गई है.
बीते दिनों हुए पांच राज्यों के चुनाव में केरल में वामदलों का इकबाल बुलंद हुआ है और पिनराई विजयन को दोबारा राज्य की कमान संभालने का मौका मिला है. अपनी नई कैबिनेट में पिनराई विजयन ने अपने दामाद को तो शामिल किया लेकिन उस शख्स यानी केके शैलजा को शामिल करना भूल गए जिनकी बदौलत अभी कुछ दिनों पहले तक कोविड के मद्देनजर केरल सरकार की खूब तारीफ़ हुई थी. बताया ये भी जा रहा है कि विजयन ने अपनी पुरानी सरकार के सभी मंत्रियों को बदल कर एक बिल्कुल नई तरह का एक्सपेरिमेंट किया है.
अपनी नयी कैबिनेट से शैलजा को हटाकर पी विजयन ने बता दिया की राजनीति में काम करने वालों की कोई कद्र नहीं है
दक्षिण भारत की राजनीति संपूर्ण भारत से अलग है. केरल में बड़े बदलाव की संभावना का अंदाजा तो उसी वक़्त लग गया था जब मुख्यमंत्री ने 2021 केरल विधानसभा चुनाव के लिए टिकटों का बंटवारा किया था. मगर बदलाव का नतीजा कुछ ऐसा होगा इसके विषय में बड़े से बड़े राजनीतिक पंडितों को भी अंदाजा नहीं था. नई कैबिनेट में विजयन ने अपने दामाद मुहम्मद रियास सहित 11 मंत्री बनाए हैं. मामले में जो सबसे दिलचस्प बात है वो ये है कि विजयन को छोड़ राज्य की कमान संभालने वाले सभी चेहरे नए हैं.
गौरतलब है कि जहां एक तरफ पिछले मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य को इसबार मौका नहीं दिया गया है तो वहीं विजयन को केवल मुख्यमंत्री ही नहीं , बल्कि पार्टी के संसदीय दल का नेता भी चुना गया. मामले में CPI(M) के प्रवक्ता एएन शमशीर का बयान भी आया है जिन्होंने कहा है कि केरल का न्य मंत्रिमंडल युवाओं और वरिष्ठों के मेल से बना है. मामले में मुद्दा पी विजयन का दोबारा मुख्यमंत्री बनना नहीं बल्कि दामाद पीए मुहम्मद रियास को शामिल करना और कोविड महामारी में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली केके शैलजा को हटाना है.
ध्यान रहे कि जिस वक्त केरल विधानसभा चुनावों की तैयारियां अपने पूरे शबाब पर थीं शैलजा के चेहरे को पूरे प्रदेश में एक आइकॉन की तरह पेश किया गया. विजयन की इस रणनीति का उन्हें फायदा भी मिला और नतीजा हमारे सामने है. केरल में जिस तरह विजयन ने शैलजा को दूध में पड़ी मक्खी की तरह अलग किया उसके पीछे एक बड़ा कारण आम जनमानस के बीच पूर्व स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा की लोकप्रियता को भी माना जा रहा है.
केरल की राजनीति को समझने और उसका आंकलन / विश्लेषण करने वाले लोगों में एक बड़ा तबका ऐसा है जो इसबात पर एकमत है कि केके शैलजा का आम लोगों के बीच इस तरह पॉपुलर होना मुख्यमंत्री विजयन की बेचैनी बढ़ा रहा था. केरल में जिस तरह लोग केके शैलजा को हाथों हाथ ले रहे थे विजयन को लगातार ये डर बना हुआ था कि शैलजा का कद उनकी इमेज को प्रभावित कर उन्हें मुसीबत में डाल सकता है.
कुल मिलाकर केरल में जिस तरह शैलजा को मुख्यमंत्री ने दूध में पड़ी मक्खी की तरह अलग किया है वो इसलिए भी अखरता है क्योंकि कोविड नियंत्रण में उन्हीं के प्रयासों की बदौलत केरल ने ऐसा बहुत कुछ कर दिया है जो दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हरियाणा जैसे राज्यों और उनके मुख्यमंत्रियों के लिए किसी सुहाने सपने की तरह है.
केरल में बदलाव की बयार के नामपर जो सुलूक मुख्यमंत्री ने पूर्व स्वास्थय मंत्री केके शैलजा के साथ किया है उसने एक साथ कई सवालों को जन्म दे दिया है. केरल में शैलजा की इस हालत के बाद जो सबसे बड़ा सवाल सामने आ रहा है वो ये कि कोविड नियंत्रण के नाम पर जिस शैलजा के प्रयासों को लेकर इतना हो हल्ला मचाया गया. प्रोपोगेंडा फैलाया गया यदि उनके काम करने का तरीका इतना ही सटीक था तो सीनियर होने के नाते विजयन ने उन्हें अपनी दूसरी कैबिनेट में जगह क्यों नहीं दी. इस सवाल का जवाब CPI (M) ने ये कहकर दिया कि टीम को पूरी तरह बदल देना पार्टी की नीति है.
CPI (M) के जवाब से एक नया सवाल जो खड़ा होता है वो ये कि यदि टीम चेंज करना पार्टी की नीति है तो आखिर उसे सांप तब क्यों सूंघ गया जब उसने विजयन को देखा. बात सीधी और साफ है बात जब पार्टी की है तो नियम सभी के लिए एक बराबर होने चाहिए.
बात चूंकि ये भी है कि केरल में किसको क्या मिलेगा तो इस प्रश्न का भी जवाब पार्टी ने दिया है. CPI (M) कहा है कि किस मंत्री को कौन सा विभाग मिलेगा, ये मुख्यमंत्री ही तय करेंगे. केरल में तो सुगबुगाहट इस बात की भी है कि कैबिनेट के सभी नाम विजयन ने ही तय किए हैं इसलिए अगर वहां पत्ता भी हिलेगा तो इसका पूरा अपडेट उन्हें मिलेगा.
कौन हैं पीए मुहम्मद रियास? कैसे इनकी बदौलत केरल की राजनीति गरमाई है?
पीए मुहम्मद रियास, वो एक नाम जिसने केरल की राजनीति में इंटरेस्ट लेने वाले सभी को आश्चर्य में डाल दिया है. जून 15, 2020 को विजयन की बेटी वीणा से शादी करने वाले मुहम्मद रियास रिश्ते के लिहाज से तो मुख्यमंत्री पी विजयन के दामाद हैं मगर विजयन के दामाद होने के अलावा पीए मुहम्मद रियास की अपनी एक अलग राजनीतिक पहचान भी है. पीए मुहम्मद रियास, CPI(M) के यूथ विंग ‘डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. कोझिकोड के बेपोर से टिकट पाने और जीतने वाले मुहम्मद रियास ने 2009 में इसी इलाके से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
बहरहाल, विजयन के लिए इतना सब करने के बावजूद जिस तरह केरल में के के शैलजा का पत्ता कटा उससे इतना तो साफ़ हो गया है कि चाहे बॉलीवुड हो या राजनीति जीत हमेशा नेपोटिज्म की ही होती है. बाकी शैलजा के साथ जो कुछ भी हुआ उससे शिक्षा हमें बस यही मिलती है कि आदमी हो या औरत उसे फैंटम नहीं बनना चाहिए और यदि वो हिंदुस्तान जैसे देश में हो और राजनीति करें तो उसे बिलकुल भी फैंटम नहीं बनना चाहिए.