काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का होगा पुरातात्विक सर्वे
काशी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पुरातात्विक सर्वे को स्थानीय अदालत से मंजूरी मिली, मस्जिद कमेटी ने कहा- हाईकोर्ट जाएंगे
वाराणसी 08 अप्रैल।वाराणसी में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर ऐतिहासिक मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी। हिंदू समुदाय इसे अपना ऐतिहासिक स्थल मानता है।
काशी की ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण को मंजूरी मिल गई है। सर्वेक्षण का खर्च सरकार उठाएगी। वाराणसी फार्स्ट ट्रैक कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी ने गुरुवार को यह फैसला दिया। उन्होंने सर्वे कराने के लिए एक कमीशन बनाने का आदेश भी दिया है। इससे पहले दो अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
सर्वेक्षण की मांग को लेकर हरिहर पांडे की तरफ से याचिका दायर की गई थी। अदालत के आदेश के बाद हरिहर पांडे ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि इस फैसले से विश्वनाथ मंदिर परिसर से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाने का रास्ता साफ होगा। उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है जिसके लिए हमने लंबी लड़ाई लड़ी है।
वहीं मस्जिद की इंतेजामिया कमेटी से जुड़े सैयद यासीन ने पत्रकारों से कहा कि वे फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि कमेटी सर्वे करने के लिए किसी को मस्जिद में दाखिल नहीं होने देगी। यासीन के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए हरिहर पांडे का कहना है कि पुरातत्व विभाग सुरक्षाकर्मियों के साथ आएगा, उन्हें रोकना मस्जिद कमेटी के बस के बाहर है। अब सर्वे भी होगा और सच भी सामने आएगा।
वाराणसी में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर ऐतिहासिक मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी। हिंदू समुदाय इसे अपना ऐतिहासिक स्थल मानता है। वहीं मुसलमान इसे अपना पवित्र स्थान मानते हैं। 1991 में केंद्र सरकार सभी धर्मस्थलों से जुड़े विवादों में यथास्थिति बनाए रखने के लिए एक कानून लाई थी। हालांकि, अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था।
इस कानून में 1947 से पहले जो धर्मस्थल जिस स्थिति में था, उसी में रहेगा। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद वाराणसी का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद को भी इसी कानून में सुरक्षा मिली हुई है। इस मस्जिद से किसी तरह की छेड़छाड़ केंद्र सरकार के कानून का उल्लंघन होगा।
मामले में वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी द्वारा परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील पर पक्षकारों की बहस पूरी हो चुकी है। पूर्व में बहस के दौरान दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) आशुतोष तिवारी ने दो अप्रैल को निर्णय के लिए आठ अप्रैल की तिथि तय कर दी थी। आखिरकार लंबे समय बाद ज्ञानवापी मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की अपील (प्रार्थना पत्र) को कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। वहीं, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने कहा कि वह फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और इसे हाइकोर्ट में चुनौती देंगे। अदालत के फैसले को लेकर परिसर में काफी गहमागहमी का दौर सुबह से ही बना रहा, लंच के बाद दोपहर ढाई बजे फैसला आते ही प्रकरण को लेकर चर्चा का माहौल बना रहा।
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के मामले में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की अपील (प्रार्थना पत्र) को कोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले के दौरान मंजूर कर लिया है। वहीं इस मुकदमे के मामले में सुनवाई के क्षेत्राधिकार को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने सिविज जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक के कोर्ट में सुनवाई करने के लिए अदालत में क्षेत्राधिकार को चुनौती दी थी। बीती 25 फरवरी 2020 को सिविल जज सीनियर डिवीजन ने इस चुनौती को खारिज कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने जिला जज के यहां निगरानी याचिका दाखिल की थी जिस पर 12 अप्रैल को सुनवायी होनी है। उधर, इसी मुकदमे की पोषणीयता को लेकर हाइकोर्ट में भी सुनवायी चल रही है। इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से बहस भी पूरी हो चुकी है, इस पर हाइकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।
कोर्ट में चली लंबी जिरह
इस बाबत प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में दलील दी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की इसके निर्धारण के लिए साक्ष्य की आवश्यकता है। विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता, बल्कि ज्ञानवापी परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है। जिसे पुरातात्त्विक विभाग जांचकर वस्तुस्थिति स्पष्ट कर सकता है कि ढांचा के नीचे कोई मंदिर था अथवा नहीं। तथ्यों के आधार पर प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा के दीवारों में अंदरुनी और बाहरी तौर पर विद्यमान बताए गए हैं। पुराने मंदिर के दीवारों और दरवाजों को चुनकर वर्तमान ढांचा का रुप दिया गया बताया जाता है। कहा गया है कि पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। वहीं वर्तमान ज्योर्तिलिंग की स्थापना 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराई थी। यह भी दलील दी गई कि अयोध्या केस में भी पुरातात्विक विभाग से रिपोर्ट मंगाई गई थी, जिसके बाद ही अंतिम फैसला आया था।