मत: बागेश्वर धाम सरकार की प्रजा पहचानिए, ये कोई धार्मिक मनोरंजन नहीं है
बागेश्वर धाम सरकार की प्रजा को पहचानिये, ये कोई धार्मिक मनोरंजन नहीं है
बागेश्वर बाबा के दरबारों में गए बिना अंधश्रद्धा निर्मूलन नाम की समिति के कुछ कर्ताधर्ताओं को अंधविश्वास के दर्शन हुए हैं. जड़बुद्धि मूढ़ों की इस जमात को पुट्टपर्थी के सत्यसाईं में तो अंधविश्वास दिखाई देता था, किसी बंगाली बाबा के वशीकरण के विज्ञापनों से कोई तकलीफ नहीं रहा. न किसी दरगाह में मन्नत और पादरियों का पाखंड उजागर करने ये कहीं गए. पड़े-पड़े महाराष्ट्र में कहीं धूल खा रहे थे कि बागेश्वर बाबा से प्राण मिल गये।
विजय मनोहर तिवारी @vijay.m.tiwari
दिसंबर की एक सुबह मैं धुबेला से खजुराहो के लिए निकला था कि हाईवे पर रास्ते में दोनों तरफ हजारों कारें और ट्रैक्टर नजर आए. वह मंगलवार का दिन था. पता चला कि बागेश्वर धाम का रास्ता यहीं से जाता है और हर मंगलवार और शनिवार ट्रेन और सड़क से ट्रैफिक अचानक कई गुना बढ़ जाता है. मैंने बागेश्वर बाबा के बारे में सुना था. मिला आज तक नहीं हूं. इंटरनेट पर उनके वीडियो देखे हैं. मुझे उनमें कुछ भी नया, चमत्कारी और हैरत में डालने जैसा नहीं लगा.
अपने सामने आए किसी श्रद्धालु के नाम, पते, प्रश्न और उसकी समस्याओं को जान जाना और पहले ही परचियों पर लिखकर रखना, ठीक यही करते हुए मध्य प्रदेश के ही एक और संत के निकट जाने का मुझे अवसर मिला था. वे गुरुशरण शर्मा हैं, जिन्हें देश भर में पंडोखर सरकार के नाम से पहचाना गया. दतिया जिले के पंडोखर गांव के एक गृहस्थ संत. मीडिया के कुछ मित्रों के साथ साल 2009 में एक छोटे से दरबार में मुझे भी ले जाया गया था. मैं बड़े ध्यान से उन्हें देख रहा था. भीड़ में से लोगों को बुलाना. पास बैठाना. फिर पूछना और परची निकालने के लिए कहना, जो पहले ही लिखकर रखी हुई है. परची पर वही लिखा हुआ होता, जो उस अपरिचित व्यक्ति ने अभी-अभी सबके सामने कहा है. है न चमत्कार?
”वो सफेद शर्ट पहने चश्मे वाले भाई साहब आ जाएं”…मेरी तरफ संकेत करके उन्होंने मुझे भी बुला लिया था. ”क्या समस्या है?”…उनका वही सवाल था. मैंने करबद्ध प्रणाम की मुद्रा में कहा कि गुरूजी, ईश्वर की कृपा और आपके आशीर्वाद से मेरी कोई समस्या नहीं है, केवल जिज्ञासावश दर्शन भर के लिए आया हूं. मेरी परची पर पहले से यही लिखा हुआ था- कोई समस्या नहीं है. जिज्ञासा के कारण आए हैं. मैं मानता हूं कि देह में हैं तो रोग-व्याधि होगी ही और संसार में हैं तो सफलता-असफलता, नफे-नुकसान चलते ही रहेंगे, इसमें क्या पूछना! वह उनसे मेरी पहली भेंट थी और उसके बाद हम कई बार मिले. दरबारों में भी और देर रात घंटों तक भीड़भाड़ से मुक्त होकर वन टू वन भी. एक बार पंडोखर भी गया. वे मेरे घर भी आए. मैंने पड़ोस के बच्चों से उन्हें खासतौर से अलग से मिलवाया. बच्चों ने उनसे बच्चों जैसे ही प्रश्न किए.
जब 2015 में मैंने पांच साल तक लगातार आठ बार भारत यात्राओं के अनुभव पूरे किए तो मध्यप्रदेश की एक कहानी को मैंने उन्हें ही चुना. मेरे यात्रा वृत्तांत ‘भारत की खोज में मेरे पांच साल’ में पंडोखर सरकार से मेरी मुलाकातों का रोचक विवरण एक लंबे अध्याय में है- ‘सच का सामना’. मैंने उनसे वे सब सवाल पूछे थे, जो आज देश के हर चैनल का एंकर और रिपोर्टर बागेश्वर बाबा यानी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से पूछ रहा है. न मुझे तब चमत्कार जैसा कुछ लगा था, न आज लग रहा है. इसकी वजह है. 1996 में मैंने ‘पातंजलि योगसूत्र’ पढ़ा था. यह छोटी सी अमूल्य पुस्तक भारत की महान् सांस्कृतिक विरासत है, जिसके विभूतिपाद में महर्षि पातंजलि छह सिद्धियों का उल्लेख करते हैं.
पहली सिद्धि प्रातिभा है, जिसमें एक संयमित जीवन जीने के बाद योगी वर्तमान, भूत और भविष्य की अनुभूति पाने में सक्षम हो जाता है. ऐसी ही पांच और विलक्षण सिद्धियां हैं, लेकिन मुनि पतंजलि ने इनके प्रदर्शन को निषिद्ध किया है. योगी का लक्ष्य सिद्धियां नहीं हैं. इनका प्रदर्शन लक्ष्य से भटकाने वाला हो सकता है इसलिए उसे निरंतर साधना पर ही स्वयं को केंद्रित रखना है. केवल घटनाओं और विवादों के पीछे भागकर टीआरपी का जीवनरस प्राप्त करने वाला मूर्ख टीवी मीडिया और उसे चौबीस घंटा ढोने वाला उसका उत्साही मानव संसाधन केवल मीडिया की डिग्री लेकर माइक और कलम पकड़े निकल पड़ा है. मुंह अंधेरे बिना मुंह धोए! अधिकतर एंकर और उनके रिपोर्टर पतंजलि के नाम पर केवल बाबा रामदेव का नाम जानते हैं. बागेश्वर बाबा तो लंबे समय से दरबारों में आ रहे हैं. लोगों से मिल रहे हैं. मगर अब घटा क्या है? घटना यह है कि अंधश्रद्धा निर्मूलन नाम की समिति के कुछ कर्ताधर्ताओं को बाबा के दरबार में बिना गए अंधविश्वास के दर्शन हुए हैं.
मैंने 25 साल पहले इस समिति के भी कुछ कार्यक्रम कवर किए थे. यह भी जड़बुद्धि मूढ़ों की एक धूल खाई हुई जमात है, जो जड़बुद्धि जितने बेईमान भी हैं. बेईमान इसलिए कि इन्हें पुट्टपर्थी के सत्यसाईं में तो अंधविश्वास दिखाई देता था, किसी बंगाली बाबा के वशीकरण के विज्ञापनों से कोई तकलीफ नहीं रही, न किसी दरगाह में मन्नत और पादरियों का पाखंड उजागर करने ये कहीं गए. पड़े-पड़े महाराष्ट्र में कहीं धूल खा रहे थे कि बागेश्वर बाबा से प्राण मिल गए. इन्हें प्राण देने वाला ‘प्राणलेवा टीवी मीडिया’ और भी सुभानल्लाह है! मुनि पतंजलि इन दोनों के लिए समान रूप से अपरिचित हैं. दोनों समान रूप से सेक्युलर हैं. दोनों की जड़ें भारत की जड़ों से नहीं किसी सातवें आसमान से जुड़ी हैं. एक बड़े छाते में इनके ज्यादातर कर्ताधर्ता शातिर वामपंथियों, अर्बन नक्सल्स, प्रगतिशील, नारीवादी और अजीब तरह के आधुनिकतावादियों के आसपास हैं, जो वक्त जरूरत हिजाब भी ओढ़ लेते हैं और #एलजीबीटीक्यू के मंत्र जाप भी निरंतर खुलकर करना चाहते हैं!
अब बात लाखों की तादाद में उमड़ती उस ‘ऑडिएंस’ की, जो दरबार के पांडालों को छोटा कर रही है. वोटों से बनी सरकारों को लाख-पचास हजार की भीड़ जमा करने के लिए आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को बसों में भर-भरकर ढोने की जरूरत पड़ती है और इस हम्माली में यूपीएससी से चुनकर आए प्रतिभाशाली आईएएस लगाए जाते हैं. तो वो कौन हैं जो बिना बुलाए चारों तरफ से लाखों की संख्या में पंडोखर, रावतपुरा, बागेश्वर या शोभन सरकार के दरबारों में आ जाते हैं, जबकि इन सरकारों को तो किसी ने निर्वाचित भी नहीं किया. 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है. यह आडिएंस यहां से आती है, जिसने अभी-अभी प्रधानमंत्री आवास पा लिया है, टॉयलेट पहले ही बन गया था और उज्जवला स्कीम से घर में गैस भी आ गई. संबल योजना में नाम जुड़वा लिया गया है ताकि मरने के बाद भी दो लाख और मिल जाएं. भारत का निम्न मध्यम वर्ग इन दरबारों का ‘रिजर्व आडिएंस’ है.
कथा सुनने बैठा मुरारी बापू और अब कुमार विश्वास का आडिएंस वह है, जो इस ‘भवसागर से पार’ हो चुका है. वे बापू को चार्टर प्लेन से बुला सकते हैं. बच्चे कनाडा-आस्ट्रेलिया में सैटल हैं. यहां कंपनियां ठीकठाक कारोबार कर रही हैं. दो पीढ़ी में ही जीवन कहीं से कहीं पहुंच गया है. अच्छी बात है, अब ऋषि-मुनियों के भारत की महानता के गान अच्छे लगने ही चाहिए. यह अलग क्लास है, जो बाबा रामदेव के सम्मुख अग्रिम पंक्ति में योगासन में हिलने-डुलने की सामर्थ्य रखता है. ओशो, जग्गी वासुदेव, श्रीश्री रविशंकर बड़े ब्रांड हैं, जिनका टारगेट ग्रुप भी यही रहा है. ओशो तो हास्य में कहते ही थे कि सब दरिद्र नारायण की सेवा में लगे हैं, कृपा करके धनवानों को मेरे लिए छोड़ दें.
बागेश्वर बाबा का ऑडिएंस 80 करोड़ की इसी विशाल आबादी से आता है. कथा के दौरान अगर गांव के पास हाईवे पर तेल का टैंकर लुढ़क जाए तो यही आडिएंस बाल्टी, गागर और पीपे उठाकर तेल भरने उमड़ पड़ेगी और हाथ पौंछकर फिर राम नाम के कीर्तन में आकर तालियां बजाने लगेगी. इनके लिए छोटे कस्बों और शहरों में मथुरा-वृंदावन के कथा वाचकों की कमी नहीं है, जो चातुर्मास और नवरात्रि जैसे अवसरों पर राम या कृष्ण की कथाएं सुनाते हैं. एक किस्म का धार्मिक मनोरंजन! यह वो ऑडिएंस है, जिसने छोटे-मोटे धंधों और नौकरियों में येनकेन प्रकारेण इतना माल भी जुटा लिया है कि अब अगली बड़ी घात में लग सके. जैसे टिकट मिलेगा या नहीं, कारोबार चलेगा या नहीं, रंगे हाथ पकड़े तो गए, बच जाएंगे या नहीं?
यह वो क्लास है, जिसके लिए बेटे की नौकरी, बेटी की शादी, पति की आमदनी, कचहरी के चक्कर, एक कार, मां की बीमारी, पिता की परेशानी, भाई के उत्पात और तो और बदमिजाज पड़ोसी से निजात कश्मीर और पाकिस्तान से बड़े मुद्दे हैं. वह इन मुद्दों के समाधान की खातिर रात भर ट्रेनों के भीड़ भरे डिब्बों में सफर करके झांसी या छतरपुर उतरकर पंडोखर और बागेश्वर के रास्तों की धूल उड़ाता है. बस उसके नाम की परची निकल जाए!
बागेश्वर बाबा टीवी के आकर्षण इसलिए भी हैं, क्योंकि वे युवा हैं और रणवीर कपूर से कम खूबसूरत नहीं हैं. उनका अंदाज निराला है. मुझे नहीं पता कि वे स्कूल या कॉलेज में कहां तक पढ़े हैं, लेकिन हाजिर जवाब हैं और बच्चों जैसी सहज ऊर्जा से खिलखिलाते है, घुटनों पर धौल जमाते हैं, बुंदेलखंडी लहजा उनकी रंगबिरंगी अदाओं में चार चाँद लगा देता है. वे स्क्रीन के लिए फिट मटेरियल हैं. इंटरव्यू में वे अपने दादा गुरू का उल्लेख करते हैं, जिनके साथ दस साल की उम्र में बागेश्वर बालाजी हनुमान की सेवा में लगा दिए गए थे और तेरह साल की उम्र में उन्हें पहली बार अनुभव हुआ कि वे लोगों के मन की बात पढ़ सकते हैं.
वे सिर्फ परचियां ही लिख रहे होते तो किसी को कोई तकलीफ नहीं होनी थी. पंडोखर सरकार को लेकर इतना हल्ला कभी नहीं मचा. हंगामे की वजह साफ है. बागेश्वर बाबा ने अपने इष्ट की प्रेरणा से उन धंधेबाजों के लिए चुनौती दी है, जिनके लिए झूठ-फरेब, लालच और डर से अपने ‘पंथ’ के प्रचार और प्रसार बेरोकटोक करने हैं. जंगलों में वनवासियों के गले में क्रॉस टाँगना है और शहरों में पाँचों वक्त कानों को पूरे जोर से एक ही राग सुनाना है. सेक्युलर परिवेश में गाजरघास की तरह फैलने की आजादी अब बाधित हो रही है. सरकार कानून बनाए उसे तो अपने अर्बन एनजीओ और प्रगतिशील वकीलों की मदद से अदालतों में घसीट देंगे, इस बाबा का क्या करें?
बाबा ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है. बदनामी के डंक अभी शुरू हुए हैं. मीडिया को टीआरपी का जीवन रस मिल गया है. सिद्धियां साधना से मिलती हैं. साधना की कोई समय सीमा तय नहीं है. एक जन्म की साधना संभव है कुंडलिनी का पहला चक्र ही जगा दे पाए और यह नश्वर देह चली जाए. इस देह में रहते जागृत हुए चक्र की वह ऊर्जा अगले जन्म की नैसर्गिक सिद्धि होती है. नई देह में वह व्यक्ति बाल्यकाल से ही विलक्षण होगा. भले ही उसे स्वयं इसका बोध न हो. यह कुछ ऐसा ही है.
मेरी समझ में यह जरूर नहीं आया कि दादा से पिता में होकर कोई सिद्धि पुत्र तक आ सकती है या नहीं, या अगर दादा और पोते तीन पीढ़ियों में ऐसी सिद्धि सतत है तो वह सबके अपने पूर्व जन्म की अधूरी डिग्री का प्रमाण है या इसी जन्म में हस्तांतरित हुई है. पंडोखर सरकार के पिता भी ऐसे ही अनुभव में थे और एक समय के बाद उनकी सिद्धि धुंधला गई थी. अगली बार कभी बागेश्वर सरकार धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री या पंडोखर सरकार गुरुशरण शर्मा से मिला तो अवश्य ही यह जिज्ञासा रखूंगा.
एक बात और, बाद की मुलाकातों में मैंने पंडोखर सरकार से जो प्रश्न अपने बारे में किए थे, उनमें एक प्रश्न मेरे पूर्व जन्म को लेकर था…
#बागेश्वर धाम, #पंडोखर सरकार, #मध्य प्रदेश, Shri Bageshwar Dham Sarkar, Shri Dhirendra Krishna Shastri, Pandokhar Sarkar Dham
लेखक
विजय मनोहर मनोहर तिवारी @vijay.m.tiwari
लेखक मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त हैं. और ‘भारत की खोज में मेरे पांच साल’ सहित छह किताबें लिख चुक हैं.