SC को दी जानकारी:विदेशी चंदे से महिलाओं और बच्चों का धर्मांतरण
- धर्मांतरण के लिए महिलाएं और बच्चे टारगेट… विदेशी चंदा पाने वाले गुट ऐक्टिव, सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी
देश में धर्मांतरण कराने वाले संगठन सक्रिय है। इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया है। कोर्ट धर्मांतरण के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। इसमें याचिकाकर्ता ने बताया है कि देश में महिलाएं और बच्चे इसके लिए मुख्य रूप से निशाने पर हैं। पिछली सुनवाई में अदालत ने कहा था कि परमार्थ कार्य का मकसद धर्मांतरण नहीं होना चाहिए।
नई दिल्ली12 दिसंबर: उच्चतम न्यायालय को बताया गया है कि देश में महिलाएं और बच्चे ‘विदेशी वित्तपोषित’ धर्मांतरण के मुख्य निशाने हैं। केंद्र और राज्य सरकारें उसे रोकने के वास्ते उपयुक्त कदम उठाने में विफल रही हैं। धर्मांतरण के विरुद्ध एक याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ के समक्ष दाखिल अपनी लिखित दलील में जनहित याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने इस मुद्दे पर कानून नहीं होने का हवाला दिया। कहा कि इसी कारण से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों का धर्मांतरण करने के लिए अनैतिक रणनीतियां अपनाई जा रही हैं।
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच दिसंबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि परमार्थ कार्य का मकसद धर्मांतरण नहीं होना चाहिए और जबरन धर्मांतरण एक ‘गंभीर मुद्दा’ है, जो संविधान की भावना के विरुद्ध है।
अपनी लिखित दलील में उपाध्याय ने धर्मांतरण से जुड़ी अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने के वास्ते विदेशी चंदा प्राप्त एनजीओ और व्यक्तियों के लिए विदेशी चंदा विनिमयन कानून (एफसीआरए) में बनाए गए नियमों की समीक्षा समेत विभिन्न राहतों की मांग की।
याचिका में धर्मांतरण पर रोक के लिए हवाला और अन्य माध्यमों से होने वाले धन के अंतरण पर नियंत्रण के लिए भी कठोर कदम उठाने की मांग की गयी है।
याचिका में विधि आयोग से गैरकानूनी कपटपूर्ण धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए उपयुक्त कानून एवं दिशानिर्देश का सुझाव देने का अनुरोध किया गया है।
उसमें केंद्र और राज्यों को ‘कपटपूर्ण धर्मांतरण’ में लगे व्यक्तियों एवं संगठनों की ‘बेनामी’ एवं आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति को जब्त करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।
याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाएं और बच्चे विदेशी चंदा पाने वाले मिशनरियों एवं धर्मांतरण समूहों के मुख्य निशाने हैं, लेकिन केंद्र एवं राज्यों ने अनुच्छेद 15 (3) की भावना में धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त कदम नहीं उठाया है। स्थिति इतनी भयावह है कि कई व्यक्ति एवं संगठन सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों की गरीबी का फायदा उठाते हुए जबर्दस्ती या लालच देकर बड़े पैमाने पर उनका धर्मांतरण कर रहे हैं।’
भादंसं के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उसमें कहा गया है कि उपासना स्थल को नुकसान पहुंचाना या अशुद्ध करना, धार्मिक भावना को आहत करने के लिये जानबूझकर किया गया दुर्भावनापूर्ण कृत्य, कब्रिस्तान में अनधिकार प्रवेश आदि धर्म से जुड़े अपराध समझे जाते हैं।
उसमें कहा गया है, ‘लेकिन डरा धमकाकर, उपहार या मौद्रिक लाभ का लालच देकर या प्रलोभन से धर्मांतरण, जो धर्म से संबंधित अधिक गंभीर अपराध हैं, को भादंसं के पंद्रहवें अध्याय में शामिल नहीं किया गया है।’
उसमें कहा गया है कि गलत तरीके से धर्मांतरण से संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीवन जीने के अधिकार, आजादी या गरिमा को सीधा नुक़सान होता है।
जबरन धर्मांतरण के खिलाफ याचिका में ऐसा क्या था जिस पर सुप्रीम कोर्ट को भी ऐतराज, 9 जनवरी तक टली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा था कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता का अतिक्रमण कर सकता है। शीर्ष अदालत ने केंद्र से इस बेहद गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए गंभीरता से प्रयास करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए याचिका भी दायर है।
जबरदस्ती धर्मांतरण के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने सोमवार को याचिकाकर्ता के वकील से याचिका में इस्तेमाल की गई कड़ी भाषा को नरम करने पर विचार करने के लिए कहा। इससे पहले एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि कुछ धर्मों के अनुयायियों के बारे में गंभीर और चिंतित करने वाले ये आरोप लगाए गए हैं कि वे बलात्कार और हत्या को बढ़ावा देने वाले हैं। जस्टिस एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार से इस मुद्दे पर विचार करने को कहा।
पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि आप कृपया विचार करें कि यह आरोप क्या है। आप कृपया इस पर विचार करें और इसे नरम करें। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, एक पक्ष की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मामले में पक्षकार बनाने का अनुरोध किया और कहा कि धर्मों के खिलाफ कुछ बहुत ही गंभीर और घृणित आरोप हैं। दवे ने कहा, यह आरोप कि कुछ धर्म बलात्कार और हत्यायें कर रहे हैं, न्यायाधीश की फाइल में नहीं होने चाहिए। आपको उन्हें वापस लेने के लिए कहना चाहिए।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उपलब्ध नहीं होने के कारण पीठ ने मामले पर सुनवाई नौ जनवरी तक के लिये टाल दी। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में कहा था कि जबरन धर्म परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है और संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कपटपूर्ण तरीके से कराये जाने वाले धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है।